नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। सात अक्टूबर को हमास के ताबड़तोड़ हमलों ने इजरायल को दहला कर रख दिया। दुनिया की सबसे मुस्तैद और अभेद्य मानी जाने वाली एजेंसी मोसाद और इजरायल डिफेंस फोर्सेज को इन हमलों की भनक तक नहीं लगी। हमास ने इजरायली वायु रक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के इरादे से हजारों रॉकेट दागे। इससे जमीनी बलों को इजरायल की इलेक्ट्रॉनिक सीमा अलार्म प्रणाली को बेअसर करने, सीमा चौकियों के माध्यम से अपना रास्ता बनाने, इलेक्ट्रॉनिक बाधाओं/बाड़ को निष्क्रिय करने और इच्छित लक्ष्य के ऊपर मंडरा रहे मोटर चालित ग्लाइडर से प्रमुख शहरों में प्रवेश करने के लिए महत्वपूर्ण समय मिल गया। कुछ रिपोर्टों में इस बात का दावा भी किया जा रहा है कि समुद्र के रास्ते घुसपैठ की गई है। पर इन सब हमलों ने इजरायल की सुरक्षा, खुफिया तंत्र पर सवालिया निशान खड़े कर दिए।

साउथ एशिया मामलों के विशेषज्ञ और सैन्य स्कॉलर अनंत मिश्र कहते हैं कि यह हमला हमें 1973 के संघर्ष की याद दिलाता है, जिसे स्थानीय रूप से अक्टूबर युद्ध, सैन्य रूप से योम किप्पुर युद्ध के रूप में जाना जाता है, जब संयुक्त मिस्र और सीरियाई सशस्त्र बलों ने इजरायली रक्षा चौकियों पर हमला किया था, जिससे तेल अवीव अत्यधिक मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गया था। 6 अक्टूबर को युद्ध के 50 वर्ष पूरे हो गए (कम से कम उन लोगों के लिए जो इसे याद रखने या इसमें भाग लेने के लिए पर्याप्त युवा थे), एक स्मृति जिसे हमास ने (हमले की पूर्व संध्या) याद किया। इजराइल को पारंपरिक ताकतों से खतरा नहीं था, बल्कि ईरान और हमास समर्थकों से जुड़े छद्म आतंकवादियों से खतरा था, जो लंबे समय तक फौदा (अराजकता) के लिए स्वेच्छा से काम कर रहे थे।

हमास का सबसे बड़ा और विध्वंसक हमला

हमास की पिछली झड़पों से इतर इजरायल के खिलाफ उनकी कार्रवाई वास्तव में अप्रत्याशित, आक्रामक और सैन्य व्यवहार से परे थी। इतनी बड़ी संख्या में गाजा पर यह अपनी तरह का पहला हमला था, और इजरायली समुदायों पर भी यह अपनी तरह का पहला हमला था। इजरायल की इलेक्ट्रॉनिक सीमा प्रणाली पर हावी होने की हमास की क्षमता बेहद प्रभावी साबित हुई। यह खुफिया एजेंसियों की रणनीतिक विफलता को उजागर करता है।

मिश्र कहते हैं कि पूर्व सैन्य नेताओं और विद्वानों के साथ चर्चा के दौरान मैंने समझा कि न्यायिक प्रणाली में सुधार के मुद्दे पर आईडीएफ के भीतर लगातार बहस चल रही थी, जिसने कई स्तरों पर मनोबल को प्रभावित किया होगा। यह हमला यहूदी अवकाश के दिन हुआ। वहीं हमास ने हमले से पहले पूरी तरह बारीकी से इजरायल सेना के संभावित कदमों का अध्ययन किया था। मसलन हिजबुल्लाह के लिए इजरायली सेना की तैयारी, वेस्ट बैंक में फलस्तानी सेना की घुसपैठ को रोकने के लिए इजरायल सेना की मुस्तैदी और काउंटर अटैक के लिए इजरायल कितना मुस्तैद था।

आईडीएफ पर अतिविश्वास या हमास को कम आंकना?

अनंत मिश्रा कहते हैं कि आईडीएफ का सुरक्षा को लेकर अतिविश्वास भी उनके लिए नुकसानदायक साबित हुआ। वहीं शायद उन्हें इस बात का यकीन नहीं था कि हमास इतना बड़ा हमला करने में सक्षम है। वहीं खुफिया एजेंसियों को इस बात का भान तक न होना इजरायल की विफलता को दर्शाता है। जहां तक टेक्नोलॉजी की बात है तो उसमें लगातार नए आयामों को जोड़ अधिक सुदृढ़ किया जा सकता था। यह चूक और इजरायल को खुद को अजेय मान लेना उनके लिए मुश्किल साबित हुआ।

इजरायली हमले से क्या हमास का अंत होगा ?

अनंत मिश्र कहते हैं कि हमास के अंत की भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी होगी। इसके नेतृत्व को इस बात का भान था कि इजरायल किस तरह की प्रतिक्रिया कर सकता है। यह इतना भीषण भी हो सकता है कि इससे गाजा का पूर्ण विनाश हो जाए। सैन्य कर्मियों, परिवारों की क्रूर हत्या और अपहरण सबसे कट्टर हमास/फिलिस्तीनी समर्थक को भी युद्ध में धकेल देगा।

हमास का एक्शन प्लान

मिश्र कहते हैं कि हमास जमीनी हमले में इजरायली रक्षा बलों को लुभाना चाहेगा। शायद बंधकों को रखने से बड़े पैमाने पर जमीनी घुसपैठ में कुछ घंटों की देरी हो सकती है, जिससे हमास के सोशल मीडिया घटकों को इजरायली बलों के खिलाफ एकीकृत प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। समूह उम्मीद कर सकता है कि इजरायली जमीनी सेना गाजा में फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (एफओबी) बनाए रखेगी जिससे वेस्ट बैंक में गुरिल्ला सैनिकों को मजबूत करने के लिए हमास को आवश्यक गोला-बारूद मिलेगा। हमास के लिए 1973 का योम किप्पुर युद्ध एक दीर्घकालिक संघर्ष विराम की याद दिलाता है, जिसने इजरायल को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया।

लेबनान का किरदार

साउथ एशिया के मामलों के विशेषज्ञ और सैन्य स्कॉलर अनंत मिश्र कहते हैं कि लेबनान को फलस्तीनी उग्रवादियों से सहानुभूति रखने वालों के लिए जाना जाता है। किसी भी मिलिशिया से संबंधित होने, युद्ध में शामिल होने के लिए हिजबुल्लाह की मंजूरी की आवश्यकता होती है। 2021 के गाजा युद्ध के दौरान, हमास और हिजबुल्लाह ने एक संयुक्त ऑपरेशन कमांड के माध्यम से समन्वय किया, जिससे हिजबुल्लाह विशेषज्ञता हमास के कब्जे में आ गई। हिजबुल्लाह की उपस्थिति ने जमीन पर हमास के लड़ाकों को रणनीतिक वैधता प्रदान की।

आयरन डोम

रॉकेट, मोर्टार और ड्रोन जैसे खतरों का मुकाबला करने के लिए, कम दूरी की आयरन डोम मिसाइल रक्षा प्रणाली को अमेरिका के समर्थन से राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम द्वारा विकसित किया गया था। प्रणाली में तीन मुख्य तत्व होते हैं: लॉन्चर और उसके इंटरसेप्टर, एक ग्राउंड-आधारित मल्टी-मिशन रडार और एक नियंत्रण प्रणाली। यह मूल रूप से अपने स्वयं के रॉकेट इंटरसेप्टर के साथ रॉकेट और मिसाइलों को रोकता है, और उनका पता लगाने और ट्रैक करने के लिए रडार का उपयोग करता है। इज़राइल के पास देश भर में 10 आयरन डोम बैटरियां तैनात हैं। प्रत्येक बैटरी 155 वर्ग किलोमीटर तक की रक्षा करने में सक्षम है और इसे रणनीतिक रूप से शहरों और आबादी वाले क्षेत्रों के आसपास रखा गया है। एक बैटरी में तीन से चार लॉन्चर शामिल होते हैं, और प्रत्येक लॉन्चर में 20 इंटरसेप्टर तक हो सकते हैं।

फेल कैसे हो गया आयरन डोम

आईडीएफ का दावा है कि आने वाले प्रोजेक्टाइल को रोकने में आयरन डोम की सफलता दर 85-90 प्रतिशत है। पिछले दशक में इसकी सफलता दर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबका ध्यान आकर्षित किया है। राफेल का कहना है कि उसने अमेरिकी सेना को दो आयरन डोम बैटरियां दी हैं और यूक्रेन भी रूस के साथ युद्ध में आपूर्ति की मांग कर रहा है। लेकिन किसी भी वायु रक्षा प्रणाली की तरह, इसकी भी अपनी कमजोरियां हैं। आतंकवादी समूह ने दावा किया कि लगभग 20 मिनट में इजरायल पर लगभग 5,000 रॉकेट दागे गए। आईडीएफ का अनुमान है कि 2,200 लोगों को गोली मारी गई, लेकिन उनमें से कितने को रोका गया, इसका आंकड़ा जारी नहीं किया गया। इस हमले का उद्देश्य इजरायली सिस्टम में मिसाइल इंटरसेप्टर की संख्या को कम करना था।

नए तरह का युद्ध

लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस सोढ़ी कहते हैं कि जैसा हमास ने किया, वैसा दुनिया की कोई बड़ी सेना भी नहीं सोच सकती है। उन्होंने इजरायल डिफेंस के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम को जाम कर दिया। इजरायल को दुनिया की सबसे सशक्त सेनाओं में गिना जाता है। यह हमला दिखाता है कि हमास की प्लानिंग और ट्रेनिंग कितनी सशक्त थी। आने वाले समय में लड़ाइयां दूर से बैठे-बैठे अधिक होंगी। भारत के पूर्व राजदूत योगेश गुप्ता कहते हैं कि मौजूदा समय में तकनीक को युद्ध में सबसे अहम माना जाने लगा है लेकिन ट्रेडिशनल वारफेयर की महत्ता इस युद्ध में देखने को मिली है। ऐसे में यह सोचने की आवश्यकता है कि हमें तकनीक और ट्रेडिशनल वॉरफेयर का बैलेंस रखना होगा।