दिल्ली की हवा में 23 फीसदी हुई पराली के धुएं की हिस्सेदारी, धीमी हवाओं ने बढ़ाई मुश्किल
दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। मंगलवार को हवा में प्रदूषण का स्तर सात गुना तक दर्ज की गया। वहीं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के डिसिजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम की रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार को दिल्ली की हवा में पराली के धुएं की हिस्सेदारी लगभग 23 फीसदी तक पहुंच गई।
नई दिल्ली, जागरण प्राइम। पाकिस्तान के पंजाब और पूरे उत्तर भारत में धान की कटाई लगभग खत्म होने को है। ऐसे में पराली जलाए जाने की घटनाएं भी चरम पर हैं। पराली के इस धुएं से दिल्ली गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी है। दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। मंगलवार को हवा में प्रदूषण का स्तर सात गुना तक दर्ज की गया। वहीं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के डिसिजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम की रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार को दिल्ली की हवा में पराली के धुएं की हिस्सेदारी लगभग 23 फीसदी तक पहुंच गई। पाकिस्तान, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से निकला धुआं उत्तर पश्चिमी हवाओं के साथ दिल्ली एनसीआर तक पहुंचा और इसे गैस चैम्बर में तबदील कर दिया है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक हवा की स्पीड बहुत कम होने से अगले दो से तीन दिन दिल्ली और एनसीआर की हवा जहरीली बनी रहेगी।
सेटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों में पंजाब से लगे पाकिस्तान वाले हिस्से, पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के कुछ अन्य हिस्से पराली की आग से लाल दिख रहे हैं। वहीं मंगलवार को दिल्ली के आनंद विहार में पीएम 10 का स्तर 730 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के करीब रहा। ये तय मानकों की तुलना में 7 गुना से भी ज्यादा है। पीएम 2.5 का स्तर 324 के करीब रहा। मानकों के तहत हवा में पीएम 10 का स्तर 100 और पीएम 2.5 का 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
राजधानी की हवा की गुणवत्ता को बद से बदतर बनाने में पाकिस्तान का भी बड़ा योगदान है। सेटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों को देख कर साफ तौर पर पता चलता है कि हरियाणा और पंजाब की तुलना में पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जा रही है। पंजाब के अमृतसर में पराली पर लगाम लगाने के लिए काम कर रहे नोडल अधिकारी सुखदेव सिंह कहते हैं कि पिछले साल की तुलना में इस बार अमृतसर में पराली जलाने के मामले आधे से भी कम दर्ज किए गए हैं। पिछले साल जहां इस समय तक पराली जलाने के लगभग 1353 मामले सामने आए थे, वहीं इस साल अब तक लगभग 600 मामले दर्ज किए गए हैं। दूसरी तरफ सीमा पार लाहौर में बेहद खराब स्थिति है। वहां एक्यूआई 1100 तक पहुंच गया है। वहां से आए धुएं की वजह से पंजाब में भी प्रदूषण काफी बढ़ा हुआ है।
दिल्ली के साथ एनसीआर में भी हवा दमघोंटू हो चुकी है। गौतम बुद्ध नगर के डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर राजीव कुमार सिंह कहते हैं कि गौतम बुद्ध नगर में अब तक पराली जलाने के सिर्फ 5 मामले दर्ज किए गए हैं। कई जगहों पर खेती का कचरा जलाए जाने के मामले भी देखे गए हैं। अब तक 22500 रुपये जुर्माना भी वसूला गया है। एनसीआर में प्रदूषण की वजह पीछे से आया हुआ धुआं है। यहां स्थानीय स्तर पर इतना प्रदूषण नहीं है। प्रशासन की ओर से स्थानीय तौर पर टीमें बनाई गई हैं जो इसरो से प्राप्त डेटा के मुताबिक हर आग की घटना की जांच कर रही हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट के प्रिंसिपल प्रोगाम मैनेजर, एयर पॉल्यूशन कंट्रोल, विवेक चटोपाध्याय कहते हैं कि हम हमेशा हरियाणा और पंजाब में पराली जलाए जाने की बात कर करते हैं। लेकिन ये भी सच है कि पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में पिछले कुछ सालों से बड़े पैमाने पर पर पराली जलाए जाने के मामले सामने आते हैं। सेटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों में वहां बड़े पैमाने पर पराली जलाए जाने के मामले देखे जा सकते हैं। उत्तर पश्चिमी हवाओं के साथ ये धुआं दिल्ली-एनसीआर तक पहुंचता है। फिलहाल हवाओं की गति बहुत कम है और हल्की ठंड शुरू हो चुकी है। ऐसे में प्रदूषण काफी देर तक हवा में रुक रहा है। सरकार को माले डिक्लेरेशन के तहत इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना चहिए। माले डिक्लेरेशन के तहत साउथ एशिया में ट्रांस बाउंड्री पॉल्यूशन पर लगाम लगाने के लिए समझौते किए गए थे। इस समझौते में बांग्लादेश, भूटान, भारत, ईरान, मालदीव गणराज्य, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।
पाकिस्तान में पराली जलाने के मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाए जाने के साथ ही सरकार और जिम्मेदार संस्थाओं को पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के अन्य इलाकों में पराली जलाने के मामलों पर रोक लगाने के लिए सख्ती से कदम उठाने होंगे।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग में इंडस्ट्री के प्रतिनिधि एवं सदस्य श्याम कृष्ण गुप्ता कहते हैं कि पराली जलाने की घटनाएं पहले की तुलना में घटी हैं। लेकिन इन पर पूरी तरह से लगाम नहीं लगी है। ये स्पष्ट है कि राज्य सरकारें कहीं न कहीं इन घटनाओं को रोकने में सफल नहीं हो पा रहीं हैं। पराली जलाने की घटनाएं रोकने के लिए हमें स्थानीय समाधान खोजने होंगे। हमें ऐसे हारवेस्टर तैयार करने होंगे जिनसे अनाज के साथ पराली भी काट ली जाए। कुछ इस तरह की व्यवस्था करनी होगी कि किसानों को पराली के दाम मिल सकें। या सरकार अपने खर्च पर पराली को काट कर इसको किसी इंडस्ट्री को दे सके। पराली जलाने की घटनाओं पर लगाम लगाने के साथ ही हमें स्थानीय प्रदूषण पर लगाम लगाने के बारे में भी सोचना होगा। सड़क की धूल और गाड़ियों के धुएं पर लगाम लगाए जाने से प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक राहत मिल सकती है। कचरा जलाए जाने को रोकना होगा। हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे। पेड़ हमें ऑक्सीजन तो देते ही हैं साथ ही ये फिल्टर के तौर पर भी काम करते हैं। ये हवा में मौजूद प्रदूषक कणों को रोक लेते हैं जिससे हवा साफ रहती है।
दिल्ली और आसपास के इलाकों में हवा में बढ़ते प्रदूषण की एक बड़ी वजह हवा की स्पीड काफी कम होना है। स्काईमेट वेदर के वाइस प्रेसिडेंट मेट्रोलॉजी एंड क्लाइमेट चेंज महेश पलावत कहते हैं कि अक्टूबर और नवम्बर में हवा की स्पीड काफी कम हो जाती है। इससे प्रदूषण हवा में काफी देर तक फंसा रहता है। इस समय हवा की गति 4 से 5 किलोमीटर प्रति घंटा की है। ऐसे में दिल्ली एनसीआर की हवा में प्रदूषित कण और धुआं काफी देर तक फंसा रहता है। 6 नवम्बर के बाद हवा की स्पीड बढ़ने की संभावना है। हवा की स्पीड 10 से 15 किलोमीटर की होगी तभी इस दमघोंटू प्रदूषण से राहत मिलेगी।