एस.के. सिंह, नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में निर्यात बढ़ाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे प्रमुख कदम रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) पर खर्च का है, जिसमें वृद्धि संभव है। इसके अलावा भारत की अपनी बड़ी शिपिंग लाइन विकसित करने का रोडमैप भी तैयार किया जा रहा है। इससे विदेशी मुद्रा की काफी बचत होगी। निर्यातकों के संगठन फियो के डायरेक्टर जनरल और सीईओ अजय सहाय ने जागरण प्राइम को यह जानकारी दी।

शिपिंग लाइन और कंटेनर की कमी के बावजूद भारत के निर्यात में कुछ ग्रोथ दिख रही है। इसलिए फियो इस साल कुल 900 अरब डॉलर का निर्यात मानकर चल रहा है। सहाय ने कहा, “हमने सरकार से आग्रह किया है कि निर्यात बरकरार रखने के लिए हमें रिसर्च एंड डेवलपमेंट और इनोवेशन में खर्च बढ़ाना पड़ेगा। प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में आरएंडडी पर हमारा खर्च बहुत कम है।” भारत अपनी जीडीपी का एक प्रतिशत भी आरएंडडी पर खर्च नहीं करता है, जबकि हमारे प्रतिस्पर्धी देश थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया जीडीपी के तीन प्रतिशत से अधिक खर्च करते हैं। दक्षिण कोरिया तो अपनी जीडीपी का चार प्रतिशत और इजराइल 5.5% आरएंडडी पर खर्च करता है।

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आरएंडडी में जोखिम अधिक होता है और इसके नतीजे मिलने में भी काफी समय लगता है। सहाय के अनुसार, “इसलिए अनेक देशों में आरएंडडी को इंसेंटिव दिया जाता है। लेकिन भारत में रिसर्च एंड डेवलपमेंट को इंसेंटिवाइज नहीं किया जाता। पहले आरएंडडी पर 200% टैक्स डिडक्शन की सुविधा थी। उसे कम करके पहले 150% और फिर 100% किया गया। इस तरह यह किसी भी बिजनेस एक्सपेंडिचर के समान हो गया है। हमने एक अध्ययन में पाया कि ओईसीडी के 38 देशों में से 33 देश टैक्स में छूट देते हैं। अगर वहां आरएंडडी पर कोई 100 डॉलर खर्च करता है तो उसे टैक्स में 250 से 300 डॉलर की छूट मिलती है। हमने भी सरकार से रिसर्च और डेवलपमेंट पर 250% से 300% टैक्स डिडक्शन देने का आग्रह किया है।”

भारत की अपनी शिपिंग लाइन की जरूरत

सहाय के अनुसार दूसरी जरूरत शिपिंग लाइन की है। भारत आत्मनिर्भर हो रहा है और यहां कंटेनर मैन्युफैक्चरिंग भी काफी तेजी से बढ़ रही है। हाल के दिनों में चीन का शिपमेंट बढ़ने के कारण कंटेनर की कमी हुई है। इस तात्कालिक घटना को छोड़ दें तो पिछले एक साल में भारत में कंटेनर की दर काफी स्थिर रही है, क्योंकि हम खुद भी कंटेनर बनाने लगे हैं। हमारा मानना है कि हमारे पास बड़ी शिपिंग लाइन होनी चाहिए ताकि हम विदेशी शिपिंग लाइन पर निर्भर न हों।

भारत के पास शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया है, लेकिन सहाय के मुताबिक कुल निर्यात में उसकी हिस्सेदारी अभी बहुत कम है। अपनी शिपिंग लाइन होने पर भारत को विदेशी मुद्रा की भी काफी बचत होगी। 2022 में भारत ने ट्रांसपोर्ट सर्विस पर 109 अरब डॉलर की मुद्रा विदेश भेजी। इसमें लगभग 80 अरब डॉलर शिपिंग ट्रांसपोर्ट का था। अगर कोई भारतीय शिपिंग कंपनी 25% हिस्सेदारी भी लेती है तो हर साल हम 20 से 25 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बचा सकते हैं।

एक्सपोर्ट क्रेडिट और मार्केटिंग सपोर्ट बढ़ाने की मांग

सहाय ने बताया कि निर्यातकों ने एक्सपोर्ट क्रेडिट बढ़ाने की भी मांग की है, क्योंकि भारत में ब्याज दर काफी बढ़ गई है। जिस समय इंटरेस्ट सब्वेंशन कम किया गया था उस समय रेपो रेट 4.4% पर आ गई थी। आज रेपो रेट 6.5% है। उन्होंने बताया, “हमने सरकार से आग्रह किया है कि एमएसएमई मैन्युफैक्चरर के लिए ब्याज में छूट तीन प्रतिशत से बढ़ाकर पांच प्रतिशत किया जाना चाहिए।”

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फियो ने मार्केटिंग सपोर्ट का मुद्दा भी उठाया है। सहाय के मुताबिक, हमारे प्रोडक्ट तो अच्छे होते हैं लेकिन हम उनकी मार्केटिंग में पीछे रह जाते हैं। हमारे एमएसएमई के पास मार्केटिंग के लिए फंड की भी कमी होती है। इसके लिए सरकार की कुछ स्कीमें हैं, लेकिन वे काफी नहीं हैं। हमने एक लाख करोड़ डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा है लेकिन मार्केटिंग के लिए सिर्फ 200 करोड रुपये का फंड है। हमने सरकार से कहा है कि अगले पांच वर्षों तक हर साल मार्केटिंग पर 500 करोड़ रुपये खर्च करने की जरूरत है।

निर्यातकों के लिए ड्यूटी रिफंड की स्कीम है। सहाय के अनुसार, “उसे सरकार ने बजट से जोड़ कर रखा है। वह कहती है कि बजट होगा तो रिफंड करेंगे। हमने सरकार से आग्रह किया है कि इस तरह की स्कीम को बजट से जोड़कर न चलाया जाए।”

रियायती कॉरपोरेट टैक्स के लिए समय सीमा बढ़े

वर्ष 2019 के बजट में आयकर कानून में धारा 115बीएबी जोड़ी गई थी। इसमें नई मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए 15% टैक्स दर का प्रावधान था। इसका मकसद नया निवेश आकर्षित करना और देश में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाना था। पिछले साल के बजट में इसकी अवधि बढ़ाकर 31 मार्च 2024 तक की गई थी। सहाय का कहना है कि बहुत सी कंपनियां चुनाव के नतीजों का इंतजार कर रही थीं, इसलिए निवेश धीमा हुआ। हमने सरकार से 31 मार्च 2024 की डेडलाइन तीन साल बढ़ाने का आग्रह किया है। इससे घरेलू और विदेशी निवेश काफी तेजी से बढ़ सकता है।

चीन के कारण कंटेनर का संकट

अमेरिका ने चीन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। कुछ यूरोपीय देशों ने भी चीन पर टैरिफ लगाने की घोषणा की है। सहाय ने बताया कि अमेरिका के नए टैरिफ 1 अगस्त से लागू होंगे। चीन उससे पहले अपना अधिक से अधिक सामान भेज रहा है। इसलिए चीन में कंटेनर की डिमांड इस समय बहुत बढ़ी हुई है। कंटेनर का संकट पहले से था, चीन में डिमांड बढ़ने से इस समय यह और बढ़ गया है। अनुमान है कि अगस्त के बाद स्थिति बेहतर होगी।

उन्होंने बताया कि रेड सी में हूती विद्रोहियों के कारण स्वेज नहर के रास्ते निर्यात अभी तक बाधित है। मुश्किल से पांच प्रतिशत शिपमेंट उस रास्ते से जा रहा है। बाकी निर्यात अफ्रीका के उत्तमाशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) के रास्ते हो रहा है। पहले अमेरिका के पश्चिमी तट पर जाने वाला निर्यात उत्तमाशा अंतरीप के रास्ते जाता था, अब पूर्वी और पश्चिमी तट दोनों पर उसी रास्ते निर्यात हो रहा है।