भारत में ब्राजील के राजदूत केनेथ दा नोबरेगा का मानना है कि भारत की अध्यक्षता में जी20 में ग्लोबल साउथ के हितों को बढ़ावा देना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों में साझा घोषणापत्र को अहम मानते हुए उनका कहना है कि अगर घोषणापत्र जारी नहीं हुआ होता तो जी20 के अस्तित्व पर सवाल उठने लगते। दिसंबर से ब्राजील जी20 का अध्यक्ष होगा और नोबरेगा का कहना है कि भारत के पांच प्रयासों को ब्राजील आगे बढ़ाना चाहेगा। ये हैं- जलवायु परिवर्तन, ग्रीन इकोनॉमी, डेवलपमेंट फाइनेंसिंग, लैंगिक समानता और ग्लोबल संस्थानों में सुधार। नोबरेगा के अनुसार, संभवतः भौगोलिक दूरी के कारण पहले दोनों देशों में व्यापार कम था, लेकिन हालात तेजी से बदल रहे हैं। ब्राजील के बिजनेस समुदाय की भारत में रुचि बढ़ी है। नवंबर में वहां से तीन उच्चस्तरीय मिशन यहां आने वाले हैं। उन्हें वर्ष 2030 तक 50 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य वास्तविक लगता है। उनका यह कहना कि ब्राजील को इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश के लिए साझीदारों की तलाश है, एक तरह से भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के लिए आमंत्रण है। नोबरेगा के साथ जागरण प्राइम के एस.के. सिंह ने बात की। मुख्य अंश :-

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जी20 अध्यक्ष के रूप में भारत का कार्यकाल पूरा होने वाला है। भारत की अध्यक्षता को आप किस तरह देखते हैं?

भारत की अध्यक्षता में कई उपलब्धियां रही हैं, मैं यहां कुछ प्रमुख उपलब्धियों का जिक्र करना चाहूंगा। भारत की अध्यक्षता में पहली बड़ी बात तो यह रही कि इसमें खुली चर्चा को प्रमोट किया गया। भारत ने ग्लोबल साउथ देशों की चिताओं और उनके हितों को जी20 एजेंडा में बढ़ावा दिया। मेरे विचार से यह ऐतिहासिक उपलब्धि थी। एक और महत्वपूर्ण बात यह रही कि भारत बेहद जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों में साझा घोषणापत्र पर सभी देशों को राजी करने में सफल रहा। मुझे लगता है कि अगर घोषणापत्र जारी नहीं हुआ होता तो आज हम जी20 के ‘खत्म’ होने की चर्चा कर रहे होते। तब जी20 वह प्लेटफॉर्म नहीं होता जहां देश बैठकर संवाद करते और एक दूसरे की बातें सुनते। बात सिर्फ घोषणा की नहीं है, बल्कि एक-दूसरे को सुनने की भी है। इस मौके पर जो ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस लॉन्च किया गया, वह भी बहुत महत्वपूर्ण है। ब्राजील कई वर्षों से भारत के साथ हल्के वाहनों में बायोफ्यूल का इस्तेमाल बढ़ाने पर अपने अनुभवों को साझा करने की दिशा में काम कर रहा है।

ब्राजील जी20 का अगला अध्यक्ष बनने जा रहा है। आपके विचार से भारत के किन प्रयासों को ब्राजील को आगे बढ़ाना चाहिए?

भारत की अध्यक्षता में उठाए गए कई ऐसे कदम हैं जिन्हें ब्राजील को आगे ले जाने की जरूरत है, क्योंकि हमारे मूल्य साझा हैं, मानवता जिन बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है उन्हें लेकर हमारे विचार भी समान हैं। हम पारंपरिक रूप से ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों की आवाज भी रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन पर चर्चा और सस्टेनेबल डेवलपमेंट की अवधारणा को केंद्र बिंदु में लाने पर जोर रहेगा। इसमें सिर्फ पर्यावरण का कंपोनेंट नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक कंपोनेंट भी होंगे। बीते कुछ वर्षों में विकसित देशों का जोर सिर्फ पर्यावरण के डाइमेंशन पर रहा है, उन्होंने बाकी दोनों की अनदेखी की है जो ग्लोबल साउथ देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

हम नई इकोनॉमी की तरफ बढ़ रहे हैं। इसमें विजेता होंगे तो हारने वाले भी होंगे। इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि परिवर्तन समावेशी हो। गरीब देश ग्रीन इकोनॉमी की नई दुनिया में पीछे न छूट जाएं।

एक महत्वपूर्ण बिंदु डेवलपमेंट फाइनेंसिंग का है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि विकसित देश मदद के अपने वादे पर कायम रहें। हमें विकासशील देशों के लिए नए फाइनेंसिंग प्रोडक्ट पर भी काम करना होगा। जैसा कि आप जानते हैं, महामारी ने इन देशों की माली हालत खराब की है। इसलिए हमें नए फाइनेंसिंग प्रोडक्ट तलाशने होंगे ताकि विकासशील देशों की भी संसाधनों तक पहुंच हो सके।

लैंगिक समानता को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण कदम है, जिसे भारत की अध्यक्षता में उठाया गया था। यह हमारे लिए अहम है। सिर्फ यह नहीं कि महिला और पुरुष के वेतन एक समान हों, बल्कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा का मुद्दा भी है।

ग्लोबल गवर्नेंस संस्थानों में सुधार का मुद्दा भी अहम है। इसे भी भारत की अध्यक्षता के दौरान फोकस किया गया। जी20 बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन जी20 बहुपक्षीय संस्थाओं की जगह नहीं ले सकता क्योंकि वहां सभी देश हिस्सा लेते हैं। मेरे विचार से ये पांच प्राथमिकताएं हैं।

दोनों देशों के राजनयिक संबंध 75 साल पुराने हैं। आपके विचार से वे कौन से क्षेत्र हैं जिनमें भारत और ब्राजील के संबंध सबसे मजबूत हैं?

अपने राजनयिक करियर में मैंने संयुक्त राष्ट्र और जिनेवा जैसी कई जगहों पर भारतीय समकक्षों के साथ काम किया है। उस अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि दोनों देश मानवता के लिए कई बड़ी वैश्विक चुनौतियों के समाधान में मिल कर काम कर सकते हैं। आबादी, भौगोलिक विस्तार, अर्थव्यवस्था के लिहाज से दोनों बड़े देश हैं। यह हमें आधार के साथ वैधता भी प्रदान करता है क्योंकि हम पारंपरिक रूप से ग्लोबल साउथ देशों की चिंता को आवाज देते रहे हैं।

आपके सवाल पर लौटूं, तो मेरे विचार से जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह हमारे बीच सहयोग का एक महत्वपूर्ण शुरुआती बिंदु है। जलवायु परिवर्तन में यह स्पष्ट है कि विकसित देश अपनी बातों पर कायम रहें। उन्होंने हर साल 100 अरब डॉलर के संसाधन उपलब्ध कराने का वादा किया है। फिर लॉस एंड डैमेज फंड की भी बात है। यहां बात सिर्फ जलवायु परिवर्तन की नहीं, बल्कि एक नए विश्व, नई इकोनॉमी की ओर जाने की भी है। इसलिए जलवायु परिवर्तन हमेशा व्यापक थीम रहा है।

हमें लोकतंत्र को भी प्रमोट करना चाहिए क्योंकि हम दुनिया की दो बड़ी डेमोक्रेसी हैं। एक समाज के रूप में हमने विकास का लोकतांत्रिक रास्ता चुना है। यह बड़ा अंतर पैदा करता है। यह अनेक विकासशील देशों के लिए प्रेरणा भी है।

बायो एनर्जी को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है। मेरे विचार से यह भी ऐसा क्षेत्र है जिसमें दोनों देश मिलकर बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं। इस तरह अनेक साझा क्षेत्र हैं, लेकिन मैंने सिर्फ महत्वपूर्ण क्षेत्रों का जिक्र किया है।

हाल के वर्षों में भारत और ब्राजील के बीच व्यापार बढ़ा है। पिछले दो वर्षों में तो यह दोगुना से भी अधिक हो गया। 75 साल के अच्छे और स्थिर संबंधों के बावजूद द्विपक्षीय व्यापार पर फोकस करने में इतना समय क्यों लगा?

शायद दोनों देशों के बीच भौगोलिक दूरी इसका बड़ा कारण रही। और फिर मुझे लगता है कि हमारे बिजनेस समुदाय दूसरे पार्टनर पर फोकस कर रहे थे। आखिरकार आर्थिक और व्यापारिक संबंध निजी क्षेत्र ही तैयार करते हैं। लेकिन अब यह तेजी से बदल रहा है, इसलिए व्यापार में दो-तरफा वृद्धि हुई है।

सरकार के रूप में हम बिजनेस समुदाय को साथ लाने और फैसिलिटेटर की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए हमारे राष्ट्रपति लूला (दा सिल्वा) की जी20 से इतर जब प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक हुई, तो उस दौरान बिजनेस फोरम लॉन्च किया गया।

हमने बी20 इंगेजमेंट ग्रुप भी देखा जिसमें बड़ी संख्या में ब्राजील से व्यवसायी यहां आए थे। मुझे लगता है कि ब्राजील के बिजनेस समुदाय की भारत में रुचि बढ़ी है। नवंबर में ब्राजील से तीन उच्चस्तरीय मिशन आने वाले हैं- वहां के कृषि मंत्री, मातो ग्रोसो राज्य के गवर्नर और पराना राज्य के गवर्नर के नेतृत्व में। ये दोनों राज्य कृषि और बिजनेस के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।

बिजनेस के प्रमुख क्षेत्रों की बात करें तो ब्राजील से भारत को सबसे अधिक कच्चे तेल का निर्यात होता है। उसके बाद कृषि महत्वपूर्ण है। इथेनॉल पर दोनों देशों के बीच तीन साल से अधिक समय से बातचीत चल रही है। मशीन, ऑटो पार्ट्स, दवाएं भी हैं, जिनका भारत से ब्राजील को बड़े पैमाने पर निर्यात होता है। विचार इसे बढ़ाने का है।

कई नए क्षेत्र स्पष्ट रूप से उभर रहे हैं। ब्राजील में भारत का एफडीआई भी हो रहा है। जहां तक मेरा अनुमान है, कम से कम 3.5 अरब डॉलर का निवेश भारत से ब्राजील में हुआ है। निवेश करने वालों में टाटा, स्टरलाइट, महिंद्रा जैसी कंपनियां हैं।

ब्राजील की कंपनियां भी भारत आ रही हैं। वैग यहां कई वर्षों से है। एम्ब्रेयर यहां साझेदारी के अवसर तलाश रही है। एटीएम मशीन बनाने वाली फर्म (पेरतो) भी है। इस तरह पिछले कई वर्षों में ब्राजील से भी भारत में काफी निवेश हुआ है। आउटलुक अच्छा है, देखते हैं यह कैसे आगे बढ़ता है।

वाणिज्य सचिव की अगुवाई में एक भारतीय टीम ट्रेड मॉनिटरिंग मेकैनिज्म पर बैठक के लिए इस महीने की शुरुआत में ब्राजील गई थी। सचिव ने कहा कि 2030 तक 50 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य रखा गया है। पूर्व ट्रेड पॉलिसी एडवाइजर का अनुभव होने के नाते आप किन सेक्टर पर फोकस करने की सलाह देंगे?

जिस तरह द्विपक्षीय व्यापार और निवेश बढ़ रहा है, उसे देखते हुए 50 अरब डॉलर का लक्ष्य वास्तविक लगता है। मैंने कृषि, तेल, मशीनरी, बायो एनर्जी और दवाओं का जिक्र पहले किया है। ये व्यापार के प्रमुख क्षेत्र हैं। यहां मैं यह भी कहना चाहूंगा कि नई उभरती भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि में दोनों देशों के बीच संवाद और आपसी भरोसे पर आधारित मजबूत संबंध हैं। इनका व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। निश्चित रूप से व्यापार का मतलब पैसा बनाना होता है, लेकिन इसका एक और मतलब खाद्य और ऊर्जा जैसी जरूरी वस्तुओं के लिए भरोसेमंद साझेदारों पर निर्भरता भी है।

इथेनॉल हमारे द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने का एक प्रमुख माध्यम है। हम इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि अपने इथेनॉल उत्पादन चेन और ऑटो पार्ट्स उत्पादन को किस तरह कनेक्ट करें। ब्राजील हमेशा फ्लेक्स फ्यूल मॉडल पर अपने अनुभवों को साझा करने का इच्छुक रहा है।

ब्राजील में अगर कोई अपनी फ्लेक्स फ्यूल कार लेकर फ्यूल स्टेशन जाता है, तो वह 50% एथेनॉल और 50% तेल अथवा 100% एथेनॉल और 0% तेल भरवा सकता है क्योंकि वह फ्लेक्स फ्यूल कार है। इससे ब्राजील में उत्सर्जन कम करने में काफी मदद मिली है। मेरे पास सटीक आंकड़े अभी नहीं हैं, लेकिन वाहनों के उत्सर्जन में काफी कमी आई है क्योंकि ब्राजील की 85% कारें फ्लेक्स फ्यूल मॉडल वाली हैं।

इसका एक और पहलू है कि इससे कृषि क्षेत्र में नौकरियां पैदा होती हैं, लोगों की आय बढ़ती है। देश में ही उत्पादन होने से ऊर्जा सुरक्षा भी मिलती है। इस तरह दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण साझेदारी बन रही है।

हमने ब्राजील में इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश के अवसरों के बारे में भी बात की है। सैनिटेशन, एनर्जी, एनर्जी ट्रांसमिशन जैसे क्षेत्रों में 347 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत है। इसके लिए हम साझीदारों की तलाश कर रहे हैं।

हम मर्कोसुर (Mercosur, दक्षिण अमेरिकी देशों का संगठन) देशों के साथ बिजनेस के अवसरों का अध्ययन करेंगे, ताकि व्यापार समझौते पर (भारत के साथ) वार्ता करने और उसे बढ़ाने का आधार बन सके। अभी दोनों देशों के बीच व्यापार सिर्फ 453 टैरिफ लाइन (वस्तुओं) का होता है। एक और बात, व्यापार समझौता आगे बढ़ाने की एक राजनीतिक इच्छा शक्ति भी दिख रही है।

आपने बायोफ्यूल की बात कही। मेरा अगला सवाल जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है। 10 सितंबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा के बीच बैठक के बाद जो साझा बयान जारी किया गया था, उसमें कहा गया कि ‘दोनों देश जलवायु पर द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’ ब्राजील भी हीटवेव और सूखा जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहा है। विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन पर बातें तो बहुत हो रही हैं लेकिन काम उतना नहीं हो रहा जितना होना चाहिए। इस पर आपकी क्या राय है?

हमारा बेसिक (BASIC- ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) समूह है जो जलवायु संबंधी वार्ता पर हमें साथ लाता है। इसकी तरफ से न्यूयॉर्क में सितंबर में एक बयान जारी किया गयाथा। आप उसके मुख्य बिंदु देखें तो उसमें भी यही कहा गया है कि विकसित देशों के साथ बातचीत में प्रमुख मुद्दा यही होना चाहिए कि वे संसाधनों का इंतजाम करें। मैंने पहले भी कहा, और यह बहुत महत्वपूर्ण है, कि विकसित देश साझा जिम्मेदारी के सिद्धांत पर बने रहें, वे प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर का संसाधन उपलब्ध कराने के वादे पर बने रहें।

एक साल भी ऐसा नहीं हुआ जब विकसित देशों ने 100 अरब डॉलर की राशि देने का वादा निभाया हो।

सही। यह राजनीतिक या आर्थिक प्रतिबद्धता से आगे की बात है। यह समय की जरूरत है, खासकर अगर आप ग्लोबल साउथ में नई जलवायु परिस्थितियों के लिहाज से मिटिगेशन और एडॉप्शन की जरूरतें देखें। ब्राजील में हमने देश के दक्षिणी हिस्से में भीषण बाढ़ का सामना किया, अब उत्तरी क्षेत्र में सूखे का प्रभाव देख रहे हैं। इसलिए हमें ग्रीन इकोनॉमी की दिशा में साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। हमें उन देशों का भी ध्यान रखना है जो उत्सर्जन के लिए ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार नहीं हैं।

जिन देशों ने जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान किया है, वे इसके असर को सबसे अधिक भुगत रहे हैं।

बिल्कुल। यहां मैं व्यापार का मुद्दा भी लाना चाहूंगा। इन दिनों हम पर्यावरण-प्रेरित संरक्षण देख रहे हैं। जिस तरह इसे लागू किया जाता है, वह एक तरह का ट्रेड बैरियर है। आप मल्टीलेटरल ट्रेडिंग सिस्टम में जलवायु संबंधी बाधाएं लेकर आते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन से संबंधित नियमों की तार्किक व्याख्या नहीं करते। एक छोटा देश, जिसकी उत्सर्जन में कोई भागीदारी नहीं है, जिसके एनडीसी (नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन) बहुत अच्छे हैं, लेकिन वह एक ऐसे प्रोडक्ट का निर्यात करता है जिसका कार्बन फुटप्रिंट है, और उसके निर्यात को किसी अमीर देश की सीमा पर रोक दिया जाता है। इसलिए जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन के नियमों और मल्टीलेटरल ट्रेड पॉलिसी को एक बिंदु पर लाया जाए।

आप म्यूजिक के छात्र रहे हैं। क्या आप भारतीय संगीत भी सुनते हैं? यहां का कौन सा संगीत आपको सबसे अधिक पसंद है?

मैंने वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक का अध्ययन किया है। मेरे लिए संगीत सिर्फ पैशन और मनोरंजन नहीं, बल्कि यह एक तरह से आत्मावलोकन भी है। यह मेरे रोजमर्रा के जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। मैं रोजाना संगीत सुनता हूं। भारत का शास्त्रीय संगीत बहुत प्रभावशाली है, इसने मेरा ध्यान आकर्षित किया है। यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, यह आपको अलग-अलग मानसिक अवस्था में ले जाता है। मेरे लिए यह एक नया बौद्धिक मोर्चा (इंटेलेक्चुअल फ्रंटियर) है। मैं भारतीय शास्त्रीय संगीत सुन रहा हूं और इसके इतिहास पर किताबें भी पढ़ रहा हूं।

भारत में किन जगहों को आप देखना चाहेंगे?

मुझे यहां का वास्तुशिल्प देखना है। मैं पहले कई बार भारत आ चुका हूं और कई जगहें देखी भी हैं। मैं राजस्थान गया, चेन्नई और मुंबई भी गया। मैं हम्पी, अजंता, एलोरा की मशहूर गुफाएं देखना चाहूंगा। मैं वृंदावन भी जाना चाहूंगा जहां भगवान कृष्ण का बचपन बीता था। तो... बहुत से काम करने हैं। मुझे लगता है दिन के 24 घंटे भी मेरे लिए पर्याप्त नहीं होंगे।