रोजगार का प्रश्न: बढ़ाने होंगे रोजगार के अवसर, सरकारी कर्मचारियों की भी तय हो जवाबदेही
हाल में रिजर्व बैंक ने यह स्पष्ट किया कि वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 4.67 करोड़ नौकरियां बढ़ीं। रिजर्व बैंक ने यह भी बताया कि बीते वित्त वर्ष तक देश में कुल नौकरियां बढ़कर 64.3 करोड़ हो गईं। इसका अर्थ है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्ती और उसका प्रभाव भारत में पड़ने के बावजूद देश में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।
भाजपा की ओर से केवल यह कहना ही पर्याप्त नहीं कि राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं की ओर से बेरोजगारी पर झूठ फैलाया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि भाजपा और उसकी केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से इस विमर्श की प्रभावी ढंग से काट की जाए कि रोजगार के मोर्चे पर संकट गहरा रहा है।
भाजपा और उसकी सरकारों को इस धारणा को भी ध्वस्त करना होगा कि रोजगार का मतलब सरकारी नौकरी होता है। इसके अतिरिक्त इस पर भी ध्यान देना होगा कि जब अन्य देशों की तुलना में देश में नौकरियों के अवसर बढ़ रहे हैं, तब फिर विपक्ष यह माहौल बनाने में क्यों सक्षम है कि रोजगार के मोर्चे पर स्थिति चिंताजनक है?
आखिर जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का एक अध्ययन यह कहता है कि मनमोहन सरकार के दस वर्ष के कार्यकाल की तुलना में मोदी सरकार के शासनकाल में कहीं अधिक नौकरियों का सृजन हुआ, तब फिर विपक्ष उलटी तस्वीर पेश करने में क्यों समर्थ है?
यदि विपक्ष सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए झूठ का सहारा लेने के साथ ही बेरोजगारी संबंधी आंकड़ों की मनमानी व्याख्या कर रहा है, जो स्पष्ट रूप से दिख भी रहा है तो इसमें कहीं न कहीं सरकार की भी कमजोरी झलकती है। इसका अर्थ है कि वह अपनी बात सही से लोगों तक नहीं पहुंचा पा रही है।
अभी हाल में रिजर्व बैंक ने यह स्पष्ट किया कि वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 4.67 करोड़ नौकरियां बढ़ीं। रिजर्व बैंक ने यह भी बताया कि बीते वित्त वर्ष तक देश में कुल नौकरियां बढ़कर 64.3 करोड़ हो गईं। इसका अर्थ है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्ती और उसका प्रभाव भारत में पड़ने के बावजूद देश में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।
इससे इनकार नहीं कि रोजगार के और अधिक अवसर पैदा करने की आवश्यकता है और उसकी पूर्ति सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर करनी होगी, लेकिन इसके साथ ही उसे उस धारणा को भी तोड़ने का काम करना होगा, जिसके तहत रोजगार का मतलब सरकारी नौकरियां समझा जाता है। अपने देश में सरकारी नौकरियों के प्रति जैसा जबरदस्त आकर्षण है, वैसा अन्य विकासशील एवं विकसित देशों में कम ही देखने को मिलता है।
सरकारी नौकरियों के प्रति आकर्षण का एक बड़ा कारण नौकरी की गारंटी और जवाबदेही से मुक्ति का भाव भी है। एक अन्य कारण यह आमधारणा भी है कि सरकारी नौकरियां अति सुरक्षित होने के साथ ही आरामतलबी का पर्याय होती हैं। इस धारणा को जितनी जल्दी दूर किया जाए, उतना ही अच्छा।
इसमें सफलता तभी मिलेगी, जब सरकारी नौकरियों को कार्यकुशलता का पर्याय बनाने के साथ सरकारी कर्मचारियों को जवाबदेह बनाया जाएगा। सरकारी कर्मचारियों में यह भाव जगाना ही होगा कि यदि वे अपना काम सही तरह नहीं करेंगे तो उनकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है।