नई दिल्ली, संदीप राजवाड़े।

केंद्र सरकार के 23 जुलाई को पेश होने वाले मुख्य बजट में हेल्थ सेक्टर पर पहले की तुलना में ज्यादा फोकस होने की संभावना जताई जा रही है। माना जा रहा है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ाने वाला सेहत का बजट होगा। इसके साथ ही स्वास्थ्य को लेकर चल रही योजनाओं का दायरा बढ़ने से देश की बड़ी आबादी को इसका फायदा मिलेगा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि मुख्य बजट में हेल्थ सेक्टर के लिए जीडीपी का 2.5 फीसदी का हिस्सा हो, इससे इस सेक्टर में हेल्थ सर्विस को बढ़ावा मिलेगा और लोगों को राहत मिलेगी। इसके अलावा देश में हेल्थ सेक्टर में डिजिटलीकरण को और बढ़ाने की जरूरत है। इससे बड़े मेट्रो शहर से लेकर गांव तक में इलाज को आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इसके अलावा हर मरीज का डिजिटल हेल्थ कार्ड बनाने पर जोर देना होगा। फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट 2024- 25 में नौ से 14 वर्ष की लड़कियों के लिए सर्वाइकल कैंसर से बचाने के लिए कैंसर टीकाकरण अभियान चलाने की घोषणा की गई थी। मुख्य बजट पेश होने के बाद कैंसर टीकाकरण अभियान शुरू किया जा सकता है। इसके अलावा अंतिरम बजट में आयुष्मान भारत के तहत स्वास्थ्य सेवा कवरेज को बढ़ाकर आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिका को भी शामिल किए जाने की घोषणा की गई थी। टीकाकरण और मिशन इंद्रधनुष के प्रबंधन के लिए यू-विन प्लेटफॉर्म को पूरे देश में लागू किया जाना है।

यूनिवर्सल हेल्थ केयर की पहल की जाए, हेल्थ योजनाओं का पुनर्संरचना होः डॉ बाली, आईएमए

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के फाइनेंस सेक्रेटरी डॉ. क्षितिज बाली ने बताया कि आईएमए की तरफ से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को केंद्रीय बजट में हेल्थ सेक्टर को लेकर अपने सुझाव व मांग को लेकर पत्र लिखा गया है। इसमें यूनिवर्सल हेल्थ केयर (यूएचसी) की पहल की जाने की मांग की गई है। हमने मांग की है कि बजट में पीने के पानी और स्वच्छता जैसे स्वास्थ्य निर्धारकों को लेकर अलग से खर्च की व्यवस्था की जानी चाहिए। कुल जीडीपी का 2.5 फीसदी हेल्थ सेक्टर पर किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि वर्तमान में भारत में हेल्थ सर्विस (शासकीय व निजी) पर कुल व्यय जीडीपी का 3.8 फीसदी तक होने का अनुमान है। यह निम्न या मध्यम आय वाले देशों की जीडीपी के औसत स्वास्थ्य खर्च हिस्से से करीबन 5.2 फीसदी कम है। हमने मांग कि है कि सभी नागरिकों के लिए टैक्स फंडेड यूनिवर्सिल हेल्थकेयर हो। विकसित भारत-2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र को विवेकपूर्ण तरीके से बढ़ावा देना होगा और इसे उद्योग, शिक्षा और कृषि की तरह प्राथमिकता वाला क्षेत्र बनाना होगा। स्वास्थ्य देखभाल के लिए आवंटन को वर्तमान बजट में वर्तमान स्तर से 2.5% तक बढ़ाने की आवश्यकता है और 2030 तक इसे 5% तक बढ़ाने के लिए रोड मैप को परिभाषित किया जाना चाहिए। पीएमजेवाय में कवर होने वाले मरीजों के मॉडल को पुनर्संरचना करने की जरूरत है।

इलाज- दवा पर आउट ऑफ पॉकेट का बोझ कम करने की पहल की जाए

आईएमए की तरफ से लिखे गए पत्र में कहा गया है कि भारत के हेल्थ सिस्टम को बड़े पैमाने पर परिवार द्वारा किए जाने वाले खुद की जेब से खर्च जिसे मेडिकल भाषा में आउट ऑफ पॉकेट (ओओपी) कहा जाता है, उसका बोझ देश में अधिकतर परिवार को उठाना पड़ता है। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा प्रदान की जाने वाली सरकारी फंडिंग, वर्तमान में सभी स्वास्थ्य व्यय का लगभग एक-तिहाई है, जबकि राज्य कुल सरकारी स्वास्थ्य व्यय का लगभग दो-तिहाई हिस्सा रखते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की सुविधाओं की निरंतर कमी और निजी क्षेत्र की बढ़ोतरी ने परिवारों के लिए स्वास्थ्य देखभाल पर ओओपी लागत को बढ़ाया है। ओओपी का दो तिहाई हिस्सा मरीज के इलाज और उसकी दवा में खर्च हो जाता है। भारत में अधिकतर परिवारों को यह खर्च उठाना होता है, बीमारी और उसके इलाज के खर्च के कारण हर साल 55 लाख रुपए मिलियन से अधिक लोग गरीब हो जाते हैं।

निजी और सार्वजनिक अस्पतालों को मिलाकर भारत में अस्पतालों में मरीजों के लिए बेड का अनुपात जनसंख्या की तुलना में 1.3/1000 है। यह डब्ल्यूएचओ के निर्धारित मानदंडों अनुपात में कम है। मौजूदा समय में यह 1.7/1000 है। वर्तमान आबादी को पूरा करने के लिए 2.4 मिलियन बिस्तरों की अतिरिक्त आवश्यकता होगी। वर्तमान में उपलब्ध बेड में 70 फीसदी प्राइवेट अस्पतालों के हैं। निजी क्षेत्र में से अधिकांश अस्पताल जो वर्तमान में सेवा दे रहे हैं, वे 50 बिस्तरों से कम के अस्पताल हैं।

निवेश- रिसर्च पर फोकस बढ़ाना होगा, विकसित देशों की तरफ हेल्थ रोडमैप तैयार करेंः पद्मश्री डॉ सुधीर

इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के पूर्व एग्जीक्यूटिव कमेटी मेंबर और देश के जाने-माने न्यूरोलॉजिस्ट पद्मश्री डा. सुधीर शाह का कहना है कि आगामी बजट हेल्थ सेक्टर को बढ़ावा देने वाला हो सकता है। स्वास्थ्य क्षेत्र को लेकर पांच चीजों पर फोकस होना चाहिए। पहला यह है कि बड़े शहर से लेकर गांव तक के हर नागरिक को आसानी से स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो, इस तरह की व्यवस्था बनानी होगी। सरकार को यह इंतजाम करना होगा कि हर नागरिक को जो आर्थिक रूप से कमजोर है, उसे स्वास्थ्य बीमा दें, इसमें क्रीमीलेयर को छोड़कर सभी को कवर करना चाहिए। इसके लिए ऐसा सिस्टम बनाना होगा। इसे लेकर किसी कंपनी भी टाईअप कर सकती है। तीसरी चीज यह है कि पूरी दुनिया में विकसित देश और विकासशील देश के बीच फर्क यह है कि उनका हेल्थ सिस्टम है। हेल्थ केयर उनका हाईटेक होता है, इसे लेकर हमारे देश में भी इस पर काम करने की जरूरत है। इसके लिए हेल्थ से जुड़े स्टार्टअप को लेकर प्रमोट करना चाहिए। इसके लिए कुछ सब्सिडी स्कीम लाए, जैसे दूसरे उद्योग में सरकार की तरफ से दी जा रही है। हर सेक्टर में यह स्कीम है, लेकिन हेल्थ सेक्टर में यह सपोर्ट सिस्टम कम है, इसे बढ़ाना चाहिए।

चौथा हेल्थ सर्विसेज को बढ़ाने के लिए डिटिलाइजेशन को बढ़ाना होगा, इससे मरीज के साथ डॉक्टर को इलाज में बड़ी राहत मिलेगी। ऐसा सिस्टम बनाएं कि ब्लड टेस्ट समेत अन्य टेस्ट की रिपोर्ट जल्दी से जल्दी मिले, अभी सुबह टेस्ट कराओ तो शाम तक रिपोर्ट मिलती है। हर मरीज की हेल्थ हिस्ट्री ऑनलाइन डेटा में होनी चाहिए, आधार नंबर बताए और डॉक्टर को उसकी पूरी डिटेल मिल जाए। पांचवां इसके साथ ही मेरा मानना है कि हेल्थ सेक्टर में रिसर्च और इनोवेशन को लेकर बहुत काम करना होगा। नए-नए डॉक्टरों को एक या दो रिसर्च पेपर की अनिवार्यता होनी चाहिए, यह ग्राउंड बेस होना चाहिए। यह रिसर्च फालतू न हो, यह हेल्थ को लेकर नया और उसे बढ़ावा देने वाला हो। रिसर्च बढ़ने से हमारे यहां हेल्थ सिस्टम को सुधारने में बड़ी मदद मिलेगी। इनोवेशन बढ़ने से हम दुनिया के बड़े देशों से आगे निकल सकते हैं। रोबोटिक्स इंजीनियरिंग, नैनोटेक, आर्टिफिशियल इंटीलिजेंस, जेनेटिक इंजीनिटरिंग के साथ अन्य आधुनिक मेडिकल क्षेत्र में हमें बढ़ना होगा। उम्मीद है कि आने वाला बजट इन सेक्टरों को बढ़ाने वाला होगा। इससे हेल्थ सेक्टर को देश में बढ़ावा बनेगा।

फॉर्मा उद्योग बढ़ावा को लेकर उम्मीद, कच्चे माल को लेकर चीन की निर्भरता कम होः अरुण कुमार, शारदा यूनिवर्सिटी

शारदा यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ फॉर्मेसी के असिस्टेंट प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग आगामी केंद्रीय बजट को लेकर काफी उत्साहित है। यह उद्योग भारत सरकार के सहयोग से और आगे बढ़ने की उम्मीद कर रहा है। केंद्र सरकार की नीतियों के कारण दुनियाभर में फॉर्मा बिजनेस बढ़ रहा है। पिछले कुछ दशकों में भारत 200 से अधिक देशों में जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति कर रहा है। भारत में कैंसर, डायबिटीज, हाइपरटेंशन और अन्य हार्ट से जुड़ी बीमारियों के साथ अन्य गंभीर बीमारियों के बेहतर इलाज और रिसर्च के साथ उससे जुड़े विकास क्षेत्र में अधिक निवेश करना होगा। भारतीय उद्योग भी हर्बल दवाओं के निर्यात में उछाल की उम्मीद कर रहा है।

प्रोफेसर अरुण ने बताया कि देश का लक्ष्य दवा निर्माण और एलोपैथिक दवाओं की आपूर्ति का एक स्थायी ईकोसिस्टम को विकसित करने के साथ उत्पादन के लिए कच्चे माल को लेकर चीन जैसे अन्य देशों पर निर्भरता को कम करना होगा। फार्मास्युटिकल उद्योग देश की जीडीपी में और अधिक योगदान देना चाहेगा और आने वाले समय में योगदान को वर्तमान 2% से बढ़ाकर 3% पर होगा। इसके अलावा कंपनियों के अनुसंधान एवं विकास निवेश को प्रोत्साहित करना बेहद महत्वपूर्ण है। बजट से सस्ती कीमतों पर बेहतरीन गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करने में सक्षम स्थायी उद्योग ईकोसिस्टम के विकास के लिए बड़ी घोषणा की उम्मीद है।

2021-22 में सबसे ज्यादा, 2024-25 में पिछले दो साल की तुलना में कम

केंद्रीय बजट 2019-20 में स्वास्थ्य सेवा के लिए जीडीपी 0.29 और 2020-21 में यह 0.32 प्रतिशत आवंटित किया गया था। वहीं कोरोना काल के दौरान 2021-22 में इसे बढ़ाते हुए 0.41 प्रतिशत किया गया, जो पिछले 10 सालों में सबसे ज्यादा था। इसके बाद केंद्रीय बजट 2022-23 में इसमें गिरावट आई और इसे 0.36 फीसदी और 2023-24 में 0.29 फीसदी रखा गया। 2024-25 के अंतरिम बजट में हेल्थ सर्विस के लिए जीडीपी का 0.27 प्रतिशत है।

सर्वाइकल कैंसर को रोकने की पहल होगी शुरू, सात करोड़ लड़कियों को लगेगा टीका

सर्वाइकल कैंसर से भारत में हर साल करीबन 1.20 लाख महिलाएं पीड़ित होती हैं और इसके कारण 77 हजार महिलाओं की मौत होती है। दुनियाभर में सर्वाइकल कैंसर के मरीजों में भारत के 20 फीसदी है। देश में सर्वाइकल कैंसर की जांच महज एक फीसदी महिलाएं कराती हैं। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि कम से कम 70 प्रतिशत महिलाओं की सर्वाइकल कैंसर की जांच होनी चाहिए। ऐसे में इस बीमारी से बचने और इसके रोकथाम के लिए अब भारत में कोविड वैक्सीनेशन की तरह सर्वाइकल कैंसर वैक्सीनेशन अभियान चलाया जाएगा। आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (एनआईसीपीआर) की डायरेक्टर डॉ शालिनी सिंह ने बताया कि अंतिरम बजट में हुई घोषणा के बाद सभी राज्यों से इस आयुवर्ग की कितनी लड़कियों को टीका लगेगा, इसे लेकर डेटा मांगा गया है। इसे लेकर अभी केंद्र से निर्देश आने के बाद अभियान शुरू किया जाएगा। डॉ. शालिनी ने बताया था कि सर्वाइकल कैंसर के वैक्सीन के पहले फेज में टीके की उपलब्धता के अनुसार इसके टीकाकरण की योजना बनाकर शहर से गांव तक नौ से 14 वर्ष तक की लड़कियों का वैक्सीनेशन किया जाएगा। अलग अलग फेज में यह अभियान चलाया जाएगा। लोकसभा चुनाव के बाद इस अभियान के शुरू होने की संभावना है। 2024-25 में देश में इस आयुवर्ग की करीबन 6.8 करोड़ लड़कियों को कैंसर वैक्सीन लगाया जाएगा। अभी सिक्किम में दो डोज वाला सर्वाइकल कैंसर का टीका लगाया जा रहा है, बताया जा रहा है कि सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा बनाई जा रही कैंसर वैक्सीन का एक डोज लगाया जा सकता है।

2016 से सिक्किम में हो रहा कैंसर टीकाकरण योजना, 97% वैक्सीनेशन हो चुका

सिक्किम में राज्य सरकार 2016 से नौ से 14 उम्र तक की लड़कियों के लिए सर्वाइकल कैंसर टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। सिक्किम ने स्कूल आधारित टीकाकरण के माध्यम से इस आयुवर्ग के लिए एचपीवी वैक्सीन का सफल मॉडल पेश किया है। आंकड़ों के अनुसार अब तक 97 फीसदी लड़कियों में वैक्सीनेशन किया जा चुका है। यहां दो डोज वाले गार्डासिल सर्वाइकल कैंसर वैक्सीन लगाई गई।

नौ से 14 की उम्र सबसे कारगार, 26 साल की उम्र तक लगा सकते हैं टीका

डॉक्टरों के अनुसार सर्वाइकल कैंसर वैक्सीन (ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) टीका लगाने की सबसे उचित उम्र 11 या 12 साल है, लेकिन टीकाकरण 9 साल से शुरू किया जा सकता है और 26 की उम्र तक लगाया जा सकता है। कुछ मामलों में विशेषज्ञों की अनुमति से इसे उस उम्र के बाद लगाने की अनुमति दी जाती है। अमेरिका में लड़कों और पुरुषों के लिए एचपीवी वैक्सीन (गार्डासिल 9) की सिफारिश की जाती है, लेकिन भारत में अभी तक इसकी अनुमति नहीं है।