विकास सारस्वत। देश में फैले आतंक के जाल पर नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानी एनआइए की कार्रवाई निरंतर जारी है। हाल में एनआइए ने छह राज्यों में 29 स्थानों पर पीएफआइ यानी पापुलर फ्रंट आफ इंडिया के अलग-अलग ठिकानों पर छापेमारी की। पिछले वर्ष सितंबर में पीएफआइ पर प्रतिबंध लगने के बाद से एनआइए की उसके खिलाफ यह छठी बड़ी कार्रवाई है। यह कार्रवाई पटना के फुलवारी शरीफ मामले की जांच के सिलसिले में हुई।

फुलवारी शरीफ मामला वही है, जिसमें पीएफआइ की एक इकाई से 2047 तक भारत का पूर्ण इस्लामीकरण करने का सनसनीखेज दस्तावेज बरामद हुआ था। इस मामले को बिहार पुलिस से लेकर एनआइए ने मई में तीन राज्यों के 25 स्थानों पर एक साथ छापेमारी की। एनआइए जिस तरह पीएफआइ के ठिकानों पर लगातार कार्रवाई कर रही है, उससे पता चलता है कि एजेंसी इस संगठन को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध है। एनआइए की सक्रियता ने न सिर्फ पीएफआइ के मंसूबों पर पानी फेरा, बल्कि खालिस्तानी उग्रवादियों, वाम चरमपंथियों और अन्य इस्लामी कट्टरपंथी समूहों पर भी प्रहार किए हैं।

आंतरिक सुरक्षा मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में रही है। इसके लिए मोदी सरकार ने विभिन्न एजेंसियों को बनाया है। साथ ही आतंकवाद निरोधक कानून यूएपीए और एनआइए एक्ट में संशोधन कर उन्हें और सशक्त बनाया गया है। 2008 में गठित एनआइए को धार और पैनापन 2014 के बाद राजग के काल में ही मिला है। संप्रग शासन में जिस एनआइए का कार्यालय एक माल में किराए के दफ्तर से संचालित होता था, उसके स्थायी मुख्यालय की नींव 2015 में रखी गई। इस मुख्यालय के बनने से पहले एनआइए के पास पूछताछ के लिए उपयुक्त जगह तक नहीं थी और अभियुक्तों को सीबीआइ दफ्तर या सुदूर छावला स्थित बीएसएफ कैंप ले जाना पड़ता था।

संप्रग के समय एनआइए की स्थिति इतनी दयनीय थी कि गृह मंत्रालय द्वारा महानिरीक्षक लोकनाथ बहेरा को इशरत जहां मामले में डेविड कोलमैन हेडली की गवाही एसआइटी के साथ साझा करने से रोक दिया गया था। अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी का बहुत चमत्कारिक रूप से विस्तार हुआ है। उसके क्षेत्रीय कार्यालयों की संख्या नौ से बढ़कर 18 हो चुकी है। अमित शाह ने एलान भी किया है कि 2024 तक हर राज्य में एनआइए का कार्यालय होगा।

एनआइए का अधिकार क्षेत्र बढ़ने के बाद से उसकी गतिविधियों में अभूतपूर्व सक्रियता देखने को मिली है। एनआइए अब संगठनों के अलावा व्यक्तियों को भी आतंकी करार दे सकती है। उसने अब तक तीन दर्जन से अधिक लोगों को आतंकी घोषित भी किया है। यह इसलिए आवश्यक था, क्योंकि अक्सर देखा गया है कि एक संगठन पर प्रतिबंध लगने पर उसके लोग दूसरा चरमपंथी संगठन बना लेते थे, परंतु व्यक्तियों को ही आतंकी घोषित करने से ऐसा कर पाना अब मुश्किल हो गया है।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पीएफआइ को आतंकी संगठन सिमी का ही नया रूप माना जाता है। 2019 में लाए गए संशोधन के बाद अब एनआइए देश ही नहीं, बल्कि विदेश में बनाई गई आतंकी योजनाओं का संज्ञान लेकर उन पर कार्रवाई कर सकती है। इस कदम ने विशेष रूप से खालिस्तानी आतंक पर नकेल कसने में मदद की है। एक महत्वपूर्ण बदलाव के तहत एनआइए अब आतंकी चुनौती को केवल हमलों की जांच तक सीमित न रखकर मादक पदार्थों के कारोबार, हवाला लेनदेन, हथियारों की तस्करी, जाली मुद्रा और आतंकी फंडिंग सरीखे अपराधों की भी जांच करती है।

कश्मीर में आतंकी घटनाओं में आई कमी का श्रेय एनआइए द्वारा घाटी में बड़े पैमाने पर हवाला कारोबारियों पर की गई कार्रवाई को भी जाता है। इसी तरह पीएफआइ पर नकेल कसने में भी गृह मंत्रालय ने आइबी, ईडी और केंद्रीय सुरक्षा बल-सीआरपीएफ को एनआइए के साथ लेकर एक बहुत बड़ा मिशन-आपरेशन आक्टोपस चलाया था। आंकड़ों से पता चलता है कि आतंकियों पर एनआइए की कार्रवाई कितनी पुख्ता और प्रभावी है। एजेंसी द्वारा दायर जिन 115 मुकदमों का निस्तारण हुआ है, उनमें से 108 मामलों में अभियुक्तों को सजा हुई है। राज्य सरकारों पर निर्भरता छोड़ आतंकी घटनाओं की जांच पूरी तरह एनआइए के हाथ में आने का फायदा न सिर्फ दोष सिद्धि की अद्भुत दर में परिलक्षित हो रहा है, बल्कि कार्रवाई की तीव्र गति और व्यापकता में भी दिखाई देता है। देश भर में एक साथ दर्जनों तो कभी सौ से भी अधिक स्थानों पर एक साथ छापेमारी आम बात हो गई है।

एनआइए की सबसे महत्वपूर्ण कार्रवाई इस्लामिक स्टेट के देश भर में फैले जाल को तोड़ने के लिए भी हो रही है। हालांकि भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञ इस्लामिक स्टेट यानी आइएस को कश्मीरी आतंकियों जितना संगठित और गंभीर खतरा नहीं मानते, परंतु यह कहा नहीं जा सकता कि उनकी कौन सी करतूत बड़ी वारदात बन जाए। इजरायल पर हमास के हमले के बाद तो हमारी एजेंसियों को और चौकन्ना रहने की जरूरत है। ठाणे, मुंब्रेश्वर मंदिर के प्रसाद में जहर मिलाकर बड़ी संख्या में हिंदुओं को मारने की तैयारी में दस आइएस आतंकियों की गिरफ्तारी हुई थी। पकड़े गए आतंकियों से यह उजागर हुआ था कि उनके निशाने पर प्रमुख मंदिर और बड़े नेता भी थे।

डाक्टर, इंजीनियर, अध्यापक और विद्यार्थी जैसे साधारण व्यक्तित्वों के चलते आइएस आतंकियों को चिह्नित करना मुश्किल हो जाता है, परंतु एनआइए ने इन पर नजर रखने के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया को उपयोग में लिया है। आइएस की चुनौती न सिर्फ आतंकी वारदातों तक सीमित है, बल्कि एक बड़ा खतरा इसके द्वारा युवकों को इस्लामी कट्टरता की घुट्टी पिलाकर आइएस के लिए रंगरूट उपलब्ध कराना भी है। समस्या के इस आयाम को समझते हुए एनआइए ने अरबी भाषा और प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग संस्थाओं पर निगरानी बढ़ाई है। यह एनआइए की चुस्ती का ही नतीजा है कि पिछले नौ वर्षों में कश्मीर के अलावा शेष देश में कोई बड़ी आतंकी वारदात नहीं हुई है। आज एनआइए की गिनती विश्व की सबसे तेजतर्रार एजेंसियों में हो रही है। एनआइए इसका उदाहरण है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो किसी एजेंसी को कैसे सशक्त किया जा सकता है।

(लेखक इंडिक अकादमी के सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)