नई दिल्ली, जागरण प्राइम । अगर आप धूम्रपान नहीं करते हैं और आपको लगता है कि आप ब्रेन स्ट्रोक जैसी बीमारी से बचे रहेंगे, तो थोड़ा सावधान हो जाइये। हाल ही लैंसेट में छपे एक अध्ययन में सामने आया है कि बढ़ता वायु प्रदूषण धूम्रपान की तरह ही ब्रेन स्ट्रोक का बड़ा कारण बन रहा है। अध्ययन में पाया गया कि प्रदूषित वायु में ज्यादा समय तक रहने से मस्तिष्क और इसे ढंकने वाले ऊतकों के बीच रक्त वाहिकाएं फट जाती हैं। इससे ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन के मुताबिक 1990 से 2021 के बीच, दुनिया भर में ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में 70 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। वहीं स्ट्रोक से मरने वालों की संख्या 44 फीसदी तक बढ़ी है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि 2021 में 84% मामलों में ब्रेन स्ट्रोक का प्रमुख कारण वायु प्रदूषण, ज्यादा शारीरिक वजन, उच्च रक्तचाप, धूम्रपान और नियमित व्यायाम न करना है। ऐसे में इन बातों का ध्यान रख ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में काफी कमी लाई जा सकती है।

अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन में मुख्य शोध वैज्ञानिक और इस शोध की सह-लेखिका डॉ. कैथरीन ओ. जॉनसन के मुताबिक, "एशिया और अफ्रीका के कई देशों में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा है। बढ़ती गर्मी, वायु प्रदूषण, लोगों में बढ़ता मधुमेह, ब्लड प्रेशर ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को और बढ़ा रहे हैं। इन देशों की युवा आबादी में आने वाले समय में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा और बढ़ने की आशंका है। 2021 में, स्ट्रोक के लिए पांच प्रमुख वैश्विक जोखिम उच्च सिस्टोलिक रक्तचाप, मधुमेय, पर्टिकुलेट मैटर वायु प्रदूषण, धूम्रपान और उच्च एलडीएल कोलेस्ट्रॉल  रहे। इनमें आयु, लिंग और स्थान के अनुसार काफी भिन्नता भी देखी गई।

अध्ययन में पहली बार पाया गया कि, सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर सबअरेक्नॉइड रक्तस्राव के लिए बड़ा खतरा है। ये ब्रेन स्ट्रोक के इस प्रकार से होने वाली मृत्यु और विकलांगता में 14% का योगदान देता है, जो धूम्रपान से होने वाले ब्रेन स्ट्रोक के मामलों के बराबर है। वायु प्रदूषण कई तरह से हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाता है। लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर आदर्श त्रिपाठी कहते हैं कि, हवा में प्रदूषण के दौरान कई ऐसे केमिकल होते हैं तो दिगाम में न्यूरो इंफ्लेमेशन के खतरे को बढ़ाते हैं। वहीं हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर नसों और धमनियों में फैट को जमा करता है जिससे खून के प्रवाह में बाधा पहुंचती है। ब्रेन स्ट्रोक के कारणों को प्रमुख रूप से दो तरह से बांटा जाता है। एक, धूम्रपान न करके, वायु प्रदूषण से दूर रहके, वजन को नियंत्रित करके, ज्यादा तनाव न लेकर और नियमित व्यायाम कर खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। वहीं दूसरे ऐसे कारण हैं जिन्हें कम नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर दक्षिण एशिया के लोगों में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा दुनिया के अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है। किसी व्यक्ति में जेनेटिक हिस्ट्री हो तो उसे खतरा बना रहता है। पुरुषों में महिलाओं की तुलना में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है। वहीं हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि साफ हवा में रहने वाले या गांवों में रहने वाले लोगों की तुलना में शहरों में या प्रदूषित वातावरण में रहने वाले लोगों को डिमेंशिया का खतरा आठ से दस गुना तक ज्यादा होता है।

अध्ययन के मुताबिक, दुनिया में बढ़ती गर्मी भी ब्रेन स्ट्रोक के बढ़ते मामलों के पीछे एक बड़ी वजह है। 1990 से 2021 के बीच बढ़ती गर्मी ने स्ट्रोक के खतरे को 72% तक बढ़ाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया भर में बढ़ती गर्मी के चलते आने वाले समय में ब्रेन स्ट्रोक के मामले में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा सकती है। ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन अकेडेमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल डॉक्टर ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि दिमाग एक बेहद संवेदनशील अंग है। वायु प्रदूषण से फेफड़ों में दूषित हवा पहुंचती है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 कण फेफड़ों की लाइनिंग के जरिए खून तक पहुंच जाते हैं। यहां से दिल तक और दिल से दिमाग तक पहुंच जाते हैं। ये प्रदूषक कण दिमाग की नसों में क्लॉटिंग पैदा कर देते हैं जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। पर्यावरण में बढ़ती गर्मी रक्त के प्रवाह पर असर डालती है। यदि गर्मी ज्यादा है तो दिमाग में क्लॉटिंग और उससे स्ट्रोक होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।

दिल्ली में हर साल सर्दियां शुरू होने से पहले गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या देखने में आती है। इसका बड़ा कारण दिल्ली के यमुना के लोवर लेवल पर होना है। इसके चलते यहां आसपास के इलाकों की भी प्रदूषित हवा यहां आ कर जमा हो जाती है। इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज के डिप्टी मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉक्टर ओम प्रकाश कहते हैं कि हवा में प्रदूषण बढ़ता है और लम्बे समय तक बना रहता है तो लोगों में तनाव, गुस्सा, घबराहट और डिप्रेशन जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। प्रदूषण के चलते ही बहुत से लोगों में नींद न आने की समस्या बढ़ी है। बहुत से मरीज ऐसे सामने आ रहे हैं जिनमें या तो नींद का समय कम हो गया है या गहरी नींद नहीं आती है। ऐसे में मानसिक तनाव बढ़ जाता है, काम में मन नहीं लगता है। हवा में प्रदूषण बढ़ने के साथ ही ऐसे मरीजों की संख्या भी बढ़ती है। प्रदूषण की समस्या से बचने के लिए लोगों को सर्जिकल मास्क लगाना चाहिए। ये मास्क PM2.5 जैसे कणों को रोक देता है। मास्क लगाने से कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया के संक्रमण से भी बचाव होता है।

वायु प्रदूषण के साथ ही अन्य प्रदूषण भी मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज कन्नौज के प्रोफेसर और मनोचिकित्सक डॉक्टर ओम प्रकाश सिंह कहते हैं कि चाहे ध्वनि प्रदूषण हो या वायु प्रदूषण, ये इंसानी दिमाग पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। हवा में प्रदूषण का स्तर, खास तौर पर पार्टिकुलेट मैटर बढ़ने पर व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। उसे गुस्सा भी ज्यादा आता है। सबसे अधिक मुश्किल तब होती है जब हवा प्रदूषण ज्यादा होने पर व्यक्ति की फिजिकल एक्टिविटी कम हो जाती है। बाहर कम निकलने या घर में ज्यादा देर तक फोन या किसी अन्य स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिताने से दिमाग में स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता है। ऐसे में नींद न आने या बार-बार नींद टूटने की समस्या होती है। वहीं व्यक्ति की सहनशक्ति भी कम हो जाती है और उसे बहुत जल्द गुस्सा आने लगता है। लम्बे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने पर डिप्रेशन का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे में हवा में प्रदूषण बढ़ने पर भी व्यक्ति को शारीरिक तौर पर सक्रिय रहना जरूरी है। भले बाहर कम निकलें, पर घर पर एक्सरसाइज जरूर करें। थोड़े समय के लिए ही सही बाहर निकलें। ध्यान रहे मास्क जरूर लगा लें।