जागरण प्राइम के खुलासे के बाद बैटरी का जहर फैला रही फैक्टरियों पर बड़ी कार्रवाई : इंपैक्ट रिपोर्ट
प्रशासन ने जागरण प्राइम की खबर का संज्ञान लेते हुए गाजियाबाद जिले की मुरादनगर तहसील के शहजादपुर गांव तथा आस-पास के क्षेत्रों में अवैध तरीके से चल रही बैटरी गलाने की फैक्टरियों पर छापेमारी कर उन्हें बंद करा दिया है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। बैटरी का जहर फैलाने वाली फैक्टरियों पर जागरण प्राइम के खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ी कार्रवाई की है। प्रशासन ने जागरण प्राइम की खबर का संज्ञान लेते हुए गाजियाबाद जिले की मुरादनगर तहसील के शहजादपुर गांव तथा आस-पास के क्षेत्रों में अवैध तरीके से चल रही बैटरी गलाने की फैक्टरियों पर छापेमारी कर उन्हें बंद करा दिया है।
जागरण प्राइम की टीम ने शहजादपुर गांव के खेतों में छुपाकर बनी अवैध फैक्टरियों का जायजा लिया था। वहां से पानी और मिट्टी के सैंपल लेकर एनएबीएल एक्रेडिटेड लैब 'दिल्ली टेस्ट हाउस' से उनकी जांच कराई। ट्यूबवेल के पानी में प्रति लीटर 0.09 माइक्रो ग्राम लेड की मात्रा मिली। यह किसी भी व्यक्ति को बीमार बना देने के लिए पर्याप्त है। बैटरियों में लेड होती है और पानी तथा मिट्टी के जरिए वह खाद्य पदार्थों में और अंतत: मानव शरीर में पहुंचती है।
पर्यावरण राज्य मंत्री बोले, प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ होगी सख्त कार्रवाई
उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण, जंतु उद्यान एवं जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री केपी मलिक ने कहा, जागरण प्राइम की खबर का संज्ञान लेते हुए संबंधित जिला प्रशासन से संपर्क किया गया। उपजिलाधिकारी, मोदीनगर को फैक्टरियों को चिह्नित कर बंद कराने के निर्देश दिए गए। मलिक ने कहा कि प्रदेश सरकार पर्यावरण और प्रदूषण की समस्या के निदान को लेकर कृतसंकल्प है। किसी भी स्तर पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। प्रदेश सरकार का अभियान वृहद स्तर पर चल रहा है।
मलिक ने कहा कि हर तरह का बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय है। सरकार भी इसकी रोकथाम के लिए गंभीर है और इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। मंत्री ने कहा कि हमें प्रदूषण बढ़ाने वाले कारकों को भी रोकना होगा, तभी इस पर काबू पाया जा सकता है।
प्रशासन ने मारे छापे, बंद कराई फैक्टरियां
मुरादनगर की एसडीएम शुभांगी शुक्ला ने बताया कि प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरियों को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मदद से चिह्नित किया गया। इन फैक्टरियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। फिलहाल बैटरी गलाने का काम कर रही कई अवैध फैक्टरियों को बंद कराया गया है।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, गाजियाबाद के क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी उत्सव शर्मा का कहना है कि प्रदूषण के मानकों को ध्यान में रखते हुए वैध और अवैध फैक्ट्रियों पर कार्रवाई की जा रही है।
मिट्टी, हवा और ग्राउंडवाटर को कर रहा प्रदूषित लेड
पर्यावरण पर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था टॉक्सिक लिंक की प्रवक्ता प्रीति महेश कहती हैं कि भारत में ज्यादातर फैक्टरियां असंगठित क्षेत्र में हैं। लेड का शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह दिमाग, नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है। यह बच्चों की विकास प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। लेड का अगर सही तरीके से प्रबंधन न किया जाए तो यह मिट्टी, हवा और भूजल तीनों को प्रदूषित कर देता है।
लेड एसिड बैटरी का सही प्रबंधन न होना खतरनाक
प्रीति कहती हैं कि लेड-एसिड बैटरी को बिना प्रदूषण फैलाये साइंटिफिक तरीके से रिसाइकिल किया जा सकता है। समस्या यह है कि ज्यादातर यूज्ड बैटरियां असंगठित क्षेत्र में रिसाइकिल होने के लिए जाती हैं। इसकी वजह यह है कि असंगठित क्षेत्र, संगठित क्षेत्र की तुलना में यूज्ड बैटरी का अधिक दाम देता है, नकद पैसे देता है और रोजाना बैटरी ले जाने के लिए तैयार रहता है। संगठित क्षेत्र यूज्ड बैटरी लेने में इतनी रुचि नहीं दिखाता। तमाम एजेंसियों, सरकारों और ग्राहक को इस बारे में ज्यादा तत्परता और गंभीरता से काम करना होगा।
बैटरी का प्रदूषण रोकने के लिए ये उपाय आवश्यक
गैर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की बैटरी वेस्ट एक्सपर्ट अनन्या दास दिल्ली का उदाहरण देते हुए कहती हैं, राष्ट्रीय राजधानी में हर साल 60 लाख नई गाड़ियां जुड़ जाती हैं। यानी लगभग 17 हजार गाड़ियां हर दिन। बैटरी के प्रदूषण को रोकने के लिए तीन तरह के उपाय किए जा सकते हैं। पहला, ऐसी बैटरियां बनाई जाएं जो हर तरह की गाड़ी में इस्तेमाल हो सके और कहीं भी चार्ज हो जाए। दूसरा, बैटरियां ऐसी बनें कि उनकी सेकेंड लाइफ को इस्तेमाल किया जा सके। दुनिया में कई जगह ऐसा होता है। तीसरा, बैटरी की रिसाइक्लिंग वैध तरीके से करने के लिए कंपनियों को भी बाध्य करना होगा।
शरीर के लिए क्यों खतरनाक है लेड
वक्त के साथ शरीर में सीसा जमा होता जाता है। भारी धातु के संपर्क में आने से स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं होती हैं। इससे विशेष रूप से मस्तिष्क और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचता है। यूनाइटेड नेशन इंटरनेशनल चिल्ड्रन इमरजेंसी फंड एंड प्योर अर्थ रिपोर्ट के मुताबिक, लेड एक शक्तिशाली न्यूरोटॉक्सिन है। विशेष रूप से बच्चों को इससे ज्यादा जोखिम है। इससे उनका आईक्यू भी कम हो जाता है। यूनिसेफ और प्योर अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में लगभग 80 करोड़ बच्चों में भारी धातु का स्तर खतरनाक है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में लेड-एसिड बैटरी की आधी रीसाइक्लिंग 'इनफॉर्मल' सेक्टर में ही होती है।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी कहते हैं कि लेड मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक है। लेड की मात्रा अधिक होने पर गर्भवती महिलाओं में प्री मैच्योर डिलीवरी हो सकती है। बच्चे का मानसिक विकास बाधित होता है। बड़ों में फेफड़े, किडनी और पाचन तंत्र पर असर पड़ सकता है। लेड की मात्रा शरीर से अधिक होने पर कैंसर का भी खतरा होता है। यूरिनरी ब्लैडर में कैंसर का सबसे बड़ा कारण लेड ही है।
भारत में हर साल लेड के कारण 2.3 लाख मौत
ग्लोबल एलायंस ऑन हेल्थ एंड पॉल्यूशन (जीएएचपी) के अनुसार, भारत में हर साल लेड के प्रदूषण से लगभग 2,33,000 लोगों की मौत होती है। बांग्लादेश में इसकी वजह से 30,800 और नेपाल में 3,760 मौतें होती हैं।
- ये हैं कानूनी नियम
- वर्तमान में भारत में बैटरी प्रबंधन और इस्तेमाल को लेकर बैटरीज मैनेजमेंट और हैंडलिंग रुल्स, 2001 लागू है। इसमें 2010 में संशोधन किया गया था
- यह सभी मैन्युफैक्चरर्स, रिकंडीशनर, असेंबलर, डीलर, रिसाइकलर, कंज्यूमर पर लागू
- मैन्युफैक्चरर्स और आयातक को इस्तेमाल की गई बैटरी को नई बैटरी के एवज में एकत्र करना होगा
- रजिस्टर्ड बैटरी रिसाइकिल करने वालों को इन्हें भेजना होगा
- बैटरी के डीलर्स भी कलेक्शन के लिए जिम्मेदार होंगे
दुनिया भर में बैटरी रिसाइकलिंग को लेकर यै हैं नियम
यूरोपियन यूनियन : यूरोपियन यूनियन के सदस्यों को बैटरी रिसाइकिल करने के नियम मानना अनिवार्य है। डीलर्स और मैन्युफैक्चरर्स के लिए बैटरी एकत्र करना जरूरी है।
अमेरिका : एरिजोना, कनेक्टिकट, न्यूयॉर्क, साउथ कैरोलीनिया और वाशिंगटन में लेड-एसिड बैटरी को जमा करना अनिवार्य है।
जागरण प्राइम सर्वेः 54% लोग घरेलू कचरे में ही फेंकते हैं बैटरी
बैटरी का जहर फैलाने में हम और आप भी भागीदार हैं। बैटरी से होने वाले नुकसान और पुरानी बैटरी के निस्तारण को लेकर आम लोग कितने जागरूक हैं, यह जानने के लिए जागरण प्राइम ने एक रैंडम सर्वे किया। सर्वे में पता चला कि 54 फीसदी लोग इस्तेमाल की गई बैटरी को घरेलू कचरे में ही फेंक देते हैं। इसके निपटारे के नियम तथा इससे होने वाले प्रदूषण व बीमारी के बारे में अधिकतर लोग जानते ही नहीं। घर में टीवी, एसी रिमोट से लेकर खिलौने, टॉर्च, घड़ियों, मोबाइल, लैपटॉप, इनवर्टर, कार आदि में रोजाना बैटरियों का इस्तेमाल किया जाता है। विशेषज्ञों का भी मानना है कि बैटरी से होने वाले कचरे और प्रदूषण के बारे में न तो शासन-प्रशासन की तरफ से लोगो को जागरूक किया जाता है, न ही नियम पालन को लेकर किसी प्रकार की सख्ती की जाती है।
23% लोग साल में 6 से ज्यादा बैटरी इस्तेमाल करते हैं
सर्वे का पहला सवाल था कि सालभर में कितनी बैटरी का उपयोग करते हैं। 27.8 फीसदी लोगों ने कहा कि वे एक साल में 4 से कम बैटरी प्रयोग करते हैं, जबकि 23 फीसदी लोग 6 से ज्यादा बैटरी यूज करते हैं। इसके अलावा, 14.6 फीसदी लोगों ने 6 और 18.8 फीसदी ने 4 बैटरी का इस्तेमाल करने की बात कही। अर्थात, 56.4 फीसदी लोग कम से कम चार बैटरी का इस्तेमाल तो करते ही हैं।
सबसे ज्यादा उपयोग टीवी-एसी रिमोट में
सर्वे का दूसरा सवाल था कि बैटरी का उपयोग किस तरह से करते हैं। इस पर सबसे ज्यादा 50 फीसदी ने कहा कि वे टीवी-एसी के रिमोट में ही इस्तेमाल करते हैं। 31.3 फीसदी ने उपरोक्त सभी चीजों में उपयोग की बात कही। 12.5 प्रतिशत ने टॉर्च-खिलौने व इन्वर्टर और 2.1 फीसदी ने मोबाइल व लैपटॉप में इस्तेमाल की बात स्वीकार की।
54.2 फीसदी लोग घरेलू कचरे के साथ फेंकते हैं बैटरी
सर्वे का तीसरा सवाल था कि पुरानी बैटरी का निपटारा कैसे करते हैं। इस पर 54.2 फीसदी लोगों ने कहा कि वे पुरानी बैटरी को घरेलू कचरे के साथ ही फेंक देते हैं। 22.9 प्रतिशत ने कहा कि दुकानदार को लौटा देते हैं। 10.4 फीसदी ने अलग से ई-वेस्ट के रूप में और 4.2 फीसदी ने कहीं भी फेंक देने की बात कही।
35 फीसदी को घातक बीमारी की जानकारी नहीं
सर्वे के चौथे सवाल में पूछा गया कि पुरानी बैटरी खुले में फेंकने से होने वाली घातक बीमारी की जानकारी है या नहीं। इस पर 35.4 फीसदी ने अनभिज्ञता जताई, लेकिन 33.3 फीसदी ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी है। 16.7 फीसदी ने कहा कि उन्हें बैटरी निपटारे के नियम के बारे में नहीं मालूम। 10.4 फीसदी ने तो यहां तक कहा कि उन्होंने पहली बार सुना कि इससे बीमारी भी हो सकती है।
12 राज्यों में किया गया रैंडम सर्वे
जागरण प्राइम ने 12 राज्यों में यह सर्वे किया। इन राज्यों में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और उत्तराखंड शामिल हैं। सर्वे में दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, अहमदाबाद, बेंगलुरु, गोरखपुर, इंदौर, कोटपुतली, रायपुर, वाराणसी, देवास, अमृतसर, आरा, भोपाल, बिलासपुर, ग्रेटर नोएडा, हापुड़, कानपुर, शहडोल-कोतमा, अनूपपुर, सीतामढ़ी, सिवान और लक्ष्मी नगर के लोग शामिल हुए।