चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से राष्ट्रपति शी चिनफिंग के तीसरे कार्यकाल पर मुहर लगाने की तैयारी के बीच चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी आतंकी सरगना शाहिद महमूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर जिस तरह अड़ंगा लगाया, उससे यह और अच्छे से स्पष्ट हुआ कि चिनफिंग के नेतृत्व में चीन और अधिक बेलगाम होने के साथ विश्व शांति के लिए सिरदर्द बनेगा। हाल में यह चौथी बार है, जब चीन ने संयुक्त राष्ट्र में किसी आतंकी का खुलकर बचाव किया है। इसके पहले वह पाकिस्तान के ही तीन और आतंकियों को प्रतिबंधित करने के प्रयासों पर पानी फेर चुका है।

लश्कर, जैश जैसे आतंकवादी संगठनों से जुड़े रहे ये सभी आतंकी भारत के लिए खतरा रहे हैं। इनका बेशर्मी से बचाव कर चीन ने न केवल यह सिद्ध किया कि उसे अपनी वैश्विक छवि की चिंता नहीं, बल्कि यह भी कि वह भारतीय हितों को चोट पहुंचाने वाले अपने रवैये का परित्याग करने वाला नहीं, भले ही इसके लिए आतंकियों की ढाल ही क्यों न बनना पड़े। चीन के अड़ियल रवैये की झलक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन में राष्ट्रपति चिनफिंग के भाषण से भी मिली। उन्होंने ताइवान को लेकर एक तरह से दुनिया को धमकाने का ही काम किया।

इसी अधिवेशन में उन्हें केवल तीसरी बार सत्ता की कमान ही नहीं सौंपी जाएगी, बल्कि और अधिक शक्तियां भी प्रदान की जाएंगी। चूंकि ये शक्तियां असीमित होंगी और वह पहले से ही राष्ट्रपति के साथ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव एवं सेना प्रमुख हैं, इसलिए यह सहज ही समझा जा सकता है कि वह और अधिक निरंकुश तानाशाह होने जा रहे हैं। इसका एक अर्थ यह भी है कि वह भारत समेत अन्य पड़ोसी देशों को साथ विश्व व्यवस्था के लिए भी चुनौती बनने जा रहे हैं।

यह ठीक है कि भारत को चीन की ओर से पेश की जा रहीं चुनौतियों का भान है और इसकी पुष्टि विदेश मंत्री जयशंकर के इस कथन से होती है कि नया युग केवल चीन का नहीं है, लेकिन उसकी दादागीरी का सामना करने के लिए भारत को और अधिक सजग होना होगा। वह न तो चीन पर भरोसा कर सकता है और न ही उसे मित्र देश के रूप में देख सकता है। चीन पाकिस्तान को जिस तरह भारत के विरुद्ध एक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है, वह किसी से छिपा नहीं।

वास्तव में इसी कारण चीन उसके आतंकियों को प्रतिबंधित होने से बचा रहा है। उसके शत्रुतापूर्ण रवैये को देखते हुए यह आवश्यक है कि भारत उसका सामना करने के लिए स्वयं को और सक्षम बनाए। इसके लिए उसे अपनी सैन्य तैयारियों को आगे बढ़ाने के साथ ही उस पर आर्थिक निर्भरता भी खत्म करनी होगी और अपनी अर्थव्यवस्था को और सबल भी बनाना होगा।