डोडा जिले में एक आतंकी हमले में कैप्टन समेत सेना के चार जवानों और जम्मू कश्मीर के एक पुलिसकर्मी का बलिदान इसलिए कहीं अधिक आघातकारी है, क्योंकि कुछ ही दिनों पहले कठुआ में एक सैन्य अफसर सहित पांच जवान आतंकियों का निशाना बन गए थे। इसके पहले भी जम्मू संभाग में ही सेना के कई जवान आतंकियों से लोहा लेते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे चुके हैं।

यह बेहद चिंतित करने वाला घटनाक्रम है कि पिछले कुछ समय से कश्मीर घाटी के साथ-साथ जम्मू संभाग में भी आतंकियों की गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं। हाल की कुछ घटनाओं से तो यह भी लगता है कि आतंकियों ने जम्मू संभाग को अपनी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना लिया है। एक ऐसे समय जब जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी हो रही है, तब आतंकियों का बेलगाम नजर आने लगना गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए।

यह ठीक नहीं कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकी न केवल घुसपैठ करने में समर्थ हैं, बल्कि अपनी गतिविधियों को अंजाम देने और इस क्रम में सेना को निशाना बनाने में भी। ऐसा क्यों हो रहा है, इसकी तह तक जाने की जरूरत है।

आखिर क्या कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी के तीसरी बार सत्ता संभालने के बाद से जम्मू कश्मीर में आतंकी हमलों में तेजी आती दिख रही है? आतंकी जिस तरह अपनी रणनीति बदलकर सुरक्षा बलों को कहीं अधिक क्षति पहुंचाने में समर्थ दिखने लगे हैं, वह किसी बड़ी साजिश का संकेत है।

भारत सरकार को एक ओर जहां सीमा पार से होने वाली आतंकियों की घुसपैठ पर प्रभावी नियंत्रण करना होगा, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान को नए सिरे से सबक भी सिखाना होगा। यह इसलिए अनिवार्य हो गया है, क्योंकि पिछले कुछ समय में आतंकी हमलों में बलिदान होने वाले सैनिकों की संख्या कहीं अधिक बढ़ी है।

एक आंकड़े के अनुसार पिछले तीन वर्ष में करीब 50 जवानों को अपना बलिदान देना पड़ा है। यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं। आतंक को करारा जवाब केवल तभी नहीं दिया जाना चाहिए, जब एक साथ बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों के जवानों को बलिदान देना पड़े। वास्तव में हमारे एक भी सैनिक का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए।

डोडा की घटना के बाद यह जो कहा जा रहा है कि सैनिकों के बलिदान का बदला लिया जाएगा, उसे न केवल पूरा करके दिखाया जाना चाहिए, बल्कि आतंकियों, उनके आकाओं और उन्हें सहयोग-समर्थन देने वालों पर ऐसा करारा प्रहार किया जाना चाहिए, जिससे वे अपनी हरकतों से हमेशा के लिए बाज आएं।

पाकिस्तान भले ही आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा हो, लेकिन वह जम्मू कश्मीर में पहले की तरह ही आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। चूंकि इसकी भरी-पूरी आशंका है कि चीन उसे उकसाने में लगा हुआ होगा, इसलिए भारत को कहीं अधिक सतर्क रहना होगा।