नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।

आज अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव है। इस बार मुकाबला कांटे का है। अमेरिका के राष्ट्रपति का ताज किसके सिर सजेगा, यह तो कुछ घंटे बाद ही पता चल जाएगा, लेकिन हमेशा की तरह इस बार के चुनावों में इस बात का हल्ला जोर पर है कि मीडिया की भूमिका किस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावों की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। वहीं 'द वाशिंगटन पोस्ट' के मालिक और एमेज़ॉन के सीईओ जेफ़ बेज़ोस के संपादकीय लेख ने इस बहस को छेड़ दिया है। बेजोस ने कहा कि किसी अख़बार द्वारा किसी राष्ट्रपति उम्मीदवार को समर्थन करने से वोट पर असर नहीं होता है, पर ऐसा करने से यह धारणा ज़रूर बन जाती है कि अख़बार पक्षपाती है।

2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले, प्रमुख मीडिया आउटलेट्स के बीच एक अनूठा पैटर्न सामने आया है। संपादकीय समर्थन - जो लंबे समय से अमेरिकी चुनावों का मुख्य हिस्सा रहा है - जनमत को आकार देने में महत्वपूर्ण रहा है। इस साल, कई प्रमुख प्रकाशनों ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तुलना में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का समर्थन किया।

न्यूयॉर्क टाइम्स और द इकोनॉमिस्ट दो हाई-प्रोफाइल उदाहरण हैं, जिनमें से बाद वाले ने तो यहां तक कहा, "हम कमला के लिए वोट करते हैं" । ये समर्थन प्रभावशाली संपादकीय आवाज़ों की निरंतर भूमिका को उजागर करते हैं, खासकर एक ध्रुवीकृत माहौल में जहां कुछ हज़ार वोट परिणाम निर्धारित कर सकते हैं।

अमेरिकी मीडिया का चुनाव में खुलकर उम्मीदवारों को समर्थन देने का इतिहास बहुत पुराना रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स, द वाशिंगटन पोस्ट और कई क्षेत्रीय अखबारों ने चुनावों के दौरान अलग-अलग उम्मीदवारों को समर्थन दिया है। 1960 में, न्यूयॉर्क टाइम्स ने केनेडी का समर्थन किया था. इसी तरह, शिकागो ट्रिब्यून ने 2008 में बराक ओबामा का समर्थन करके उनके अभियान को विश्वसनीयता दी और वोटर्स को प्रभावित किया।

न्यूयॉर्क टाइम्स में अपने लेख में पॉल क्रुगमैन ने सीधे तौर पर ट्रंप की आलोचना करते हुए लिखा है कि मुझे नहीं पता कि राष्ट्रपति चुनाव कौन जीतेगा। कोई नहीं जानता। लेकिन जाहिर है कि डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में वापस आने की काफी संभावना है। मैं अपने देश के लिए चिंतित हूँ और मुझे इस बात की चिंता है कि ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में मेरा अपना जीवन कैसा होगा। और आपको भी चिंतित होना चाहिए। उन्होंने लिखा कि जब तक आपका आउटलेट उनके और उनके एजेंडे के लिए पूरी तरह से चीयरलीडर नहीं रहा है, तब तक ट्रम्प आपको " लोगों का दुश्मन " मानते हैं। उन्होंने कहा कि संक्षेप में कहें तो, अमेरिका बहुत ही भयावह जगह बनने वाला है। और जो लोग यह कल्पना कर रहे हैं कि उनका जीवन पहले की तरह ही चलता रहेगा, और संभावित भय और अराजकता से किसी भी तरह से अछूता रहेगा, वे बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं।

'द वाशिंगटन पोस्ट' के मालिक और एमेज़ॉन के सीईओ जेफ़ बेज़ोस ने लिखा कि 'पोस्ट' समेत सभी अख़बारों की विश्वसनीयता घटी है। लोगों का झुकाव पॉडकास्ट, सोशल मीडिया पोस्ट, अन्य स्रोतों की ओर हो रहा है, जो सत्यापित नहीं हैं। यह स्थिति न केवल मीडिया के लिए, बल्कि देश के लिए भी समस्या है. इससे ग़लत सूचनाएँ फैलने और विभाजन बढ़ने का ख़तरा है। उन्होंने लिखा कि मीडिया में लोगों का भरोसा लगातार गिर रहा है। सर्वेक्षणों में सबसे नीचे अमेरिकी कांग्रेस का स्थान होता था और उससे ठीक ऊपर मीडिया का, लेकिन इस साल के गैलप सर्वेक्षण में भरोसे के मामले में मीडिया सबसे नीचे है।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुके और विजिटिंग प्रोफेसर सिद्धार्थ दुबे कहते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका में समाचार मीडिया का अमेरिकी चुनावों पर व्यापक प्रभाव है। अमेरिका दुनिया के उन बहुत कम देशों में से एक है जहां, न्यूज ऑर्गेनाइजेशन सार्वजनिक रूप से और खुले तौर पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन या विरोध करते हैं। वह अपने ओपिनियन के अंश लगातार लिखते रहते हैं। वहां पर चुनावों के दौरान समाचार समूह एजेंडे चलाते हैं, चाहे न्यूयॉर्क टाइम्स हों या वॉल स्ट्रीट जर्नल या फॉक्स न्यूज़। वह कहते हैं कि बहुत से लोग डोनाल्ड ट्रम्प के पक्ष में हैं, भले ही वे उनकी कही बातों से असहमत हों। लेकिन वे, किसी भी कारण से, उपराष्ट्रपति कमला को वोट देना नहीं चाहते हैं। आम तौर पर ऐसा होता है कि लोगों ने अपना मन बना लिया है और वे मंगलवार को होने वाले मतदान के लिए किसी भी तरीके से मतदान करने जा रहे हैं। इस बार प्रचार अंतिम क्षण तक चल रहा है और इससे फर्क पड़ रहा है।

सर्वेक्षण में खासी नजदीकी

दुबे कहते हैं कि मौजूदा सर्वेक्षण में दोनों उम्मीदवारों, कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच अंतर बहुत कम है। मूलतः वे बराबर हैं और एक या दो अंक ऊपर और नीचे हैं। मतदाता, चाहे अमेरिका में हों या भारत में, विजेता के साथ रहना चाहते हैं। इस बार अमेरिका में, हमें बहुत सारी अनिर्णय की स्थिति है। बहुत सारे लोग कमला हैरिस को डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ वोट दे रहे हैं। इसकी वजह कमला हैरिस और उनकी नीतियों को पसंद करना नहीं है, बल्कि वे ट्रंप को एक बार राष्ट्रपति पद के लिए मौका देना नहीं चाहते हैं।

बिजनेस घराने चला रहे मीडिया

दुबे कहते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका में अधिकांश मीडिया व्यापारिक घरानों द्वारा नियंत्रित है। न्यूयॉर्क टाइम्स, डाउ जोंस, वॉल स्ट्रीट जर्नल और वाशिंगटन पोस्ट बिजनेस घराने हैं। यह बड़े प्रकाशन गृह हैं, और वे सभी व्यवसायियों द्वारा चलाए जाते हैं। पिछले अनुभव से जानते हैं कि ट्रंप के प्रतिशोध के बयान से मीडिया हाऊस ट्रंप के खिलाफ कम मुखर हैं। बिडेन ने भी मीडिया के खिलाफ सख्त रुख नहीं अपनाया था, वहीं हैरिस भी ऐसा नहीं करेगी। ओबामा ने ऐसा बिल्कुल नहीं किया। ट्रम्प बहुत अलग हैं। वह पहले ही कह चुके हैं कि वह उन लोगों से बदला लेंगे जिन्होंने उनका समर्थन नहीं किया। वाशिंगटन पोस्ट ने इस बार किसी उम्मीदवार का समर्थन नहीं किया है। पोस्ट के नेतृत्व पर बहुत दबाव रहा है। इसका स्वामित्व अमेज़न के जेफ बेजोस के पास है।

न्यूयॉर्क टाइम्स अब आलोचना के घेरे में है। ट्रम्प को न्यूयॉर्क टाइम्स पसंद नहीं है। लेकिन मेरा मानना है कि ये, इन व्यवसायों के मालिक चिंतित हैं। यदि ट्रम्प राष्ट्रपति बने, तो वह उनके व्यापारिक घरानों के साथ क्या करेंगे?

ट्रंप के आक्रामक रुख से न चाहते हुए भी नरम पड़े मीडिया हाऊस

सिद्धार्थ कहते हैं कि इसका असर उनके कवरेज पर पड़ता है। हालांकि, मुझे लगता है कि यह चुनाव पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति रहते हुए मीडिया के साथ उनके संबंधों के ट्रैक रिकॉर्ड से काफी अलग है। इस बार के चुनावों में अमेरिकी मीडिया समूह जो ट्रम्प के कट्टर आलोचक रहे हैं, वह उनकी हालिया आलोचना को म्यूट कर रहे हैं। इसके पीछे की वजह स्पष्ट है कि ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो उन लोगों से इंतकाम लेंगे जिन्होंने उनका साथ नहीं दिया।

सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार , "ट्विटर ने 2016 और 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन वोट शेयर को कम किया, लेकिन कांग्रेस के चुनावों और पिछले राष्ट्रपति चुनावों पर इसका सीमित प्रभाव पड़ा। सर्वेक्षण डेटा, प्राथमिक चुनावों और लाखों ट्वीट्स के टेक्स्ट विश्लेषण से मिले साक्ष्य बताते हैं कि ट्विटर की अपेक्षाकृत उदार सामग्री ने उदार विचारों वाले मतदाताओं को डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ वोट करने के लिए राजी किया होगा।"

दुबे कहते हैं कि पुराने दिनों में मीडिया प्रिंट और टेलीविजन हुआ करते थे। मौजूदा समय में सोशल मीडिया सबसे महत्वपूर्ण हो गया है। इसके अलावा चीन, रूस जैसे देश कम्युनिकेशन के माध्यम से दुष्प्रचार फैला रहे हैं। इसके अलावा जो वीडियो वायरल हो रहे हैं उनकी प्रामाणिकता पर भी पूरी तरह कुछ नहीं कहा जा सकता है। मूलत : वह उम्मीदवार को शर्मिंदा करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। टिकटॉक और इंस्टाग्राम पर बहुत ज़ोर है। मुझे लगता है कि इस बार बहुत बड़ा प्रभाव सोशल मीडिया, यूट्यूब, इंटरनेट पर वायरल वीडियो और पॉडकास्ट के बीच का है। दोनों उम्मीदवारों ने पॉडकास्ट पर काफी समय बिताया है, यहां तक कि उन मेजबानों के साथ भी जिनसे वे असहमत हैं, और यह दिलचस्प है।

सोशल मीडिया के साथ समस्या यह है कि यह एक लगातार विकसित होती विधा है। इसमें कोई विज्ञान नहीं है। आपके पास एक अद्भुत मीडिया रणनीति हो सकती है जो टेलीविज़न को अच्छी तरह से कवर करती है और प्रिंट को भी अच्छी तरह से कवर करती है लेकिन जब सोशल मीडिया की बात आती है, तो ऐसा नहीं है, कोई गेम प्लान नहीं है जो आपको जीत का आश्वासन देता हो।

2016 और 2020 का चुनाव

2016 के राष्ट्रपति चुनाव में सभी उम्मीदवारों द्वारा सोशल मीडिया का भारी उपयोग देखा गया। शीर्ष तीन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प , हिलेरी क्लिंटन और बर्नी सैंडर्स ( डेमोक्रेटिक प्राइमरी में उपविजेता ) थे। प्यू रिसर्च सेंटर ने बताया कि "जनवरी 2016 में, 44% अमेरिकी वयस्कों ने बताया कि उन्हें पिछले सप्ताह सोशल मीडिया से 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के बारे में पता चला।" लगभग "24% ने कहा कि उन्होंने चुनाव से संबंधित जानकारी के लिए सोशल मीडिया पोस्ट का सहारा लिया है। ट्विटर पर, ट्रम्प आम जनता के ट्वीट को भी रीट्वीट करते थे, जबकि क्लिंटन और सैंडर्स मुख्य रूप से अपने अभियानों के बारे में ट्वीट को रीट्वीट करते थे।

2020 का चुनाव COVID-19 के उदय के दौरान हुआ। इस प्रकार, उम्मीदवारों को पहले की तुलना में प्रचार के लिए सोशल मीडिया पर अधिक निर्भर रहना पड़ा। इस चुनाव में दो मुख्य उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प रिपब्लिकन उम्मीदवार और जो बिडेन डेमोक्रेट उम्मीदवार थे। ट्रम्प अभियान ने अकेले फेसबुक विज्ञापनों पर 48.7 मिलियन डॉलर और बिडेन अभियान ने 45.4 मिलियन डॉलर खर्च किए। 2020 के चुनाव के दौरान, सोशल मीडिया पर राजनीतिक विषयों पर सक्रियता में भाग लेने वाले प्रभावशाली लोगों और मशहूर हस्तियों की संख्या में वृद्धि हुई। लेब्रोन जेम्स , टेलर स्विफ्ट और बेयोंसे जैसी मशहूर हस्तियों ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन का समर्थन करते हुए बयान दिए। स्टेसी डैश , किड रॉक और क्रिस्टी एली जैसी मशहूर हस्तियों ने रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थन में बयान दिए। 2020 के चुनाव के दौरान सोशल मीडिया ने कई विवाद पैदा किए। 2020 के चुनाव के दौरान, सोशल मीडिया गलत सूचना के प्रसार का प्राथमिक स्रोत था। सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को एल्गोरिदम के कारण ध्रुवीकरण का भी सामना करना पड़ा।

सीएनएन से लेकर फॉक्स न्यूज तक मीडिया एजेंसियों द्वारा औपचारिक रूप से बाइडेन के लिए चुनाव की घोषणा किए जाने के बाद , डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हुए 2020 के चुनाव परिणामों की प्रामाणिकता को चुनौती दी, साथ ही कई मुकदमों के माध्यम से भी इसका विरोध किया। हालाँकि सभी मुकदमे असफल रहे।

सोशल मीडिया पर प्रचार दोधारी तलवार

सोशल मीडिया पर हो रहा प्रचार दोधारी तलवार की तरह है। कई बार अप्रत्याशित तौर पर आपका दांव उल्टा भी पड़ जाता है। दुबे कहते हैं कि जो वीडियो वायरल होते हैं वे सबसे अस्पष्ट कारणों से वायरल होते हैं। उदाहरण के लिए, ट्रम्प को गोली मारने की कोशिश वाला वीडियो वायरल हो गया, लेकिन क्या इससे ट्रंप को मदद मिल रही है या ट्रंप को नुकसान हो रहा है? मुझे नहीं पता। शायद इससे कोई फायदा, इसे नापने को कोई स्पष्ट पैमाना नहीं है। सोशल मीडिया की कोई वास्तविक रणनीति नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि दोनों पार्टियां, दोनों उम्मीदवारों की टीमें सोशल मीडिया के महत्व को समझती हैं।

हाल ही में हमने ट्रम्प की एक रैली में प्यूर्टो रिको के बारे में मजाक करते हुए हास्य अभिनेता को देखा। इससे ट्रंप को नुकसान हुआ। राष्ट्रपति बिडेन फिर से उस पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं, लेकिन उन्होंने एक गलती की है। उन्होंने ट्रंप समर्थकों को कूड़ा बताया, उसका यह मतलब नहीं था। वहीं दूसरी तरफ इससे कमला हैरिस को भी मदद नहीं मिली। सोशल मीडिया एक ग्रेनेड की तरह है। आपको पिन खींचनी होगी और यह आप पर फट जाएगा।

दुष्प्रचार से नुकसान

चुनावों में दुष्प्रचार से नुकसान होता है। वहीं यह वैमनस्य को भी बढ़ाता है। दुबे कहते हैं चुनावों में फेक न्यूज बड़ा फैक्टर होता है। वह बताते हैं कि फेक न्यूज उडा़ई गई कि ओबामा केन्याई नागरिक हैं। यह सौ फीसदी झूठ था। इस फेक न्यूज के वायरल होने के बाद भी भी वह चुनाव जीत गए। यहां तक कि कमला हैरिस को नापसंद करने वाले लोग भी नहीं जानते कि वह एक अमेरिकी नागरिक हैं, जिनका जन्म अप्रवासी माता-पिता के संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा किसी अन्य देश की नागरिक नहीं हैं। इसलिए मुझे लगता है कि इस तरह की अफवाहों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। बहुत सारी गलत सूचना, दुष्प्रचार है। मतदान से पहले मुझे लगता है कि लोगों को कमोबेश यह समझ में आ गया है कि वे किसे वोट देंगे।

क्या एआई गलत सूचना का नया खतरा पैदा करता है?

2024 का राष्ट्रपति चुनाव पहला ऐसा चुनाव होगा, जिसमें जनरेटिव एआई एप्लीकेशन बड़े पैमाने पर उपलब्ध होंगे, जिससे यह आशंका बढ़ रही है कि यह " चुनावी गलत सूचना के खतरे को बढ़ा रहा है ", जहां मतदाताओं को धोखा देने के लिए "कोई भी व्यक्ति केवल एक साधारण टेक्स्ट प्रॉम्प्ट के साथ उच्च गुणवत्ता वाले 'डीपफेक' बना सकता है।" ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन के एक हालिया पॉडकास्ट में योगदानकर्ता ने एआई के खतरे के बारे में कहा: "हम ऐसी स्थिति में पहुंच सकते हैं जहां चुनाव का फैसला झूठे आख्यानों के आधार पर किया जाएगा।"