नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को जब अपना छठवां बजट पेश करेगी तो उनके सामने दो रोडमैप सबसे बड़े होंगे। पहला, बजट में विकसित भारत के लिहाज से इंडस्ट्री आधारित बजट तैयार करना और दूसरा उन इंडस्ट्री को बढ़ावा देना जो रोजगार अधिक मुहैया करा सकें। यही नहीं उनके समक्ष यह बात भी अहम होगी कि उद्योग जगत के तहत आने वाले अलग-अलग सेक्टर में आ रही बुनियादी मुश्किलों से राहत कैसे प्रदान की जाए। इसके साथ-साथ मैनुफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के बजट में तारतम्य स्थापित करना भी काफी अहम होगा। 1 फरवरी, 2023 को पेश किए गए आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि अमृत काल का विजन एक सशक्त और समावेशी अर्थव्यवस्था को प्रतिबिम्बित करेगा। ऐसे में 2024 का आम बजट उसी लक्ष्य को मूर्त आकार देने की दिशा में काम करेगा।

पीएचडी चेंबर, सीआईआई जैसे औद्योगिक संगठनों ने वित्त मंत्री से मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहित करने वाली नीति पर जोर देने के लिए कहा ताकि वर्ष 2030 तक जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक पहुंच सके। अभी यह हिस्सेदारी 16 प्रतिशत है। औद्योगिक संगठनों ने सरकार से भूमि, श्रम संबंधी नियमों में बदलाव लाने के साथ कारोबार से जुड़े अनावश्यक नियमों को हटाने की मांग की है।

उद्योग मंडल एसोचैम ने कहा कि कंप्लायंस में सुधार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए कर प्रणाली को युक्तिसंगत और सरल बनाना चाहिए। कर व्यवस्था को अधिक कुशल और न्यायसंगत बनाने के लिए कॉरपोरेट कर दरों को कम करने, कर छूट को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने और कर आधार को व्यापक बनाने जैसे उपायों पर विचार करना चाहिए।

चैंबर ऑफ ट्रेड इंडस्ट्री ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को जो पत्र भेजा है उसमें सबसे खास मांग इनकम टैक्स से जुड़ी हुई है। दरअसल, सीटीआई ने कहा है कि इनकम टैक्स का नाम बदलकर 'राष्ट्र निर्माण सहयोग निधि' रखा जाए। पत्र में कहा गया है कि अगर ये नाम रखा जाता है, तो फिर इनकम टैक्स को लेकर लोगों की भावनाओं पर असर होगा और लोग ज्यादा से ज्यादा टैक्स देने के लिए प्रेरित होंगे। इसके अलावा दूसरी मांग के बारे में बताएं तो सीटीआई ने कहा आयकर में 45 दिन में पेमेंट का जो नया नियम आया है, इससे करोड़ों व्यापारी और MSME व्यापारियों को परेशानी झेलनी पड़ रही है, ऐसे में इसे वापस लिया जाना चाहिए।

नौकरी अधिक सृजित करने वाले सेक्टरों में मनरेगा और पीएलआई के लिए अधिक आवंटन की उम्मीद

केयर एज रेटिंग्स के सीआरओ और कार्यकारी निदेशक सचिन गुप्ता कहते हैं कि बजट में नौकरी अधिक सृजित करने वाले सेक्टरों में मनरेगा और पीएलआई के लिए अधिक आवंटन के साथ रोजगार सृजन प्राथमिकता होगी। वित्त वर्ष 2025 में प्रमुख पीएलआई योजनाओं के तहत आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अंतरिम बजट में पीएलआई योजना के तहत अधिकांश आवंटन में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी हार्डवेयर, ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स और फार्मा का दबदबा रहा है। सरकार रोजगार सृजन में सहायता के लिए आवंटन बढ़ाने या कपड़ा, चमड़ा और जूते और खिलौने जैसे अधिक श्रम-गहन क्षेत्रों को शामिल करने पर विचार कर सकती है। हम यह भी उम्मीद करते हैं कि इस बजट में कल्याणकारी योजनाओं को अधिक आवंटन मिलेगा, जबकि कैपेक्स फोकस में रहेगा।

पीडब्ल्यूसी इंडिया के कैपिटल प्रोजेक्ट्स और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के मोहम्मद सैफ अतहर कहते हैं कि रोजगार सृजन पर फोकस करने के लिए मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को गति देनी होगी। टेक्सटाइल, फूड प्रोसेसिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर को अधिक मजबूती देनी होगी। बीते पांच सालों में ग्रीन मैनुफैक्चरिंग, ग्रीन मोबिलिटी और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर पर बेहतर काम हुआ है। वैश्विक स्तर पर कारोबार को सुदृढ़ गति देने के लिए और एक्सपोर्ट को प्रमोट करने के लिए एक नीति लानी होगी। एक प्रतिस्पर्द्धी इकोसिस्टम बनाना होगा जिससे ग्लोबल मार्केट में अपनी पहचान को सतत मजबूत किया जा सकें।

एमएसएमई वित्तपोषण को आसान बनाने के लिए उठाने होंगे कदम

आउचकॉर्ट के सीईओ आतिफ शम्सी कहते हैं कि हम बजट 2024-25 में एमएसएमई वित्तपोषण को आसान बनाने के लिए पर्याप्त कदमों की उम्मीद करते हैं। सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के तहत मौजूदा कोष को मौजूदा ₹2 लाख करोड़ से बढ़ाकर कम से कम ₹3 लाख करोड़ करने की उम्मीद करते हैं। इससे एमएसएमई के लिए संभावित रूप से ₹4.5 लाख करोड़ का अतिरिक्त ऋण खुल सकता है। हम एमएसएमई ऋणों के लिए ब्याज छूट योजनाओं के माध्यम से 11-14% की ब्याज लागत को कम करने पर भी विचार कर रहे हैं। हम डिजिटल बुनियादी ढांचे में विस्तार की उम्मीद करते हैं।

प्रीमियन रोडलाइंस के निदेशक समिन गुप्ता कहते हैं कि लॉजिस्टक इंडस्ट्री की सरकार से इस बजट में सबसे बड़ी उम्मीद इंफ्रास्ट्रक्चर और नीतियों को और बेहतर को लेकर हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर को और चाक-चौबंद कर इस इंडस्ट्री को गति दी जा सकती है। रोड कनेक्टिविटी में सतत सुधार हो रहा है। इसे बढ़ाने से जहां एक तरफ समय की बचत होगी तो दूसरी तरफ राजस्व भी सुधरेगा। वहीं नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी भी सही दिशा में काम कर रही है हालांकि इसमें कई पेचीदिगयां है। इसके लागू होने को लेकर भी अभी अस्पष्टता है। इसके अलावा स्किल गैप को दूर करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करने की आवश्यकता है।

केयर एज रेटिंग्स की चीफ इकोनॉमिस्ट रजनी सिन्हा कहती है कि बीते कुछ सालों में कुल व्यय में राजस्व व्यय का हिस्सा महामारी-पूर्व औसत 88 फीसदी से कम हो गया है। हमें उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 के राजस्व व्यय में 6.8% की वृद्धि होगी, जो 4.6% की बजटीय वृद्धि से अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप अंतरिम बजट के अनुमान की तुलना में 750 बिलियन रुपये अधिक आवंटन होगा। सरकार से कृषि, कल्याणकारी योजनाओं, रोजगार सृजन और ग्रामीण आवास के लिए अधिक आवंटन की उम्मीद है। कुछ प्रमुख योजनाएं/मंत्रालय जिनमें अधिक आवंटन देखने को मिल सकता है उनमें मनरेगा, पीएम आवास योजना, पीएम ग्राम सड़क योजना, पीएम किसान सम्मान निधि और श्रम गहन एमएसएमई क्षेत्रों से संबंधित योजनाएं शामिल हैं।

पीएलआई स्कीम को मजबूती

भारत सरकार ने वित्त वर्ष 25 के अंतरिम बजट के दौरान पीएलआई योजना के लिए आवंटन को बढ़ाकर 6,200 करोड़ रुपये कर दिया है, जो पिछले वर्ष के 4,645 करोड़ रुपये के अनुमान से 33% की वृद्धि है। यह पर्याप्त बढ़ावा वर्तमान में कवर किए गए 14 क्षेत्रों में विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखलाओं का समर्थन करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जिसमें मोबाइल फोन, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद शामिल हैं।

2021 में अपनी शुरुआत के बाद से, PLI योजना ने ₹1.03 लाख करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित किया है, जिससे ₹8.61 लाख करोड़ का उत्पादन और बिक्री हुई है। इसके परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 6.78 लाख से अधिक नौकरियों का सृजन हुआ है। हालांकि, चमड़ा, वस्त्र, हस्तशिल्प और आभूषण जैसे क्षेत्रों में सीमित रोजगार सृजन के बारे में चिंताओं को दूर करना महत्वपूर्ण है। ये उद्योग विशेष रूप से निम्न-आय वाले परिवारों के लिए परिवारों के लिए रोजगार सृजन की महत्वपूर्ण क्षमता रखते हैं, और इन्हें योजना के भविष्य के विस्तार में शामिल करने पर विचार किया जाना चाहिए।

विशेषज्ञ अंतरिम बजट से पहले PLI योजना को अन्य क्षेत्रों में विस्तारित करने की आवश्यकता पर बल देते हैं। चमड़ा, वस्त्र, हस्तशिल्प और आभूषण जैसे क्षेत्रों में रोजगार और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है। इन क्षेत्रों में योजना का विस्तार करने से निवेश आकर्षित हो सकता है, दक्षता बढ़ सकती है और भारतीय कंपनियों को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी संस्थाओं के रूप में स्थान मिल सकता है।

पीएलआई योजना ने पहले ही निर्यात को ₹3.20 लाख करोड़ से अधिक तक पहुंचा दिया है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य प्रसंस्करण और दूरसंचार उत्पादों का प्रमुख योगदान है। इस योजना का दीर्घकालिक लक्ष्य अगले पांच वर्षों में उत्पादन, रोजगार और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। योजना का निरंतर समर्थन और विस्तार भारत की निर्यात क्षमताओं और आर्थिक लचीलेपन को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है।

मेक इन इंडिया पहल के हिस्से के रूप में मार्च 2020 में शुरू की गई पीएलआई योजना का उद्देश्य भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा देना, आयात पर निर्भरता कम करना और श्रम प्रधान क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाना है। जबकि मौजूदा पीएलआई योजनाएं विभिन्न उद्योगों को कवर करती हैं, छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (एसएमई) को लाभ देने की मांग बढ़ रही है। जनवरी 2024 तक, 14 क्षेत्रों में 746 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें ₹3 लाख करोड़ का अपेक्षित अपेक्षित निवेश है। उल्लेखनीय रूप से, 176 एमएसएमई को बल्क ड्रग्स, मेडिकल डिवाइस, फार्मास्यूटिकल्स, टेलीकॉम, व्हाइट गुड्स, फूड प्रोसेसिंग, टेक्सटाइल और ड्रोन जैसे क्षेत्रों में इस योजना से सीधे लाभ हुआ है।

पीएलआई योजनाएं केवल वित्तीय प्रोत्साहन से कहीं अधिक हैं; वे भारत के विनिर्माण परिदृश्य को बदलने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। बड़े पैमाने पर उत्पादन को प्रोत्साहित करके, नवाचार को बढ़ावा देकर और रोजगार सृजित करके, ये योजनाएं आत्मनिर्भर भारत मिशन का अभिन्न अंग हैं। विभिन्न क्षेत्रों में पीएलआई योजनाओं का विस्तार और फिर से खोलना एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है जो वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में मजबूती से खड़ा हो सकता है।

आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर पर जोर

नैसकॉम के उपाध्यक्ष और पॉलिसी प्रमुख आशीष अग्रवाल का कहना है कि नैस्कॉम ने बजट 2024 में कई मांगे की हैं। नैसकॉम ने सेफ हॉर्बर प्रावधानों के तहत पात्रता सीमा को अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में मौजूदा 200 करोड़ रुपये से बढ़ाकर कम से कम 2,000 करोड़ रुपये करने की मांग की है।अभी वहीं कंपनियां सेफ हॉर्बर मार्जिन के लिए आवेदन कर सकती हैं जिनका सालाना अंतरराष्ट्रीय लेनदेन 200 करोड़ रुपये तक होता है। इसकी वजह से कई संस्थाएं बाहर हो गई हैं। इनमें सिर्फ वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) ही नहीं है बल्कि सामान्य आईटी या बीपीएम कंपनियां भी शामिल हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि सीतारमण के लिए मुख्य फोकस क्षेत्र उच्च विकास को बनाए रखना , इसे अधिक समावेशी बनाना और रोजगार सृजन करना होगा। जीएसटी को तर्कसंगत बनाना एजेंडे में सबसे ऊपर रहने की उम्मीद है, क्योंकि कर अनुपालन को आसान बनाना होगा। भारत ने वित्त वर्ष 24 में 8.2% की वृद्धि दर्ज की, जिसने दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति को रेखांकित किया। अब फोकस देश को उच्च विकास पथ पर ले जाने पर होगा, जो कि विकसित भारत (विकसित भारत) के दृष्टिकोण के अनुरूप है, लेकिन रोजगार सृजन और निजी निवेश को बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।

पीडब्ल्यूसी इंडिया के ईएसडीएम और सेमीकंडक्टर के मैनेजिंग डायरेक्टर सुजॉय शेट्टी का कहना है कि भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण (ईएसडीएम) और सेमीकंडक्टर क्षेत्र लचीला बना हुआ है। वैश्विक खिलाड़ी देश में अपना पूंजीगत व्यय बढ़ा रहे हैं। हालांकि, उत्पादन बढ़ाने में लागत एक चुनौती बनी हुई है। क्वालिटी आधारित इंफ्रास्ट्रक्चर मसलन प्रोत्साहनों के साथ-साथ तैयार फैक्ट्रियां लागत को कम कर सकती है। साथ ही भारत में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को प्रतिस्पर्धी बना सकते हैं। सरलीकृत टैरिफ, बढ़े हुए मुक्त व्यापार समझौतेअल्पावधि में पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में मदद करेंगे। भू-राजनैतिक और रणनीतिक स्तर पर कार्यकुशलता हमारी कंपोनेंट और मिनरल सिक्योरिटी को सशक्त करेगी जिससे भारत प्रतिस्पर्द्धी बाजार बना रहेगा।

कुका टेलीविज़न के डायरेक्टर ऑफ सेल्स एंड मार्केटिंग सुशोवित रंजन कहते हैं कि आगामी बजट में हम आशा करते हैं कि आने वाला बजट इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र को बढ़ावा देगा। घरेलू निर्माण को प्रोत्साहन और आयात शुल्क में कमी से हमें अपने उत्पादों की कीमत कम करने में मदद मिलेगी। डिजिटल इंडिया को मजबूत करने वाली नीतियां टीवी की मांग बढ़ाएंगी। जिससे हमारे उद्योग और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ पहुंचेगा।"

रोजगार क्षमता बढ़ाने पर जोर

उम्मीद है कि सरकार हरित ऊर्जा, गतिशीलता और प्रौद्योगिकी जैसे नए युग के क्षेत्रों पर जोर देना जारी रखेगी जो युवाओं के लिए रोजगार पैदा कर सकते हैं। उम्मीद है कि नई सरकार वित्त वर्ष 2024 में शुरू की गई 10 लाख लोगों को रोजगार देने वाली भर्ती पहल की तर्ज पर सरकारी रिक्तियों को शीघ्र भरने की योजना की घोषणा करेगी। रोजमोर की निदेशक रिद्धिमा कंसल कहती है कि आगामी बजट कौशल विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करके महिलाओं की रोजगार क्षमता को काफी नुकसान पहुंचा सकता है। 2023-24 में राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन के लिए ₹3,002 करोड़ के परिव्यय को बढ़ाकर ₹4,500 करोड़ करके प्राप्त किया जा सकता है, जिसमें से 40 प्रतिशत विशेष रूप से महिला-केंद्रित परियोजनाओं के लिए बजट निर्धारित किया जाना चाहिए। यह आईटी, स्वास्थ्य सेवा और हरित ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में 2 मिलियन से अधिक महिलाओं के लिए कुछ अतिरिक्त प्रशिक्षण के लिए अद्भुत काम कर सकता है, जिन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके अलावा, महिलाओं के नेतृत्व वाले एमएसएमई के कौशल विकास के लिए 1,000 करोड़ रुपये के कोष के साथ एक नए 'महिला उद्यमी कौशल कोष' की घोषणा की जा सकती है। यह महिलाओं के कौशल विकास में निवेश के लिए कंपनियों द्वारा किए गए सभी खर्चों पर 150% कटौती के माध्यम से कर प्रोत्साहन की सिफारिश करके भी ऐसा कर सकता है। इन उपायों को महिलाओं के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों में निवेश बढ़ाकर बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि उनकी डिजिटल साक्षरता दर को केवल तीन वर्षों में मौजूदा 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जा सके, ताकि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की रोजगार क्षमता में काफी सुधार हो सके।

फॉर्मा इंडस्ट्री के लिए क्वालिटी और इनोवेशन पर बजट बढ़ाने की उम्मीद

इंडियन फार्मास्यूटिकल्स अलायंस के महासचिव सुदर्शन जैन का कहना है कि आगामी बजट में गुणवत्ता और नवाचार पर जोर दिया जाना चाहिए। वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट से पहले सभी हितधारकों से बातचीत की प्रक्रिया पूरी कर ली है।ऑर्गेनाइजेशन ऑफ फार्मास्यूटिकल्स प्रोड्यूसर्स ऑफ इंडिया के महानिदेशक अनिल मताई का कहना है कि इन पहलों से उद्योग को आरएंडडी और इनोवेशन को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।हॉस्पिटालिटी उद्योग का कहना है कि सरकार आगामी बजट में होटलों को इन्फ्रास्ट्रक्चर का दर्जा दे। इससे नई संपत्तियों पर अधिक निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी। उद्योग का कहना है कि होटल को लग्जरी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाए। इस क्षेत्र की भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है। होटल एसोसिएशन आफ इंडिया के प्रेसिडेंट केबी काचरू का कहना है कि यह उद्योग ज्यादा कर, महंगे व विविध लाइसेंस और नियमों के अनुपालन के बोझ तले दबा हुआ है।

रिटेल सेक्टर के ऑपरेशन और उपभोक्ता के खर्चों में सुधार करने की आवश्यकता

सर्राफ फर्नीचर के फाउंडर और सीईओ रघुनंदन सर्राफ कहते हैं कि रिटेल इंडस्ट्री की बजट से आस है कि उपभोक्ता के खर्चों में सुधार हो और उनके ऑपरेशन पहले की तुलना में उम्दा हो। चूंकि भारत का खुदरा बाजार 2032 तक 2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा, जो 9-11% की सीएजीआर से बढ़ रहा है, हमें इस विकास पथ को बरकरार रखने के लिए सहायक नीतियों की आवश्यकता है। हम मुख्य रूप से आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी दर में कटौती का उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं, ताकि उन्हें आम जनता की जेब के अनुकूल बनाया जा सके। एक स्पष्ट और स्थिर नीति वातावरण के साथ शुरू हुआ, ई-कॉमर्स क्षेत्र 2026 तक 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की संभावना है। हम आधुनिक रिटेल और ई-कॉमर्स के बाद से पारंपरिक खुदरा क्षेत्र में डिजिटल भुगतान के मामले में प्रौद्योगिकी अपनाने में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहन की भी उम्मीद करते हैं। वर्तमान में बाजार का केवल 18% हिस्सा है, जिसका वित्तीय समावेशन और अर्थव्यवस्था के औपचारिकीकरण पर भारी प्रभाव पड़ने की संभावना है।