भारतीय अर्थव्यवस्था पर सुनियोजित हमला: फर्जी हिंडनबर्ग रिपोर्ट से विपक्षी दलों ने राजनीतिक लाभ कमाया, मध्यम वर्ग ने उठाया नुकसान
हिंडनबर्ग के झूठ की परख किए बिना विपक्षी दलों ने उसे हाथोंहाथ लपका। विशेषकर कांग्रेस ने इस झूठ की आग को हवा दी। राहुल गांधी और उनके साथियों ने क्रोनी कैपिटलिज्म के निराधार आरोप लगाए। हालांकि सेबी के नोटिस ने इन दावों को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के निराधार दावों को बढ़ावा देने में कांग्रेस की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
गौरव वल्लभ। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने तीन जनवरी के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें हिंडनबर्ग रिपोर्ट की एसआइटी या सीबीआई जांच को खारिज किया गया था। इसके कुछ ही दिनों पहले पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को आघात पहुंचाने वाले एक सुनियोजित षड्यंत्र को उजागर करते हुए 26 जून, 2024 को अमेरिकी शार्ट सेलर हिंडनबर्ग को कारण बताओ नोटिस जारी किया।
उल्लेखनीय है कि अदाणी समूह को निशाना बनाने वाली हिंडनबर्ग रिपोर्ट के चलते भारतीय शेयर बाजार में बड़ी हलचल मची थी। कई विपक्षी दलों ने उसे राजनीतिक मुद्दा भी बनाया। अब इस रिपोर्ट की सच्चाई सामने आ रही है तो साजिश की परतें खुल रही हैं। हालांकि रिपोर्ट के कुछ समय बाद ही उसकी सत्यता संदिग्ध दिखने लगी थी और बाजार संभलकर आगे बढ़ने लगा।
यही कारण है कि सेंसेक्स इस समय 80,000 के दायरे में चल रहा है। सेंसेक्स में यह तेजी भारत की विकास गाथा की अदम्य भावना को प्रदर्शित करती है। हालांकि इस तेजी के बीच हमें हिंडनबर्ग की असलियत भी सामने रखनी होगी, ताकि भविष्य में इसके प्रति सचेत रहा जा सके और विदेशी ताकतें हमारी तरक्की में अवरोध पैदा करने में सफल न हो सकें।
अब यह किसी से छिपा नहीं कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट भारत की विकास गाथा पर जानबूझकर किया गया हमला था। इस रिपोर्ट का वित्तीय पारदर्शिता से कोई सरोकार नहीं था। सेबी के नोटिस ने हिंडनबर्ग रिसर्च और किंगडन कैपिटल मैनेजमेंट की गंदी चालों को उजागर किया है, जिन्होंने गैर-सार्वजनिक जानकारी का उपयोग करके अदाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड यानी एईएल के शेयरों को शार्ट-सेल करने के लिए मिलीभगत की।
शार्ट सेलिंग तब होती है, जब कोई निवेशक उस शेयर को बेचता है, जो व्यापार के समय उसके स्वामित्व में नहीं होते। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में कई निराधार आरोप एवं भ्रामक बयान थे। यह रिपोर्ट भारत के आर्थिक विकास और पूंजी निर्माण की रीढ़ को निशाना बनाकर भारतीय पूंजी बाजार में दहशत फैलाने का स्पष्ट प्रयास थी। इसके चलते अदाणी समूह के 10 सूचीबद्ध शेयरों में भारी गिरावट आई।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के चार सप्ताह के भीतर पूंजी बाजार से लगभग 150 अरब डालर (लगभग 12.5 लाख करोड़ रुपये) स्वाहा हो गए। यह निवेशकों की संपत्ति और बाजार की स्थिरता पर सीधा प्रहार था। हिंडनबर्ग के आरोपों से बढ़ी दहशत ने अनिश्चितता का माहौल भी बनाया, जिससे निवेशक हतोत्साहित हो गए।
जनवरी से फरवरी 2023 के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय इक्विटी बाजारों से लगभग 34,000 करोड़ रुपये निकाले। विदेशी पूंजी का यह पलायन सीधे तौर पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट द्वारा पैदा किए गए भय के कारण हुआ, जिसे विपक्ष द्वारा सरकार पर लगातार हमलों से और बढ़ावा मिला। यह समझना आवश्यक है कि विदेशी निवेश भारत में विकास और रोजगार का एक महत्वपूर्ण चालक है और ऐसी निराधार रिपोर्ट निवेशकों के विश्वास पर गंभीर रूप से प्रहार करती है।
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि उक्त रिपोर्ट हिंडनबर्ग के निजी लाभ के एजेंडे से ओतप्रोत थी। सेबी के नोटिस से एक चौंकाने वाली जानकारी यह सामने आई कि हिंडनबर्ग ने अपनी दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट की एक अग्रिम प्रति न्यूयार्क के हेज फंड मैनेजर मार्क किंगडन के साथ रिलीज से महीनों पहले साझा की थी। इस गुप्त सहयोग में हिंडनबर्ग और मार्क किंगडन के बीच लाभ-साझाकरण समझौता भी शामिल था।
गैर-सार्वजनिक जानकारी के माध्यम से किंगडन ने अदाणी समूह के बाजार मूल्य में महत्वपूर्ण गिरावट का लाभ उठाया और इनसाइडर ट्रेडिंग यानी भेदिया कारोबार के माध्यम से हिंडनबर्ग और खुद के लिए 2.2 करोड़ डालर यानी करीब 184 करोड़ रुपये से अधिक का लाभ कमाया। ऐसी हेरफेर उनके धोखे को दर्शाती है और उनके कथित शोध में विश्वसनीयता को मिटा देती है।
हिंडनबर्ग के झूठ की परख किए बिना विपक्षी दलों ने उसे हाथोंहाथ लपका। विशेषकर कांग्रेस ने इस झूठ की आग को हवा दी। राहुल गांधी और उनके साथियों ने क्रोनी कैपिटलिज्म के निराधार आरोप लगाए। हालांकि, सेबी के नोटिस ने इन दावों को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के निराधार दावों को बढ़ावा देने में कांग्रेस की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
राष्ट्र के साथ खड़े होने और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के बजाय कांग्रेस ने झूठ को हवा देना कहीं ज्यादा मुनासिब समझा, जिससे निवेशकों के बीच अविश्वास बढ़ा। यह गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार राजनीतिक अवसरवाद के पक्ष में राष्ट्रीय हितों के प्रति उनकी उपेक्षा को उजागर करता है। विपक्ष का यह रवैया सिर्फ एक व्यापारिक इकाई पर हमला नहीं था, बल्कि भारत की आर्थिक आकांक्षाओं पर हमला था।
कांग्रेस द्वारा सरकार की आर्थिक नीतियों को अस्थिर करने के प्रयासों के बावजूद भारत की जीडीपी वृद्धि मजबूत रही, जो वित्त वर्ष 2024 में 8.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी। जबकि वित्त वर्ष 2023 में 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी, जो मौजूदा सरकार के तहत लचीली अर्थव्यवस्था को दर्शाता है। लगातार हो रहे संरचनात्मक सुधार, बुनियादी ढांचे के विकास, डिजिटल पहल और शीर्ष स्तर पर निर्णायक पहल के कारण ही देश की विकास दर सुदृढ़ता से निरंतर तेजी पकड़ रही है।
निहित स्वार्थों से प्रेरित हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जहां विपक्षी दलों ने राजनीतिक लाभ कमाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, वहीं इसका खामिजाया उस मध्यम वर्ग को भुगतना पड़ा, जिसने अपनी मेहनत की कमाई शेयरों में लगाई थी। यह लोगों की आर्थिक आकांक्षाओं पर आघात था। सेबी के नोटिस ने स्पष्ट कर दिया है कि कैसे हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने पूंजी निर्माण को झटका दिया, निवेशकों का विश्वास हिलाया और आम नागरिकों की वित्तीय संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया।
हिंडनबर्ग की धोखाधड़ी वाली रिपोर्ट के कारण भारतीय शेयरों के बाजार मूल्य में लगभग 12.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। जो लोग हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे थे, वही आज सेबी के नोटिस के बाद चुप्पी साधे हुए हैं। उनकी चुप्पी बहुत कुछ कहती है।
(लेखक एक्सएलआरआइ-जेवियर स्कूल आफ मैनेजमेंट में वित्त के प्रोफेसर और भाजपा के नेता हैं)