अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर जानलेवा हमला एक बेहद गंभीर घटना है। वह बाल-बाल बचे, लेकिन उन्हें निशाना बनाने वाला जिस तरह उन पर गोलियां बरसाने में सक्षम रहा, वह सुरक्षा में गंभीर चूक का नतीजा है। यह इससे स्पष्ट होता है कि हमलावर की गतिविधि के बारे में ट्रंप की रैली में आए लोगों ने सुरक्षाकर्मियों को बताया भी था, लेकिन उन्होंने अपेक्षित कार्रवाई नहीं की।

चूंकि हमलावर मारा गया है इसलिए यह जानना कठिन हो सकता है कि ट्रंप को निशाना बनाने के पीछे उसका उद्देश्य क्या था, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि यह घटना उस विषाक्त राजनीतिक वातावरण का परिणाम जान पड़ती है जो अमेरिका में पिछले कुछ समय से व्याप्त है।

चिंता की बात यह है कि यह विषाक्त राजनीतिक वातावरण दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है। अमेरिका इस समय राजनीतिक और वैचारिक रूप से इतना अधिक विभाजित है कि उसका दुष्प्रभाव पूरे समाज पर पड़ रहा है। किसी भी लोकतंत्र के लिए यह स्थिति ठीक नहीं, लेकिन इसमें संदेह है कि अमेरिका में वैचारिक विभाजन थमेगा।

अमेरिका में राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपतियों और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों पर हमले का एक इतिहास रहा है। इस हमले में कई नेताओं की जान भी जा चुकी है। अमेरिका में सार्वजनिक स्थानों में गोलीबारी की घटनाएं नई नहीं हैं। ये घटनाएं अमेरिका में व्याप्त बंदूक संस्कृति का नतीजा हैं। इस बंदूक संस्कृति को लेकर विभिन्न स्तरों पर चिंता जताई जा चुकी है, लेकिन कोई भी उस पर रोक लगाने के लिए तैयार नहीं।

यह संस्कृति एक तरह से विश्व में सबसे घातक आंतरिक आतंक का पर्याय बन चुकी है। वैसे तो अमेरिका दुनिया भर को उपदेश देता रहता है, लेकिन वह यह देखने-समझने को तैयार नहीं कि स्वयं उसके अपने यहां क्या स्थिति है। डोनाल्ड ट्रंप पर एक ऐसे समय हमला हुआ है जब राष्ट्रपति पद के लिए उनकी दावेदारी पर मुहर लगने वाली है।

इसके भरे-पूरे आसार हैं कि इस हमले के बाद ट्रंप को सहानुभूति का लाभ मिलेगा। इससे वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन की कठिनाई बढ़ सकती है। इसलिए और भी, क्योंकि उन पर पहले ही यह दबाव है कि वह अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति को देखते हुए राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से पीछे हट जाएं।

चूंकि अमेरिका विश्व का सबसे सशक्त लोकतंत्र है और वैश्विक राजनीति को कहीं गहराई से प्रभावित करता है इसलिए यह स्वाभाविक है कि भारत समेत दुनिया भर के नेताओं ने ट्रंप पर हमले की निंदा करते हुए चिंता जताई है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि जैसा विषैला राजनीतिक वातावरण अमेरिका में है वैसा दुनिया के अन्य देशों में भी बन रहा है।

दुर्भाग्य से इनमें भारत भी है। राजनीतिक विरोध और असहमति का भाव जिस तरह शत्रुता में परिवर्तित होती जा रही है वह शुभ संकेत नहीं। उचित यह होगा कि अपने देश के नेता यह समझें कि जब राजनीतिक मतभेद एक-दूसरे के प्रति विद्वेष में बदल जाते हैं तो इसके कैसे नतीजे होते हैं।