बिहार के नवादा जिले में दलितों के घरों में आगजनी की घटना जितनी दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक है, उतनी ही शर्मनाक है इस घटना को लेकर हो रही छिछली राजनीति। इस घटना को लेकर यह माहौल बनाकर देश को गुमराह ही किया जा रहा है कि दबंगों ने दलितों के घर जला दिए, क्योंकि तथ्य यही है कि यह घटना दलितों के दो वर्गों के बीच के विवाद का नतीजा है। इसमें पीड़ित पक्ष के लोग मुसहर जाति के हैं, जिन्हें बिहार में महादलित कहा जाता है और आगजनी करने वाले पासवान जाति के।

इस घटना की जड़ में जमीन को लेकर दो पक्षों के बीच का विवाद है, जो लंबे समय से चला आ रहा है और जो न्यायालय के समक्ष भी विचाराधीन है। इस घटना के सामने आते ही राजग विरोधी दलों के नेताओं ने जिस तरह के बयान दागे, उनसे यदि कुछ स्पष्ट होता है तो यही कि जातीय वैमनस्य भड़काने की बेहद सस्ती और खतरनाक राजनीति हो रही है। नवादा की घटना को लेकर जातिगत वैमनस्य भड़काने का काम किस तरह किया जा रहा है, इसका पता कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस कथन से चलता है कि यह घटना बहुजनों के विरुद्ध अन्याय की डरावनी तस्वीर उजागर कर रही है। क्या राहुल गांधी ने पासवान समाज को बहुजनों की सूची से बाहर कर दिया है और यदि कर दिया है तो क्यों और कैसे? यही प्रश्न कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से भी है, जिन्होंने राहुल गांधी की हां में हां मिलाते हुए बयान जारी किया। निःसंदेह यह उनकी मजबूरी रही होगी, लेकिन वह तो स्वयं अनुसूचित जाति से हैं और उन्हें तो वस्तुस्थिति का ज्ञान होना ही चाहिए।

राहुल गांधी ने नवादा की घटना पर यह भी कहा कि भाजपा और उसके सहयोगी दलों के नेतृत्व में ऐसे अराजक तत्व शरण पाते हैं, जो भारत के बहुजनों को डराते-दबाते हैं, ताकि वे अपने सामाजिक और संवैधानिक अधिकार भी न मांग पाएं। वह यहीं तक ही सीमित नहीं रहे। उन्होंने यह भी कह डाला कि प्रधानमंत्री का मौन इस बड़े षड्यंत्र पर स्वीकृति की मुहर है। उनकी मानें तो बहुजनों के खिलाफ कोई षड्यंत्र रचा गया है, जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं।

नवादा की घटना के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई आवश्यक है, लेकिन उसकी निंदा करने के बहाने सामाजिक संबंधों पर केरोसिन छिड़कने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। दुर्भाग्य से राहुल गांधी एक लंबे समय से यही कर रहे हैं। वह कभी जाति जनगणना और कभी आरक्षण की पैरवी करने की आड़ में देश की सामाजिक एकता पर प्रहार ही कर रहे हैं। जो लोग एससी-एसटी आरक्षण के उपवर्गीकरण के विरोध में खड़े हो गए हैं, उन्हें नवादा की घटना से यह भी समझ आ जाए तो बेहतर कि एससी-एसटी समाज की जातियों में वैसी एकता नहीं, जैसा वे अपनी राजनीति चमकाने के लिए बता रहे हैं।