पड़ोस से भारत आने वालों में ज्यादातर दलित हिंदू हैं, फिर भी दलित नेता सीएए के विरोध में खड़े हैं
पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुसलमानों का धर्म राज्य द्वारा संरक्षित है जबकि इस्लाम से इतर किसी धर्म को कोई संरक्षण नहीं है।
[ दिव्य कुमार सोती ]: वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका पाकिस्तान का साथ दे रहा था, पर पूर्वी पाकिस्तान में पाक फौज द्वारा किए जा रहे जनसंहार ने ढाका में तैनात अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों को अंदर तक झकझोर दिया था। वे वाशिंगटन को भेजे जा रहे अपने खुफिया संदेशों में बांग्ला भाषियों और खास तौर से पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के भीषण नरसंहार का आंखों देखा हाल लिख रहे थे। यूं तो झगड़ा पश्चिमी पाकिस्तान के उर्दू भाषी और पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला भाषी मुसलमानों के बीच था पर पाक फौज के जनरलों और जमात-ए-इस्लामी के मौलानाओं को लगता था कि बंगाली मुसलमान बंगाली हिंदुओं के सांस्कृतिक प्रभाव में आकर इस्लाम से भ्रष्ट हो चुके हैं और इसलिए पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं। इसी कारण हिंदुओं पर खास तौर पर जुल्म ढाया जा रहा था।
जनसंहार और शरणार्थी संकट से निपटने के लिए भारत को हस्तक्षेप करना पड़ा
हिंदुओं की मार-काट इतनी बर्बर थी कि ढाका में तैनात अमेरिकी राजनयिकों को अपनी सरकार की पाकिस्तानपरस्त नीति की निंदा करते हुए एक विरोध पत्र वाशिंगटन को भेजना पड़ा। यह अमेरिका के इतिहास में राजनयिकों के द्वारा भेजा गया पहला ऐसा पत्र था। इस जनसंहार और उससे उपजे शरणार्थी संकट से निपटने के लिए भारत को हस्तक्षेप करना पड़ा और इसके चलते ही बांग्लादेश का जन्म हुआ।
एक धर्मनिरपेक्ष देश इस्लामिक देश में बदल गया
शुरू में तो यह धर्मनिरपेक्ष देश था पर कुछ अर्से बाद ही वह 1975 में इस्लामिक देश में बदल गया और फिर वहां के इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। इस अत्याचार के पहले शिकार दलित हिंदू बने, क्योंकि वही ज्यादा असहाय थे।
1947 में बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या 31 फीसद थी जो आज मात्र 8 फीसद रह गई
1947 में पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या तकरीबन 31 प्रतिशत थी जो आज मात्र 8 प्रतिशत के करीब रह गई है। इस अवधि में बांग्लादेश की कुल आबादी तकरीबन सवा तीन गुना बढ़ चुकी है। न्यूयार्क स्टेट यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता शची दस्तीदार ने 2008 में किए गए अपने शोध में पाया था कि 4 करोड़ 90 लाख हिंदू बांग्लादेश से गायब हो चुके हैं। धार्मिक आधार पर उत्पीड़न की ऐसी दूसरी मिसाल नहीं है। जाहिर है या तो इन हिंदुओं को मार डाला गया या धर्म परिवर्तन या फिर पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया।
अफगान में 1970 में हिंदू और सिखों की जनसंख्या सात लाख थी जो घटकर मात्र 2500 रह गई
यही हाल अफगानिस्तान में हुआ, जहां 1970 के दशक में हिंदू और सिखों की जनसंख्या सात लाख हुआ करती थी। यह वर्तमान में घटकर मात्र 2500 रह गई है। पिछले तीन दशक में 90 फीसद सिख और हिंदू अफगानिस्तान छोड़ कर भाग चुके हैं और बाकी इस्लामिक कट्टरपंथीयों का निशाना बन चुके हैं।
पाक में 1947 में हिंदुओं की जनसंख्या 15 फीसद थी जो आज मात्र डेढ़-दो फीसद रह गई
पाकिस्तान में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। 1947 में बंटवारे के समय वहां हिंदुओं की जनसंख्या 15 प्रतिशत थी जो आज मात्र डेढ़-दो प्रतिशत रह गई है। अब जरा इसकी तुलना भारत से कीजिए। 1951 से 2011 के बीच मुसलमानों की जनसंख्या में भागीदारी 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गई, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या का प्रतिशत 84.1 प्रतिशत से घटकर 78.6 हो गया।
हमलों से आहत गैर-मुस्लिमों के पास इन देशों को छोड़कर भागने के अलावा कोई चारा नहीं था
आखिर नागरिकता कानून को भेदभाव भरा बताने वाले यह क्यों नहीं देख रहे कि पाकिस्तान, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ ऐसा क्या किया जा रहा कि वे लाखों की संख्या में गायब होते जा रहे हैं? इसे बंटवारे के बाद पाकिस्तान के कश्मीर पर हुए हमले के दौरान उसके कब्जे में आए शहरों में हुए घटनाक्रम से आसानी से समझा जा सकता है। पीओके के मीरपुर जिले की हिंदू आबादी तकरीबन10000 थी जो शरणार्थियों के आने के चलते 25000 तक बढ़ गई थी। इनमें से मात्र 2000 लोग ही जीवित भारत पहुंच पाए। सैकड़ों की संख्या में अपहृत हिंदू महिलाओं को झेलम, रावलपिंडी और पेशावर में बेच दिया गया। पाकिस्तान, बांग्लादेश में आज भी गैर-मुस्लिमों पर हमले बेहद आम हैं। स्थितियां ऐसी बन चुकी हैं कि गैर मुस्लिमों के पास इन देशों को छोड़कर भागने या इस्लाम को कुबूल करने या फिर जानवरों जैसा जीवन जीने और मारे जाने के अलावा कोई चारा नही। इसका एक प्रमाण पाकिस्तान के हिंदू क्रिकेटर दानिश कनेरिया हैं, जिनके बारे में शोएब अख्तर ने यह खुलासा कर चौंकाया कि साथी खिलाड़ी उनके साथ खाना खाना पसंद नहीं करते थे।
पाक में हर साल 1000 हिंदू लड़कियों का अपहरण कर धर्म बदलवा कर उनसे शादी कर लेते हैं
मानवाधिकार संगठनों और पाक मीडिया की मानें तो पाकिस्तान में हर साल तकरीबन 1000 हिंदू लडकियों का अपहरण कर लिया जाता है और अपहरणकर्ता जबरन उनका धर्म बदलवा कर उनसे शादी कर लेते हैं। इनमें बड़ी तादाद नाबालिग लड़कियों की होती है। पाकिस्तानी महिला पत्रकार आयशा असगर की मानें तो पाकिस्तान में हर महीने 20-25 हिंदू और ईसाई लड़कियां बलात्कारियों का शिकार बनती हैं। स्थितियां इतनी विकट हैं कि पेशावर जैसे इलाकों में हिंदू और सिख शवों का दाहकर्म न कर पाने के कारण उन्हें दफनाने के लिए मजबूर हैं। हिंदू मंदिरों और गुरूद्वारों पर हमले होते ही रहते हैं।
धार्मिक उत्पीड़न के चलते 5000 हिंदू हर साल भारत पलायन कर रहे हैं
पाकिस्तान हिंदू कांउसिल की मानें तो धार्मिक उत्पीड़न के चलते 5000 हिंदू हर साल भारत पलायन कर रहे हैं। 1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान में बचे हिंदुओं में से ज्यादातर दलित और आदिवासी हैं, जिन्हें पाकिस्तान सरकार ने भारत नहीं आने दिया था। पाकिस्तान में भारत के पहले उच्चायुक्त श्रीप्रकाश ने अपने संस्मरणों में लिखते हैं कि जब उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली से प्रार्थना की कि इन लोगों को भारत जाने दिया जाए तो लियाकत ने जवाब दिया कि अगर इन्हें जाने दिया तो कराची की गलियां और शौचालय कौन साफ करेगा?
पाक के पहले कानून मंत्री जोगेंद्रनाथ मंडल तक को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी
पाकिस्तान में दलितों की दुर्दशा का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बनने वाले दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल तक को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी। पाकिस्तान से भारत भाग कर आ रहे हिंदुओं में ज्यादातर संख्या दलितों और आदिवासियों की है, लेकिन कई दलित नेता भी नागरिकता कानून के विरोध में जुटे हुए हैैं। आखिर इन्हें दलित हितैषी कैसे कहें?
इसीलिए मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों से समानता का व्यवहार नहीं किया जा सकता----
सीएए के जो आलोचक यह कहते हैं कि यह धर्म के आधार पर भेदभाव कर समानता के अधिकार का हनन करता है, वे यह भूल जाते हैं कि भारतीय संविधान युक्तियुक्त वर्गीकरण की अनुमति देता है। समानता का संवैधानिक सिद्धांत यह है कि असमान परिस्थिति वाले समूहों के साथ समानता का व्यवहार असमानता उत्पन्न करता है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुसलमानों का धर्म राज्य द्वारा संरक्षित है जबकि इस्लाम से इतर किसी धर्म को कोई संरक्षण नहीं है। इसीलिए वहां से आने वाले मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों से समानता का व्यवहार नहीं किया जा सकता।
( लेखक कांउसिल फार स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं )