अभिजीत। भारत चीनी का एक बड़ा उत्पादक देश है। साथ ही हम बड़ी मात्र में चीनी का निर्यात भी करते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने कुछ दिनों पहले ही इस पर 3,500 करोड़ रुपये के अनुदान की घोषणा की है, जिससे इस वर्ष भी हम करीब 60 लाख टन चीनी का निर्यात कर पाएंगे। इस अनुदान से देश के लाखों गन्ना किसानों को फायदा होगा। सरकार गन्ना किसानों के लाभ के लिए कई कदम उठा रही है।

फिक्की की वार्षकि बैठक को संबोधित करते हुए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संबंध में किए गए कुछ हालिया सुधारों का जिक्र किया। उन्होंने यह भी बताया कि जब गन्ना किसान अपनी फसल को बेचने को लेकर परेशान हो रहे थे, तो उनकी स्थिति को बदलने के लिए सरकार ने गन्ने से एथेनॉल के उत्पादन के लिए चीनी मीलों को प्रोत्साहित किया। इसी कड़ी में उन्होंने कहा कि सरकार अब पेट्रोल में 10 फीसद एथेनॉल मिलाने की ओर बढ़ रही है जिससे गन्ने की खेती को लाभ मिलेगा।

इससे कुछ दिन पहले केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बिहार में एक परियोजना के वचरुअल उद्घाटन के दौरान कहा कि यदि बिहार में एथेनॉल की फैक्ट्री शुरू की जाए तो राज्य की आíथक दशा में व्यापक सुधार आ सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि राज्य सरकार यदि बिहार में 100 ऐसी फैक्टियां लगाए तो केंद्र सरकार इसके लिए पूरी मदद करेगी और जितना एथेनॉल यहां बनेगा, उसे केंद्र सरकार खरीदेगी।

वर्तमान सरकार में इस कार्य में आई तेजी : एथेनॉल को लेकर पहले भी चर्चा होती रही है, लेकिन वह काफी धीमी रही है। भारत में पहली बार 1970 के आसपास एथेनॉल के जैव ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए अध्ययन करने के लिए तकनीकी समितियों का गठन किया गया था। हालांकि इस योजना को मूर्त रूप में आने में काफी समय लगा और वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे आरंभ किया गया। इसके तीन वर्ष के बाद 2005 में पांच प्रतिशत एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल को बेचने का प्रस्ताव आया। परंतु उस समय इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया। लिहाजा करीब एक दशक तक यह ठंडे बस्ते में ही रहा।

केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद इस प्रस्ताव पर तेजी से काम शुरू हुआ और इसे लेकर सरकार ने कई कदम उठाए। इसे ऊर्जा एवं ईंधन के व्यापक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला है। वर्तमान चुनौतियों और संभावनाओं को देखते हुए वर्ष 2018 में इस संबंध में एक राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति लाई गई और उसमें कई बातों का उल्लेख किया गया है। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 में कहा गया है कि सरकार पेट्रोल में एथेनॉल के मिश्रण को 2022 तक 10 प्रतिशत व 2030 तक 20 प्रतिशत तक ले जाना चाहती है और इसके लिए हर स्तर पर प्रयास किया जा रहा है।

पिछले दो वर्षो से सरकार चीनी मिलों को गन्ने से एथेनॉल बनाने की तरफ ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए गन्ने से बनने वाले एथेनॉल के मूल्य में वृद्धि करने के साथ ही जो मिल नई इकाई लगाना चाहते हैं, उनकी सहायता के लिए खास योजना भी लाई गई है। सरकार ने सितंबर 2018 में आíथक सहायता योजना शुरू की जिसमें ऐसे चीनी मिल, जिनकी आíथक स्थिति ठीक नहीं है और बैंक से कर्ज लेने में दिक्कत हो रही है, उन पर विशेष ध्यान दिया गया। केंद्र सरकार ने एथेनॉल की यूनिट के लिए ऐसे त्रिपक्षीय अनुबंध जिसमें मिल, बैंक और तेल कंपनियां शामिल होंगी, को सहमति प्रदान की है, ताकि वित्तीय कमी के कारण एथेनॉल उत्पादन में कोई समस्या न आए।

प्रदूषण कम करने में भी सक्षम : भारत विश्व के पांच सबसे बड़े एथेनॉल उत्पादक देशों में से एक है। पिछले कुछ वर्षो में देश में गन्ने के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है, जिससे एथेनॉल के उत्पादन में वृद्धि हुई है। वर्ष 2020-21 में सरकार ने साढ़े सात से आठ फीसद एथेनॉल का पेट्रोल में मिश्रण करने के लिए इसके तीन सौ से साढ़े तीन सौ करोड़ लीटर उत्पादन का लक्ष्य रखा है। देश में राष्ट्रीय स्तर पर एथेनॉल का पेट्रोल में मिश्रण अभी करीब पांच फीसद ही है। इसमें भी सभी राज्यों की समान भागीदारी नहीं है। दरअसल हमारे देश में तेल का उत्पादन करने वाली कंपनियों ने 2019-20 के इथेनॉल आपूíत वर्ष (एक दिसंबर 2019 से 30 नवंबर 2020) में 195 करोड़ लीटर एथेनॉल की खरीद की।

यह आंकड़ा 2013-14 में महज 38 करोड़ लीटर था। पिछले कुछ वर्षो में एथेनॉल के उत्पादन और तेल कंपनियों के द्वारा इसकी खरीद में कई गुना की वृद्धि हुई है। कुछ महीने पहले ही केंद्र सरकार ने 2020-21 एथेनॉल आपूíत वर्ष में गन्ने से बने एथेनॉल की कीमतों में भी बढ़ोतरी की। इसका सीधा लाभ गन्ना किसानों को मिलेगा। भारत में एथेनॉल का एक बड़ा बाजार उपलब्ध है जो भविष्य में और बड़ा होगा, लेकिन वर्तमान में मांग के आधे से थोड़ी ही ज्यादा आपूíत संभव हो पा रही है। चीनी मिल बायो-इथेनॉल के की मांग को पूरा करने में समर्थ नहीं हैं, इसलिए इसकी अन्य उत्पादन इकाइयों की जरूरत है।

बायो-एथेनॉल की मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक है कि पहली पीढ़ी और दूसरी पीढ़ी के बायो-एथेनॉल इकाइयों को लगाया जाए और इसमें सरकारी के साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाए। पहली पीढ़ी बायो-एथेनॉल इकाइयों में गन्ने के रस व उसके शीरा का इस्तेमाल किया जाता है जो चीनी उत्पादन के समय मिलता है। ऐसी इकाइयां चीनी मिलों के साथ आसानी से लग सकती हैं। वहीं दूसरी पीढ़ी बायो-एथेनॉल इकाइयों में बायोमास और खेती के अपशिष्ट का प्रयोग किया जाता है।

इन इकाइयों के लिए एक बड़ी चुनौती है कृषि अपशिष्ट का अधिक मूल्य में मिलना। इस कारण निजी क्षेत्र इसमें नहीं आ रहा है। इसमें सरकार यह कर सकती है कि ऐसे केंद्र बनाए जाएं, जहां किसान अपने अपशिष्ट को आसानी से बेच सके और सरकार ही इनका मूल्य तय करे जैसे गन्ने और बायो एथेनॉल का करती है। इसके कई लाभ होंगे। अभी किसान खेती के कई अपशिष्ट को जलाते हैं जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है, पर जब उन्हें इसकी अच्छी कीमत मिलने लगेगी तो वे इसे बेचेंगे। इससे वायु प्रदूषण में कमी आएगी और किसानों को भी फायदा होगा। साथ ही नई इकाइयों के लिए निवेश लाना भी आसान होगा। अभी तेल कंपनियां इसमें निवेश करने की योजना बना रही हैं।

[शोधार्थी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय]