नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास और केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बयान ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल और तौर-तरीकों को लेकर एक नई सकारात्मक बहस को जन्म दिया है। बेशक एआई ने बीते दो सालों में बाजार में बवंडर ला दिया है लेकिन अभी भी एआई के इस्तेमाल, तकनीक और नियमन को लेकर सभी एक पायदान पर खड़े नहीं दिख रहे हैं। इंडस्ट्री एआई का ताबड़तोड़ विस्तार करने में लगी है लेकिन इसके प्रयोग को लेकर अभी भी तस्वीर पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। एक्सपर्ट मानते हैं कि कुछ सेक्टरों में तो एआई गेमचेंजर साबित होगी तो कुछ सेक्टर में इसे लेकर फिलहाल जल्दबाजी न बरतने की हिदायत भी दे रहे हैं।

दो साल पहले, जेनरेटिव नामक एक तकनीकी के तौर पर एक तूफान हमारे जीवन में आया, जिसने आईटी दुनिया को पूरी तरह पलट दिया। इसने उन संभावनाओं को खोल दिया जिनके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं था। कुछ सफलताओं का इतना तत्काल प्रभाव पड़ा है कि आईटी का पूरा परिदृश्य बदला हुआ दिखाई दे रहा है। कई कंपनियां इस परिवर्तन का लाभ उठाने के लिए प्रयासरत हैं लेकिन इसके बनिस्पत नियमन को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। वहीं एक प्रश्न जॉब बाजार को लेकर अभी पूरी तरह अनुत्तरित है। इसे लेकर कयास ज्यादा है लेकिन फुलप्रूफ उत्तर किसी के पास नहीं है।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल पर चेतावनी दी है। उन्होंने वित्तीय कंपनियों को आगाह किया कि अगर AI का सही ढंग से उपयोग नहीं किया गया, तो यह पूरे वित्तीय सिस्टम के लिए जोखिम पैदा कर सकता है। दास ने कहा कि एआई का बेजा इस्तेमाल वित्तीय स्थिरता को खतरे में डाल सकता है और इससे बड़े पैमाने पर सिस्टमिक क्रैश हो सकता है। उन्होंने वित्तीय कंपनियों से एआई के इस्तेमाल में सावधानी बरतने और उचित नियंत्रण उपाय सुनिश्चित करने की अपील की, ताकि इसकी वजह से कोई अनपेक्षित समस्या न खड़ी हो।

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के लिए एक ठोस नियामक ढांचे की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि एआई तेजी से प्रगति कर रहा है और इसके प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए एक मजबूत नियामक ढांचा बनाना जरूरी है। सिंधिया ने यह भी कहा कि एआई के विकास के साथ उसकी निगरानी और सही दिशा में उपयोग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, ताकि इसके कारण समाज और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

आईटी कंपनी जोहो की सहयोगी मैनेजइंजन में डायरेक्टर (एआई रिसर्च ) रामप्रकाश राममूर्ति एआई रेगुलेशन को महत्वपूर्ण मानते हैं। वह कहते हैं कि जिस गति से यह तकनीक विकसित हो रही है और जिस गति से रेगुलेशन विकसित हो रहे हैं, उनमें कोई मेल नहीं है। यूरोप में प्राइवेसी को लेकर 2018 में जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) आया, लेकिन उसमें मशीन लर्निंग या एआई का कोई उल्लेख नहीं था। हाल ही में वे यूरोपियन यूनियन एआई एक्ट लेकर आए, जिसमें AI को जोखिम के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। अगर यह हेल्थकेयर या क्रेडिट से जुड़ा AI है तो जोखिम अधिक है।

हमने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट के साथ शुरुआत की है। इसमें बच्चों की प्रोफाइलिंग की बात है। यह निश्चित रूप से सही दिशा में कदम है। अकादमिक जगत, उद्योग और सरकार को मिलकर काम करना चाहिए ताकि चीजों को तेजी से आगे बढ़ाया जा सके, क्योंकि AI बहुत तेजी से हर जगह तैनात किया जा रहा है। रेगुलेशन इसे बेहतर बनाने में मदद करेगा।

इन चीजों पर प्रतिबंध आवश्यक

राममूर्ति कहते हैं कि मैं डेटा संग्रह और किसके हाथ में डेटा जाता है, इनसे शुरू करूंगा। उदाहरण के लिए, मेरा फोन जानता है कि मेरे पास पैसे की कमी है, फिर भी यह मुझे नए गैजेट खरीदने के लिए प्रेरित करता है। अथवा, यह जानता है कि मुझे डायबिटीज है, फिर भी मुझे मिल्कशेक खरीदने के लिए कहता है। मेरे विचार से आपका डेटा आपका है, और इसे आपके लिए ही काम करना चाहिए। शुरुआत यहीं से होनी चाहिए, बजाय इसके कि AI ऐसा कैसे करेगा। इसके अलावा, किसी ऐप की हम प्राइवेसी पॉलिसी नहीं पढ़ते हैं। डेटा प्राइवेसी और एकत्रित डेटा के उपयोग पर जागरूकता होनी चाहिए।

एआई के नुकसान

राममूर्ति कहते हैं, एक तो AI के इर्द-गिर्द फैले हाइप को मैं एक ड्रामा मानता हूं। क्योंकि तकनीक को देखें तो यह न आर्टिफिशियल है, न इंटेलिजेंस। लेकिन इसे काफी हाइप दिया गया है। यह हाइप ही इसे आगे नीचे लेकर जाएगी। और फिर शब्दावली की भ्रांतियां हैं। मैं भ्रांति कर सकता हूं क्योंकि मैं सोच सकता हूं। लेकिन जब आप कहते हैं कि कोई (एआई) मॉडल भ्रांति करता है, तो ऐसा लगता वह मॉडल सोचने में सक्षम है। कोई भी मॉडल बस पैटर्न की मैचिंग मात्र है। आप किसी डेटाबेस को लीजिए। हम लाखों रिकॉर्ड्स के बीच किसी एक रिकॉर्ड को कुछ सेकंड में नहीं खोज सकते, लेकिन डेटाबेस ऐसा कर सकता है। लेकिन इससे डेटाबेस सुपरह्यूमन नहीं हो जाते।

इसलिए सही अपेक्षाएं रखना महत्वपूर्ण है। टेस्ला की सेल्फ-ड्राइविंग कार का एक सामान्य उदाहरण लें। यह अमेरिका में 80% मौकों पर सही काम करती है। भारत लाएंगे तो यह काम नहीं करेगी। यह AI की वजह से नहीं है, बल्कि यहां वैसा इकोसिस्टम नहीं है। हमें देखना पड़ेगा कि यहां सड़कों की स्थिति कितनी अच्छी है, यातायात अनुशासन कैसा है?

अब बात इस्तेमाल की

इकोनॉमिस्ट ने तीन साल पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मशीन के साथ एक साक्षात्कार प्रकाशित किया था। एक सवाल था- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का भविष्य क्या है? जीपीटी-2 मशीन के उस बॉट ने उत्तर दिया: “बेहतर होगा कि हम प्रौद्योगिकी का अधिक जिम्मेदारी से उपयोग करें। इसे हम एक उपयोगिता या उपकरण की तरह काम में लाएं। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि तकनीक हमें नुकसान पहुंचाएगी और हमारा जीवन नष्ट कर देगी। ऐसा सोचने के बजाय हमें प्रौद्योगिकी के विकास का हर संभव प्रयास करना चाहिए।”

कलाम सेंटर के सीईओ सृजनपाल सिंह कहते हैं कि एआई से मुकाबला करने के लिए सबसे पहले हमें बच्चों में मौलिक कल्पना को जगाना और उसे बढ़ाना होगा। मशीनों में यह क्षमता नहीं होती और न ही निकट भविष्य में एआई से ऐसा संभव हो सकेगा। हमारा मस्तिष्क दो भागों में विभाजित है। बायां मस्तिष्क मौखिक, विश्लेषणात्मक और तार्किक है और दायां मस्तिष्क दृश्य, सहज और रचनात्मक है। ऐसे में अब यह आवश्यक हो गया है कि हम अपने बच्चों को प्रेरित करें कि वे अधिक रचनात्मक और कल्पनाशील बनें। जब कोई बच्चा अनोखा और मौलिक विचार लेकर आता है, चाहे वह कोई चित्र, क्राफ्ट, डिजाइन या विचार हो, तो हम अक्सर उसकी सराहना करना भूल जाते हैं। ऐसा कर हम एक बड़ी गलती करते हैं। अगले दस वर्षों में कल्पनाशक्ति की मांग सभी क्षेत्रों में उच्च स्तर पर होगी।

जेनरेटिव एआई के अवसर और चुनौतियां

2023 के अंत में आईटी कंसलटेंसी फर्म आईएसजी ने भविष्यवाणी की थी कि एआई-संबंधित सेवाएं मैनेज्ड सर्विसेज सेवाओं के लिए बाजार का विस्तार करेंगी, जो अनिवार्य रूप से आईटी कंपनियों द्वारा प्रदान की जाती हैं। इसमें प्रति वर्ष 175 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हो रही है। जेनरेटिव एआई न केवल टेक्नोलॉजी सेक्टर में, बल्कि अन्य उद्योगों जैसे हेल्थकेयर, फाइनेंस, एजुकेशन और एंटरटेनमेंट में भी बदलाव ला सकता है। 2025 तक इस तकनीक के माध्यम से कई नए इनोवेटिव प्रोडक्ट्स और सेवाएं लॉन्च होने की उम्मीद है, जो बिजनेस और उपभोक्ताओं दोनों के लिए अत्यधिक लाभकारी साबित हो सकती हैं।

कई कंपनियां खर्चों को नियंत्रित कर रही हैं, विशेष रूप से आईटी सेवाओं पर, जिससे असेंचर जैसी कंपनियों की सेवाओं की मांग में कुछ कमी आई है। हालांकि असेंचर ने अपने डिजिटल, क्लाउड और सिक्योरिटी सर्विसेज में निवेश जारी रखा है, लेकिन खर्च में जारी सख्ती के कारण कंपनी के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति बनी हुई है। आईटी सेवा कंपनियों के लिए, इस बाजार का एक बड़ा हिस्सा हासिल करना महत्वपूर्ण है। कई कंपनियों ने पहले से ही जेनएआई की परियोजनाओं और बुकिंग बारे में अधिक खुलासे करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा, प्रतिभा की कमी के कारण जेनरेटिव महंगा है और कंपनियां व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भारी निवेश कर रही हैं। इसलिए, इसकी वृद्धि का सटीक पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है।

सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में जेनेरेटिव एआई

ग्राहक सेवा को छोड़कर, सॉफ़्टवेयर विकास में GenAI का अनुप्रयोग जोर पकड़ रहा है। आईएसजी का कहना है, "आईटी विभाग परिचालन को सुव्यवस्थित करने, नवाचार को बढ़ाने और आईटी बुनियादी ढांचे के भीतर वर्कफ़्लो को अनुकूलित करने के लिए जेनएआई की शक्ति का उपयोग करना शुरू कर रहे हैं।"

जेनरेटिव एआई और एजेंटिक एआई बदल रहा बाजार

जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, GenAI अधिक सामग्री 'उत्पन्न' करने के लिए बहुत सारी सामग्री लेता है - इमेज, वीडियो, निबंध से लेकर कोड तक। क्योंकि यह जेनरेशन पर ध्यान केंद्रित करता है, यह विशाल भी है और इसके आउटपुट की प्रभावशीलता निर्धारित करने के लिए मानव मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

इसके विपरीत, एजेंटिक एआई कार्रवाई करने पर केंद्रित है - ईमेल भेजना, संपर्क सूचियों को अपडेट करना और वास्तविक समय में डेटा की निगरानी करना। इसे इस तरह से सोचें - GenAI मार्केटिंग सामग्री बना सकता है, जो एक तेजी से सामान्य उपयोग का मामला है, और एजेंट AI इसे भेज सकता है और इसके प्रदर्शन का विश्लेषण कर सकता है।

जेनएआई को प्रशिक्षित करने वाले बड़े भाषा मॉडल एजेंटिक एआई को उसके द्वारा प्रोसेस की गई जानकारी के आधार पर विश्लेषण करने और निर्णय लेने में भी सक्षम बनाते हैं। यह SaaS (एक सेवा के रूप में सॉफ्टवेयर) बाजार के लिए सीधा खतरा पैदा करता है। एचएफएस रिसर्च का कहना है, "पारंपरिक एआई सिस्टम के विपरीत, जिसमें निरंतर मानव सुपरविजन की आवश्यकता होती है, एजेंट एआई उच्चस्तरीय निर्णय ले सकता है, बहुआयामी व्यावसायिक कार्यों का प्रबंधन कर सकता है और अपने वातावरण और इंटरैक्शन से लगातार सीखते हुए कार्यों को स्वतंत्र रूप से निष्पादित कर सकता है।" भारतीय आईटी कंपनियां भी इस उभरती प्रवृत्ति को अपना रही हैं। उदाहरण के लिए, कॉग्निजेंट बेहतर निर्णय लेने के लिए और कई व्यावसायिक कार्यों को एकीकृत करने के लिए डिज़ाइन किए गए मल्टी-एजेंट एआई सिस्टम का निर्माण कर रही है। इंफोसिस इसी तरह एजेंटिक एआई क्षमताओं पर काम कर रही है, जिसे उसने पिछले महीने अमेरिका में अपने कार्यक्रम में प्रदर्शित किया था।

300 अरब डॉलर के बाजार पर एआई का हमला

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का अगला बड़ा हमला नौकरियों पर हो सकता है, जो लगभग 300 अरब डॉलर के वैश्विक बाजार को खतरे में डाल रहा है। AI के तेज विकास और इसके बढ़ते उपयोग के कारण, कई उद्योगों में नौकरी के अवसरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है।

विशेषकर AI तकनीक जिन क्षेत्रों को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगी, उनमें डाटा एंट्री, कस्टमर सर्विस, कंटेंट क्रिएशन, और बेसिक एनालिटिक्स शामिल हैं। इन क्षेत्रों में ऑटोमेशन की संभावनाएं बढ़ रही हैं, जिससे मानव श्रम की जरूरत कम हो सकती है। इस बात पर जोर दिया गया है कि AI द्वारा किए गए ये बदलाव कंपनियों की उत्पादकता और लागत-कटौती में मदद कर सकते हैं, लेकिन इससे बड़ी संख्या में नौकरियों पर भी खतरा मंडराने लगा है।

इसके अलावा, AI के तेजी से विकास के कारण उन क्षेत्रों में भी संभावनाएं बढ़ रही हैं, जहां अब तक मानव श्रम अनिवार्य था। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि AI टेक्नोलॉजी के विकास से डिजिटल विज्ञापन, मीडिया, और सॉफ्टवेयर उद्योग में भी बदलाव देखने को मिल सकते हैं, जिससे रोजगार पर गहरा असर पड़ सकता है।

हालांकि, AI के उपयोग से नई नौकरियों और नए कौशल की मांग भी बढ़ सकती है, लेकिन इसके लिए कामगारों को तेजी से खुद को बदलने और नए कौशल सीखने की आवश्यकता होगी। यह तकनीकी क्रांति जहां एक ओर कंपनियों को अधिक कुशल और प्रतिस्पर्धी बना रही है, वहीं दूसरी ओर इससे नौकरी बाजार में अस्थिरता का खतरा भी बना हुआ है।

नौकरियों पर कहां बनेंगे मौके और चुनौतियां

द बैंक ऑफ न्यूयॉर्क, भारत के डा. अनीश कुमार का कहना है कि यह एक ऐसा सवाल है जो लाखों बार पूछा जा चुका है। AI के बारे में सबसे ज़्यादा चिंता की बात यह है कि इसका नौकरियों पर क्या असर होगा। हालांकि AI कुछ भूमिकाओं को बदल सकता है, खास तौर पर वे जो बार-बार दोहराए जाने वाले कामों से जुड़ी हैं, लेकिन यह डेटा साइंस, मशीन लर्निंग और AI सिस्टम मैनेजमेंट में नई नौकरियां भी पैदा कर सकता है। मैकिन्से की एक रिपोर्ट बताती है कि AI 2030 तक दुनिया भर में 20 से 30 मिलियन नई नौकरियाँ पैदा कर सकता है।

भारत में चुनौती ज़्यादा जटिल है। हमारे पास एक बड़ा कार्यबल है, जिनमें से कई के पास AI-संचालित अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी कौशल की कमी है। लेकिन यहीं पर अपस्किलिंग पर ध्यान देना महत्वपूर्ण हो जाता है। स्टार्टअप इंटरप्रिन्योर, इंवेस्टर और एडवायजर धीरज आहूजा कहते हैं कि एआई में अभी नौकरियां सीमित रहेंगी। आईटी का इंफ्रास्ट्रक्चर दुनिया में जितना बनता जाएगा, उतने ही साइबर अटैक को रोकने वाले की मांग बढ़ती जाएगी। साइबर सिक्योरिटी का सेक्टर तेजी से आगे बढ़ेगा। क्लाउड कंप्यूटिंग का काम भी तेजी से बढ़ रहा है। अधिकतर लोग खुद का सर्वर नहीं लगा रहे हैं, सारा काम क्लाउड पर ही मैनेज हो रहा है। निश्चित तौर पर यह दोनों बड़े ग्रोथ इंजन हैं। एआई के कई अनुप्रयोग हमें दिख रहे हैं। हमें ये भी दिख रहा है कि एआई किन कामों को कर सकेगा लेकिन एआई की अपनी सीमाएं भी हैं। एआई में अभी नौकरियां सीमित रहेंगी। समय के साथ जैसे टेक्नोलॉजी बढ़ेगी, उसके लिए विकल्प भी बढ़ेंगे। वहीं जो लोग यह सोचते हैं कि एआई में काफी नौकरियां आएगी, उनके लिहाज से विचार करने की आवश्यकता है। एआई में हाई स्टेटिस्टिकल मॉडल को लेकर प्रोग्राम बनाने हैं, ऐसे में स्पेसिफिक लोगों की मांग बढ़ेगी। एआई में बिजनेस एनालिस्ट की मांग ज्यादा बढ़ेगी। एआई में तकनीकी लोगों की मांग ज्यादा नहीं होगी।

रामप्रकाश राममूर्ति कहते हैं कि जहां तक एआई की बात है, तो लार्ज लैंग्वेज मॉडल के बजाय स्टैटिस्टिक्स से शुरुआत करना बेहतर होगा। स्टैटिस्टिक्स की ठोस बुनियाद पर ही एआई में आप कुछ बड़ा कर सकते हैं। बुनियादी स्टैटिस्टिक सिद्धांत और स्टैटिस्टिकल एस्टिमेशन से आपको एआई की लंबी दौड़ में मदद मिलेगी। मौजूदा समय में ग्लोबल स्तर पर कई तरह की अनिश्चितताएं हैं। जिसकी वजह से कंपनियां लागत में कमी के लिए नियुक्ति में कटौती कर रही है और एंट्री लेवल पर नौकरियां कम दे रही हैं। इसके अलावा, हर साल 15 लाख नए इंजीनियरों के मैदान में शामिल होने से जॉब मार्केट में सेचुरेशन की स्थिति आ चुकी है। जहां तक आईटी क्षेत्र में मंदी का सवाल है, इसके लिए वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों, ग्राहकों द्वारा प्रौद्योगिकी खर्च में कमी और अन्य देशों में उभरते तकनीकी केंद्रों के कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा जिम्मेदार मानी जा सकती है।

एआई अपस्किलिंग बेहद आवश्यक

डा. अनीश कुमार कहते हैं कि एआई क्रांति में भारत की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि हम अपने कर्मचारियों को कितना बेहतर कौशल प्रदान कर पाते हैं। यह 45 वर्ष की आयु के आसपास के कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिन्हें नई तकनीकों के अनुकूल होना चुनौतीपूर्ण लग सकता है। हालांकि, निजी क्षेत्र और सरकार दोनों के कदम उठाने के साथ ही कौशल उन्नयन कार्यक्रम गति पकड़ रहे हैं।

उदाहरण के लिए, इंफोसिस ने अपने कर्मचारियों को एआई, मशीन लर्निंग और डेटा एनालिटिक्स में प्रशिक्षित करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया है। इसी तरह, टीसीएस अपने कर्मचारियों को एआई-संचालित भूमिकाओं के लिए तैयार करने के लिए डिजिटल लर्निंग पहल शुरू कर रही है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या 40 की उम्र के बाद भी कर्मचारी अपस्किलिंग के लिए तैयार होंगे? इसका जवाब इस बात में छिपा है कि ये कार्यक्रम कैसे डिज़ाइन किए गए हैं। अपस्किलिंग के प्रयास सुलभ, व्यावहारिक और प्रोत्साहन वाले होने चाहिए। मुख्य बात यह स्पष्ट करना है कि AI सिर्फ़ नौकरियों को खत्म नहीं करेगा; यह उन लोगों के लिए नए अवसर पैदा करेगा जो इसके लिए तैयार हैं।

समझिए एआई के बाजार को

भारत के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बाजार को कंपोनेंट, प्रौद्योगिकी, इंडस्ट्री और डिप्लॉयमेंट में विभाजित किया गया है। कंपोनेंट यानी घटक के आधार पर, बाजार को हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और सेवाओं में विभाजित किया गया है। प्रौद्योगिकी के आधार पर, बाजार को मशीन लर्निंग, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण और अन्य में विभाजित किया गया है। डिप्लॉयमेंट के आधार पर, बाजार को क्लाउड और ऑन-प्रिमाइसेस में विभाजित किया गया है। उद्योग के आधार पर, बाजार को आईटी टेलीकॉम, हेल्थकेयर, रिटेल ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्टेशन, मैन्युफैक्चरिंग, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, बीएफएसआई और अन्य में विभाजित किया गया है। टेकसाइ रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार भारत के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बाजार के बढ़ने की उम्मीद है। आम लोगों में AI के बारे में जानकारी न होने के बावजूद, COVID-19 प्रकोप के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि, बढ़ते स्वचालन और मशीन लर्निंग को तेज़ी से अपनाए जाने जैसे कारक इसके तेज़ी से फैलने में योगदान दे रहे हैं।

फाउंडेशन मॉडल

एआई प्रणाली का एक उभरता हुआ प्रकार एक 'फाउंडेशन मॉडल' है, जिसे कभी-कभी 'जनरल परपज एआई' या 'जीपीएआई' प्रणाली भी कहा जाता है। ये कई सामान्य कार्यों (जैसे पाठ संश्लेषण, छवि हेरफेर और ऑडियो जेनरेशन ) में सक्षम हैं। ओपनएआई के जीपीटी-3 और जीपीटी-4, फाउंडेशन मॉडल जो कंवर्सेशनल चैट एजेंट चैटजीपीटी को रेखांकित करते हैं। फाउंडेशन मॉडल एआई मॉडल हैं जिन्हें व्यापक और सामान्य प्रकार के आउटपुट उत्पन्न करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। वे कई संभावित कार्यों और अनुप्रयोगों में सक्षम हैं, जैसे टेक्स्ट, इमेज या ऑडियो।