प्राइम टीम, नई दिल्ली। आम चुनाव से पहले अंतरिम बजट अगले सप्ताह पेश हो जाएगा। अंतरिम होने के नाते इस बजट से बहुत ज्यादा उम्मीदें तो नहीं हैं, लेकिन फाइनेंस सेक्टर टैक्स के मोर्चे पर और कुछ नीतिगत मामलों पर सरकार से राहत की उम्मीदें कर रहा है। देश में तेजी से बढ़ रही म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री इक्विटी फंड के लिए यूलिप के समान टैक्सेशन की मांग कर रही है, वहीं बीमा कंपनियां सरकार से प्रीमियम पर लागू जीएसटी में कमी लाने की उम्मीद लगाए बैठी हैं।

म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री ने साल 2023 में शानदार प्रदर्शन किया। म्यूचुअल फंड कंपनियों का एसेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) 50 लाख करोड़ रुपए के पार चला गया है। हालांकि, यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 15% ही है, जाे कि वैश्विक औसत 75 प्रतिशत से काफी कम है। ऐसे में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री सरकार से बजट में और इसके बाद भी कुछ उम्मीदें रख रही है। इसमें यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) और इक्विटी म्यूचुअल फंड के बीच समान टैक्स व्यवस्था, इक्विटी म्यूचुअल फंड की परिभाषा में संशोधन और फिक्स्ड इनकम फंड के लिए इंडेक्सेशन लाभ की वापसी शामिल हैं।

क्वांटम एएमसी के एमडी और सीईओ जिमी पटेल कहते हैं, हम उम्मीद करते हैं कि बजट इक्विटी म्यूचुअल फंड और यूलिप के बीच टैक्स की संरचना में अंतर को खत्म करेगा। फिलहाल, यूलिप में यदि वार्षिक प्रीमियम 2.5 लाख रुपए से कम है तो रिटर्न पर कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगता है। जबकि इक्विटी म्यूचुअल फंड में साल में एक लाख रुपए से ज्यादा रिटर्न मिलने पर कैपिटल गेन टैक्स लग जाता है। पटेल ने कहा कि इसके अलावा सरकार को इक्विटी फंड ऑफ फंड (एफओएफ) योजनाओं को भी इक्विटी ओरिएंटेड फंड में शामिल करना चाहिए।

इसके अलावा, पटेल इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) की तर्ज पर डेट लिंक्ड सेविंग स्कीम (डीएलएसएस) शुरू करने का भी सुझाव देते हैं। उनका मानना है कि इससे बॉन्ड बाजार में अधिक खुदरा निवेशक आकर्षित होंगे।

वहीं, इंश्योरेंस इंडस्ट्री भी बजट में टैक्स बेनिफिट की लिमिट के बढ़ने की उम्मीद कर रही है। पॉलिसीबाजार डॉट कॉम के चीफ बिजनेस ऑफिसर संतोष अग्रवाल कहते हैं, इंश्योरेंस पॉलिसी पर मिलने वाला टैक्स डिस्काउंट इंश्योरेंस अपनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने का काम करता रहा है। धारा 80-सी के तहत 1.50 लाख रुपये की अधिकतम डिडक्टिबल लिमिट पीपीएफ, लोन इत्यादि जैसे अन्य स्वीकार्य खर्चों के कारण समाप्त हो जाती है। इसलिए केवल टर्म इंश्योरेंस के लिए एक समर्पित छूट श्रेणी घोषित करने की जरूरत है। इससे करदाताओं को अधिक कवरेज वाला टर्म प्लान चुनने का प्रोत्साहन मिलेगा।

देश की प्रमुख जनरल इंश्योरेंस कंपनी बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के सीईओ तपन सिंघल कहते हैं, भारत में लगभग 10 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, क्योंकि वे स्वास्थ्य खर्च वहन नहीं कर सकते। 10 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में जीडीपी का लगभग 1.2% खर्च आएगा। इसलिए, हमें अपने नागरिकों के लिए एक सार्वभौमिक स्वास्थ्य योजना पर विचार करना चाहिए।

सिंघल बीमा प्रीमियम पर टैक्स में कमी की वकालत करते हुए कहते हैं, बीमा कोई लक्जरी वस्तु नहीं है। इस पर ज्यादा टैक्स लगाने से लोगों के लिए वित्तीय रूप से संरक्षित होना मुश्किल हो जाता है। हमें बीमा को एक ऐसी आवश्यकता के रूप में देखना चाहिए, जिसे हर कोई वहन कर सके।

अग्रवाल भी सिंघल से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, बीमा प्रीमियम पर 18% की जीएसटी दर पर भी पुनर्विचार करने की जरूरत है। टैक्स सिस्टम पर फिर से विचार करने का समय आ गया है, ताकि मूल्य निर्धारण का लाभ अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचे और अधिक लोगों को लाइफ इंश्योरेंस में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

आगामी बजट में जिस तरह से म्यूचुअल फंड कंपनियां बीमा इंडस्ट्री से बराबरी की मांग कर रही हैं, उसी तरह ऑनलाइन लेंडिंग करने वाली फिनटेक कंपनियां ऑफलाइन लेंडिंग करने वाली कंपनियों के समान नियमों की उम्मीद कर रही हैं। देश की शीर्ष फिनटेक कंपनियों में शुमार बैंकबाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी कहते हैं, ऑनलाइन और ऑफलाइन कर्ज देने के बिजनेस में समान अवसर की आवश्यकता है। डिजिटल लेंडिंग इंडस्ट्री के लिए लागू कंज्यूमर सेंट्रिक रेगुलेशन को ऑफ़लाइन कर्ज देने वाली इंडस्ट्री तक विस्तारित करना चाहिए। इसमें डिजिटल लेडिंग के लिए अनिवार्य विभिन्न शर्तों जैसे कि फैक्ट-शीट टर्म, शिकायत निवारण प्रक्रियाएं, लोन के लिए कूलिंग-ऑफ अवधि, सहमति-आधारित उपभोक्ता डेटा संग्रह, डेटा स्टोरेज, उपयोग आदि शामिल हैं। शेट्टी कहते हैं, सभी नियमों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों पर समान रूप से विस्तारित करने से, दोनों प्रकार के लेंडर्स को विकास के लिए समान अवसर मिलेंगे।

लेंडिंग बिजनेस की बात करें तो हाउसिंग लोन सेगमेंट को भी बजट से बड़ी उम्मीदें हैं। इसमें होम लोन के ब्याज पर टैक्स छूट की सीमा बढ़ाना सबसे प्रमुख है। अफॉर्डेबल होम लोन पर काम करने वाली फिनटेक बेसिक होम लोन के सीईओ एवं सह-संस्थापक अतुल मोंगा कहते हैं, रियल एस्टेट इंडस्ट्री आयकर अधिनियम की धारा 24 के तहत होम लोन ब्याज के लिए कर कटौती में उल्लेखनीय वृद्धि की वकालत कर रहा है। फिलहाल, इसकी सीमा 2 लाख रुपये है, इस सीमा को कम से कम 5 लाख रुपये तक बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इस बदलाव से अफॉर्डेबल हाउसिंग बाजार को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।

मोंगा कहते हैं, शहरी आवास के लिए ब्याज छूट योजना के कार्यान्वयन की भी काफी उम्मीदें हैं। अक्टूबर में पेश की गई यह योजना कैबिनेट की मंजूरी के लिए लंबित है। इसका उद्देश्य आवास ऋण पर महत्वपूर्ण ब्याज सब्सिडी प्रदान करना है। इस योजना का लक्ष्य 9 लाख रुपये तक के ऋण पर 3% से 6.5% तक की वार्षिक ब्याज सब्सिडी प्रदान करना है। इस कदम से होम लोन की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है।