हाथरस हादसे के सबक, आयोजकों और प्रशासन की ओर से नहीं थे पर्याप्त इंतजाम
हाथरस में साकार विश्व हरि के धार्मिक समागम में अनुमान से कहीं अधिक भीड़ जुटी। इस आयोजन की अनुमति देने वाले अधिकारियों ने भी इसकी चिंता नहीं की कि जरूरत से ज्यादा बड़ी भीड़ तो नहीं इकट्ठी हो रही है? न तो आयोजकों ने यह देखा कि भारी भीड़ की निकासी के पर्याप्त उपाय हैं या नहीं न ही पुलिस-प्रशासन ने।
संजय गुप्त। एक बार फिर एक धार्मिक आयोजन में भगदड़ मचने से अनेक लोग मारे गए। इस बार भगदड़ हाथरस में एक धार्मिक समागम में हुई, जहां खुद को साकार विश्व हरि कहने वाले कथावाचक लोगों को प्रवचन दे रहे थे। प्रवचन समाप्त होने के बाद अव्यवस्था के चलते जो भगदड़ मची, उसमें 121 लोग मारे गए। इनमें से अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे। अपने देश में यह कोई पहली बार नहीं है, जब किसी धार्मिक अथवा सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन में भगदड़ मचने से लोगों की जान गई हो। इस तरह के हादसे दुनिया के दूसरे देशों में भी होते रहते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि अपने देश में ऐसे हादसे कुछ अधिक ही हो रहे हैं।
धार्मिक-सामाजिक आयोजनों में अव्यवस्था फैलने से हादसे तब होते हैं, जब आयोजकों द्वारा न तो भीड़ का अनुमान लगाया जाता है और न ही प्रशासन की ओर से उसकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त उपाय किए जाते हैं। इस कारण भीड़ की धक्कामुक्की के चलते भगदड़ मच जाती है और लोग एक-दूसरे के पैरों तले कुचलकर मारे जाते हैं। हाथरस में ऐसा ही हुआ। इस तरह के हादसे एक लंबे समय से होते चले आ रहे हैं, लेकिन उनकी रोकथाम के लिए ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं। धार्मिक आयोजनों में बड़ी आसानी से भारी भीड़ एकत्रित हो जाती है। हालांकि धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने वाले और साथ ही कथावाचक अथवा संत-महात्मा उनमें अच्छा-खासा धन जुटाने में सफल रहते हैं, लेकिन वे श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए कोई ठोस प्रबंध नहीं करते।
हाथरस में साकार विश्व हरि के धार्मिक समागम में अनुमान से कहीं अधिक भीड़ जुटी। इस आयोजन की अनुमति देने वाले अधिकारियों ने भी इसकी चिंता नहीं की कि जरूरत से ज्यादा बड़ी भीड़ तो नहीं इकट्ठी हो रही है? न तो आयोजकों ने यह देखा कि भारी भीड़ की निकासी के पर्याप्त उपाय हैं या नहीं, न ही पुलिस-प्रशासन ने। माना जा रहा है कि इस कार्यक्रम में भगदड़ इसलिए मची, क्योंकि बड़ी संख्या में एकत्रित श्रद्धालु साकार विश्व हरि के दर्शन के लिए उनके पास जाने के लिए धक्कामुक्की करने लगे। आयोजकों ने यह समझने से इन्कार किया कि यह धक्कामुक्की भगदड़ में तब्दील हो सकती है। अंतत: ऐसा ही हुआ। इससे भी खराब बात यह रही कि भगदड़ मचने पर उसे नियंत्रित करने के कोई कदम नहीं उठाए गए।
साकार विश्व हरि खुद पुलिसकर्मी रहे हैं। इस नाते उन्हें इसकी जानकारी होनी चाहिए थी कि भीड़ के अनियंत्रित होने पर क्या स्थिति बनेगी, लेकिन उन्होंने भी इसकी परवाह नहीं की। आश्चर्य नहीं कि इसका कारण यह रहा हो कि खुद को संत-महात्मा कहने वाले साकार विश्व हरि जैसे लोग अपने भक्तों का उपयोग स्वयं के महिमामंडन करने और धन एकत्रित करने में करते हैं। ऐसे संत-महात्माओं का अपने अनुयायियों के आत्मिक उत्थान से कोई लेना-देना नहीं होता। आम तौर पर वे उन्हें झूठी दिलासा देते हैं और अंधविश्वासी बनाते हैं। वे उन्हें संयम और अनुशासन का पाठ भी नहीं पढ़ाते। अपने देश में संतों के प्रति एक आकर्षण और आदर रहता है। तमाम कथावाचक बहुत जल्द खुद को संत में तब्दील कर लेते हैं और कुछ खुद की पूजा कराने लगते हैं।
कुछ तो स्वयं को ईश्वरीय या अलौकिक शक्तियों से लैस करार देते हैं। निर्धन और अशिक्षित लोग उनकी बातों में आ जाते हैं। धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढ़ती जाती है और इसी के साथ उनके अनुयायी भी बढ़ते चले जाते हैं। साकार विश्व हरि के अनुयायियों की भी अच्छी-खासी संख्या है। हाथरस में उनके आयोजन में कुछ अनुयायी दूसरे राज्यों से भी आए थे। अपने देश में साकार हरि जैसे कथावाचकों अथवा संतों की कमी नहीं है। कोई भी कथावाचक धर्म-कर्म, ईश्वर आदि की अपनी तरह से व्याख्या करके लोगों को आकर्षित करने और अंतत: उन्हें अपना अनुयायी बनाने में सफल हो जाता है। ऐसे अनुयायी आसानी से अंधविश्वास से भी ग्रस्त हो जाते हैं और कथावाचक या संत के प्रति उनकी आस्था इतनी अधिक बढ़ जाती है कि वे सही-गलत का भेद करना छोड़ देते हैं और तार्किकता से दूर हो जाते हैं।
साकार विश्व हरि जैसे कथावाचक किस तरह कम पढ़े-लिखे अशिक्षित और गरीब लोगों को सम्मोहित करने में सफल हो जाते हैं, इसका पता इससे भी चलता है कि पढ़े-लिखे लोग मुश्किल से ही उनके अनुयायी बनते हैं। यदि कभी वे बनते भी हैं तो भीड़ भरे आयोजनों में जाने से बचते हैं। चूंकि अनपढ़-अशिक्षित लोग इस धारणा से अधिक ग्रस्त होते हैं कि उनके जीवन में जो समस्याएं हैं, उनसे छुटकारा किसी संत-महात्मा के आशीर्वाद या सान्निध्य अथवा उसके उपदेश से मिल सकता है, इसलिए वे वैज्ञानिक चेतना का परिचय नहीं देते। धार्मिक आयोजनों में भारी भीड़ जुटने अथवा कथा-प्रवचन आदि के कार्यक्रम सुनने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह देखा ही जाना चाहिए कि इस तरह के आयोजनों में अव्यवस्था किसी दुर्घटना को निमंत्रण न देने पाए।
अपने देश में एक समस्या यह भी है कि यदि कोई कथावाचक अथवा स्वयं को संत-महात्मा कहने वाला व्यक्ति भारी भीड़ जुटाने में समर्थ हो जाता है तो नेतागण वोट बैंक बनाने के लालच में उसे समर्थन और संरक्षण देने लगते हैं। यह समर्थन और संरक्षण ऐसे लोगों के साम्राज्य को बढ़ाने का काम करता है। इस पर आश्चर्य नहीं कि साकार विश्व हरि के अनेक आश्रम हैं और उनके कई नेताओं से भी संबंध-संपर्क हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है और मायावती को छोड़कर कोई भी नेता यह नहीं कह पा रहा है कि लोगों को अंधविश्वास और पाखंड से बचने की जरूरत है। उलटे समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव यह कहते हुए नजर आए कि इस तरह के हादसे होते ही रहते हैं।
नेताओं का यह रवैया जाने-अनजाने समाज में अंधविश्वास को बढ़ाता है और नकली-पाखंडी संतों को बढ़ावा देता है। यह ठीक है कि धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आयोजनों में लोगों को जाने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन कम से कम इतना तो होना ही चाहिए कि इस तरह के आयोजनों में सुरक्षा के ठोस उपाय किए जाएं। भीड़ को नियंत्रित करने के उपाय आयोजकों को भी करने चाहिए और पुलिस-प्रशासन को भी। इसके साथ ही आम जनता को भी यह समझना होगा कि भीड़ भरे स्थलों में संयम और अनुशासन का परिचय देना आवश्यक है।
[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]