यह अच्छा हुआ कि बिहार सरकार ने एक के बाद एक पुल गिरने की घटनाओं को देखते हुए अनेक इंजीनियरों को निलंबित कर दिया। इस तरह की कार्रवाई इसलिए आवश्यक थी, क्योंकि पुलों के गिरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था। यह सामान्य बात नहीं कि महज 15 दिनों के अंदर एक दर्जन पुल गिर जाएं। बिहार में इसके पहले भी कई पुल गिर चुके हैं। एक-दो पुल तो ऐसे रहे, जो निर्माणाधीन स्थिति में ही ध्वस्त हो गए। इसे देखते हुए यह आवश्यक था कि बिहार सरकार कोई ठोस कदम उठाती। उसने कई विभागों के इंजीनियरों को निलंबित करने के साथ ही पुलों का निर्माण करने वाली कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए उनका भुगतान रोकने की पहल की है। उसने कंपनियों से यह भी पूछा है कि क्यों न उन्हें काली सूची में डाल दिया जाए? यदि ऐसी कंपनियों की गलती पाई जाती है तो उन्हें न केवल काली सूची में डाला जाना चाहिए, बल्कि उन पर जुर्माना लगाने के साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि वे नाम बदलकर फिर से सक्रिय न होने पाएं।

यह तो किसी जांच से ही सामने आएगा कि नए-पुराने पुल इतनी जल्दी-जल्दी क्यों गिरते रहते हैं, लेकिन इसकी भरी-पूरी आशंका है कि इसके पीछे एक बड़ा कारण दोयम दर्जे का निर्माण है। यह समस्या केवल बिहार की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की है। पिछले ही दिनों झारखंड से यह खबर आई कि वहां सुंदर नदी पर बना पुल उद्घाटन से पहले ही धंसने लगा। इस तरह के मामले देश के अन्य हिस्सों से भी सामने आते रहते हैं।

एक आंकड़े के अनुसार 2012 से 2021 के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में छोटे-बड़े दो सौ से अधिक पुल गिर चुके हैं। बात केवल पुलों की ही नहीं, सड़कों, एक्सप्रेसवे और आधारभूत ढांचे से जुड़े अन्य निर्माण कार्यों की भी है। आखिर यह एक तथ्य है कि पिछले दिनों दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे की एक छत गिर गई। इसी तरह की घटना जबलपुर और राजकोट हवाईअड्डे पर भी हुई। वास्तव में अपने देश में बरसात का मौसम आधारभूत ढांचे की पोल खोलने का काम करता है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि जब भी कोई बड़ी घटना घटती है तो जांच के आदेश दे दिए जाते हैं, क्योंकि पुलों के गिरने और सड़कों के धंसने के मामले रह-रहकर सामने आते ही रहते हैं। इसका सीधा मतलब है कि आधारभूत ढांचे के निर्माण में लापरवाही का परिचय दिया जा रहा है। यह लापरवाही कमीशनखोरी की ओर ही साफ संकेत कर रही है। यह ध्यान रहे तो अच्छा कि आधारभूत ढांचे का तेज गति से निर्माण होने के साथ ही खराब गुणवत्ता के कारण उसके नष्ट होते रहने का सिलसिला प्रगति को थामने के साथ ही संसाधनों की बर्बादी और देश की बदनामी का भी कारण बनता है।