राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए ने छह राज्यों में पापुलर फ्रंट आफ इंडिया अर्थात पीएफआइ के 20 ठिकानों पर जो छापेमारी की, उससे यही पता चलता है कि आतंकी गतिविधियों में लिप्तता के चलते प्रतिबंधित किए जाने के बाद भी इस संगठन के सदस्य सक्रिय हैं। पीएफआइ पर पाबंदी लगाए हुए एक वर्ष से अधिक हो चुका है, लेकिन उसके बाद से इस संगठन के अनेक सदस्यों को आतंकी साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इसका अर्थ है कि इस संगठन के सदस्य अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।

गत दिवस एनआइए ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान से लेकर तमिलनाडु में जिस तरह पीएफआइ के ठिकानों पर छापेमारी की, उससे यही रेखांकित होता है कि इस संगठन ने देश भर में अपने पांव पसार लिए हैं। इस संगठन को निष्क्रिय करने में इसीलिए समय लग रहा है, क्योंकि उसने केरल से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक में अपना विस्तार कर लिया था। उसने अपने कई सहयोगी संगठन भी बना लिए थे। हालांकि पीएफआइ संग उन पर भी पाबंदी लगा दी गई, लेकिन उसकी राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया अभी भी सक्रिय है। वह कई राज्यों में चुनाव भी लड़ चुकी है।

जब यह स्पष्ट है कि यह कथित राजनीतिक दल पीएफआइ के एजेंडे पर ही चल रहा है, तब फिर उस पर भी उसी तरह पाबंदी लगनी चाहिए, जैसे अभी पिछले सप्ताह जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी को प्रतिबंधित किया गया। नि:संदेह केवल पीएफआइ ही आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा नहीं है। इसी तरह के अन्य संगठन भी हैं, जो भारत में आतंकी घटनाओं की साजिश रचते रहते हैं।

देश में अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों के सदस्य और मददगार भी सक्रिय हैं। जब-तब उनकी गिरफ्तारी भी होती रहती है। अभी बीते सप्ताह दिल्ली पुलिस ने इस्लामिक स्टेट से जुड़े तीन संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया। ये तीनों इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं। दिल्ली पुलिस की मानें तो ये तीनों आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षण शिविर खोलने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें पाकिस्तान से भी मदद मिल रही थी।

एक समय था, जब यह माना जाता था कि अशिक्षित या कम पढ़-लिखे मुस्लिम युवा ही आतंक की राह पर जाते हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों से उच्च शिक्षित मुसलमान युवक भी आतंकी संगठनों से जुड़ रहे हैं। कुछ माह पहले एनआइए ने पुणे के एक जाने-माने डाक्टर अदनान अली को मुस्लिम युवकों को आतंकी संगठन में भर्ती कराने में मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उच्च शिक्षित युवा आतंक की राह पर क्यों जा रहे हैं, इस पर मुस्लिम समाज के नेतृत्व को गंभीरता से विचार करना होगा। यह सही है कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता, लेकिन इसके भी सैकड़ों उदाहरण हैं कि किस तरह आतंक के लिए मजहब की आड़ ली जाती है।