बिना सोचे-समझे लोक-लुभावन घोषणाएं करने के क्या दुष्परिणाम होते हैं, इसका पता कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से अपने दल के नेताओं को दी गई इस नसीहत से चलता है कि बिना विचारे कोई घोषणा न करें और जो घोषणा करें, वह बजट के हिसाब से करें। उन्होंने इस तरह की घोषणाओं के खतरे रेखांकित करते हुए यह भी कहा कि वादे पूरे न करने वाली घोषणाओं से बदनामी भी होती है और राजनीतिक नुकसान भी।

कांग्रेस अध्यक्ष को यह सब इसलिए कहना पड़ा, क्योंकि कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कुछ दिन पहले यह कह दिया था कि राज्य सरकार महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा देने वाली शक्ति योजना पर नए सिरे से विचार करेगी। इससे यही ध्वनित हुआ कि यह योजना बंद की जा सकती है, क्योंकि कर्नाटक सरकार अपनी पांच गारंटियों को पूरा करने के फेर में आर्थिक संकट का सामना कर रही है। डीके शिवकुमार के कहने का मतलब कुछ भी हो, लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे ने जिस तरह उन्हें फटकार लगाई और यहां तक कह दिया कि क्या आप अखबार नहीं पढ़ते, उससे तो यह भी लगता है कि उनके और शिवकुमार के बीच सब कुछ ठीक नहीं। यह सामान्य बात नहीं कि कांग्रेस अध्यक्ष अपनी ही राज्य सरकार के उप मुख्यमंत्री की सार्वजनिक रूप से खिंचाई करें। यह ठीक है कि खरगे की खरी-खोटी के बाद डीके शिवकुमार ने सफाई देते हुए कहा कि शक्ति योजना को बंद करने का कोई इरादा नहीं और केवल उसकी समीक्षा की जाएगी। इस योजना का भविष्य जो भी हो, इससे इन्कार नहीं कि कांग्रेस की ओर से चुनाव जीतने के लिए ऐसी लोक-लुभावन घोषणाएं की जाने लगी हैं, जिन्हें पूरा करना आसान नहीं।

केवल कर्नाटक सरकार को ही अपनी पांच गारंटियां पूरा करना कठिन नहीं हो रहा है। ऐसी ही कठिनाई हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार को भी पेश आ रही है। इसका कारण यह है कि कांग्रेस ने इन दोनों राज्यों में चुनाव जीतने के लिए रेवड़ियां बांटने वाले ऐसे वादे किए, जिन्हें पूरा करना संभव नहीं था। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि कांग्रेस अध्यक्ष यह जताते दिख रहे हैं कि उन्हें रेवड़ी संस्कृति रास नहीं आ रही और वह इस पक्ष में हैं कि चुनावी वादे करते समय आर्थिक स्थिति का ध्यान रखा जाए, क्योंकि वह खुद बढ़-चढ़कर लोक-लुभावन वादे करते रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि लोकसभा चुनाव के समय उन्होंने यकायक यह घोषणा कर दी थी कि यदि हम सत्ता में आए तो गरीब परिवारों को दस किलो मुफ्त अनाज देंगे, जबकि ऐसी किसी योजना का कांग्रेस के घोषणापत्र में कोई उल्लेख नहीं था। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस की ओर से लोक-लुभावन वादे किए जा रहे हैं। प्रश्न यह है कि क्या ये वादे इन राज्यों की वित्तीय स्थिति का आकलन करके किए जा रहे हैं?