जागरण संपादकीय: जन-जन के मन का दस्तावेज है संविधान, भारतीय जीवन मूल्यों को केंद्र में रखा
भारतीय संविधान और लोकतंत्र को सुदृढ़ करने की मंशा से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं। सत्ता में आने के अगले ही वर्ष यानी 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने दशकों से उपेक्षित 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की शुरुआत कर दी। यह दर्शाता है कि उनमें भारतीय संविधान के प्रति कितनी गहरी सम्मान भावना है।
भूपेंद्र यादव। भारतीय संविधान भारत के लोकतंत्र का मूल आधार है। आज भारत का आधुनिक लोकतंत्र 75 वर्ष की गौरवशाली यात्रा पूर्ण कर प्रगति पथ पर अग्रसर है। इस 75 वर्षीय यात्रा के केंद्र में हमारा संविधान प्रतिष्ठित रहा है। ध्यातव्य है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान की रचना में भारतीय जीवन मूल्यों की मान्यताओं, आधुनिक शासन और भविष्य की आशाओं तथा आकांक्षाओं की पूर्ति को केंद्र में रखा था।
इन लक्ष्यों की सिद्धि करने वाले दस्तावेज के रूप में हमारा संविधान 26 नवंबर 1949 को देश की जनता को समर्पित किया गया था। इस दृष्टि से 26 नवंबर भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण तारीख के रूप में दर्ज होना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्यवश लंबे समय तक ऐसा नहीं हो सका।
स्वतंत्रता के पश्चात दशकों तक केंद्रीय सत्ता में रही कांग्रेस के विचार में 26 नवंबर का ऐतिहासिक महत्व कभी नहीं आया। वास्तव में, कांग्रेस नेतृत्व सत्ता पर प्रभुत्व एवं नियंत्रण स्थापित रखने को ही लोकतंत्र का प्रमुख उद्देश्य मानता था।
वे स्वाधीनता दिवस (15 अगस्त) और गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) तो मनाते रहे, पर ‘संविधान दिवस’ जैसे महत्वपूर्ण अवसर, जब देश ने संविधान को अंगीकार किया था, को मात्र न्यायपालिका तक सीमित कर दिया। संविधान केवल न्यायिक या वैधानिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि वह भारत की जनता की आशाओं एवं आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। इस अर्थ में यह देश के जन-जन के मन का दस्तावेज है।
‘संविधान दिवस’ की उपेक्षा तो एक विषय है। अन्यथा कांग्रेस का रवैया हर प्रकार से संविधान विरोधी ही रहा है। संविधान को कमजोर करने वाले अनेक प्रयास कांग्रेस समय-समय पर करती आई है। कांग्रेस द्वारा अपने शासनकाल में इस पर संशोधन लाने का प्रयास किया गया कि सरकार संविधान में क्या-क्या परिवर्तन कर सकती है?
उल्लेखनीय होगा कि इसी विषय पर सर्वोच्च न्यायालय में केशवानंद भारती मामले की ऐतिहासिक सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की 13 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने माना था कि ‘संशोधन करने की शक्ति में संविधान की मूल संरचना या रूपरेखा को बदलने की शक्ति शामिल नहीं है, जिससे कि इसका मूल ही बदल जाए।’
तब जस्टिस सीकरी ने सुनवाई में कहा था कि संविधान में संशोधन’ शब्द संसद को मौलिक अधिकारों को निरस्त करने, छीनने या संविधान की मौलिक विशेषताओं को पूरी तरह से बदलने में सक्षम नहीं बनाता है, जिससे इसकी पहचान ही नष्ट हो जाए। बल्कि, इन सीमाओं के भीतर ही संसद हर अनुच्छेद में संशोधन कर सकती है।
स्पष्ट है कि न्यायालय द्वारा संशोधन को लेकर मर्यादा निर्धारित की गई है। अन्यथा अतीत की कांग्रेस सरकारों की मंशा तो संविधान में मनमाने परिवर्तन की ही थी। आपातकाल के काले दौर में कांग्रेस द्वारा ऐसा किया भी गया, जब इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान की मूल प्रस्तावना ही बदल डाली।
स्पष्ट है कि कांग्रेस के लिए हमारा संविधान केवल सत्ता को साधने का एक उपकरण मात्र रहा है, संविधान के प्रति सम्मान की भावना कांग्रेस के चरित्र में नहीं है। वर्ष 2014 में सत्तारूढ़ होने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार संविधान के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की संकल्पना को पूरा करने के लिए प्रयासरत है।
भारतीय संविधान और लोकतंत्र को सुदृढ़ करने की मंशा से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं। सत्ता में आने के अगले ही वर्ष यानी 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने दशकों से उपेक्षित 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की शुरुआत कर दी। यह दर्शाता है कि उनमें भारतीय संविधान के प्रति कितनी गहरी सम्मान भावना है।
केंद्र और राज्य के बीच संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करते हुए एक बेहतर तालमेल और संवाद से युक्त व्यवस्था का निर्माण कर संविधान में निहित संघीय ढांचे को मजबूती देने का काम मोदी सरकार ने किया है। इतना ही नहीं, संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर के सम्मान में उनसे संबंधित स्थलों को पंचतीर्थ के रूप में विकसित करने का कार्य भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा किया गया है। यह सभी कार्य भारतीय संविधान के प्रति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सम्मान और प्रतिबद्धता को ही प्रकट करते हैं।
गणतंत्र, पंथनिरपेक्षता, सशक्त निर्वाचन पद्धति, संघीय ढांचा, मौलिक अधिकार, मूलभूत कर्तव्य, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय संविधान के ऐसे कीर्तिमान हैं, जिसे पूरा करना प्रत्येक सरकार का कर्तव्य है। ये कोई शासन का आदेश नहीं, बल्कि भारत की संप्रभु जनता का किसी भी चुनी हुई सरकार को दिया गया जनादेश है। इसलिए, प्रश्न यह उठता है कि जब संविधान इतना स्पष्ट है तो क्या संविधान की मूल भावना पर केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए बहस खड़ी करना स्वस्थ लोकतंत्र का लक्षण है?
संविधान भारत में सभी नागरिकों के लिए दिग्दर्शक तत्व है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस पवित्र ग्रंथ पर भी विपक्ष द्वारा अत्यंत निकृष्ट राजनीति की जा रही है। जो कांग्रेस शासन में रहते हुए कभी संविधान का सम्मान नहीं कर सकी, वह आज विपक्ष में बैठकर यह भ्रम फैलाने में लगी है कि मोदी सरकार संविधान को खत्म कर देगी। ऐसा असत्य और भ्रम फैलाना क्या लोकतंत्र के खिलाफ नहीं है?
सच तो यह है कि कांग्रेस जैसे दल आज अपने मूल राजनीतिक विचार को खो बैठे हैं और उनके पास यह कहने की क्षमता नहीं बची है कि ‘संविधान के अंतर्गत आखिर वो कैसे भारत का शासन चलाएंगे?’ कांग्रेस अपने गांधीवादी विचार और समाजवादी पार्टी जैसे दल समाजवाद और राम मनोहर लोहिया जी के मूलभूत विचारों को भूल चुके हैं।
अब इनका लक्ष्य केवल किसी भी तरह सत्ता हथियाना ही रह गया है, लेकिन भारत की जनता बहुत विवेकवान है। वह विपक्ष के इन राजनीतिक प्रपंचों को बखूबी समझ भी रही है और समय-समय पर अपने मत की शक्ति से इनके प्रपंचों का समुचित उत्तर भी देती रहती है।
(लेखक केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री हैं)