नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।

बीते कुछ सालों में शिक्षा बजट में सुधार हुआ है। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू कर दी गई है। इसमें कई सकारात्मक बदलाव किए गए हैं। इस बजट में ध्यान इस बात पर होगा कि कैसे कुशल जनशक्ति को अधिक रोजगार मुहैया किया जाए। साथ ही देश भर की शिक्षा व्यवस्था में आए बदलाव से लेकर डिजिटल शिक्षा को तेजी से अपनाने के चलते हमारे नौजवानों की शिक्षा के स्तर में भी इजाफा हुआ है। तकनीक छात्रों को पूरी क्षमता से पढ़ाई करने के लिए सशक्त बना रही है। वहीं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने जॉब मार्केट में हलचल मचा दी है। ऐसे में डिजिटल इनक्लूजन और तकनीक को कैसे प्रभावी बनाया जाए इस बारे में भी घोषणा होने की उम्मीद है। यही नहीं शिक्षा सेक्टर में जीएसटी में भी राहत देने की इंडस्ट्री की मांग है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में कॉलेजों और स्कूल का बढ़ावा देने की भी बेहद आवश्यकता है।

ग्रेडिंग डॉट कॉम की संस्थापक ममता शेखावत कहती है कि फरवरी 2024 में एक अंतरिम बजट की घोषणा की गई थी। उच्च शिक्षा के लिए कुल ₹47,619.77 करोड़ आवंटित किए गए थे। साथ ही देखा जा रहा है कि शिक्षा बजट हर साल बढ़ता जा रहा है। पिछले वर्षों में महिलाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। हालाँकि, भारत में शिक्षा क्षेत्र के विकास में एनईपी 2020 और एनसीएफ 2023 जैसी नीतियां महत्वपूर्ण हैं। यह उम्मीद की जाती है कि जीएसटी से शिक्षा में कमी आएगी, जिससे ऑनलाइन शिक्षण में वृद्धि होगी। 2023 के बजट में सरकार ने 4.0 उद्योग पाठ्यक्रम विकसित करने की पहल की।

शिक्षा और कौशल विकास पर दें अधिक बजट

एनआईआईटी लिमिटेड के सीईओ पंकज जठार कहते हैं कि हम केंद्रीय बजट 2024-2025 में शिक्षा और कौशल विकास के लिए बजटीय आवंटन में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 6% तक की उल्लेखनीय वृद्धि की आशा करते हैं। इससे एनईपी 2020 का उद्देश्य सार्थक होगा। सरकार ने अभी तक शानदार काम किया है। शिक्षा और कौशल को बढ़ावा देने के लिए आशा है कि आगामी बजट और भी अधिक अवसर पैदा करने वाला होगा। हम ऐसी नीतियों की आशा करते हैं जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी का समर्थन करती हो। स्थायी रोजगार के अवसरों पर ध्यान देने से न केवल व्यक्तियों का उत्थान होगा बल्कि हमारे देश की आर्थिक वृद्धि भी होगी।

दिल्ली कॉलेज ऑफ फायर एंड सेफ्टी इंजीनियरिंग के निदेशक जिले सिंह लाकड़ा कहते हैं कि देश भर के टियर 2 और 3 शहरों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ और सस्ती हो। इससे आम आदमी अधिक तादाद में प्रोफेशनल कोर्सों में दाखिला ले सकेंगे। स्किल बेस्ड एजुकेशन को बढ़ावा मिलें। पढ़ाई और प्रैक्टिकल अनुभव का तालमेल छात्रों को नौकरी के लिहाज से बेहतर तैयार करेगा। यही नहीं शिक्षक-छात्र अनुपात को भी दुरूस्त करने की आवश्यकता है। लाकड़ा कहते हैं कि शिक्षा जैसी बुनियादी चीज़ के लिए मौजूदा 18 प्रतिशत कर स्लैब अनुपातहीन रूप से अधिक है। इस तरह की वित्तीय राहत इन परिवारों द्वारा शिक्षा पर खर्च की जाने वाली शुद्ध डिस्पोजेबल आय को काफी हद तक कम कर देगी, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अधिक सुलभ हो जाएगी।

एआई आधारित शिक्षा और टेक्नोलॉजी पर बढ़ें बजट

जारो एजुकेशन की सीईओ रंजीता रमन कहती है कि टेक्नोलॉजी आधारित शिक्षा पर ध्यान देने की जबरदस्त संभावना है। ऑनलाइन उच्च शिक्षा और अपस्किलिंग स्पेस में निवेश में वृद्धि एक गेम-चेंजर हो सकती है। एआई की क्षमता को अनलॉक करने की जरूरत है। एआई, जनरेटिव आई, ऑगमेंटेशन रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी छात्रों के लिए विकल्प बढ़ाती है। इंडस्ट्री और एकेडमिक्स को साथ मिलकर काम करना होगा ताकि शिक्षा के क्षेत्र में आ रहे बदलावों को बेहतर तरीके से आगे बढ़ाया जा सकें। एक बेहतर बजट भारत को ऑनलाइन शिक्षा में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने की शक्ति रखता है, जो शिक्षार्थियों को न केवल सीखने के लिए बल्कि डिजिटल युग में आगे बढ़ने के लिए सशक्त बनाता है। यह शिक्षा सेक्टर के लिए एक अद्भुत समय है।

नेक्स्ट मीडिया के सीईओ अनस जावेद कहते हैं कि आगामी बजट में उच्च स्तरीय हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर जैसे एआई बुनियादी ढांचे में निवेश करने की आवश्यकता है। एआई को अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए पारदर्शी योजनाओं के माध्यम से सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। अनुसंधान एवं विकास पर अधिक जोर देकर एआई अनुसंधान के लिए वित्त पोषण में वृद्धि, जैसे कि शैक्षणिक संस्थान, इनोवेशन सेंटर को आगे बढ़ाने से रोजगार के नए अवसर बनेंगे। 2025 तक एक करोड़ युवाओं को हरित कौशल से लैस करना है, इन कार्यक्रमों को कौशल भारत मिशन के साथ सहजता से एकीकृत करना है। ऐसा करने से न केवल तेजी से बढ़ती हरित अर्थव्यवस्था के भीतर नौकरियों की भरमार होगी, बल्कि यह भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।"

जिले सिंह लाकड़ा कहते हैं कि शिक्षा पर भारत का वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद व्यय 4.6% है, इसलिए, हम आगामी बजट का इस उम्मीद के साथ इंतजार कर रहे हैं कि यह हमारे युवाओं के भविष्य के लिए एक मजबूत नींव स्थापित करेगा। तेजी से हो रही तकनीकी प्रगति के साथ, छात्रों को अपने सुरक्षित भविष्य के लिए खुद को अपडेट रखने की जरूरत है। इसलिए, अपस्किलिंग पाठ्यक्रमों के लिए करों में कमी से नवाचार, समावेशिता, आवंटन और पहुंच के अवसरों को बढ़ावा मिलेगा।" लाकड़ा का मानना है कि केंद्रीय बजट 2024 से देश के शैक्षिक ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव आने की उम्मीद है। इसमें प्रौद्योगिकी एकीकरण पर अधिक जोर दिया जा सकता है।

विदेशी यूनिवर्सिटी से साझेदारी और विदेशी छात्रों के लिए कोर्स

ममता शेखावत कहती है कि पिछला दशक विदेश में अध्ययन के इच्छुक लोगों के लिए फायदेमंद साबित हुआ है। इसके अलावा, प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय यात्रा के साथ भारत के राजनयिक संबंधों में सुधार हो रहा है, प्रत्येक यात्रा का अंत सकारात्मक रहा है। इसके अलावा, वैश्विक संस्थानों के पास एक मजबूत अनुसंधान संस्कृति है। भारतीय शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई विश्वविद्यालयों ने अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर दोहरे कार्यक्रम शुरू किए हैं। इन कार्यक्रमों में, छात्र भारत में एक वर्ष तक अध्ययन कर सकते हैं और फिर अगले कुछ वर्ष विदेश में बिता सकते हैं। इससे उन्हें अनुसंधान और बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी के बीच अंतर को रोकने में मदद मिलती है। हालाँकि, भारतीय छात्रों ने 2022 में विदेशी शिक्षा पर लगभग 47 बिलियन डॉलर खर्च किए, जो 2025 में बढ़कर 70 बिलियन डॉलर हो जाएगा। इसका मतलब है कि इन फंडों से भारतीय अर्थव्यवस्था को भी फायदा हो सकता है। इसके अलावा, विदेश जाने वाले छात्र अपनी बुद्धि को तेज करके, उन्हें शीर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों में रखकर और वैश्विक सीईओ के रूप में उनका प्रतिनिधित्व करके भारतीय बौद्धिकता का प्रसार करेंगे।

ग्रामीण भारत का बजट

दिल्ली कॉलेज ऑफ फायर एंड सेफ्टी इंजीनियरिंग के निदेशक जिले सिंह लाकड़ा बताते हैं कि भारत में स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या अधिक है। इस आंकड़े का विनाशकारी बहुमत ग्रामीण भारत का है। ग्रामीण इलाकों में चल रही शिक्षा प्रणाली के उत्थान की जरूरत है। बजट 2024 में वर्तमान शैक्षिक रुझानों पर जोर दिया जाना चाहिए और कौशल, अपस्किलिंग और रीस्किलिंग से उद्योग की जरूरतों को पूरा किया जाना चाहिए। इसलिए, ग्रामीण भारत में शिक्षा तक पहुंच प्रदान करना, नवाचार को प्रोत्साहित करना और वैश्विक चुनौतियों को हल करने की योग्यता प्रदान करना प्रमुख लक्ष्य हैं। इन रणनीतिक लक्ष्यों से न केवल शिक्षा क्षेत्र को लाभ होगा बल्कि भविष्य के नेताओं को भी बढ़ावा मिलेगा जो कल भारत को कौशल-आधारित टिकाऊ राष्ट्र की दिशा में ले जा सकते हैं।।

शारदा विश्वविद्यालय के शारदा स्कूल ऑफ बिजनेस स्टडीज के प्रोफेसर और चेयरपर्सन प्लेसमेंट डा. हरि शंकर श्याम कहते हैं कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शिक्षा के अंतर को कम करने के लिए अगले बजट में ग्रामीण स्कूलों में बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए धन बढ़ाया जाना चाहिए। शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए बेहतर शिक्षक तैयारी कार्यक्रम और कक्षा प्रौद्योगिकी एकीकरण की आवश्यकता है। योग्य छात्रों के लिए अधिक वित्तीय सहायता और छात्रवृत्ति भी समावेशी शिक्षा की गारंटी दे सकती है और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दे सकती है।

वह कहते हैं कि शहरी और ग्रामीण समुदायों के बीच शैक्षिक संसाधनों में अंतर मुख्य बाधाओं में से एक है। सभी क्षेत्रों में छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करना, रचनात्मक शिक्षण रणनीतियों को प्रोत्साहित करना और व्यावसायिक मांगों के साथ पाठ्यक्रम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण में सुधार करना में आवंटन बढ़ाना चाहिए।

डिजिटल डिवाइड को पाटने की कोशिश

शेखावत कहती है कि महामारी से उत्पन्न डिजिटल विभाजन को पाटने की तत्काल आवश्यकता है। उस दौरान, इंटरनेट सूचनाओं से भर गया था, जिससे सूचना-महामारी फैल गई। इतना ही नहीं बल्कि साइबर अपराध भी बढ़ गए हैं, इसलिए, युवाओं को घटनाओं से अवगत कराने के लिए डिजिटल साक्षरता अभियान शुरू करने की आवश्यकता है। इससे उन्हें बुद्धिमानीपूर्ण निर्णय लेने में भी मदद मिलेगी। ऐसा देखा जाता है कि सोशल मीडिया के कारण युवाओं के निर्णय आसानी से प्रभावित और हेरफेर हो जाते हैं।

उच्च शिक्षा संस्थानों को विकसित करने की आवश्यकता

ममता शेखावत कहती है कि यह भी देखा गया है कि हर साल 11.11 लाख करोड़ रुपये अप्रयुक्त रह जाते हैं, जिनका उपयोग समझदारी से भारत के कल्याण के लिए किया जा सकता है। साथ ही पिछले महीने पीएम मोदी ने नालंदा यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय परिसर का उद्घाटन किया था। इसकी जड़ें पारंपरिक शिक्षा में गहरी हैं, जहां व्यावहारिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती थी। इसलिए, हम उम्मीद करते हैं कि मोदी 3.0 कैबिनेट उच्च शिक्षा संस्थानों को विकसित करने के लिए कुछ धनराशि आवंटित करेगी जहां अनुसंधान और व्यावहारिक शिक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है।

अंतरिम बजट में आवंटन

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के तहत उच्च शिक्षा और स्कूल शिक्षा विभागों के लिए आवंटन में वृद्धि की गई है। पीएम स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम एसएचआरआई) जैसी योजनाओं को पिछले बजट की तुलना में लगभग 50% अधिक आवंटन प्राप्त हुआ था।

स्कूल शिक्षा विभाग के लिए कुल आवंटन ₹73,008.10 करोड़ था। पिछले बजट में यह ₹68,804.85 करोड़ था, जबकि संशोधित अनुमान में यह राशि ₹72,473.80 करोड़ थी। 2022-23 में वास्तविक व्यय ₹58,639.56 करोड़ था। प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (पीएम पोषण), जिसे पहले मिड-डे मील योजना के रूप में जाना जाता था, को ₹12,467.39 करोड़ का परिव्यय प्राप्त हुआ। पीएम श्री के लिए आवंटन ₹6,050 करोड़ रहा था।

उच्च शिक्षा विभाग के लिए कुल आवंटन ₹47,619.77 करोड़ रहा था। 2023 के बजट में यह ₹44,094.62 करोड़ था। 2022-23 में वास्तविक व्यय ₹38,556.80 करोड़ था। भारतीय ज्ञान प्रणाली के लिए आवंटन आधा कर दिया गया था और पीएम गर्ल्स हॉस्टल के लिए आवंटन पिछले बजट में ₹10 करोड़ से घटकर ₹2 करोड़ रह गया था। छात्रों को कुल वित्तीय सहायता पिछले बजट में ₹1,954 करोड़ से घटकर ₹1,908 करोड़ रह गई।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के लिए कुल आवंटन पिछले बजट में ₹5,780 करोड़ से घटकर ₹2,900 करोड़ रह गया था। प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (पीएमयूएसएचए) के लिए आवंटन ₹1,814.94 करोड़ घोषित किया गया था।