जागरण संपादकीय: घुसपैठ पर यूरोप की तरह भारत भी चेते, वोट बैंक के लोभ से खतरनाक स्थिति
यूरोप में न सिर्फ मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है बल्कि उनमें कट्टरता भी बढ़ी है। जर्मनी और ब्रिटेन में बसे मुस्लिम शरीया लागू करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरते रहते हैं। यूरोप में 1950 में मुसलमानों की आबादी कुल आबादी का मात्र दो प्रतिशत थी। वह 2020 में बढ़कर 6 प्रतिशत हो गई और बढ़ती ही जा रही है।
सुरेंद्र किशोर। शरणार्थियों और घुसपैठियों के रूप में यूरोपीय देशों में रह रहे दूसरे देशों के लोगों और विशेष रूप से मुसलमानों के एक वर्ग में बढ़ती कट्टरता से यूरोप के 17 देश परेशान हैं। वे उन्हें निकालने के ठोस उपाय करने में लगे हुए हैं। कट्टर मुसलमानों के कारण हाल के दिनों में यूरोप में कई जगह दंगे हो चुके हैं। यूरोप की तरह अमेरिका भी अपने यहां अवैध रूप से आए लोगों को निकालने में लगा हुआ है। हाल में उसने भारत के एक हजार ऐसे लोगों को वापस भेजा। इस काम में भारत सरकार ने अमेरिका का सहयोग किया। ऐसे किसी मामले में भारत बांग्लादेश से सहयोग की उम्मीद नहीं कर सकता। भारत में घुस आए लाखों बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को लेकर पैदा हो रही समस्या के सवाल पर यहां के राजनीतिक दल बुरी तरह बंटे हुए हैं। हमारे कई दलों के लिए राष्ट्र हित से ऊपर वोट बैंक है।
कभी मानवाधिकारों के चैंपियन रहे यूरोपीय देशों को अब अपने किए पर पछतावा हो रहा है। मुसलमानों ने कभी बेचारा बनकर शरणार्थी के रुप में यूरोप में जगह पाई। अब उनमें से अनेक जिहादी मनोवृति वाले हो चुके हैं और आबादी बढ़ाकर यूरोप पर कब्जा करने का सपना देख रहे हैं। भारत में घुस आए तमाम बांग्लादेशी और रोहिंग्या भी यही इरादा रखते हैं, पर समस्या के अनुपात में कई कारणों से भारत में जो उपाय हो रहे हैं, वे नाकाफी हैं। यूरोप आकर बसी मुस्लिम आबादी का जिहादी सोच वाला तबका यूरोप में जल्द इस्लामिक शासन भी लागू करना चाहता है। इसके लिए वह यदाकदा हिंसा पर भी उतारू हो जाता है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि प्रतिबंधित पापुलर फ्रंट आफ इंडिया भारत को 2047 तक इस्लामी राष्ट्र बनाने के फितूर से ग्रस्त है। उसके राजनीतिक संगठन एसडीपीआइ का कांग्रेस से तालमेल रहता है।
यूरोप में न सिर्फ मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है, बल्कि उनमें कट्टरता भी बढ़ी है। जर्मनी और ब्रिटेन में बसे मुस्लिम शरीया लागू करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरते रहते हैं। यूरोप में 1950 में मुसलमानों की आबादी कुल आबादी का मात्र दो प्रतिशत थी। वह 2020 में बढ़कर 6 प्रतिशत हो गई और बढ़ती ही जा रही है। बढ़ती आबादी के कारण लंदन सहित ब्रिटेन के सात नगर निकायों के मेयर अब मुस्लिम हैं। मुस्लिम आबादी ने यूरोप के अनेक शहरों में कई मोहल्लों में अपना दबदबा कायम कर लिया है। वे इन मोहल्लों से अन्य लोगों को निकलने को बाध्य कर रहे हैं। भारत में भी जहां मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, वहां गैर मुस्लिमों का रहना कठिन होता जाता है।
यूरोप में तो मानवाधिकार की तीव्र भावना का भूत उतर रहा है,लेकिन भारत में वोट बैंक का लोभ, देश को खतरनाक स्थिति में डाल रहा है। स्वीडन ने शरणार्थी मुसलमानों को एक आकर्षक प्रस्ताव दिया है। उसने कहा है कि जो स्वीड़न छोड़ने पर सहमत हो जाएंगे, उन्हें 29 लाख रुपए मिलेंगे। स्वीडन सरकार का कहना है कि वह अवैध रूप से आए लोगों को देश में नहीं रहने देगी। फ्रांस सरकार इस साल 23 हजार अवैध प्रवासियों को अपने देश से निकाल चुकी है। इटली भी अवैध रूप से आए मुसलमानों को अल्जीरिया भेज रही है।
अपनी संस्कृति और सुरक्षा के लिए खतरा बनी आबादी को बाहर करने का लक्ष्य पूरा करना यूरोप के लिए कठिन जरूर है, पर असंभव नहीं। यूरोपीय देशों को यह स्वीकार नहीं कि उनके एक के बाद एक इलाकों में बाहरी लोग काबिज होते जाएं। इस मामले में भारत का रवैया ढुलमुल है। देश में ऐसे इलाके बढ़ रहे हैं, जहां बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध रूप से आए लोग बढ़ रहे हैं। कायदे-कानून और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ चलने वाले किसी भी देश की सरकार अपने भूभाग को शरणार्थियों या घुसपैठियों के लिए धर्मशाला नहीं बनने देती। म्यांमार से चीन की सीमा बहुत पास है, पर रोहिग्ंया घुसपैठियों को उस सीमा की तरफ देखने की हिम्मत नहीं होती। वहां किसी भी अवांछित व्यक्ति को देखते ही गोली मार दी जाती है। गृह मंत्री अमित शाह ने हाल में कहा कि यदि 2026 में भाजपा बंगाल में सत्ता में आई तो हम घुसपैठ रोक देंगे। याद रहे कि बंगाल की सीमा से ही सबसे अधिक बांग्लादेशी और रोहिग्ंया भारत में घुसते हैं। दुर्भाग्य से राज्य सरकार उनके लिए रास्ता साफ करती रहती है।
घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भारत सरकार ने 1992 में संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई थी। बैठक में समस्या की गंभीरता को स्वीकार किया गया और उसके खिलाफ समन्वित कार्रवाई करने का निर्णय किया गया, लेकिन बाद में उस पर कोई ठोस काम नहीं हो सका। मुस्लिम वोट बैंक के लोभ के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा की समस्या ओझल हो गई। बंगाल की वाम सरकार भी घुसपैठियों के प्रति नरमी दिखाती थी। ज्योति बसु सरकार पर आरोप लगा था कि उसने पुलिस भेजकर 1979 में सुंदरबन के मरीचझांपी में बड़ी संख्या में शरण लिए बांग्लादेशी हिंदुओं की सामूहिक हत्या करवा दी थी। इसके विपरीत अवैध रूप से आए बांग्लादेशी मुसलमानों को वोट बैंक बनाया गया।
ममता बनर्जी ने अगस्त, 2005 में लोकसभा में यह आरोप लगाया था कि वाम मोर्चा सरकार ने 40 लाख बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को अवैध ढंग से मतदाता बनवा दिया है। उन्होंने सदन में इस पर चर्चा की मांग की और जब इसकी इजाजत नहीं मिली तो उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी, लेकिन जब वह मुख्यमंत्री बनीं तो बांग्लादेशी घुसपैठियों के बचाव में खड़ी हो गईं। जब नेशनल पापुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर तैयार करने की बात चली तो ममता बनर्जी ने बंगाल की जनता से कहा कि यदि केंद्र सरकार के लोग आएं तो उन्हें कोई जानकारी मत देना। एक अनुमान के अनुसार भारत में बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या करोड़ों में है। जुलाई, 2004 में संसद में बताया गया था कि बंगाल में घुसपैठियों की संख्या 57 लाख है। अब उनकी संख्या का अनुमान लगाइए, क्योंकि घुसपैठ तो कभी रुकी नहीं।
घुसपैठिए बंगाल में प्रवेश कर पूरे देश में फैल रहे हैं। हाल में झारखंड के सात जिलों के उपायुक्तों ने हाई कोर्ट को यह रिपोर्ट दी कि उनके जिले में कोई घुसपैठिया नहीं है। इस पर हाई कोर्ट ने नाराज होकर कहा कि आपकी बात गलत हुई तो कार्रवाई होगी, क्योंकि अन्य स्रोतों से उसे भारी घुसपैठ की जानकारी मिली थी। कल्पना कीजिए कि घुसपैठियों से निपटना यूरोपीय सरकारों की अपेक्षा हमारी सरकार के लिए कितना अधिक कठिन काम है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)