वैश्विक डिजिटल क्रांति का अग्रदूत बना भारत, हमारी देसी तकनीकी विकल्पों की ओर आकर्षित हो रहे तमाम देश
डिजिटल पब्लिक गुड्स का मुद्दा आखिर इतना महत्वपूर्ण क्यों है? असल में इसने देश में सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रमों का जबरदस्त कायाकल्प किया है। डिजिलाकर जैसी सरकारी सेवाओं तक आसान पहुंच से कतार में लगे बिना ही स्कूल और कालेज के अंकपत्र तुरंत प्राप्त किए जा सकते हैं।
विवेक देवराय और आदित्य सिन्हा : बुनियादी ढांचे को पारंपरिक रूप से सड़कों, पुलों और इमारतों आदि जैसी भौतिक अवसंरचनाओं के साथ जोड़कर देखा जाता है। हजारों वर्षों से बुनियादी ढांचे का यह विचार मानव समाज के मूल में रहा है। इस दौरान सभ्यताओं ने अपने विकास के लिए नहरों और सड़कों से लेकर तमाम अन्य लोक निर्माण किए। हालांकि, हाल के वर्षों में बुनियादी ढांचे की संकल्पना भौतिक अवसंरचनाओं से कहीं आगे बढ़कर डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल पब्लिक गुड्स तक चली गई है।
डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी डीपीआइ से आशय उन तकनीकी नवाचारों से है, जिनके माध्यम से समाज के एक बड़े वर्ग तक प्रमुख निजी एवं सार्वजनिक सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है। इसमें डिजिटल सत्यापन एवं पहचान, नागरिक पंजीयन, सुरक्षित डिजिटल लेनदेन और मुद्रा हस्तांतरण से लेकर निर्बाध डाटा विनिमय और सक्षम सूचना तंत्र भी शामिल हैं। भारत में 2009 से आधार के सूत्रपात के साथ ही इसकी जड़ें गहरी होती गईं। आधार पर आधारित डिजिलाकर और यूपीआइ जैसी सेवाएं अस्तित्व में आईं। डीपीआइ न केवल नागरिकों तक सेवाएं पहुंचाने में सरकारों को सक्षम बनाता है, बल्कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही भी बढ़ती है।
जलवायु परिवर्तन और प्रभावी पब्लिक फाइनेंस जैसे अहम वैश्विक मुद्दों से निपटने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी डीपीआइ की अहम भूमिका को समझता है। डीपीआइ के इस महत्व को रेखांकित करने में भारत विशेष भूमिका निभा रहा है। भारत ने डीपीआइ की मदद से ही अपनी 80 प्रतिशत आबादी के वित्तीय समावेशन में सफलता प्राप्त की है। अन्यथा इसमें करीब 46 साल लग जाते। वास्तव में आधार और इंडिया स्टैक की जुगलबंदी भारत के लिए व्यापक रूप से लाभदायक सिद्ध हुई है। इसने वित्तीय लेनदेन के स्वरूप से लेकर पीएफ निकासी के साथ-साथ पासपोर्ट एवं ड्राइविंग लाइसेंस और भूमि रिकार्ड सत्यापन जैसी कई सरकारी सेवाओं को सहज बना दिया है। अपनी इन्हीं क्षमताओं के चलते भारत विश्व में आकार ले रही इस डिजिटल क्रांति के अग्रदूत की भूमिका में दिख रहा है।
आधार से तो अधिकांश लोग परिचित हैं। जहां तक इंडिया स्टैक की बात है तो यह एक स्वदेशी डिजिटल असेट्स का नवाचारी संग्रह है। ई-गवर्नेंस और लोक सेवाओं में इसकी उपयोगिता सिद्ध हुई है। इस पर यूपीआइ, को-विन, आरोग्य सेतु और डिजिलाकर सहित तमाम अन्य आकर्षक एप्लिकेशन उपलब्ध हैं। इन्होंने हमारे जीवन, कामकाज और एक दूसरे से संवाद को सुगम बनाया है। इंडिया स्टैक को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता मिल रही है। श्रीलंका, मोरक्को, फिलीपींस, गिनी, इथियोपिया और टोगो ने इंडिया स्टैक को सफलतापूर्वक लागू किया है। ट्युनीशिया, समोआ, युगांडा और नाइजीरिया जैसे कई अन्य देशों ने भी इसमें रुचि दिखाई है। इसके पीछे भारतीय माडल की उन्हीं संभावनाओं का असर है, जिनमें कल्याणकारी योजनाओं के मोर्चे पर क्रांतिकारी परिणाम प्रदान करने की क्षमताएं हैं। अब अनिवासी भारतीय यानी एनआरआइ भी यूपीआइ के जरिये वित्तीय लेनदेन कर सकते हैं। इसके लिए उनका फोन नंबर उनके स्थानीय बैंक के साथ पंजीकृत होना चाहिए। यह सेवा सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, कनाडा, ओमान, कतर, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और ब्रिटेन में शुरू भी हो गई है।
डिजिटल पब्लिक गुड्स का मुद्दा आखिर इतना महत्वपूर्ण क्यों है? असल में, इसने देश में सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रमों का जबरदस्त कायाकल्प किया है। डिजिलाकर जैसी सरकारी सेवाओं तक आसान पहुंच से कतार में लगे बिना ही स्कूल और कालेज के अंकपत्र तुरंत प्राप्त किए जा सकते हैं। इससे शासन-प्रशासन की सक्षमता बढ़ने के साथ ही सरकारी प्रक्रियाएं सुसंगत हुई हैं। प्रशासनिक लागत भी घटी है। जनधन-आधार-मोबाइल यानी जैम की त्रिशक्ति ने सुपात्र लाभार्थियों को शत प्रतिशत प्रत्यक्ष नकदी अंतरण का लाभ दिया है। इसमें कई सामान्य काम आटोमेटिक हो गए हैं। कागजी कार्रवाई की जरूरत घटी है, तो सरकारी परिचालन बेहतर हुआ है।
डीपीआइ की मेहरबानी से नागरिकों तक सूचनाएं सहजता से उपलब्ध हो रही हैं, जिससे शासन में पारदर्शिता बढ़ी है। सरकारी व्यय, सार्वजनिक नीतियों और विधायी कामकाज पर इसकी छाप दिखती है, जिनमें जनभागीदारी बढ़ने के साथ व्यापक जवाबदेही की राह खुली है। सुगम वित्तीय लेनदेन से जीवन की गुणवत्ता सुधरी है। यूपीआइ से सेकेंडों में वित्तीय लेनदेन संभव हुआ है। नकदी जमा करने या निकालने के लिए बैंक में जाकर कागजी कामकाज और लंबी कतारों में खड़े होने की आवश्यकता नहीं रह गई है। वित्त वर्ष 2022 में ही 8,840 करोड़ वित्तीय डिजिटल लेनदेन में यूपीआइ की 52 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जिसमें कुल 126 लाख करोड़ रुपये के लेनदेन हुए। अथाह डाटा के प्रभावी विश्लेषण से डीपीआइ डाटा प्रबंधन में भी बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। इससे बेहतर निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित होने के साथ ही साक्ष्य आधारित नीति-निर्माण संभव हुआ है, जिसने सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रमों की प्रभात्पोदकता में वृद्धि की है।
डीपीआइ में सामाजिक कल्याण की दशा-दिशा सुधारने के साथ ही आर्थिक वृद्धि को गति देने की भी भरपूर क्षमताएं हैं। वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के अनुसार डीपीआइ क्रियान्वयन जीडीपी वृद्धि को एक प्रतिशत तक बढ़ा सकता है। स्पष्ट है कि डीपीआइ किसी राष्ट्र की आर्थिक स्थिति सशक्त बनाने के साथ ही उसके समग्र आर्थिक विकास को गति देने में सक्षम है। डीपीआइ और इंडिया स्टैक ने भारत में व्यक्तियों, बाजारों और सरकारों के कामकाज के तौर-तरीकों को नए तेवर दिए हैं। यही कारण है कि विश्व भर में उसकी स्वीकार्यता में निरंतर विस्तार हो रहा है। इससे एक सुखद भविष्य के संकेत दिखते हैं। ऐसा परिदृश्य जो कहीं अधिक सक्षम, पारदर्शी और समतापूर्ण समाज से परिपूर्ण होगा। उसमें डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाएगा।
(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष और सिन्हा प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में अपर निजी सचिव-अनुसंधान हैं)