डॉ. जयंतीलाल भंडारी। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआइपीओ) द्वारा प्रकाशित ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआइआइ) की 133 अर्थव्यवस्थाओं की हालिया रैंकिंग में भारत ने 39वां स्थान हासिल किया है। यह कोई छोटी बात नहीं है, क्योंकि इस रैंकिंग में 2015 में भारत 81वें स्थान पर था। जीआइआइ रैंकिंग में भारत की प्रगति दुनिया भर में रेखांकित हो रही है।

इस ऊंची रैंकिंग को प्रधानमंत्री मोदी ने देश के वाइब्रेंट इनोवेटिव इकोसिस्टम की उपलब्धि बताया है। इस रैंकिंग में भारत निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के साथ ही मध्य और दक्षिण एशियाई देशों में पहले स्थान पर रहा जबकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्लस्टर रैंकिंग में चौथे स्थान पर है। भारत के प्रमुख शहर मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई दुनिया के शीर्ष 100 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्लस्टरों में सूचीबद्ध हैं।

रैंकिंग के अनुसार स्विट्जरलैंड, स्वीडन, अमेरिका, सिंगापुर और यूके दुनिया की सबसे अधिक नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाएं हैं, जबकि चीन, तुर्किये, भारत, वियतनाम और फिलीपींस पिछले एक दशक में सबसे तेजी से ऊपर उठने वाले देश हैं। यदि हम बौद्धिक संपदा, शोध एवं नवाचार से जुड़े अन्य वैश्विक संगठनों की रिपोर्ट भी देखें तो भारत इस क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है।

यूएस चैंबर्स आफ कामर्स के ग्लोबल इनोवेशन पालिसी सेंटर द्वारा जारी वैश्विक बौद्धिक संपदा यानी आइपी सूचकांक 2024 में भारत दुनिया की 55 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में 42वें स्थान पर है। अब यह और अच्छे से स्पष्ट है कि शोध एवं नवाचार तथा बौद्धिक संपदा की दुनिया में भारत की रैंकिंग यह दर्शा रही है कि भारत इनोवेशन का हब बनता जा रहा है।

भारत में शोध एवं नवाचार को बढ़ाने में डिजिटल ढांचे की अहम भूमिका है। भारत आइटी सेवा निर्यात और वेंचर कैपिटल हासिल करने में लगातार आगे बढ़ रहा है। विज्ञान और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट तैयार करने में भी भारत दुनिया में सबसे आगे है। भारत के उद्योग-कारोबार समय के साथ तेजी से आधुनिक हो रहे हैं।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनुसार कृषि से संबंधित चुनौतियों के समाधान के लिए भारत ने जिस तरह विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्राथमिकता के आधार पर उपयोग किया, उससे भारत कृषि विकास की डगर पर तेजी से आगे बढ़ा है। अगस्त में ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा जारी की गई 61 फसलों की 109 नई एवं उन्नत किस्मों से कृषि नवाचार का नया अध्याय लिखा गया है।

शोध एवं नवाचार के मद्देनजर भारत ने कारोबारी विशेषज्ञता, रचनात्मकता, राजनीतिक और संचालन से जुड़ी स्थिरता, सरकार की प्रभावशीलता जैसे क्षेत्रों में अच्छे सुधार किए हैं। इसके साथ ही घरेलू कारोबार में सुगमता और विदेशी निवेश जैसे मानकों में भी बड़ा सुधार हुआ है। इस यात्रा में अपार ज्ञान पूंजी, स्टार्टअप और यूनिकार्न, पेटेंट वृद्धि, घरेलू उद्योग विविधीकरण, हाइटेक विनिर्माण और सार्वजनिक और निजी अनुसंधान संगठनों द्वारा किए गए प्रभावी कार्यों के साथ-साथ अटल इनोवेशन मिशन ने भी अहम भूमिका निभाई है।

बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा और रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में तेज प्रगति हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने 26 सितंबर को राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (एनएसएम) के अंतर्गत लगभग 130 करोड़ रुपये की लागत से स्वदेश में विकसित तीन परम रुद्र सुपरकंप्यूटर राष्ट्र को समर्पित किए।

सुपरकंप्यूटिंग प्रौद्योगिकी में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की यह बड़ी पहल है। इन सुपरकंप्यूटरों को अग्रणी वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए पुणे, दिल्ली और कोलकाता में लगाया गया है। मौसम और जलवायु अनुसंधान के लिए तैयार एक उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग (एचपीसी) प्रणाली का भी उद्घाटन किया गया है।

इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि बौद्धिक संपदा, शोध एवं नवाचार के बहुआयामी लाभ होते हैं और इनके आधार पर ही उद्यमी किसी देश में निवेश संबंधी निर्णय लेते हैं। विभिन्न देशों की सरकारें भी ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स को ध्यान में रखकर अपने व्यापारिक रिश्तों के लिए नीति बनाने की डगर पर बढ़ती हैं।

भारत में इंटरनेट आफ थिंग्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डाटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में शोध एवं विकास और जबरदस्त स्टार्टअप माहौल के चलते अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने ग्लोबल इन हाउस सेंटर (जीआईसी) तेजी से शुरू करती हुई दिखाई दे रही हैं। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स के तेजी से बढ़ने से भारत में दिग्गज वैश्विक फाइनेंस और कामर्स कंपनियां पैठ बढ़ा रही हैं।

बौद्धिक संपदा, शोध एवं नवाचार की अहमियत को समझते हुए सरकार भी इस क्षेत्र को प्राथमिकता दे रही है। आम बजट में भी उभरते क्षेत्रों में नवाचार और शोध को प्रोत्साहन देने के लिए एक लाख करोड़ रुपये के कोष का प्रविधान किया गया है। हालांकि इस मोर्चे पर हमें अपना खर्च और बढ़ाना होगा।

फिलहाल भारत में आरएंडडी पर जीडीपी का करीब 0.67 प्रतिशत ही व्यय हो रहा है, जबकि वैश्विक औसत दो प्रतिशत है। छह-सात दशक पूर्व अमेरिका ने आरएंडडी पर भारी खर्च से ही सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, दवा, अंतरिक्ष अन्वेषण, ऊर्जा और अन्य तमाम क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़कर दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने का अध्याय लिखा है। हमें भी उसी राह पर आगे बढ़ना होगा।

उम्मीद करें कि सरकार जीआईआई की 39वीं रैंकिंग को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ेगी। साथ ही निजी क्षेत्र द्वारा भी देश के तेज विकास और आम आदमी के आर्थिक-सामाजिक कल्याण के मद्देनजर दुनिया के विभिन्न विकसित देशों की तरह बौद्धिक समझ, शोध एवं नवाचार पर अधिक धनराशि व्यय करने की रणनीति अपनाई जाएगी। तभी हम 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।

(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)