मेडिकल कालेजों में प्रवेश की अखिल भारतीय परीक्षा यानी नीट की काउंसलिंग की तैयारी के बीच यह जो मांग हो रही है कि इस परीक्षा को रद कर उसे दोबारा कराया जाए, उस पर तब तक ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए, जब तक इसके पुष्ट प्रमाण सामने न आ जाएं कि इस परीक्षा की शुचिता पूरे देश में प्रभावित हुई। निःसंदेह पटना और गोधरा में इस परीक्षा में सेंध लगने की आशंका है, लेकिन अभी यह नहीं सामने आया कि दो केंद्रों में परीक्षा के आयोजन में गड़बड़ी से पूरे देश में नीट प्रभावित हुई।

अच्छा यह होगा कि नीट में सेंध लगने के मामले की जांच कर रही सीबीआइ अपनी छानबीन तेज करे और अपने निष्कर्ष से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराए। नीट को रद करने पर जोर देना विपक्षी दलों के लिए राजनीतिक दृष्टि से सुविधाजनक हो सकता है, लेकिन उन्हें छात्रों की सुविधा और उनके हितों पर भी ध्यान देना चाहिए। इस परीक्षा में करीब 24 लाख छात्र बैठे थे। यदि यह परीक्षा रद होती है तो इन छात्रों को नए सिरे से परीक्षा देने के लिए विवश होना पड़ेगा। आखिर जब अभी ऐसा कोई प्रमाण सामने नहीं आया कि इस परीक्षा में जो गड़बड़ी हुई, उसके कारण पूरे देश में उसकी विश्वसनीयता भंग हुई, तब फिर इस पर जोर देने का क्या औचित्य कि उसे रद किया जाए? वैसे भी यह फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है।

आखिर नीट के मामले में विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट के हिस्से का काम खुद क्यों करना चाहते हैं? यह ध्यान रहे कि अभी सुप्रीम कोर्ट ऐसे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है कि नीट को रद कर उसे फिर से कराने की आवश्यकता है और इसी कारण उसने काउंसलिंग रद करने की मांग ठुकरा दी है। नीट के राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित होने के प्रमाण मिले बिना उसे रद करना लाखों छात्रों के समय और संसाधन की बर्बादी करना है। यह चिंताजनक है कि नीट को लेकर कुछ राजनीतिक दल यह मांग लेकर भी सामने आ गए हैं कि मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली इस परीक्षा की पूरी प्रक्रिया को ही समाप्त कर दिया जाए।

इस तरह की मांग तमिलनाडु सरकार की ओर से लंबे समय से की जाती रही है। अब यह मांग बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कर दी है। यह समस्या को बढ़ाने और मेडिकल की पढ़ाई के आकांक्षी छात्रों की परेशानी बढ़ाने वाली अनुचित मांग है। इसकी सख्त आवश्यकता तो है कि नीट का आयोजन साफ-सुथरे ढंग से किया जाना सुनिश्चित किया जाए, लेकिन ऐसी कोई मांग करने के साथ इस पर भी जोर देना संकीर्ण राजनीति के अलावा और कुछ नहीं कि नीट के नाम से बनाई गई नई व्यवस्था को खत्म कर उस पुरानी व्यवस्था में लौट जाया जाए, जिसमें राज्य सरकारें और कुछ मेडिकल कालेज मनमानी करते थे।