अपेक्षाओं के अनुरूप आपराधिक कानून: अब इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा 'तारीख पे तारीख' वाला जुमला
नए कानून में इन इलेक्ट्रॉनिक्स रिकॉर्ड की ग्राह्यता एवं विधि मान्यता का प्रविधान किया गया है। न्यायिक प्रक्रियाओं को त्वरित बनाने के लिए समन या वारंट को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे जाने का भी नागरिक सुरक्षा संहिता में प्रविधान किया गया है जिससे कोर्ट द्वारा आदेश जारी होते ही संबंधित थाने में तत्काल पहुंच जाए और बिना विलंब के समन एवं वारंट तामील हो जाएं।
आशुतोष पाण्डेय। भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली अब एक नए युग में प्रवेश कर गई है। इस प्रणाली के सभी तंत्रों जैसे कोर्ट, पुलिस, विधि विज्ञान प्रयोगशाला, कारागार और अभियोजन आदि का डिजिटलीकरण हो चुका है। इन्हें एक वृहद एकीकृत प्लेटफार्म से सूचनाओं के त्वरित आदान-प्रदान के लिए भी जोड़ा जा रहा है।
इसके साथ ही ब्रिटिशकालीन आपराधिक कानूनों आइपीसी, सीआरपीसी एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम में व्यापक परिवर्तन कर इन्हें वर्तमान की अपेक्षाओं के अनुरूप बनाया गया है। ये तीनों कानून यानी भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू होने के बाद न्याय प्रणाली की लेटलतीफी पर कटाक्ष के रूप में बोला गया जुमला ‘तारीख पे तारीख’ आने वाले समय में इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ट्रायल के दौरान होने वाले विलंब को समाप्त करने का प्रविधान किया गया है। पुलिस द्वारा 60 एवं 90 दिन में न्यायालय में आरोप-पत्र प्रेषित करने के उपरांत विभिन्न न्यायिक प्रक्रियाएं प्रारंभ हो जाती हैं। सबसे पहले न्यायालय द्वारा आरोप पत्र पर अपराध का संज्ञान लिया जाता है। संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने के 90 दिनों (जो 180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है) के अंदर सेशन कोर्ट को सुपुर्द
कर दिया जाएगा। यह समयबद्धता पूर्व में नहीं थी।
सुपुर्द करने के पूर्व अभियुक्त के कोर्ट में प्रस्तुत होने के 14 दिनों के भीतर पुलिस रिपोर्ट या अन्य दस्तावेजों की प्रतिलिपि दी जाएगी। पूर्व में यह समयबद्धता नहीं थी। ये प्रतिलिपियां अभियुक्तों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में दी जा सकती हैं, जिसका पहले प्रविधान नहीं था। न्यायालय में ट्रायल प्रक्रिया आरोप तय करने से शुरू होती है। अब अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पर सुनवाई की पहली तारीख से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किया जाएगा। ऐसी
समय सीमा पहले नहीं थी। पहले कोर्ट में आरोप तय करने के समय अभियुक्त की उपस्थिति अनिवार्य थी, परंतु अब इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से अभियुक्त को आरोप पढ़कर सुनाया या समझाया जा सकता है। इससे अभियुक्त को न्यायालय, विभिन्न जनपदों से न्यायालय लाने या उपस्थित करने की परेशानी समाप्त हो गई है। शातिर अपराधी तिकड़म भिड़ाकर आरोप तय होने की कार्यवाही को पूर्ण नहीं होने देते थे, क्योंकि आरोप तय होने पर ट्रायल की प्रक्रिया शुरू हो जाती थी।
कुख्यात अपराधी आरोप तय होने की तिथि पर कोर्ट में नहीं उपस्थित होने के लिए अन्य मामलों में तिथि निश्चित कराकर दूसरे जनपदों में चले जाते थे। इससे लंबे समय तक आरोप तय नहीं हो पाता था। अब जहां ट्रायल शुरू नहीं होने देने के प्रयासों पर कुठाराघात हुआ है, वहीं त्वरित ट्रायल एवं प्रभावी अभियोजन की परिकल्पना साकार हुई है।
आरोप तय होने से लेकर ट्रायल समाप्त होने तक वादी एवं साक्षियों का परीक्षण, क्रास इक्जामिनेशन और री-इक्जामिनेशन, अभियुक्त के बयान आदि की प्रक्रिया को सरल, त्वरित एवं प्रभावी बनाने के लिए इन सभी कार्यों को आडियो-वीडियो के माध्यम से कराने का प्रविधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में किया गया है। इसमें न्यायालय में व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी उपस्थित हो सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड एवं वीडियो रिकॉर्डिंग को भी भारतीय साक्ष्य अधिनियम में प्राथमिक साक्ष्य माना गया है। नए कानून में इन इलेक्ट्रॉनिक्स रिकॉर्ड की ग्राह्यता एवं विधि मान्यता का प्रविधान किया गया है। न्यायिक प्रक्रियाओं को त्वरित बनाने के लिए समन या वारंट को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे जाने का भी नागरिक सुरक्षा संहिता में प्रविधान किया गया है, जिससे कोर्ट द्वारा आदेश जारी होते ही संबंधित थाने में तत्काल पहुंच जाए और बिना विलंब के समन एवं वारंट तामील हो जाएं।
शातिर अपराधी फरार होकर भी न्यायिक प्रक्रिया को विलंबित करने में भरपूर जोर लगाते हैं। ऐसे अपराधियों की अनुपस्थिति में भी ट्रायल आरोप तय होने के 90 दिन के बाद शुरू करने एवं उस पर निर्णय देने का प्रविधान नए कानून में जोड़ा गया है। इससे फरार अभियुक्तों वाले मामलों में भी समयबद्धता के साथ निस्तारण में मदद मिलेगी। ऐसे भगोड़े अभियुक्तों के लिए संयुक्त रूप से ट्रायल किया जाएगा। सरकारी सेवकों के अभियोजन स्वीकृति के मामलों में भी अधिकतम 120 दिनों की समयसीमा निर्धारित की गई है, अन्यथा यह मान लिया जाएगा कि अभियोजन स्वीकृति प्राप्त हो गई है।
ट्रायल के त्वरित निस्तारण के लिए न्यायश्रुति नामक वीडियो कांफ्रेंसिंग ग्रिड विकसित किया गया है, जिस पर कोर्ट, कारागार, अभियोजन, पुलिस आदि संवाद कर सकते हैं। तलाशी, जब्ती (सर्च एवं सीजर) एवं घटनास्थल की वीडियोग्राफी के लिए ई-साक्ष्य मोबाइल एप विकसित किया गया है, जिससे साक्ष्यों को शीघ्र साबित कराया जा सकेगा। एक त्रिस्तरीय अभियोजन की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है, जिससे मामलों का त्वरित निपटान एवं निगरानी हो सके।
कोर्ट द्वारा ट्रायल के दौरान समस्त कार्यवाहियां एवं जिरह पूर्ण होने पर 30 दिनों के अंदर एवं अधिकतम 45 दिनों के अंदर निर्णय दिए जाने का प्रविधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में किया गया है। निर्णय की प्रति को सात दिनों के अंदर पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा। निर्णय देने में भी समयबद्धता का प्रविधान किया गया है। आशा है कि विभिन्न न्यायिक प्रक्रियाओं के अनुपालन में ये तीनों नए कानून आपराधिक न्याय प्रणाली को जनता एवं नए युग की अपेक्षाओं के अनुरूप त्वरित, सरल, विश्वसनीय एवं प्रभावी बनाने में सफल होंगे।
(लेखक उत्तर प्रदेश आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन के विशेष अपराध अनुसंधान दल में अपर पुलिस महानिदेशक हैं)