ऊर्जा क्षेत्र में नई क्रांति की दस्तक: हाइड्रोजन ऊर्जा को भविष्य के ईंधन के रूप में देखा जा रहा है
सुरक्षा मानकों को पूरा करते हुए यदि हम इस दिशा में ठोस कदम उठा पाए तो पर्यावरण संरक्षण के साथ भारत के लिए आर्थिक तरक्की का नया द्वार हाइड्रोजन ऊर्जा के माध्यम से खुलेगा। आने वाली पीढ़ियों का भी जीवन स्तर सुधरेगा।
[ अरविंद मिश्रा ]: लगातार बढ़ता प्रदूषण कई समस्याओं की वजह बन रहा है। इससे कार्बन उत्सर्जन में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। परिणामस्वरूप वैश्विक तापमान में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। हिमालय से लेकर अंटार्कटिका तक बर्फ की पिघलती चादर ने मानव जीवन के समक्ष गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। इन सबके पीछे जीवाश्म ईंधनों के अतिशय प्रयोग को महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं पर्यावरण ही नहीं, मानव सभ्यता पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर रहा है। खास बात यह है कि जीवाश्म ईंधन के स्नोत जहां सीमित हैं, वहीं ये अक्षय ऊर्जा संसाधनों के मुकाबले पर्यावरण को कई गुना अधिक प्रदूषित करते हैं। इन परिस्थितियों में हाइड्रोजन ऊर्जा को भविष्य के ईंधन के रूप में देखा जा रहा है।
हाइड्रोजन ऊर्जा की उपयोगिता को विकसित और विकासशील देशों ने उठाए प्रभावी कदम
वर्तमान परिस्थितियों में हाइड्रोजन ऊर्जा की उपयोगिता को देखते हुए विश्व के कई विकसित और विकासशील देशों ने इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं। दुनिया की दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनियां भी अब हाइड्रोजन फ्यूल सेल से चलने वाली कारें बना रही हैं। वे इस दिशा में व्यापक निवेश कर रही हैं। दरअसल हाइड्रोजन फ्यूल सेल हवा और पानी में किसी तरह के प्रदूषक तत्व नहीं छोड़ते हैं। इसमें उत्प्रेरक शक्ति के लिए हाइड्रोजन का उपयोग होता है। एक बार टैंक फुल होने पर हाइड्रोजन कारें 400 से 600 किलोमीटर तक चल सकती हैं। यही नहीं इन वाहनों को पांच से सात मिनट में रीफ्यूल भी किया जा सकता है। वहीं इलेक्ट्रिक कारों को पूरी तरह चार्ज होने में 12 घंटे से अधिक समय लग जाता है। हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिर्वितत करती है। इसमें हाइड्रोजन गैस और ऑक्सीजन का उपयोग होता है। हाइड्रोजन के दहन से कोई प्रदूषण भी नहीं होता। हाइड्रोजन ऊर्जा हमारे लिए राजस्व की बचत का भी माध्यम बन सकती है। ऊर्जा के इस अक्षय स्नोत का जितना अधिक उपयोग बढ़ेगा, उसी अनुपात में तेल आयात को कम करने में मदद मिलेगी।
ऊर्जा क्षेत्र में दस्तक दे रही नई क्रांति
ऊर्जा क्षेत्र में दस्तक दे रही इस नई क्रांति को समझने के लिए इसके तकनीकी पहलुओं के साथ इसके विकास एवं अनुप्रयोग से जुड़ी पृष्ठभूमि को भी समझना होगा। कोयले की जगह पानी ही भविष्य में ऊर्जा का आधार बनेगा, 1874 में इस सिद्धांत को प्रमाणित करने वाले ज्यूल्स वर्ने अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जिस हाइड्रोजन ऊर्जा का सपना उन्होंने देखा था, उस दिशा में दुनिया की कई र्आिथक महाशक्तियां कदम बढ़ा रही हैं। आज स्पेस शटल के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स के जरिये ही उत्प्रेरक ऊर्जा उपलब्ध कराई जाती है। इससे पानी के रूप में स्वच्छ सह-उत्पाद तैयार होता है। इसका उपयोग अंतरिक्ष यात्री जल के रूप में भी करते हैं। हाइड्रोजन फ्यूल सेल की आप बैटरी से भी तुलना कर सकते हैं। जर्मनी जैसे देश ने भी इस्पात उत्पादन में कोयले के स्थान पर हाइड्रोजन ऊर्जा का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। वहां रेलवे परियोजनाओं में भी हाइड्रोजन ऊर्जा के अनुप्रयोग बढ़ रहे हैं। वहां हाइड्रोजन बसें तो काफी समय से सड़कों पर सरपट दौड़ ही रही हैं। र्आिथक संगठनों के मुताबिक 2050 तक हाइड्रोजन ऊर्जा का बाजार 2.5 खरब डॉलर का होगा।
भारत को हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन की दिशा में प्रभावी कदम बढ़ाना होगा
भारत के संदर्भ में बात करें तो विगत कुछ वर्षों में जिस तेजी से हम अक्षय ऊर्जा के वैश्विक केंद्र बनकर उभरे हैं, उसे देखते हुए हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन की दिशा में प्रभावी कदम बढ़ाना होगा। भारत इंटरनेशनल पार्टनरशिप ऑन हाइड्रोजन इकोनॉमी (आइपीएचई) के संस्थापक सदस्यों में शामिल है। वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या 19 है। भारत ऊर्जा क्षेत्र को लेकर हमेशा से प्रयोगधर्मी रहा है। भारत का लक्ष्य है कि 2026-27 तक घरेलू ऊर्जा में 43 प्रतिशत हिस्सेदारी अक्षय ऊर्जा की हो। इसके लिए वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार ने 28 करोड़ डॉलर से अधिक का बजट हाइड्रोजन ऊर्जा के लिए भी तय किया है। भारत ऊर्जा से अंत्योदय के जिस मार्ग पर आगे बढ़ना चाहता है, वहां हाइड्रोजन ऊर्जा का आधार इसलिए भी बन सकता है, क्योंकि हमारे यहां कृषि अपशिष्ट और रीसाइकिल किए जाने योग्य कचरे की पर्याप्त उपलब्धता है।
कृषि कार्यों से निकले अपशिष्ट का प्रयोग हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पन्न करने में कर सकते हैं
यदि हम कृषि कार्यों से निकले अपशिष्ट और अन्य बायोमास का प्रयोग हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पन्न करने में कर सकें तो यह ऊर्जा के एक नए युग का सूत्रपात होगा। हमारे यहां इस्पात उत्पादन के लिए आयातित कोयले पर निर्भरता अधिक है। केंद्र सरकार इस दिशा में प्रयासरत है कि इस्पात उत्पादन के लिए गैस आधारित उत्पादन को बढ़ावा मिले। इसी के समानांतर हाइड्रोजन भी इस्पात उत्पादन के वैकल्पिक ईंधन के रूप में उपयोगी हो सकता है। विश्व के कई देशों में हाइड्रोजन ऊर्जा नागरिक उड्डयन से लेकर जलयानों और कम दूरी के परिवहन का सशक्त माध्यम सिद्ध हो रही है। भारत यदि उड़ान जैसी योजनाओं के जरिये घरेलू नागरिक उड्डयन क्षेत्र को विस्तार देना चाहता है, तो उसके लिए महंगे एविएशन टरबाइन फ्यूल यानी एटीएफ की जगह हाइड्रोजन ऊर्जा टिकाऊ ईंधन स्नोत बन सकती है, लेकिन इसके लिए इस दिशा में व्यापक निवेश की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता।
भारत में आर्थिक तरक्की का नया द्वार हाइड्रोजन ऊर्जा के माध्यम से खुल सकता है
हाइड्रोजन ऊर्जा को लोकप्रिय बनाने के लिए हमें सर्वप्रथम हाइड्रोजन स्टेशन की शृंखला खड़ी करनी होगी। सुरक्षा मानकों को पूरा करते हुए यदि हम इस दिशा में ठोस कदम उठा पाए तो पर्यावरण संरक्षण के साथ भारत के लिए आर्थिक तरक्की का नया द्वार हाइड्रोजन ऊर्जा के माध्यम से खुलेगा। इससे ग्रीन हाउस गैसों में कटौती का वह लक्ष्य भी पूरा होगा, जिससे न सिर्फ हमारी वर्तमान, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भी जीवन स्तर सुधरेगा।
( लेखक ऊर्जा संबंधी मामलों के जानकार हैं )