नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। दुनिया एक तरफ जहां खाद्यान्न समस्या का सामना कर रही है तो दूसरी तरफ पोषक तत्वों की समस्या भी दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) की ग्लोबल फूड पॉलिसी रिपोर्ट (फूड सिस्टम फॉर हेल्दी डाइट्स एंड न्यूट्रिशन) के अनुसार दुनिया भर में पचास फीसद बच्चे और दो तिहाई महिलाओं में न्यूट्रिशन की कमी है। यही नहीं पोषक तत्वों की कमी से 43 फीसद बच्चों वयस्क ओवरवेट हो रहे हैं। इसके अलावा पोषक तत्वों की कमी से लोगों की सेहत में भी गिरावट आ रही है।

आईएफपीआरआई और सीजीआईएआर की फूड और न्यूट्रिशन पॉलिसी की निदेशक पूर्णिमा मेनन और आईएफपीआरआई के सीनियर रिसर्च फेलो अविनाश किशोर ने बताया कि दुनिया की दो बिलियन आबादी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की समस्या का सामना कर रही है। वहीं 14.8 करोड़ बच्चों का विकास इसकी वजह से अवरूद्ध हो रहा है। वहीं 2 अरब की जनसंख्या इसकी वजह से मोटापे की जद में आ चुकी है। वह बताते हैं कि इसकी वजह से दुनिया में कई तरह की परेशानियां हो रही है। अफ्रीका और दक्षिण एशिया में करीब दो से तीन अरब की आबादी हेल्दी डाइट हासिल नहीं कर पा रही है। अविनाश किशोर कहते हैं कि प्राकृतिक रूप से आपकी थाली रंगीन होनी चाहिए। इसमें फल, सब्जियों, अनाज, और एनीमेल सोर्स फूड भी होना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि पौष्टिकता में असंतुलन के कारण गैर-संचारी रोग जैसे कि कार्डियोवास्कुलर बीमारी, हाइपरटेंशन और किडनी से संबंधित बीमारी के बढ़ने का जोखिम बढ़ता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पौष्टिक खान-पान और बेहतर लाइफस्टाइल कई बीमारियों के खतरे को कम कर सकता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में भूखमारी जैसे समस्याओं में बहुत ही कम कमी आई है, इसके इतर दुनिया भर में ओवरवेट और मोटापा तेजी से बढ़ा है। कई देश अब कुपोषण के दोहरे बोझ का सामना कर रहे हैं। आईएफपीआरआई के सीनियर रिसर्चर अविनाश कुमार ने बताया कि समस्या के पैमाने और दायरे की बेहतर समझ के लिए खाद्य कीमतों और मजदूरी सहित स्वस्थ आहार सामर्थ्य की राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय निगरानी की आवश्यकता होगी। स्वस्थ आहार की लागत दुनिया के कई गरीबों की आय से कहीं अधिक है. कम आय वाले देशों में 84% से अधिक आबादी और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में लगभग 68% आबादी खराब डाइट की कैटेगरी में है।

ब्लड प्रेशर बढ़ने और डायबिटीज का भी कारक

पूर्णिमा मेनन कहती है कि डायबिटीज और ब्लड प्रेशर बढ़ने की एक वजह आपके भोजन में पोषक तत्वों की कमी होना भी है। .5 बिलियन लोगों को डायबिटीज है जबकि 1.2 बिलियन लोगों का रक्तचाप इस वजह से बढ़ा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2011 में जहां पोषक तत्वों की लोगों में कमी का प्रतिशत 15.4 था वह 2021 में बढ़कर 16.6 हो गया है। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार 20 से 79 साल की उम्र के 463 मिलियन लोग डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं। यह इस आयु वर्ग में दुनिया की 9.3 फीसद आबादी है। रिपोर्ट कहती है कि चीन, भारत और अमेरिका में सबसे अधिक डायबिटीज के वयस्क मरीज हैं। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट कहती है कि 2019 तक भारत में डायबिटीज के करीब 77 मिलियन मरीज हैं। जिनकी संख्या 2030 तक 101 मिलियन हो सकती है तो 2045 तक यह आंकड़ा 134.2 मिलियन को छू सकता है। 20-79 आयु वर्ग को होने वाली डायबिटीज के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। भारत में महिलाओं और पुरुषों में बीते तीन दशक में मोटापे में तेजी से ईजाफा हुआ है। महिलाओं में मोटापे में आठ गुने की बढ़ोतरी हुई है जबकि पुरुषों में 11 गुना की वृद्धि हुई है। महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 1.2 फीसदी से बढ़कर 2022 में 9.8 फीसदी और पुरुषों में यह 0.5 फीसदी से 5.4 फीसदी हो गई है। जबकि महिलाओं में कम वजन की दर 1990 में 41.7 फीसदी से घटकर 2022 में 13.7 फीसदी और पुरुषों में यह 39.8 फीसदी से 12.5 फीसदी हो गई।

बिना पॉलिश चावल बेहतर

अविनाश किशोर कहते हैं कि पॉलिश चावल की तुलना में रफ चावल में राइबोफ्लेविन, थायमिन, नियासिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन और जिंक की मात्रा अधिक होती है। पॉलिशिंग के दौरान चावल अपने पोषक तत्वों को खो देता है। इसमें मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा पॉलिशिंग की डिग्री के साथ बदलती रहती है। कई बार लोग यह सोचते हैं कि महंगे फल-सब्जियों में ही पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है लेकिन आंवला जैसे फलों में भी न्यूट्रिशन भरपूर मात्रा में होता है। भारत में सुगर युक्त और अधिक नमक वाले खाने की वजह से भी दिक्कतें बढ़ रही है।

क्लाइमेट चेंज का असर

अविनाश किशोर कहते हैं कि क्लाइमेट चेंज का असर हर फसल पर पड़ रहा है। ठंड ज्यादा पड़ रही है, बारिश असमान हो रही है, इसका साफ असर फसलों पर देखने में आ रहा है। भूमि और समुद्र का बढ़ता तापमान, सूखा, बाढ़ और अप्रत्याशित वर्षा पशुधन और फसलों को नुकसान पहुंचा रही है। क्लाइमेट चेंज का असर हाल ही में हिमाचल में सेब की गुणवत्ता और पैदावार में देखने में आया है। वहीं दूध की कमी भी कुछ दिनों पहले इसी क्लाइमेट चेंज की वजह से थी।

तीन दशकों में गिरा न्यूट्रिशन

राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन), हैदराबाद की 1989 और 2017 की रिपोर्ट की तुलना तथा वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि बीते तीन-चार दशकों में खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की मात्रा काफी घट गई है। अनाज और फल-सब्जियों में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, राइबोफ्लेविन और विटामिन सी अब उतना नहीं मिलता जितना पहले मिलता था। इसके लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बेतरतीब इस्तेमाल, संकर बीज, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के अलावा खाद्य पदार्थों को लजीज बनाने के साथ आकर्षक दिखाने की होड़ भी जिम्मेदार है। 1989 में खाद्य पदार्थों के पोषण पर एक रिपोर्ट जारी की गई थी। 2017 की रिपोर्ट में सूचीबद्ध सभी खाद्य पदार्थों और पोषक तत्वों का उल्लेख 1989 की रिपोर्ट में नहीं मिलता है। फिर भी, इन दोनों रिपोर्ट की तुलना करने पर पता चलता है कि अधिकतर खाद्य पदार्थों के पोषण में कमी आई है। इंडियन फूड कंपोजिशन टेबल 2017 रिपोर्ट के शोधकर्ताओं ने देश के 6 अलग-अलग स्थानों से लिए गए 528 खाद्य पदार्थों में 151 पोषक तत्वों को मापा था।

इसके अनुसार इन 28 वर्षों में गेहूं में कार्बोहाइड्रेट करीब 9 फीसदी घटा है। बाजरा का सेवन मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट के लिए किया जाता है। पिछले तीन दशकों में बाजरा में कार्बोहाइड्रेट का स्तर 8.5 प्रतिशत कम हो गया है। इसी तरह, दालों में उनके प्रमुख पोषक तत्व प्रोटीन की कमी हो रही है, जो ऊतकों के निर्माण, मरम्मत और रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मसूर में प्रोटीन 10.4 फीसदी और मूंग में 6.12 फीसदी कम हुआ है।

विदेशों में कम हो रहे पोषण का भारत पर असर

‘व्हाट योर फूड एट’ पेपर में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड आर मोंटेगोमेरी लिखते हैं कि पोषक तत्वों में गिरावट का सीधा असर गंभीर बीमारियों से बचाने वाले हमारे प्रतिरक्षा तंत्र पर पड़ता है। वह कहते हैं, अक्सर हम बात करते हैं कि हम पौष्टिक खाना खाते हैं लेकिन उतने स्वस्थ नहीं रहते जबकि हमारे दादा-दादी, नाना-नानी वैसा ही भोजन खाकर स्वस्थ रहते थे।

वैज्ञानिकों का कहना है कि समस्या की जड़ आधुनिक कृषि प्रक्रियाओं में निहित है जो फसल की पैदावार तो बढ़ाती है लेकिन मिट्टी की सेहत को खराब करती है। इनमें सिंचाई, फर्टिलाइजेशन और कटाई के तरीके शामिल हैं जो पौधों और मिट्टी के कवक के बीच आवश्यक प्रक्रिया को भी बाधित करते हैं। इससे मिट्टी से पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है। ये मुद्दे जलवायु परिवर्तन और कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर की पृष्ठभूमि में उत्पन्न हो रहे हैं, जो फलों, सब्जियों और अनाज की पोषकता घटा रहे हैं।

रिपोर्ट में सुझाए समाधान

आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में सुझाया गया है कि हमें खाने के बेहतर समाधान तलाशने होंगे। हमें न्यूट्रिशन सेंसटिव कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना होगा। यही नहीं हमें पोषक तत्वों वाले खाद्यान्न को किफायती करना होगा ताकि हर वर्ग के लिए यह सुलभ हो। हमें खाद्य की वितरण प्रक्रिया और सप्लाई चेन को भी दुरूस्त करना होगा। लंबी सप्लाई चेन की वजह से लोगों तक ताजा खाना देर से पहुंचता है। इसमें सुधार की आवश्यकता है। रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि फूड लेबलिंग को भी बेहतर करने की आवश्यकता है ताकि लोग उसमें मौजूद हानिकारक और लाभदायक तत्वों को पहचान सकें। शरीर में किसी भी पौष्टिक तत्व की कमी को पूरा करने के लिए फूड फॉर्टिफिकेशन एक बहुत ही अच्छा तरीका माना जाता है। ऐसे में फूड फॉर्टिफिकेशन और बायोफॉर्टिफिकेशन को बेहतर करने की आवश्यकता है।