पंकज चतुर्वेदी। देश के सबसे नैसर्गिक सुंदर स्थानों में से एक केरल के वायनाड जिले में अचानक हुई भारी बरसात के बाद हुए भूस्खलन के चलते कई गांव बह गए और लगभग दो सौ लोग काल कवलित हो गए। अभी भी कई लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका है। इसके पीछे का कारण धरती के बढ़ते तापमान के चलते अरब सागर के पानी के अधिक गर्म होने से उत्पन्न सघन बादलों को माना जा रहा है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2020 में केरल में घटित जलवायु परिवर्तन खासकर तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि की घटनाओं को समूचे तंत्र ने नजरअंदाज किया। उस साल केरल में आए भयंकर जल-प्लावन के बाद अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध वायनाड में अचानक ही केंचुए सहित कई प्रकृति प्रेमी कीट गायब हो गए थे।

फिर एक महीने पहले तक उफन रहीं पंपा, पेरियार, कबानी जैसी कई सदानीरा नदियों का जलस्तर आश्चर्यजनक ढंग से बहुत कम हो गया। इडुक्की और वायनाड जैसी जगहों पर जमीन में कई सौ मीटर लंबी दरारें आ गईं। वायनाड में भूस्खलन से हुई तबाही के बीच हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड समेत देश के अन्य कई हिस्सों में अचानक भारी बरसात होने और उसके चलते जनजीवन प्रभावित होने के समाचार आ रहे हैं।

कई शोध बताते हैं कि धरती के तापमान में बढ़ोतरी के कारण अब पश्चिमी घाट के आसपास के इलाकों में अचानक बहुत भारी बरसात होने लगी है। पश्चिमी घाट में महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्से आते हैं। यह समूचा क्षेत्र जैव-विविधता की दृष्टि से अत्यंत संपन्न होते हुए उतना ही संवेदनशील भी है।

हमारी धरती को प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से गर्मी मिलती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरते हुए पृथ्वी की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है, जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर धरती के ऊपर एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं।

यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस तरह धरती को गर्म बनाए रखता है। इंसानों, दूसरे प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी मोटा होता जाता है।

ऐसे में यह आवरण सूर्य की ज्यादा किरणों को रोकने लगता है और इससे धरती का परिवेश जरूरत से अधिक गर्म हो जाता है। ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश तो कर लेती हैं, लेकिन वापस अंतरिक्ष में नहीं जा पातीं और तापमान बढ़ाने में कारक बनती हैं। यदि इन गैसों का उत्सर्जन इसी प्रकार होता रहा तो आने वाले वर्षों में पृथ्वी का तापमान तीन से आठ डिग्री तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। भीषण गर्मी बढ़ेगी। फसलों की उपज पर असर पड़ेगा। विश्व के कई हिस्सों में बर्फ गल जाएगी। इससे समुद्र का जलस्तर कई फीट ऊपर तक बढ़ जाएगा। इससे कई हिस्से जलमग्न हो जाएंगे।

आज धरती का तापमान 1970 के मुकाबले तीन गुना तेजी से बढ़ रहा है। बढ़ती वैश्विक गर्मी का असल कारण इंसानों एवं उनकी भौतिक सुविधाओं की जरूरतें हैं। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और जंगलों में लगने वाली आग इसकी मुख्य वजह हैं। इसके अलावा घरों में लक्जरी वस्तुएं मसलन एसी, रेफ्रिजरेटर, माइक्रोवेव ओवन आदि भी इस गर्मी को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

केरल से ठीक दूसरे सिरे पर स्थित धरती के स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर में भी यह गर्मी इन दिनों चिंता का विषय बनी हुई है। इस बार वहां गर्मी में तो सामान्य से अधिक तापमान रहा ही, ठंड के दिनों में 40 दिन तक बर्फ नहीं गिरी। इन दिनों श्रीनगर सहित घाटी के बर्फ से ढके रहने वाले इलाकों में तापमान 36 के पार है। बरसात के अभाव में झेलम जैसी नदियां अभी से सूख रही हैं। इसका असर पर्यटन और खेती के साथ-साथ जल विद्युत परियोजनाओं पर भी पड़ रहा है।

लेह-लद्दाख में भी जुलाई के आखिरी हफ्ते में भीषण गर्मी पड़ी और इसके चलते कई विमान सेवाएं रोकनी पड़ीं। पंजाब में एक तो बरसात नहीं हो रही, दूसरे गर्मी अधिक है। इसके चलते खेतों में बोआई भी अटकी हुई है। 2018 के आर्थिक सर्वेक्षण में ही यह बात कह दी गई थी कि धरती का तापमान अधिक होने पर हमारी खेती-किसानी ध्वस्त हो सकती है।

यदि तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो सर्दियों के दौरान किसानों की आय 6.2 प्रतिशत कम कर देता है और असिंचित जिलों में गर्मी के दौरान छह प्रतिशत की कमी करता है। इसी तरह बरसात में औसतन 100 मिमी की कमी होने पर किसानों की आय में करीब 15 प्रतिशत गिरावट आती है।

धरती का तापमान बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कुछ इस तरह हो रहा है, जैसे-बिजली घर से 21.3 प्रतिशत, कारखानों से 16.8 प्रतिशत, यातायात एवं वाहनों से 14 प्रतिशत, खेती-किसानी के उत्पादों से 12.5 प्रतिशत, जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से 11.3 प्रतिशत, आवासीय क्षेत्रों से 10.3 प्रतिशत, खेतों से निकले बायोमास जलने से 10 प्रतिशत और कचरा जलाने से 3.4 प्रतिशत।

हमें यह देखना है कि किस तरह हम इन हानिकारक गैसों को नियंत्रित कर सकते हैं। वैसे यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तत्काल बहुत कम कर दिया जाए तो भी तापमान में बढ़ोतरी तत्काल रुकने की संभावना नहीं है। अब यह हम इंसानों पर निर्भर है कि अपनी आगामी पीढ़ियों को बेहतर धरती देने के लिए किस तरह अपनी लिप्सा और भौतिक सुखों की चाहत के बजाय स्वस्थ पर्यावरण को महत्व दें।

(लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं)