एस.के. सिंह, नई दिल्ली। आखिरकार चांद की चाहत में चकोर (विक्रम लैंडर) अपने सफर के 41वें दिन उस तक पहुंच ही गया। किसी चकोर के पंख की ही तरह उसने आहिस्ता-आहिस्ता चांद के आंगन में कदम रखे। 14 जुलाई को चंद्रयान-3 लांच होने के बाद देश ही नहीं, समूचा विश्व व्यग्र नजरों और तेज धड़कते दिलों से इस पल का इंतजार कर रहा था। मन के किसी कोने में डर भी था कि कहीं चंद्रयान-2 की तरह इस बार भी आखिरी पलों में मिशन नाकाम न हो जाए। लेकिन पिछली बार से सीख लेकर खामियां सुधारने के बाद इसरो के वैज्ञानिक इस बार शुरू से काफी आश्वस्त थे। चंद्रयान-3 बार-बार संदेश भी दे रहा था, “सब ठीक है और तय शेड्यूल के मुताबिक चल रहा है।”

इसरो के पूर्व प्रमुख के. सिवन ने जागरण प्राइम को बताया, “चंद्रयान-2 के थ्रस्टिंग सिस्टम, गाइडिंग सिस्टम और कंट्रोल सिस्टम में समस्याएं आई थीं, जिनमें आवश्यक बदलाव किए गए हैं। चंद्रयान के पैरों को और मजबूत किया गया है, ताकि यदि लैंडर उम्मीद से तेज गति से भी लैंड करता है तो उसे नुकसान न पहुंचे। चंद्रयान में अतिरिक्त सेंसर भी लगाए गए हैं, ताकि लैंडिंग के समय अगर कोई सिस्टम फेल हो जाए तो भी लैंडिंग सफलता से हो सके।”

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विक्रम लैंडर ने खुद चुनी उतरने की जगह

विक्रम लैंडर ने चांद पर उतरने से पहले ही सारे काम खुद (ऑटोमेटिक) करने शुरू कर दिए थे। उसने उतरने की सही जगह भी खुद चुनी। सतह की तस्वीरें लेकर उसने देखा कि कहां उतरना ठीक रहेगा। विक्रम के उतरने के बाद उसका एक हिस्सा खुला और करीब 26 किलो वजन वाला प्रज्ञान रोवर एक रैंप की मदद से बाहर आया। चांद की ऊबड़-खाबड़ सतह को देखते हुए छह पहिए वाला यह रोवर हर सेकंड एक सेंटीमीटर चलेगा। यह चांद पर तिरंगा फहराने के साथ इसरो का लोगो भी लगाएगा। वैज्ञानिक मानते हैं कि असली काम तो प्रज्ञान रोवर के चांद की मिट्टी पर उतरने के बाद शुरू होगा।

रोवर में ऑटेमेटिक कैमरे लगे हैं। यह चांद की मिट्टी की जांच करेगा। लाखों वर्षों में चांद की सतह कैसे बनी, चांद की मिट्टी में कौन-कौन से तत्व हैं, इन सबका पता चलने की उम्मीद है। स्पेक्ट्रोमीटर के माध्यम से वह देखेगा कि चांद में कौन-कौन से खनिज हैं। प्रज्ञान यह सब सूचना विक्रम लैंडर को देगा, विक्रम उस सूचना को धरती पर भेजेगा।

लैंडर और रोवर पर लगे कैमरे अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लिकेशन सेंटर ने तैयार किए हैं। सेंटर के डायरेक्टर नीलेश एम. देसाई ने बताया कि रोवर इमेजिंग (RI) कैमरे से खींची गई तस्‍वीरें 25 सेकंड में धरती तक पहुंचेंगी। लैंडर में लगे कारा रडार अल्टीमीटर, हैज़र्ड डिटेक्शन एंड अवॉइडेंस (HDA) सिस्टम और LHDAC कैमरा भी सैक (SAC-ISRO), NGC और DPS सिस्टम, अहमदाबाद में बनाए गए हैं।

विक्रम लैंडर के साथ चार पेलोड हैं- रंभा, चैस्टे, इलसा और एरे। ये चारों चांद के अनजाने रहस्यों से पर्दा उठाएंगे। रंभा (रेडियो एनाटमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फेयर एंड एटमॉस्फेयर) चांद की सतह पर सूरज के प्लाजमा कणों के घनत्व, मात्रा आदि की जांच करेगा। चैस्टे (चंद्रा’स सरफेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट) चांद की सतह पर तापमान की जांच करेगा। इलसा (इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी) लैंडिंग की जगह के इर्दगिर्द आए भूकंप को मापेगा। लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे चांद के डायनामिक्स को समझेगा।

देश का गौरव बढ़ाने वाली उपलब्धि

इसरो की इस सफलता पर इंडियन स्पेस एसोसिएशन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल (रि) ए.के. भट्ट कहते हैं, “सबसे पहले तो यह राष्ट्रीय गर्व का विषय है। यह दुनिया को हमारी वैज्ञानिक उपलब्धि और क्षमता को बताता है। अभी तक दुनिया के कुछ ही देश ऐसा कर पाए हैं। चंद्रयान-3 को फिलहाल भले ही सिर्फ लैंडिंग मिशन के तौर पर देखा जा रहा हो, लेकिन भविष्य में इसके कई कॉमर्शियल डाइमेंशन हो सकते हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम करने वाले देश या अन्य स्पेस कम्युनिटी अभी इस कोशिश में है कि हम चांद पर लैंड कर सकें और वहां इंसानों को भेज सकें।” भारत के पहले स्पेस स्टार्टअप ध्रुव स्पेस के हेड ऑफ स्ट्रैटजी क्रांति चंद भी कहते हैं, “यह बड़े राष्ट्रीय गौरव की बात है। इससे भारत के स्पेस कार्यक्रम के कौशल का पता चलता है।”

भट्ट के अनुसार, “मंगल ग्रह या उससे आगे उपग्रह भेजने के लिए चांद को बेस स्टेशन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। चांद पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में छठे हिस्से के बराबर है, इसलिए प्रयास कम करने होंगे। हालांकि चंद्रयान-3 इस दिशा में पहला कदम होगा। इसके बाद और भी कई कदम सफलतापूर्वक उठाने पड़ेंगे, उसके बाद ही हम उस लक्ष्य तक पहुंच सकेंगे। फिर भी यह हमारे लिए दरवाजा खोलने के समान है।”

दुनिया के बड़े मीडिया में सुर्खियों में चंद्रयान की खबर

भविष्य में लागत कम करने की टेक्नोलॉजी पर काम

भट्ट कहते हैं, हो सकता है कि चांद पर हमें पानी, हीलियम और कुछ रेयर पदार्थ मिल जाएं। भविष्य में टेक्नोलॉजी में इस क्षेत्र में तरक्की होनी है कि धरती से मंगल ग्रह या अंतरिक्ष में कहीं भी जाने और अधिक वजनी सामान ले जाने की लागत कम हो जाए। एलन मस्क भी यही करने की कोशिश कर रहे हैं। वे जो सबसे बड़ा लॉन्च व्हीकल बना रहे हैं, उसका मकसद यही है कि ज्यादा से ज्यादा सामान अंतरिक्ष में लेकर जा सकें ताकि लागत कम हो।

भट्ट कहते हैं, “इस उपलब्धि से अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय निजी कंपनियों का भी भरोसा बढ़ेगा। उनके सामने भविष्य में इस दिशा में काम करने का रास्ता खुलेगा।” क्रांति के मुताबिक, “हर पीढ़ी को प्रेरणा की जरूरत पड़ती है। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग अधिक से अधिक भारतीयों को बाहरी अंतरिक्ष के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करेगी।”

अंतरिक्ष यात्रा में भारत को साथ लेकर चलें बाकी देश

चंद्रयान-3 की सफलता से स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ने की भी उम्मीद की जा रही है। इससे पूरे अंतरिक्ष उद्योग को फायदा होगा। आने वाले दिनों में इंडस्ट्री को दूसरे देशों से स्पेस-ग्रेड के हार्डवेयर और टेक्नोलॉजी सप्लाई करने के ऑर्डर मिल सकते हैं। इससे कंपनियों का बिजनेस तो बढ़ेगा ही, इस इंडस्ट्री में लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

स्काइरूट एरोस्पेस के रिसर्च और स्ट्रैटजी हेड डॉ. सीवीएस किरन के अनुसार, इस मिशन से स्पेस कम्युनिटी में भारत की छवि और मजबूत होगी। इससे आगे चलकर वैज्ञानिक खोज में मदद मिलेगी और आर्थिक अवसर खुलेंगे। स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ने की उम्मीद है। क्रांति कहते हैं, “इससे इस बात को भी मजबूती मिलती है कि पूरी दुनिया को अंतरिक्ष की आगे की यात्रा में भारत को साथ लेकर चलना चाहिए।”

इसरो के अलावा 10 संस्थानों का योगदान

मिशन की इस कामयाबी के पीछे इसरो के वैज्ञानिकों का तीन साल का कठोर परिश्रम तो है ही, दस सरकारी-निजी संस्थानों का भी योगदान है। इनमें हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल), लार्सन एंड टुब्रो, मिश्र धातु निगम लिमिटेड, वालचंद इंडस्ट्रीज, सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स, लिंडे इंडिया, पारस डिफेंस एंड स्पेस टेक्नोलॉजीज, एमटीएआर टेक्नोलॉजीज और गोदरेज एरोस्पेस शामिल हैं।

भेल ने चंद्रयान-3 के लिए बैटरी दी है। इसकी रिसर्च इकाई वेल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एडेप्टर बनाने में भूमिका निभाई है जिनका क्रायोजेनिक स्टेज में इस्तेमाल हुआ। मिश्र धातु निगम ने विभिन्न कंपोनेंट के लिए कोबाल्ट एलॉय, निकल एलॉय, टाइटेनियम एलॉय और स्पेशल स्टील जैसे महत्वपूर्ण मैटेरियल की सप्लाई की है। यह सरकारी कंपनी गगनयान मिशन में भी इसरो की मदद कर रही है। सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स ने कई महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट उपलब्ध कराए हैं। गोदरेज एरोस्पेस ने लिक्विड प्रोपल्शन इंजन, थ्रस्टर और कंट्रोल मॉड्यूल में इसरो की मदद की है।