स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। बिल्डर की कारगुजारियों से परेशान घर खरीदारों को केंद्र सरकार बड़ी राहत देने जा रही है। इसमें बिल्डर के दिवालिया होने पर खरीदारों को ‘जहां है, जैसा है’ की तर्ज पर प्रॉपर्टी का पजेशन लेने और रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को खरीदारों को प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने का अधिकार मिल जाएगा। इसके अलावा, जो फ्लैट, प्लॉट या मकान पहले से खरीदार के पजेशन में है, उसे इन्सॉल्वेंसी की प्रक्रिया से बाहर रखा जाएगा। केंद्र सरकार इसके लिए जल्द ही इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड में बदलाव करने जा रही है। 

देश में वर्षों से रुके रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में फंसे खरीदारों को राहत देने के उपाय सुझाने के लिए केंद्र सरकार ने नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने अपने सुझाव में कहा था कि रियल एस्टेट सेक्टर की जटिलताओं को बेहतर ढंग से समायोजित करने के लिए आईबीसी में सुधार की आवश्यकता है। समिति ने इसी के साथ कुछ सिफारिशें की थीं। इन्हीं सिफारिशों को समाहित करते हुए इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया ने आईबीसी में कुछ संशोधन प्रस्तावित किए हैं। जल्द ही इन्हें अधिसूचित भी कर दिया जाएगा। 

इन संशोधनों में घर खरीदरों को राहत देने वाले तीन बड़े प्रावधान प्रस्तावित किए गए हैं। पहला, खरीदारों को जहां है, जैसा है की तर्ज पर फ्लैट का पजेशन लेने का विकल्प दिया जाएगाा। उसका इंटीरियर खरीदार भुगतान के बचे हुए पैसों से करवा सकेंगे। दूसरा, अगर कोई प्रोजेक्ट दिवालिया होता है तो भी उसके उन फ्लैट, मकान या प्लॉट को इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जा सकेगा, जो पहले से खरीदारों की पजेशन में हैं। तीसरा, दिवालिया प्रक्रिया जारी रहने के दौरान भी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल्स को अधिकार होगा कि जिन खरीदारों के पास प्रॉपर्टी का पजेशन है, उसका वह रजिस्ट्रेशन करवा कर प्रॉपर्टी ट्रांसफर कर सके। 

इन्सॉल्वेंसी विशेषज्ञ निपुण सिंघवी कहते हैं, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड लागू होने के बाद बिल्डरों के दिवालिया होने के मामले तो बढ़े, लेकिन इससे इन बिल्डरों के प्रोजेक्ट में फंसे घर खरीदारों को राहत नहीं मिली। आईबीसी में रिजॉल्यूशन प्रक्रिया के दौरान संबंधित कंपनी के एसेट ट्रांसफर पर प्रतिबंध के चलते रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल वास्तविक खरीदार के मौजूद होने के बावजूद उसे प्रॉपर्टी हैंडओवर नहीं कर सकते थे। रिजॉल्यूशन प्रक्रिया 4 से 5 साल तक लंबी चलती है। वहीं, अधूरे बने मकानों को भी हैंडओवर करने का प्रावधान नहीं था।  

सिंघवी कहते हैं, प्रस्तावित संशोधनों में उन खामियों को दूर कर दिया गया है। इससे इन्सॉल्वेंसी में फंसे प्रोजेक्ट के खरीदारों के घर मिलने का सपना आसानी से पूरा हो सकेगा।

इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल मनीष कुमार गुप्ता कहते हैं, सरकार की ओर से किया जा रहा यह संशोधन घर खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए बहुत बड़ा कदम होगा। इस सुधार की भूमिका इन्सॉल्वेंसी के पहले प्रोजेक्ट उमंग रियलटेक के साथ ही बनने लगी थी। इसके बाद अमिताभ कांत कमेटी की सिफारिशों के तहत इस संशोधन का स्वरूप बना। सरकार इसके जरिए रियल एस्टेट इंडस्ट्री को रिवाइव करने का प्रयास कर रही है। इस संशोधन का नोटिफिकेशन आने के बाद सालों से अपने घर का इंतजार कर रहे लोगों को जल्द से जल्द घर मिल सकेगा। 

इसके अलावा, रियल एस्टेट में इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी को आसान बनाने के लिए आईबीसी में कुछ और संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के एडवाेकेट ऑन रिकॉर्ड अश्विनी दुबे कहते हैं, प्रस्तावित संशोधन में कहा गया है कि अगर इन्सॉल्वेंसी में आया प्रोजेक्ट रेरा में रजिस्टर नहीं है तो रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल्स उसे रेरा में रजिस्टर कराएंगे, ताकि उसमें पारदर्शिता आए। इसके अलावा, हर प्रोजेक्ट का बैंक खाता अलग-अलग होगा।  

प्रस्तावित बदलावों में ऐसे तो ज्यादातर सकारात्मक हैं, लेकिन एक पॉइंट ऐसा है जिसका दुरुपयोग होने की आशंका भी है। निपुण सिंघवी कहते हैं, सिर्फ पजेशन के आधार पर किसी फ्लैट को इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया से बाहर रखने के प्रावधान का दुरुपयोग हो सकता है। दिवालिया होने जा रहा बिल्डर मिलीभगत कर बिना पूरा पैसा लिए पजेशन अपने लोगों को दे सकता है। इसलिए इस प्रावधान में पजेशन के साथ पूरे भुगतान की शर्त भी जोड़ी जानी चाहिए।

भारत में 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक की रियल एस्टेट परियोजनाएं अटकी हुई हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में इसी सप्ताह जारी एक श्वेतपत्र के मुताबिक, इसमें 35 फीसदी परियोजनाएं अकेले उत्तर प्रदेश के नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हैं। इसमें 1.18 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 1.65 लाख फ्लैट फंसे हुए हैं। इसमें से एक लाख लोग अपने फ्लैट के रजिस्ट्रेशन का इंतजार कर रहे हैं, तो वहीं 60 हजार से अधिक लोगों को फ्लैट के पजेशन मिलने का इंतजार है। 

उत्तर प्रदेश रेरा की रिपोर्ट बताती है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 50 फीसदी से अधिक परियोजनाएं तय समय से  तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। यूपी रेरा पोर्टल पर घर खरीदारों की ओर से 27,992 शिकायतें दर्ज की गई थीं, जो देश में सबसे अधिक है।