आस्ट्रेलिया से मसूर दाल का आयात बढ़ा, रूस-अमेरिका से भी सप्लाई, जानकारों का मानना- दाम भी ज्यादा नहीं बढ़ेंगे
कनाडा से बढ़ते तनाव का असर दोनों देश के बीच होने वाले व्यापारिक रिश्तों पर भी हो सकता है। कनाडा से भारत बड़ी मात्रा में मसूर दाल आती है लेकिन पिछले कुछ सालों से आस्ट्रेलिया से सप्लाई बढ़ी है। इसके अलावा रूस-अमेरिका से अब मसूर दाल आयात होने लगा है। जानकारों के अनुसार अगर रोक लगी तो भारत में दाल की किल्लत नहीं होगी न ही दाम बहुत ज्यादा बढ़ेंगे।
संदीप राजवाड़े, नई दिल्ली।
कनाडा के साथ भारत के बढ़ते तनाव के बाद अब दोनों देश के बीच व्यापार पर भी इसका असर होने की आशंका जताई जा रही है। भारत अपनी खपत की मसूर दाल का बड़ा हिस्सा कनाडा से आयात करता है। अब सुगबुगाहट होने लगी है कि कहीं दोनों देश के बीच तनाव बढ़ने से मसूर दाल की कमी तो नहीं हो जाएगी। कहीं मसूर दाल के दाम तो नहीं बढ़ जाएंगे। जागरण प्राइम ने इस बारे में दाल कारोबार से जुड़े लोगों से बात की। उनका कहना है कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद दोनों देश के बीच राजनयिक तनाव भले देखने को मिल रहा है, लेकिन व्यापार पर रोक की आशंका न के बराबर है।
भारत में मसूर दाल की सालाना खपत करीबन 25 लाख टन है। भारत में करीब 12-14 लाख टन मसूर का उत्पादन होता है, शेष का आयात किया जाता है। कनाडा से भारत अपनी खपत का 20-25 फीसदी मसूर आयात करता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि पिछले दो सालों के दौरान भारत का आस्ट्रेलिया व तुर्किये से मसूर आयात बढ़ा है, जबकि कनाडा से कम हुआ है। इसके अलावा भारत के पास मसूर की सप्लाई के विकल्प के रूप में रूस और अमेरिका जैसे देश भी मौजूद हैं, जिनसे पिछले छह महीनों के दौरान मसूर का आयात बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत या कनाडा सरकार की तरफ से रोक लगी भी तो मसूर की किल्लत देश में नहीं होगी। आज की तुलना में कुछ दाम जरूर बढ़ सकते हैं, लेकिन दूसरे देशों के विकल्प होने से स्थिति जल्द सामान्य हो जाएगी।
कनाडा से बड़ी मात्रा में आयात लेकिन निर्भरता पहले से कम
दाल कारोबार के विशेषज्ञ और आईग्रेन इंडिया के डायरेक्टर राहुल चौहान ने बताया कि भारत कनाडा से मसूर का बड़ा आयातक है। हमारी खपत का ज्यादा हिस्सा वहां से आता है, लेकिन पिछले दो साल में आस्ट्रेलिया जैसे देशों से मसूर आयात बढ़ा है। पहले भारत कनाडा पर मसूर के लिए पूरी तरह से निर्भर था। हमारे देश में 14-15 लाख टन मसूर का उत्पादन होता है पर देश में इसकी खपत 24-25 लाख टन के आसपास है। अगर दोनों देशों के बीच चल रहा तनाव बढ़ा तो आयात की कमी जरूर हो सकती है। पहले अमेरिका का मसूर कनाडा होते हुए भारत आता था, अगर किसी तरह का संबंध बिगड़ा तो कनाडा का मसूर अमेरिका होते हुए भारत भेजा जाएगा। अमेरिका में पिछले साल ढाई लाख टन मसूर का उत्पादन हुआ, उसमें से करीबन एक लाख टन भारत को आयात किया गया।
आस्ट्रेलिया, रुस, अमेरिका, तुर्किये से बढ़ा आयात
एग्री फार्मर ट्रेड एसोसिएशन के अध्यक्ष और दाल कारोबार के जानकार सिलीगुड़ी एसोसिएट्स के संचालक सुनील बलदेवा ने कहा, उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच तनाव का व्यापार संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। भारत ने कनाडा से 2017 में मटर के आयात पर रोक लगा दी थी। उनके यहां करीबन 35 लाख टन मटर का उत्पादन होता है, भारत उनके लिए बड़ा बाजार रहा है। आज तक उस पर बैन लगा हुआ है। कई बार कनाडा सरकार की तरफ से रोक हटाने का अनुरोध किया गया। भारत कनाडा की मसूर दाल का सबसे बड़ा आयातक है। यह जरूर है कि अगर तनाव बढ़ा तो मसूर आयात पर असर होगा, लेकिन भारत के पास आस्ट्रेलिया, तुर्किये, रूस, अमेरिका जैसे देशों के विकल्प बढ़ गए हैं।
सुनील बताते हैं कि हमारे यहां फरवरी और कनाडा में अक्तूबर में मसूर की नई फसल आती है। इसके बाद वहां से आयात शुरू हो जाता है। अगले तीन-चार महीने के दौरान मसूर के आयात को लेकर अगर कनाडा से कोई दिक्कत नहीं आई तो फरवरी के बाद हमारे यहां नई फसल से बड़ी राहत मिल जाएगी। इसके दूरगामी परिणाम को लेकर फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह जरूर है कि आयात पर कमी या रोक लगी तो कुछ फर्क आएगा। इससे दाम में तेजी तो नहीं आएगी क्योंकि अभी भारत में दाल के दाम बढ़े हुए ही हैं।
अभी भारत में कनाडा से करीबन 60 फीसदी, आस्ट्रेलिया से 30 फीसदी और 10 फीसदी रुस, तुर्किये, अमेरिका से मसूर आयात होता है। भारत में उत्पादन और खपत के अंतर का जो मसूर आयात किया जाता है, उसका करीबन के 25 फीसदी हिस्सा कनाडा से आता है। यह जरूर है कि भारत में बाहरी देशों से जो मसूर आता है, उसका लगभग 60 फीसदी कनाडा का होता है।
कनाडा की तुलना में आस्ट्रेलिया से बढ़ा आयात
केडिया एडवाइजरी के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय केडिया ने बताया कि भारत और कनाडा देशों के बीच खालिस्तान को लेकर बढ़े राजनयिक तनाव को देखते हुए व्यापार संबंधों पर असर को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। कनाडा से भारत मसूर की बड़ी मात्रा में आयात करता है, जबकि अन्य सामान भी आयात होते हैं। भारत कनाडा को फॉर्मेसी प्रोडक्ट, मशीनरी, बासमती चावल, आयरन स्टील, आर्गेनिक केमिकल्स, रेडिमेड कपड़े समेत अन्य कई उत्पाद निर्यात करता है। दोनों देशों के बीच 2022-23 में आयात व निर्यात का व्यापार करीबन आठ अरब डालर के आसपास रहा।
अजय ने बताया कि मसूर दाल का भारत में उत्पादन जरूरत का करीब आधा है। पिछले कुछ सालों के दौरान आस्ट्रेलिया में मसूर का प्रोडक्शन बढ़ा है। इस वित्त वर्ष अप्रैल-जुलाई के दौरान कनाडा की तुलना में आस्ट्रेलिया से ज्यादा आयात किया गया। कनाडा से 1.90 लाख टन तो आस्ट्रेलिया से 2.67 लाख टन से ज्यादा मसूर भारत आया। आस्ट्रेलिया से मसूर आयात लगातार बढ़ रहा है। इस कारण अब कनाडा पर मसूर को लेकर भारत की निर्भरता नहीं रही है, अन्य देशों से यह बड़ी मात्रा में आयात होने लगा है।
कनाडा का भारत में इंफ्रा, ऊर्जा, टेक्नोलॉजी- फाइनेंस सर्विस में निवेश
कनाडा और भारत के बीच बीते पिछले वित्त वर्ष में 8 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। कनाडा की तरफ से भारत में कनाडाई पेंशन फंड का बड़ा निवेश है। इनकी तरफ से इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी, फाइनेंशियल सर्विस और रिन्यूएबल एनर्जी प्रमुख सर्विस में निवेश किया गया है। मुंबई स्थित कोटक महिंद्रा बैंक में कनाडाई पेंशन फंड की हिस्सेदारी है। इसके अलावा 70 से ज्यादा सार्वजनिक कारोबार के फर्मों में इसकी हिस्सेदारी है। जानकारों का मानना है कि दोनों देशों के बीच बिगड़ते रिश्तों के बाद भी व्यापारिक गतिविधियां चलती रहेंगी। इसमें कुछ फर्क जरूर आएगा, लेकिन उम्मीद है कि बंद या पूरी तरह से रोक जैसे हालात नहीं होंगे।
कनाडा में तीन लाख से ज्यादा छात्र कर रहे हैं पढाई
भारत से बड़ी संख्या में कनाडा छात्र पढ़ाई करने जाते हैं। कनाडाई ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन के आकंड़ों के अनुसार पिछले वर्ष 2022 में भारत से करीब तीन लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए कनाडा आए। यहां दुनियाभर से आठ लाख से ज्यादा छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें भारतीय की संख्या 40 फीसदी 35-40 फीसदी भारतीय छात्रों की संख्या है। इसे लेकर भी विशेषज्ञों का कहना है कि कनाडा में भारतीय छात्र मेडिकल, फॉर्मेसी, फाइनेंस और टेक्नोलॉजी से जुड़े कोर्स की पढ़ाई करने आते हैं। दोनों देशों के बीच तनाव को लेकर यह जरूर हो सकता है कि इस वर्ष कनाडा जाने वाले छात्रों की संख्या कम रह सकती है।