नए भारत के निर्माण में कैसे उपयोगी साबित होगी नई लोक सेवा
देश के सभी नागरिकों तक बेहतर सेवाएं पहुंचाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने एक नए व्यापक लोक सेवक सुधार कार्यक्रम की घोषणा की है। लोक सेवा जैसी व्यवस्था में नीति नियोजन से लेकर क्रियान्वयन तक के सारे पक्ष निहित होते हैं।
डा. सुशील कुमार सिंह। भारतीय संविधान सभा में अखिल भारतीय सेवाओं के बारे में चर्चा के दौरान सरदार पटेल ने कहा था कि प्रशासनिक प्रणाली का कोई विकल्प नहीं है। इसके अलावा भी उन्होंने प्रशासनिक सेवा को लेकर कई बातें कही थीं। वर्तमान में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस), पुलिस सेवा (आइपीएस) और वन सेवा (आइएफएस) समेत तीन अखिल भारतीय सेवाएं हैं। अखिल भारतीय का तात्पर्य ऐसी सेवा जिसमें भर्ती संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती है। लोक सेवा जैसी व्यवस्था में नीति नियोजन से लेकर क्रियान्वयन तक के सारे पक्ष निहित होते हैं। यह अधिकार से परिपूर्ण ऐसी सेवा है जिसमें नए भारत ही नहीं, बल्कि पूरे भारत की कायाकल्प करने की ताकत होती है।
हालांकि बिना राजनीतिक इच्छाशक्ति के इसकी जोर-आजमाइश फलित नहीं हो सकती। ब्रिटिश काल में प्रशासनिक सेवा (नौकरशाही) की प्रवृत्ति भारतीय दृष्टि से लोक कल्याण से मानो परे रही है। मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक सामाजिक-आर्थिक प्रशासन में इस बात को उद्घाटित किया था कि नौकरशाही प्रभुत्व स्थापित करने से जुड़ी एक व्यवस्था है, जबकि अन्य विचारकों की यह राय रही है कि यह सेवा की भावना से युक्त एक संगठन है। इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो स्पष्ट है कि मौजूदा अखिल भारतीय सेवा अर्थात आइएएस और आइपीएस सरदार पटेल की ही देन है जिसका उद्भव 1946 में हुआ था, जबकि आइफएस 1966 में विकसित हुई। समय, काल और परिस्थिति के अनुसार नौकरशाही से भरी ऐसी सेवाएं मौजूदा समय में सिविल सर्वेंट के रूप में कायाकल्प कर चुकी हैं। ब्रिटिश काल की यह इस्पाती सेवा अब प्लास्टिक फ्रेम को ग्रहण कर चुकी है। जनता के प्रति लचीली हो गई है। सरकार पुराने भारत की भ्रांति से बाहर आकर नए भारत की क्रांति लाना चाहती है जो बिना लोक सेवकों के मानस पटल को बदले पूरी तरह संभव नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोक सेवकों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने को लेकर बीते कुछ वर्षों से प्रयास करते दिखते हैं। कुछ हद तक कह सकते हैं कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सरकार ने बड़े और कड़े कदम उठाए हैं, मगर सामाजिक बदलाव को पूरा पाने के लिए प्रशासन में काफी परिवर्तन करना होगा। फिलहाल बीते दिनों सरकार ने आइएएस कैडर नियम 1954 में संशोधन का प्रस्ताव दिया है, जिसमें संबंधित राज्य और लोक सेवक की सहमति के बिना उन्हें केंद्र में संचालित करने की मंजूरी संभव है। पहले के नियमों में यह रहा है कि ऐसा करने के लिए राज्य और नौकरशाह की रजामंदी जरूरी थी।
लोक सेवा सरकार के काम-काज के संचालन के लिए आवश्यक है। सरकार ने अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए सोच-समझ कर लोक सेवा में सुधार किया, ताकि नीतियों को प्रभावी और कुशलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सके।
हाल के समय में प्रौद्योगिकी उन्नयन से लेकर अधिक विकेंद्रीकरण के साथ सामाजिक सक्रियता के चलते वैश्विक स्तर एक बड़े बदलाव की ओर झुका है। ऐसे में भारत की प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता और समावेशी दृष्टिकोण का अनुपालन अपरिहार्य हो जाता है।
केंद्र सरकार ने लोगों तक बेहतर सेवाएं पहुंचाने के उद्देश्य से एक नए व्यापक लोक सेवक सुधार कार्यक्रम की घोषणा की है। देखा जाए तो मोदी अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी लोक सेवाओं में सुधार करते दिखते हैं। जिस नौकरशाही को नीतियों के क्रियान्वयन और जनता की खुशहाली का जिम्मा हो और वही शोषणकारी और अर्कमण्य हो जाए तो न तो अच्छी सरकार रहेगी और न ही जनता की भलाई होगी। इसी मर्म को समझते हुए लालफीताशाही पर प्रहार करने के साथ लाल बत्ती को भी पीछे छोडऩा जरूरी समझा गया और देश में मई 2017 से लालबत्ती का दायरा सीमित कर दिया गया है।
नीति आयोग के पास 2018 के ऐतिहासिक रिपोर्ट में लोक सेवा में सुधार को लेकर निहित अध्याय में नए भारत के निर्माण के लिए रणनीति रिपोर्ट में जनसेवाओं को और अधिक प्रभावी और कुशलतापूर्वक पहुंचाने के लिए लोक सेवकों की भर्ती, प्रशिक्षण सहित कार्य निष्पादन के मूल्यांकन में सुधार करने जैसे तंत्र को स्थापित करने पर जोर दिया गया, ताकि नए भारत 2022 के लिए परिकल्पित और संदर्भित विकास को हासिल किया जाना आसान हो। उल्लेखनीय है कि सितंबर 2020 से मिशन कर्मयोगी कार्यक्रम के अंतर्गत सृजनात्मक, रचनात्मक, कल्पनाशील, नव प्रवर्तनशील, प्रगतिशील और सक्रिय तथा पेशेवर सामथ्र्यवान लोक सेवक को विकसित करने के लिए एक घोषणा दिखाई देती है। जाहिर है नए भारत के लिए यह एक और नया आगाज था, पर समय के साथ परिवर्तन कितना हुआ, यह प्रश्न कहीं गया नहीं है।
लोक सेवा में सुधार का मूलभूत उद्देश्य जन केंद्रित लोक सेवा का निर्माण करना है। चुनौतियों से भरे देश और उम्मीदों से अटे लोग तथा वृहद जवाबदेही के चलते सरकार के लिए विकास और सुशासन की राह पर चलने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। भूमंडलीकरण के इस दौर में लोकसेवा का परिदृश्य भी नया करना होगा, ताकि नए भारत में नए कवच के साथ नई लोक सेवा नई चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करे। आर्थिक वृद्धि और जन कल्याण के लिए हितकारी सेवाओं का विकास और डिलीवरी करने में सामथ्र्यवान सिविल सेवा नए भारत की बड़ी आवश्यकता है।
इस कथन से लोक सेवा के मूल्य को और समझा जा सकता है एक प्रशासनिक चिंतक डानहम ने कहा है कि यदि हमारी सभ्यता नष्ट होती है तो ऐसा प्रशासन के कारण होगा। जाहिर है कि नए भारत की जिस महत्वाकांक्षा ने नई उड़ान ली है, उसे धरातल पर नई लोकसेवा से ही उतारा जा सकता है।
( लेखक वाइएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं )