लोकसभा चुनाव में मतदान के चौथे चरण को लेकर यह जानने की प्रतीक्षा है कि मतदान प्रतिशत कितना रहता है। इसका कारण यह है कि पहले और दूसरे चरण में 2019 की तुलना में कम मतदान हुआ। तीसरे चरण में भी मतदान प्रतिशत पिछले आम चुनाव के मुकाबले तो कम रहा, लेकिन अंतर कुछ घटा।

देखना यह है कि चौथे चरण के मतदान प्रतिशत में कुछ बढ़ोतरी होती है या नहीं। मतदान प्रतिशत कम रहने के कई कारण हैं। इनमें मतदाता सूचियों का सही तरह से तैयार न होना, सभी मतदाताओं का उनमें नाम न होना और एक बड़ी संख्या में मतदाताओं का अपने काम-धंधे के सिलसिले में अपने गांव और शहर से दूर रहना शामिल है।

मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए इन कारणों का निवारण किया जाना चाहिए, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि मतदाताओं में जो उदासीनता देखने को मिल रही है, उसके लिए एक हद तक वही उत्तरदायी हैं। विडंबना यह है कि यह उदासीनता शहरी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिल रही है।

इसका अर्थ है कि पढ़ा-लिखा और विभिन्न विषयों को लेकर मुखर रहने वाला वर्ग भी मतदान के प्रति उत्साहित नहीं रहता। यह भी देखने को मिल रहा है कि देश के कुछ हिस्सों में तो मतदान प्रतिशत संतोषजनक रहता है, लेकिन कुछ हिस्सों में वह अपेक्षा से कहीं अधिक कम रहता है।

मतदान केवल इसलिए नहीं किया जाना चाहिए कि यह एक अधिकार है, बल्कि इस दायित्व का निर्वहन इसलिए भी किया जाना चाहिए कि इससे सरकार गठन में लोगों की भागीदारी बढ़ने से लोकतंत्र को बल मिलता है और साथ ही राजनीतिक दलों को अपनी नीतियों का निर्धारण करने में मदद भी मिलती है।

मतदान न करने वाले लोग केवल जिम्मेदार नागरिक होने के दायित्व की पूर्ति में ही पीछे नहीं रह जाते, बल्कि शिकायत करने के अधिकारी भी नहीं रह जाते। मतदान में भाग लेना एक तरह से राष्ट्र निर्माण में हिस्सेदारी करना है। निःसंदेह अपेक्षित संख्या में लोगों के मतदान के लिए न निकलने के पीछे एक कारण प्रतिकूल मौसम है और इसीलिए यह कहा जा रहा है कि चुनाव ऐसे मौसम में कराए जाने चाहिए जब इतनी अधिक गर्मी न पड़ रही हो, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि लोग प्रतिकूल मौसम के बावजूद अपनी तय दिनचर्या पूरी करते हैं और गर्मी के बावजूद अपने काम-धंधे के सिलसिले में घर से बाहर निकलते हैं।

स्पष्ट है कि प्रतिकूल मौसम के स्थान पर लोगों की अनिच्छा ही पर्याप्त मतदान न होने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। इस अनिच्छा के कारणों की पहचान राजनीतिक दलों को भी करनी चाहिए और साथ ही स्वयं लोगों को इसके लिए प्रेरित होना चाहिए कि लोकतंत्र को मजबूती देने में वे कैसे भागीदार बनें, क्योंकि केवल इसी तरीके से वे राजनीतिक दलों को अपनी अपेक्षाओं के प्रति सजग-सचेत कर सकते हैं।