मोटापा कम करने का इंजेक्शन अगले साल से मिलेगा भारत में, लेकिन लेने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूरी
यह मुख्य रूप से वजन कम करने और शुगर को कंट्रोल करने में मदद करती है। यह एक एडवांस दवाई है जिससे काफी अच्छा वेट लॉस पेशेंट के अंदर देखा गया है। इसको अभी मुख्यतः डायबिटीज के लिए एप्रूव किया गया है। ऐसे मरीज जिनको मोटापे के साथ शुगर की दिक्कत है उन्हें यह दवाई वजन कम करने के साथ शुगर कंट्रोल करने में मदद करती है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/संदीप राजवाड़े
वजन घटाने वाले अमेरिकी इंजेक्शन माउंजरो को भारत में मंजूरी मिल गई है। यह इंजेक्शन टाइप-2 डायबिटीज के इलाज के लिए बनाया गया है और यह वेट लॉस में असरदार हो रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि नई दवा को ताउम्र लेना होगा। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में महिलाओं और पुरुषों में बीते तीन दशक में मोटापे में तेजी से इजाफा हुआ है। महिलाओं में मोटापे में आठ गुना की बढ़ोतरी हुई है जबकि पुरुषों में 11 गुना की वृद्धि हुई है। इस इंजेक्शन को मोटापे के एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि फिलहाल इस इंजेक्शन को लेने से पहले चिकित्सक की सलाह बेहद जरूरी है क्योंकि इसके कुछ साइड इफेक्ट भी हैं। बैरिएट्रिक सर्जरी के मुकाबले यह कितना बेहतर है, इसका आकलन करने के लिए भी अभी कुछ समय देना आवश्यक है।
किसी भी तरह का आकलन फिलहाल जल्दबाजी
शाल्बी सनार इंटरनेशनल हॉस्पिटल गुरुग्राम के बैरिएट्रिक सर्जरी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. विनय कुमार शॉ ने बताया कि मोटापा कम करने की नई दवा (इंजेक्शन) की मजूंरी को लेकर अभी किसी भी तरह का आकलन करना सही नहीं होगा। इससे पहले भी दुनिया में मोटापा कम करने की दवाएं आईं हैं और बाद में उसे बनाने वाली कंपनियों ने वापस लिया है। यह दवा कितनी कारगर है, किस तरह के लोगों को दी जानी है, कितनी दी जानी है, इसका आगे किसी तरह का साइड इफेक्ट होता है या नहीं, इस तरह के कई अन्य सवालों व गाइडलाइन को लेकर विस्तृत रिपोर्ट आनी है।
डायबिटीज के साथ वेट लॉस में भी कारगर
शारदा अस्पताल के जनरल मेडिसिन के डा. अनुपम आनंद का कहना है कि माउंजरो टाइप-2 डायबिटीज का इलाज करने वाली दवाई है। इसमें टिरजेप्टाइड होता है जिसमें जीआईपी/जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट होता है। GLP-1 हार्मोन मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस हिस्से में जाकर उसे एक्टिव करता है। इससे शरीर को भूख का अहसास कम होता है और खाने की इच्छा कम हो जाती है। इससे अतिरिक्त शुगर नहीं बनती और पहले से जमा चर्बी धीरे-धीरे कम होने लगती है। माउजरो इंसुलिन के स्राव को उत्तेजित करता है। इसके साथ ही यह ग्लूकागन के उत्पादन को कम करता है। ग्लूकागन हार्मोन ही रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाता है। यह ब्लड शुगर को नियंत्रित रखता है साथ ही शरीर के वजन को भी कम रखता है। इससे उच्च रक्त चाप को भी कम करने में मदद मिलती है। अमूमन इसका हफ्ते में एक इंजेक्शन ही दिया जाता है।
इंस्टीट्यूट ऑफ मिनिमल एसेस, बेरिएट्रिक एंड रोबोटिक सर्जरी, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली के निदेशक व प्रमुख डा. विवेक बिंदल कहते हैं कि इस इंजेक्शन को अभी भारत में मंजूरी मिली है। यह मुख्य रूप से वजन कम करने और शुगर को कंट्रोल करने में मदद करती है। यह एक एडवांस दवाई है, जिससे काफी अच्छा वेट लॉस पेशेंट के अंदर देखा गया है। इसको अभी मुख्यतः डायबिटीज के लिए एप्रूव किया गया है। ऐसे मरीज जिनको मोटापे के साथ शुगर की दिक्कत है, उन्हें यह दवाई वजन कम करने के साथ शुगर कंट्रोल करने में मदद करती है। इसका लाभ यह है कि इससे 10 से 20 फीसदी वजन कम देखा गया है।
फोर्टिस अस्पताल, बेंगलुरू के एडिशनल डायरेक्टर सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, बैरिएट्रिक और रोबोटिक सर्जन डा. मनीष जोशी कहते हैं कि माउंजरो टाइप 2 मधुमेह वाले लोगों के लिए वजन घटाने और रक्त शर्करा नियंत्रण में बेहतर है। हालांकि, यह महंगा है। इसके नियमित इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। इसमें मितली और दस्त जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। माउंजरो उन वयस्कों के लिए फायदेमंद है जो टाइप 2 मधुमेह और मोटापे से ग्रस्त हैं और आहार और व्यायाम के माध्यम से वजन कम करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह मोटापे से जुड़े हृदय रोग के जोखिम कारक वाले लोगों की भी मदद कर सकता है।
बैरिएट्रिक सर्जरी फिलवक्त बेहतर
डॉ. विनय कुमार शॉ कहते हैं कि अभी भारत में बैरिएट्रिक सर्जरी की जा रही है, यह सर्जरी भी भारत में तब शुरू हुई, जब दुनिया में इसे दस साल पहले से किया जाने लगा, इसके रिजल्ट और फायदे के बाद यहां इसे अपनाया गया। भारतीय स्वास्थ्य गाइडलाइन और डब्ल्यूएचओ मानक के अनुसार बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) तय है। यदि किसी व्यक्ति का बीएमआई 40 से ऊपर है तो वह अपने आप इस सर्जरी के लिए पात्र हो जाता है। 35 से ऊपर के बीएमआई वाले ऐसे लोग, जिन्हें डायबिटीज है, उन्हें लाइफ सेविंग के लिए यह सर्जरी कराने की अनुमति है। अब नई गाइड लाइन के अनुसार 30 बीएमआई वाले डायबिटीज पेशेंट भी सर्जरी करा सकते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और डब्ल्यूएचओ की कई रिसर्च व स्टडी में इसे मंजूरी दी जा चुकी है। यह जरूर है कि बैरिएट्रिक सर्जरी के जरिए हार्मोंस में चेंजेस किया जाता है, जिससे कि फैट न बढ़े, इसी तरह कुछ नई दवा में भी काम करने की बात कही जा रही है। अभी भारत में सरकार की तय गाइडलाइन के अनुसार दो लाख रुपये से बैरिएट्रिक सर्जरी शुरू हो जाती है और यह वन टाइम होता है।
डा. बिंदल कहते हैं कि भारत में बेरिएट्रिक सर्जरी पिछले 50 साल से हो रही है। हमें इसके लंबे रिजल्ट के बारे में जानकारी है। बेरिएट्रिक सर्जरी आज सबसे अच्छा उपाय है, वजन कम करने का और डायबिटीज जैसी बीमारियों से छुटकारा पाने का। यह जो नई दवाई है इसका एक से दो साल का अनुभव है।
मनीष जोशी कहते हैं कि बेरिएट्रिक सर्जरी के विपरीत, माउंजरो में ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं होती है। एल्यूरियन की तरह इंट्रागैस्ट्रिक बैलून वजन घटाने के लिए एक अर्ध-आक्रामक प्रक्रिया है जिसका उपयोग इंजेक्शन के साथ मिलाकर किया जा सकता है। दोनों का उपयोग बेहतर वजन घटाने का कारण बन सकता है, वास्तविक वजन घटाने के मामले में सर्जरी का स्कोर अधिक होता है, हालांकि इसमें सर्जिकल और एनेस्थीसिया जोखिम होता है। जबकि इंट्रागैस्ट्रिक बैलून 4-6 महीने तक रहता है, माउंजारो को नियमित उपयोग की आवश्यकता होती है जबकि बैरिएट्रिक सर्जरी बेहतर और टिकाऊ (दीर्घकालिक) वजन घटाने की प्रक्रिया है।
इन साइड इफेक्ट को जानें, चिकित्सक की सलाह के बिना न लें
डा. अनुपम आनंद कहते हैं कि सामान्यत: इससे कोई बड़ी परेशानी नहीं होती है। इसके कुछ साइड इफेक्ट ऐसे होते हैं जो कि सामान्य और बहुत हल्के होते हैं, जबकि कुछ गंभीर होते हैं। जैसे कि सिर चकराना, डायरिया, मितली होना, सिरदर्द, कब्ज और मांसपेशियों में दर्द आदि। यह सामान्यत : एक से पांच फीसद होते हैं। यह लिपास लेवल (एक तरह का पैंक्रिएटिक एंजाइम), एमालाइज लेवल्स (पैंक्रिएटिक एंजाइम), पैंक्रिइटिस, थॉयरायड सी-सेल जैसे साइड इफेक्ट होते हैं।
डा. विवेक बिंदल कहते हैं कि इसके कुछ साइड इफेक्ट हो सकते हैं, जिसमें उल्टी होना हो सकता है। ऐसे पेशेंट जिनके परिवार में थायराइड या कैंसर रहा, उन्हें नहीं लेना चाहिए। पारिवारिक हिस्ट्री से जुड़ी बड़ी बीमारियों के मरीजों को इसे लेने से बचना होगा। वैसे भी यह दवा बिना किसी एक्सपर्ट डॉक्टर के सलाह के नहीं लेनी चाहिए। डा. विनय कहते हैं कि मोटापा कम करने की दवा देने के लिए विशेषज्ञों से सलाह लेना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह दवा अलग-अलग मरीज पर अलग-अलग परिणाम दे सकती है।
डा. मनीष जोशी कहते हैं कि माउंजारो का उपयोग चिकित्सकीय देखरेख में किया जाना चाहिए। अपने डॉक्टर को अन्य दवाओं, एलर्जी और चिकित्सीय स्थितियों के बारे में सूचित करें। आम दुष्प्रभावों में मतली, दस्त और उल्टी शामिल हैं। नियमित रूप से रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करें और किसी भी गंभीर दुष्प्रभाव की रिपोर्ट करें।
दवा पर निगरानी की जरूरत
डा. विवेक बिंदल कहते हैं कि ऐसी दवाईयों का अभी हमें सेफ्टी प्रोफाइल और परिणाम देखने की जरूरत है। एक बार दवाई चालू होगी तो कब तक चलेगी, दवा छोड़ने पर क्या मोटापा वापस आएगा, यह सब परिणाम देखने होंगे। लंबे समय तक इसे उपयोग करने के लिए यह बहुत महंगी दवा है। ये कुछ मुद्दे हैं, जिसके कारण कहा जा सकता है कि अभी भी बेरिएट्रिक सर्जरी मोटापा कम करने के लिए ज्यादा उचित प्रक्रिया है, जो लंबे समय तक सुरक्षित व प्रभावशील ऑप्शन है। उन मरीजों के लिए खास जिनका बीएमआई 40 से ज्यादा है।
नए स्टडी में नई गाइडलाइन की सिफारिश, 2040 तक भारत में तीन गुना मोटापा बढ़ने का अनुमान
जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया (जेएपीआई) में प्रकाशित हाल ही के एक स्टडी (पेपर) में बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) पर आधारित मोटापे की नई गाइडलाइंस तय करने की सिफारिश की गई है। भारत में किए गए क्रास सेक्शनल स्टडी में 100,531 लोगों के डेटा का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि यहां मोटापे की दर 40.3 फीसदी है। यह अनुमान लगाया गया है कि 20 से 69 साल की आयु के भारतीय वयस्कों में मोटापे की दर 2040 तक तीन गुना औऱ बढ़ जाएगी। 2019 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार भारत में 77 मिलियन डायबिटीज के मरीज हैं और 2045 तक इनकी संख्या बढ़कर 134 मिलियन से ज्यादा हो सकती है। भारत में डायबिटीज से पीड़ित 57 फीसदी लोगों को यह नहीं मालूम है कि उन्हें यह बीमारी है। नए एएसएमबीएस और ईएफएसओ गाइडलाइंस के अनुसार वजन घटाने वाली सर्जरी के लिए रोगी की पात्रता को बढ़ाया गया है। टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों के लिए 30 बीएमआई से शुरू होने वाली मेटाबोलिक सर्जरी की सिफारिश की जाती है। इससे पहले डायबिटीज को मेटाबोलिक और बेरिएट्रिक सर्जरी के लिए स्क्रीनिंग मानदंडों में शामिल नहीं किया गया था। इसके अलावा, 1991 के सर्वसम्मति कथन में 40 से अधिक बीएमआई वाले बच्चों और किशोरों में भी ऐसी सर्जरी की अनुशंसा नहीं की गई थी क्योंकि इन आयु समूहों पर सीमित अध्ययन किए गए थे। अब, नए दिशा-निर्देश मोटापे से संबंधित स्थितियों की उपस्थिति, अनुपस्थिति या गंभीरता की परवाह किए बिना 35 या उससे अधिक बीएमआई वाले व्यक्तियों के लिए बैरिएट्रिक सर्जरी की अनुशंसा करते हैं, साथ ही बीएमआई 30 34.9 और चयापचय रोग वाले लोगों और उचित रूप से चयनित बच्चों और किशोरों के लिए ऐसी प्रक्रियाओं पर विचार करते हैं।
वजन घटाने की सर्जरी के लिए नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, 30 से अधिक बॉडी-मास इंडेक्स (बीएमआई) वाले किसी भी व्यक्ति को बैरिएट्रिक सर्जरी के लिए विचार किया जाना चाहिए।
दस में से तीन स्कूली बच्चे मोटापे से ग्रस्त
भारत में महिलाओं और पुरुषों में बीते तीन दशक में मोटापे में तेजी से इजाफा हुआ है। महिलाओं में मोटापे में आठ गुने की बढ़ोतरी हुई है जबकि पुरुषों में 11 गुना की वृद्धि हुई है। महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 1.2 फीसदी से बढ़कर 2022 में 9.8 फीसदी और पुरुषों में यह 0.5 फीसदी से 5.4 फीसदी हो गई है। जबकि महिलाओं में कम वजन की दर 1990 में 41.7 फीसदी से घटकर 2022 में 13.7 फीसदी और पुरुषों में यह 39.8 फीसदी से 12.5 फीसदी हो गई।
अध्ययन के मुताबिक, भारत में लड़कियों में मोटापे की दर 1990 में 0.1 फीसदी से बढ़कर 2022 में 3.1 फीसदी और लड़कों में यह 0.1 फीसदी से 3.9 फीसदी हो गई है। लड़कियों और लड़कों में मोटापे के मामले में भारत 2022 में दुनिया में 174वें स्थान पर था। विरोधाभास के तौर पर भारत में कम वजन वाले वयस्कों की संख्या सबसे अधिक है। भारत, चीन, जापान (केवल महिलाओं के लिए), इंडोनेशिया, इथियोपिया, और बांग्लादेश में कम वजन वाले लोगों की तादाद अधिक है। 2022 में मोटापे से ग्रस्त महिलाओं और पुरुषों की संख्या 504 मिलियन और 374 मिलियन थी। 1990 के मुकाबले इसमें 377 मिलियन और 307 मिलियन की वृद्धि हुई। 2022 में मोटापे से ग्रस्त वयस्कों की सबसे बड़ी संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और भारत थे। लैंसेट के अध्ययन में भारत की 70% शहरी आबादी को मोटापे या अधिक वजन वाली श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, जिससे देश मोटापे के संकट में है। लैंसेट अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारत में 30 मिलियन वयस्क या तो अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं, और 62 मिलियन मधुमेह भारतीयों में मोटापे से संबंधित विशेषताएं जैसे शरीर में अतिरिक्त वसा, पेट की वसा आदि समस्याओं से ग्रस्त हैं।
चिंता की बात यह है कि बच्चों और किशोरों में मोटापे की दर बढ़ने की यह वैश्विक प्रवृत्ति चिंता का कारण है। दस में से तीन स्कूली बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं, जो भारत में मोटापे की बढ़ती दर का संकेत है। कोविड महामारी के बाद इसमें बढ़ोतरी हुई है।
अधिक भूख को करता है नियंत्रित
डा. मनीष जोशी कहते हैं कि माउंजरो टू गट हार्मोन की नकल करता है जो भूख और रक्त शर्करा को नियंत्रित करते हैं। तृप्ति की भावना को बढ़ाकर और पेट खाली होने को धीमा करके, यह भोजन का सेवन कम करने और ग्लूकोज नियंत्रण में सुधार करने में मदद करता है। मधुमेह और हृदय रोग से पीड़ित लोगों को माउंजरो से लाभ हो सकता है क्योंकि यह हृदय रोग के जोखिम कारकों, रक्त शर्करा और वजन को प्रबंधित करने में मदद करता है।
अधिक कैलोरी लेने और फास्ट फूड से बढ़ सकता है मोटापा
आर्टेमिस हॉस्पिटल्स, गुड़गांव के जनरल एंड मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के डॉ कपिल कोचर कहते हैं कि आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में मोटापे की समस्या किसी महामारी की तरह बढ़ रही है। पिछले कुछ दशक में भारतीय भी इसकी चपेट में तेजी से आए हैं। इसमें चिंताजनक बात यह है कि किशोर और युवावस्था से ही मोटापा बढ़ने की समस्या देखने को मिलने लगी है। मोटापे का कारण जानने से पहले यह समझना होगा कि मोटापा कहते किसे हैं। असल में शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी फैट के रूप में जमा होने लगती है। फैट या चर्बी बढ़ने की इसी प्रक्रिया को मोटापा कहा जाता है।
इसकी परिभाषा से इसका एक कारण स्पष्ट है, वह है जरूरत से ज्यादा कैलोरी लेना। उम्र, शारीरिक गतिविधियों एवं मेटाबोलिक रेट के आधार पर हर व्यक्ति की कैलोरी की जरूरत अलग होती है। महिलाओं और पुरुषों में भी कैलोरी की आवश्यकता अलग होती है। जब कोई व्यक्ति अपने शरीर के लिए जरूरी कैलोरी से अधिक कैलोरी का सेवन बहुत लंबे समय तक करता है, तो मोटापे की आशंका बढ़ जाती है। यही कारण है कि एक जैसा खानपान रखने वाले दो लोगों का वजन अलग-अलग हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि अपने शरीर की आवश्यकता को समझकर कैलोरी का सेवन करें। जहां तक संभव हो व्यायाम व अन्य शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से कैलोरी जलाते भी रहें। इससे शरीर पर चर्बी नहीं चढ़ती है। फास्ट फूड, मैदे से बने खाद्य पदार्थ और बहुत मीठा खाना अक्सर वजन बढ़ने का कारण होता है।
2019 में भारत में हुई 20,000 वजन घटाने वाली सर्जरी
2019 में, देश में लगभग 20,000 वजन घटाने वाली सर्जरी की गईं, जबकि एक दशक पहले केवल 800 सर्जरी हुई थीं। भारत सरकार अब अपने तीन मिलियन सरकारी कर्मचारियों के लिए वजन घटाने वाली सर्जरी की लागत को कवर करती है, जिससे यह प्रक्रिया व्यापक आबादी के लिए अधिक सुलभ हो जाती है। लैंसेट रिपोर्ट ने आगे खुलासा किया कि लगभग 80 मिलियन भारतीयों, जिनमें 5-19 वर्ष आयु वर्ग के 10 मिलियन व्यक्ति शामिल हैं, को मोटापे के रूप में वर्गीकृत किया गया है। आर्टेमिस हॉस्पिटल्स, गुड़गांव के जनरल एंड मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के डॉ कपिल कोचर के अनुसार मोटापा किसी भी कारण से बहुत ज्यादा बढ़ गया हो तो इलाज से भी राहत संभव है। आज की तारीख में कुछ दवाएं हैं, जो मोटापे को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इसके अलावा गैस्ट्रिक बलून प्रोसिजर और सर्जरी की मदद से भी मोटापा कम किया जा सकता है। गैस्ट्रिक बलून प्रोसिजर में पेट में सिलिकॉन का बना एक गुब्बारा डाला जाता है, जो कम खाने में ही पेट भरा अनुभव कराता है। इससे व्यक्ति खाने पर नियंत्रण करते हुए वजन कम करता है। वहीं, सर्जरी के दौरान शरीर से अतिरिक्त चर्बी को हटाया जाता है। मोटापे के इलाज से डायबिटीज एवं हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से भी राहत मिलती है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में भी सामने आई थी बात
देश में कुछ समय पहले आई नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में आया था कि मोटापे से जूझ रहे लोगों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। 22 में से 19 राज्यों में पुरुषों में मोटापा बढ़ा है। वहीं 16 राज्यों में महिलाओं में इसकी वृद्धि देखी गई है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा महिलाओं में मोटापा देखा गया। यह 6.8 फीसदी रहा. जबकि पुरुषों में सबसे ज्यादा मोटापा जम्मू-कश्मीर में देखा गया। वहां यह 11.1 फीसदी रहा।
मोटापे की वजह से दुनिया भर में हेल्थकेयर सिस्टम पर लगातार बोझ बढ़ता जा रहा है। ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार डायबिटीज पर खर्च होने वाली 70 फीसद खर्च की वजह मोटापा होता है। कार्डियोवॉस्कुलर बीमारियों का 23 फीसद खर्च और कैंसर के नौ फीसद खर्च में मोटापा जिम्मेदार होता है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका 2020 से 2050 तक मोटापे पर प्रति व्यक्ति 644 डॉलर खर्च करेगा। यह अमेरिका के हेल्थ पर खर्च किए जाने वाले बजट का 14 फीसद होगा। वहीं कनाडा 2020 से 2050 के दौर में प्रति व्यक्ति मोटापे पर 295 डॉलर खर्च करने लगेगा जो कि उसके हेल्थ बजट का 11 प्रतिशत होगा।
रिपोर्ट के अनुसार 36 में 34 ओईसीडी देश के लोग ओवरवेट हैं और वहां चार में से एक व्यक्ति मोटा है। वहीं इसकी वजह से आयु में 0.9 साल से 4.2 साल तक की कमी हो रही है।
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि मोटापा कुपोषण के सिर्फ एक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि कम वजन या पतलापन स्पेक्ट्रम का दूसरा छोर है। कुपोषण के दोनों रूप हृदय और यकृत जैसे महत्वपूर्ण अंगों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं, जिससे व्यक्तियों को कई प्रकार की बीमारियों का खतरा होता है।
सी.के.बिरला अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन के हेड डा. रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि मोटापा एक बीमारी है। यह ऐसी बीमारी है जो कई अन्य बीमारियों का कारण बनती है। इसका सबसे बड़ा कारण आहार में प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट ओर वसा का होना हे। घर के खाने के बजाय होटल के अधिक कैलोरीयुक्त भोजन का सेवन करने और व्यायाम न करने से से मोटापा बढ़ता है। मोटापा कम करने के लिए खानपान में कम कैलोरी लेना खासकर कार्बोहाइड्रेट जेसे शक्कर, मैदा, ब्रेड, सफेद चावल आदि का सेवन बंद करना आवश्यक है। गेहूं के बजाय ज्वार, बाजरा, या मिस्सी रोटी का सेवन भी मोटापा कम करने के लिए आवश्यक हे। रात को देर से खाना और अधिक कैलोरी का भोजन भी वजन बढ़ने का कारक हैं। नियमित व्यायाम और रोज दस हजार कदम चलना से मोटापे पर नियंत्रण किया जा सकता है।