एस.के. सिंह/स्कंद विवेक धर, नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी में पेश अंतरिम बजट में स्टार्टअप के लिए कई घोषणाएं की थीं। कर छूट के लिए स्टार्टअप गठित करने की अवधि 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दी गई थी। उससे पहले के बजटों में भी स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए कई कदम उठाए गए। इसके बावजूद पिछले दो वर्षों में नए स्टार्टअप का गठन धीमा हुआ है, उनमें निवेश में कमी आई है और अनेक स्टार्टअप ने बड़े पैमाने पर छंटनी भी की है। दरअसल शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि से लेकर इंडस्ट्री के हर सेक्टर में स्टार्टअप का महत्व बढ़ता जा रहा है। ये नए-नए सॉल्यूशन लेकर आ रहे हैं जिनसे उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिल रही है और लागत भी घट रही है। इन्हें बढ़ावा देने के लिए विशेषज्ञों ने फंडिंग की कमी दूर करने, टैक्स में रियायत देने, स्किल डेवलपमेंट और आरएंडडी को बढ़ावा देने जैसे सुझाव दिए हैं। स्पेस सेक्टर में भारतीय स्टार्टअप के बढ़ते कदम को देखते हुए कंपोनेंट पर जीएसटी खत्म करने और अलग प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) की सिफारिश भी की गई है।

स्पेस स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए कदम

इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISpA) ने सरकार को दी अपनी सिफारिशों में कहा है कि अभी सैटेलाइट लॉन्च सेवाओं पर जीएसटी से छूट है। सेक्टर के वैल्यू चेन के लाभ के लिए इस छूट को सैटेलाइट, ग्राउंड सिस्टम और लॉन्च व्हीकल के महत्वपूर्ण कंपोनेंट तक बढ़ाया जा सकता है। सैटेलाइट लॉन्च सेवाओं के लिए प्रमुख वस्तुओं और सेवाओं (पूंजीगत वस्तुओं सहित) की खरीद पर भी समान छूट दी जानी चाहिए।

इस्पा ने ड्रोन और उसके कंपोनेट के लिए पीएलआई योजना की तरह अंतरिक्ष-ग्रेड के कंपोनेंट की मैन्युफैक्चरिंग के लिए भी पीएलआई की मांग की है। इसका कहना है कि इससे “मेक इन इंडिया” अभियान के तहत घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने और निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी। भारत में पंजीकृत न्यूस्पेस स्टार्टअप की संख्या 400 को पार कर गई है। इनमें से कई पूंजी जुटाने की इच्छुक हैं। इस क्षेत्र के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में स्पष्टता उनके लिए फायदेमंद होगी। एफडीआई से कंपनियों की बिजनेस की लागत भी कम होगी।

इस्पा के अनुसार, विभिन्न राज्यों में अंतरिक्ष औद्योगिक पार्क विकसित करने की योजना है, कई गैर-सरकारी संस्थाएं (लीगेसी और स्टार्टअप) बड़े ग्रीनफील्ड निवेश करने की सोच रही हैं। इसलिए अंतरिक्ष क्षेत्र की गतिविधियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लगी कंपनियों के लिए कर छूट/कर अवकाश/त्वरित मूल्यह्रास जैसी अन्य पहलों पर विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा, रियायती शुल्क दर पर माल आयात योजना (आईजीसीआर) के तहत अधिसूचित वस्तुओं के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले माल/उपकरण/मशीनरी के आयात पर सीमा शुल्क छूट पर विचार किया जाना चाहिए।

डीप टेक इकोसिस्टम मजबूत करने की जरूरत

वेंचर कैपिटल फर्म सीफंड के सह-संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर मनोज अग्रवाल के मुताबिक, “भारत में डीप टेक इकोसिस्टम मजबूत करने के लिहाज से मुझे आगामी बजट से बहुत उम्मीदें हैं। सरकार ने इस क्षेत्र को समर्थन देने के बारे में बयान भी दिए हैं। मेरा मानना ​​है कि शुरुआती चरण में अधिक समर्थन देना महत्वपूर्ण है।” उनका कहना है कि डीप टेक स्टार्टअप्स को अक्सर महत्वपूर्ण आरएंडडी की जरूरत होती है और शुरुआती चरण में निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करना मुश्किल होता है। इस क्षेत्र में उतरने के इच्छुक निवेशकों को समर्थन देने के लिए एक समर्पित फंड ऑफ फंड्स महत्वपूर्ण है।

स्टार्टअप के निवेश पर नजर रखने वाली फर्म ट्रैक्सन टेक्नोलॉजीज की सह-संस्थापक नेहा सिंह के अनुसार, “डीप टेक स्टार्टअप के लिए समर्पित नीति और इलेक्ट्रिक वाहनों और रिन्यूएबल एनर्जी जैसे उभरते क्षेत्रों के लिए विशेष फंड से महत्वपूर्ण आर्थिक सहायता मिलेगी और इनोवेशन को बढ़ावा मिलेगा। इससे भारत को सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी में वैश्विक लीडर का स्थान मिलेगा।”

टैक्स में छूट की मांग

स्टार्टअप को कानूनी सेवा देने वाली कंपनी लीगलविज.इन (Legalwiz.in) के संस्थापक शृजय शेठ के अनुसार स्टार्टअप्स को आयकर और एंजेल टैक्स के लिए धारा 80-आईएसी और धारा 56 के तहत मौजूदा कर छूट नीतियों के बेहतर कार्यान्वयन की भी उम्मीद है। अर्थ वेंचर फंड के मैनेजिंग पार्टनर अनिरुद्ध दामानी को लगता है कि सरकार इस बजट में आंत्रप्रेन्योरशिप का इकोसिस्टम विकसित करने के लिए कदम उठाएगी। इसका एक उपाय एंजेल टैक्स की व्यवस्था खत्म करना है, जो अभी स्टार्टअप के लिए बड़ा बोझ है।

नेहा सिंह कहती हैं, “निवेशक मोर्चे पर देखें तो वेंचर कैपिटलिस्ट स्टार्टअप में निवेश को बढ़ावा देने के लिए एंजेल टैक्स को हटाए जाने की उम्मीद कर रहे हैं। टैक्स रिटर्न फाइल करने की प्रक्रिया सुव्यवस्थित करने, रेगुलेटरी बोझ कम करने और निवेशकों के लिए टैक्स में रियायत जैसे सुधार महत्वपूर्ण होंगे। हमें उम्मीद है कि यह बजट न केवल कर प्रोत्साहन जारी रखेगा बल्कि समग्र कारोबारी माहौल को आसान बनाने पर भी जोर देगा।”

सीफंड के मनोज अग्रवाल कहते हैं, स्टार्टअप और निवेशकों के लिए कर ढांचे को सरल बनाना आवश्यक है। कई यूरोपीय देशों में निवेशकों को स्टार्टअप में सीधे या फंड के माध्यम से निवेश करने पर टैक्स में छूट मिलती है। भारत में इसी तरह के प्रावधान घरेलू निवेश को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

रिटेल टेक ग्रॉसरी चेन फ्रेंडी के संस्थापक सीईओ समीर गंदोत्रा कहते हैं, एंजेल टैक्स को खत्म करना और स्टार्टअप निवेश को आवासीय संपत्ति की बिक्री से होने वाले पूंजीगत लाभ पर कर छूट, ये दोनों उपाय स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा देने में मदद करेंगे। इसोप (ESOP) के बजाय इसके शेयरों की वास्तविक बिक्री पर टैक्स लगाने से अधिक कर्मचारियों को इसोप मिल सकेगा और इससे स्टार्टअप को प्रतिभाओं को आकर्षित करने में मदद मिलेगी।

स्टार्टअप को फंडिंग की जरूरत

नेहा सिंह कहती हैं, स्टार्टअप इकोसिस्टम ऐसे किसी भी सरकारी कदम का स्वागत करेगा जिससे उन्हें फंडिंग में गिरावट के मौजूदा ट्रेंड से निपटने में मदद मिले। स्टार्टअप के लिए फंडिंग की एक्सेस बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर शुरुआती दौर में। सरकार समर्थित वेंचर फंड और विदेशी निवेश रेगुलेशन का सकारात्मक प्रभाव हुआ है, और हम आगे ऐसे उपायों की उम्मीद करते हैं जिनसे फंडिंग आसान हो सके। आर्थिक विकास और इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए हेल्थकेयर, कृषि, बीमा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में विशिष्ट पहल की जरूरत है। हम निवेश और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए इन क्षेत्रों में लक्षित टैक्स इंसेंटिव की उम्मीद करते हैं।

शृजय शेठ कहते हैं, स्टार्टअप को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के साथ व्यवसाय बढ़ाने के लिए फंडिंग की कमी दूर करने के उपायों की उम्मीद है। विशेष रूप से अक्षय ऊर्जा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंफ्राटेक, फिनटेक जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में बजट आवंटन बढ़ सकता है। इन क्षेत्रों में सरकारी-निजी साझेदारी (पीपीपी) के अवसर भी खुल सकते हैं। गुजरात में गिफ्ट सिटी को पूरे एशिया के गंतव्य के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से फिनटेक पर विशेष फोकस हो सकता है।

मनोज अग्रवाल के मुताबिक, फंडों के लिए एक सरल जीएसटी व्यवस्था और एंजेल टैक्स को खत्म करने से शुरुआती चरण की फंडिंग के लिए बहुत सारी घरेलू पूंजी उपलब्ध हो जाएगी। इसकी आज पहले से कहीं अधिक जरूरत है क्योंकि स्टार्टअप के लिए फंडिंग मुश्किल होती जा रही है।

साइबर सिक्युरिटी फर्म सेक्योरटेक के सीईओ और सह-संस्थापक पंकित देसाई का कहना है, बजट में हम ये बदलाव देखना चाहेंगे - कर अवकाश का विस्तार (अभी यह पहले 10 वर्षों में से केवल तीन वर्ष के लिए है), जीएसटी दरों में कमी और वित्तीय बोझ कम करने के लिए आसान टैक्स कंप्लायंस। इसके अलावा वैश्विक बाजारों तक पहुंचने में मदद, अनुकूल व्यापार समझौते और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन के लिए प्लेटफॉर्म, सरकार समर्थित फंड और अनुदान, निवेशकों के लिए प्रोत्साहन और कम ब्याज वाले कर्ज तक आसान पहुंच जैसे कदम भी उठाए जाने चाहिए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन और आईओटी जैसी उभरती टेक्नोलॉजी के विकास और उन्हें अपनाने के लिए समर्थन की भी जरूरत है।

एजुटेक स्टार्टअप की जरूरत

एजुटेक कंपनी युवीपेप के डायरेक्टर अजित कुमार कहते हैं, इनोवेशन में आज किया गया निवेश भविष्य के कार्यबल को आकार देता है। स्मार्ट पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के साथ अटल टिंकरिंग मिशन (एटीएम) के लिए निश्चित राशि आवंटित की जानी चाहिए। इससे निजी उद्योग की विशेषज्ञता सरकारी स्कूलों में आएगी और इनोवेशन का इकोसिस्टम बेहतर होगा। कर में छूट और शैक्षिक सेवाओं पर जीएसटी से राहत से इस तरह की भागीदारी अधिक प्रोत्साहित होगी। हम युवा मस्तिष्क को उद्योग के अनुभव और समस्या-समाधान कौशल से लैस करके अगले 30 वर्षों में देश को विकसित भविष्य की ओर ले जा सकते हैं।

कौशल विकास के साथ साइबर सुरक्षा इन्फ्रास्ट्रक्चर जरूरी

ट्रैक्सन की नेहा सिंह के अनुसार, बजट में कर राहत से लेकर रेगुलेटरी बाधाओं में कमी और सुधारों को नियमित करने के माध्यम से बिजनेस को आसान बनाने की बहुत सारी उम्मीदें हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उभरती टेक्नोलॉजी में वर्कफोर्स का निरंतर कौशल विकास भी जरूरी है। इसलिए हमें उम्मीद है कि बजट में आवश्यक प्रशिक्षण और कौशल विकास के उपाय होंगे, ताकि हमारी वर्कफोर्स प्रासंगिक और प्रतिस्पर्धी बनी रहे।

पंकित देसाई कहते हैं, डेटा ब्रीच और साइबर हमले रोकने के लिए सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों में समर्पित फंड के जरिए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए। यह खासकर बैंकिंग, ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा और परिवहन जैसे क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है। इसके लिए विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में साइबर सुरक्षा शिक्षा में निवेश और निरंतर कौशल विकास के साथ साइबर सुरक्षा प्रोफेशनल की एक मजबूत पाइपलाइन तैयार करनी पड़ेगी।

सीफंड के मनोज अग्रवाल एक और महत्वपूर्ण सुझाव देते हैं। वे कहते हैं, हमें भारत में बने लेकिन विदेश में मुख्यालय वाले बिजनेस के लिए ‘रिवर्स फ्लिपिंग’ को सुलझाने की आवश्यकता है। इन व्यवसायों को भारत वापस लाने पर हमारी अर्थव्यवस्था और सरकार के राजस्व को लंबे समय में काफी लाभ हो सकता है।