स्कन्द विवेक धर/एस.के. सिंह, नई दिल्ली। देश में पिछले कुछ तिमाहियों से घरों की मांग में जबरदस्त तेजी देखने को मिल रही है। हालांकि, यह तेजी हाई एंड घरों में ज्यादा है, अफॉर्डेबल हाउसिंग में अब भी उतनी रफ्तार देखने को नहीं मिल रही है। ऐसे में पूरी उम्मीद है कि 23 जुलाई को आने जा रहे मोदी 3.0 सरकार के पहले बजट में अफॉर्डेबल हाउसिंग को लेकर बड़े कदमों का ऐलान हो। इसके अलावा, रियल एस्टेट सेक्टर बजट में होम लोन पर मिलने वाली आयकर छूट में इजाफा और एक नया SWAMIH फंड मिलने की उम्मीद कर रही है।

देश में ज्यादातर घर होम लोन के जरिए खरीदे जाते हैं। लोगों को घर खरीदने के लिए प्रेरित करने के मकसद से सरकार भी आयकर में होम लोन के ब्याज और मूलधन दोनों पर छूट देती है। लेकिन ब्याज पर छूट पिछले कई साल से 2 लाख रुपये पर स्थिर है। अफॉर्डेबल हाउसिंग के होम लोन के ब्याज पर मिल रही 1.50 लाख रुपये की अतिरिक्त छूट साल 2022 में समाप्त हो गई। जबकि मूलधन पर छूट आयकर कानून की धारा 80-सी के तहत आती है, यह भी साल 2014 से 1.50 लाख रुपये पर स्थिर है।

उद्योग संगठन फिक्की की महानिदेशक ज्योति विज कहती हैं, होम लोन टैक्स छूट की सीमा लंबे समय से स्थिर बनी हुई है। जबकि, मकानों की कीमत में बीते कुछ समय में तेज बढ़ोतरी हुई है और ब्याज दरों में भी खासा इजाफा हुआ है। ऐसे में हमारा सरकार से अनुरोध है कि आयकर की धारा-24 के तहत होम लोन ब्याज पर मिलने वाली आयकर छूट सीमा दोगुना करके 4 लाख रुपये की जाए। जबकि मूलधन पर मिलने वाली छूट को एनपीएस और स्वास्थ्य बीमा की तरह धारा 80-सी से बाहर निकाला जाए।

प्रॉपर्टी कंसल्टेंट सीबीआरई के भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के चेयरमैन और सीईओ अंशुमन मैगजीन भी कहते हैं कि होम लोन के मूलधन पर मिलने वाली छूट को आयकर कानून की धारा 80सी से बाहर लाना चाहिए। क्योंकि 80सी में जीवन बीमा प्रीमियम, पीपीएफ जैसे दूसरे इंस्ट्रूमेंट भी शामिल हैं।

मैगजीन ने कहा कि आयकर कानून की धारा 24बी में ब्याज पर डिडक्शन की सीमा दो लाख रुपये सालाना है। शुरुआती वर्षों में ब्याज भुगतान अधिक होता है, इसलिए इसे कम से कम पांच लाख रुपये किया जाना चाहिए। इन दोनों धाराओं के तहत डिडक्शन की सीमा लंबे समय से नहीं बदली है। इसे महंगाई से भी नहीं जोड़ा गया है।

मैगजीन के मुताबिक, धारा 180ईईए के तहत अफॉर्डेबल श्रेणी में पहली बार घर खरीदने वालों को होम लोन ब्याज पर 1.5 लाख रुपये अतिरिक्त डिडक्शन की सुविधा मिलती थी। यह स्कीम वित्त वर्ष 2019-20 में शुरू की गई थी और इसे 31 मार्च 2022 तक के लिए बढ़ाया गया था। इस सुविधा को दोबारा शुरू किया जाना चाहिए और इसका दायरा भी मिड सेगमेंट तक बढ़ाया जाना चाहिए।

अर्केड डेवलपर्स के प्रबंध निदेशक अमित जैन कहते हैं, बढ़ती महंगाई को देखते हुए लोगों को अतिरिक्त टैक्स राहत जरूरी है। यह होम लोन पर ब्याज के लिए कटौती को 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख करके पूरा किया जा सकता है।

क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी फिर शुरू हो

प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक ग्रुप के चेयरमैन अनुज पुरी कहते हैं, कमजोर और निम्न आय वर्ग (EWS/LIG) के लिए पीएम आवास योजना के तहत क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम 2022 में खत्म हो गई। देश भर में पहली बार सस्ते घर खरीदने वालों को इन्सेंटिव के तौर पर यह स्कीम दोबारा शुरू की जानी चाहिए। इस स्कीम के तहत नया घर बनाने और पुराने घर में कमरा-किचन आदि बनाने के लिए कर्ज मिलता था। पीएम आवास योजना (ग्रामीण) के तहत कच्चा घर की जगह पक्का घर बनाने वालों को भी सब्सिडी मिलती थी।

अफॉर्डेबल हाउसिंग को इन्सेंटिव हुआ खत्म, फिर से मिले सहायता

अनुज पुरी कहते हैं, हाउसिंग सेक्टर में पिछले साल के बाद इस साल भी अभी तक तेजी है। देश के शीर्ष सात शहरों में घरों की बिक्री और नई लांचिंग रिकॉर्ड स्तर पर है। पिछले वित्त वर्ष में भी रिकॉर्ड 4.93 लाख घर बिके और 4.47 लाख लांच हुए थे। लेकिन यह तेजी मध्यम और प्रीमियम रेंज के घरों में है। कम आय वर्ग की घर की जरूरतों को देखते हुए यह गति महंगे घरों तक सीमित रहने के बजाय अफॉर्डेबल यानी सस्ते घरों में भी आनी चाहिए।

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एनारॉक रिसर्च के अनुसार कोविड-19 के बाद घरों की कुल बिक्री में अफॉर्डेबल का हिस्सा काफी घटा है। यह 2019 में 38% और 2022 में 26%था, जबकि इस साल की पहली तिमाही में 20% रह गया है। कम डिमांड के चलते इस सेगमेंट में सप्लाई भी 2019 के 40% से घट कर इस साल पहली तिमाही में 18% रह गई है।

सीबीआरई के मैगजीन ने कहा कि अफॉर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट के मुनाफे पर डेवलपर को 100% टैक्स छूट का प्रावधान 2022 में खत्म हो गया। चूंकि ऐसे प्रोजेक्ट में मार्जिन बहुत कम होता है, इसलिए यह प्रावधान दोबारा लागू किया जाना चाहिए। इससे अफॉर्डेबल हाउसिंग को बढ़ावा मिलेगा।

अनुज पुरी भी मैगजीन से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, अफॉर्डेबल घर खरीदारों और डेवलपर को मिलने वाले फायदे पिछले दो साल में खत्म हो गए हैं। इस महत्वपूर्ण सेक्टर को रिवाइव करने की जरूरत है। इसके लिए टैक्स में छूट जैसे बड़े प्रभावकारी कदम उठाए जा सकते हैं। अफॉर्डेबल घर बनाने में डेवलपर को इन्सेंटिव के तौर पर धारा 80-आईबीए के तहत टैक्स में 100% छूट दोबारा शुरू की जा सकती है।

रियल एस्टेट कंपनी हाउस ऑफ अभिनंदन लोढ़ा के चेयरमैन अभिनंदन लोढ़ा कहते हैं, रियल एस्टेट सेक्टर के प्रति सरकार का निरंतर समर्थन खासकर, तीन करोड़ अफॉर्डेबल हाउसिंग के लक्ष्य को प्राप्त करने में मिल रहा सपोर्ट इंडस्ट्री के लिए काफी उत्साहजनक है। यह न केवल बहुत जरूरी आवास प्रदान करने का वादा करती है, बल्कि रोजगार सृजन को भी बढ़ावा देती है।

लोढ़ा ने कहा कि इसके अलावा, बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से पर्यटन क्षेत्र को बढ़ाने पर सरकार का निरंतर ध्यान सराहनीय है। भारत की प्रचुर प्राकृतिक और दर्शनीय सुंदरता, बेहतर कनेक्टिविटी के साथ, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह के पर्यटकों को आकर्षित करेगी और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगी।

अफॉर्डेबल हाउसिंग के आकार और कीमत का दायरा बढ़ाने की भी मांग

आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार अफॉर्डेबल हाउस की परिभाषा प्रॉपर्टी के आकार, कीमत और खरीदार की आमदनी से तय होती है। महानगरों में 60 वर्ग मीटर कार्पेट एरिया और 45 लाख रुपये तक कीमत को इस श्रेणी में रखा गया है। नॉन-मेट्रो शहरों में कार्पेट एरिया 90 वर्ग मीटर है। रियल एस्टेट इंडस्ट्री चाहती है कि अफॉर्डेबल हाउसिंग के आकार और मूल्य की सीमा में विस्तार हो।

अंशुमन मैगजीन के मुताबिक, अफॉर्डेबल हाउसिंग के मानकों “कीमत 45 लाख रुपये तक, कार्पेट एरिया 60-90 वर्ग मीटर और खरीदार की आमदनी (ईडब्लूएस/एलआईजी)” में संशोधन की जरूरत है। महानगरों के लिए कार्पेट एरिया 90 वर्ग मीटर किया जाना चाहिए। बाकी शहरों के हिसाब से इसका अलग-अलग ब्रैकेट होने चाहिए।

अनुज पुरी भी कहते हैं, ज्यादातर शहरों में 45 लाख रुपये में 60 वर्ग मीटर कार्पेट एरिया वाला घर मिलना मुश्किल हो गया है। मुंबई जैसे शहरों में 45 लाख रुपये के बजट का कोई मतलब नहीं है। यह कम से कम 85 लाख रुपये होना चाहिए। अन्य बड़े शहरों में भी सीमा 60-65 लाख रुपये की जानी चाहिए। तब ज्यादा घर अफॉर्डेबल के दायरे में आएंगे और अधिक संख्या में खरीदारों को इसका फायदा मिलेगा।

रियल एस्टेट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन इक्विटी के बराबर करने की मांग

रियल एस्टेट में लांग टर्म कैपिटल गेन पर 20% टैक्स लगता है। इसमें लांग टर्म 24 महीने का होता है। इससे पहले घर बेचने पर व्यक्तिगत आयकर स्लैब के हिसाब से टैक्स की गणना होती है। रियल एस्टेट सेक्टर की मांग है कि रियल एस्टेट पर कैपिटल गेन टैक्स इक्विटी के तर्ज पर किया जाए। इक्विटी में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स 15% है, जबकि लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की होल्डिंग अवधि भी 12 महीने की जानी चाहिए। सेक्टर प्रॉपर्टी में दो करोड़ रुपये तक निवेश की सीमा भी समाप्त करने की मांग कर रहा है।

50 हजार करोड़ रुपये की राशि वाला नया SWAMIH फंड शुरू हो

नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (NAREDCO) के अध्यक्ष हरि जी बाबू ने कहा कि वित्त मंत्रालय को वित्त वर्ष 2024-2025 के लिए आगामी केंद्रीय बजट में 50,000 करोड़ रुपये के कोष के साथ स्पेशल विंडो फॉर अफॉर्डेबल एंड मिड-इनकम हाउसिंग (SWAMIH) फंड की दूसरी किस्त शुरू करनी चाहिए। उन्होंने कहा, SWAMIH फंड के अंतिम लाभार्थी घर खरीदने वाले हैं क्योंकि दूसरी किस्त से और अधिक रुकी हुई परियोजनाओं को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।

आयकर में नोशनल रेंट समाप्त हो

उद्योग संगठन फिक्की ने अपने बजट सुझाव में कहा है कि काल्पनिक किराये (notional rent) की आय पर टैक्स का नियम खत्म करना चाहिए। किराये पर टैक्स तभी लेना चाहिए जब एसेट वास्तव में किराये पर दी गई हो। काल्पनिक किराये की आय पर कर लगाना संपत्ति मालिकों के लिए बोझ साबित होता है, खासकर तब जब संपत्ति से वास्तव में कोई किराया नहीं मिल रहा। इस संशोधन से संपत्ति मालिकों पर वित्तीय दबाव कम हो सकता है और संपत्ति के स्वामित्व को बढ़ावा मिल सकता है।