World Sleep Day: सोने से पहले 80% देखते हैं मोबाइल, इससे नींद के हार्मोन पर असर, 7 घंटे सोना बचाएगा बीमारी से
नींद की कमी से बड़ी बीमारियों की आशंका ज्यादा होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि 7 घंटे से कम की नींद शारीरिक के साथ मानसिक सेहत के लिए खतरनाक है। इससे ही कम उम्र वालों को भी शुगर डायबिटीज मोटापा के साथ हार्ट की बीमारी हो रही है। नींद 7 घंटे से कम होने से मोटापा बीपी हार्ट डायबिटीज के साथ अन्य बीमारी की आशंका बनी रहती है।
नई दिल्ली। संदीप राजवाड़े।
केस 1- दवाई लेने के बाद भी नींद न आने की समस्या बढ़ी
भोपाल की 55 साल की महिला सुमित्रा देवी (परिवर्तित नाम) को डेढ़ साल से नींद की परेशानी थी। वह इसके लिए डॉक्टर से नींद की दवाई लेने लगी थीं। दवा लेने के बाद भी दिक्कत बढ़ती रही तो डॉक्टर की सलाह पर मनोचिकित्सक के पास गईं। जांच में पता चला कि सीरियस डिप्रेशन के कारण उन्हें नींद नहीं आती थी। दिनभर थकान, चिड़चिड़ापन, उदासी और बेचैनी भी रहती थी। उनकी काउंसिलिंग करने के साथ ट्रीटमेंट की गई।
केस 2- नींद न आने से शराब के आदी हुए
रायपुर के 45 साल के सोहन साहू (परिवर्तित नाम) पिछले कुछ समय से बेचैनी महसूस करते थे। नींद न आने से रातभर परेशान रहते थे। जब मनोचिकित्सक ने उनकी हिस्ट्री जानी तो पता चला कि उन्हें दो-तीन साल से नींद न आने की परेशानी है। इस कारण उन्होंने नियमित शराब पीना शुरू कर दिया था। इससे नींद न आने की समस्या और बढ़ गई। शराब पीने से नींद के हार्मोन और प्रभावित होते हैं, इससे उनकी समस्या और बढ़ गई थी।
केस 3- सोने के बाद भी थकान- बेचैनी
गाजियाबाद का 24 साल का आर्यन (परिवर्तित नाम) कुछ महीनों से परेशान था। उसका किसी काम में मन लगता था। मन में कोई बात या विचार चलता रहता था। सोने के दौरान यह समस्या ज्यादा होती थी। सुबह उठने पर थकान लगती थी। परिवार वाले उसे मनोचिकित्सक के पास लेकर गए। जांच में पाया गया कि उसमें कुछ एंजाइटी और ओसीडी के लक्षण थे। इस तरह के मरीजों के दिमाग में थोड़ा तनाव रहता है। इस कारण उसका स्लीप क्वालिटी भी प्रभावित हुई थी। उसका ट्रीटमेंट जारी है।
केस 4- मोबाइल एडिक्शन से देर रात जागने लगा बच्चा
दिल्ली के 14 साल के एक बच्चे को उसकी मां मनोचिकित्सक के पास लेकर आईं। पिछले कुछ महीने से बच्चे के व्यवहार में अंतर दिखाई देने लगा था। उसके अंदर चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ गया था। पता चला कि बच्चा कुछ महीनों से फ्री फॉयर ऑनलाइन गेम खेलता है। उसके ऑनलाइन दोस्त और सोशल ग्रुप भी बन गए थे। वह रात में माता-पिता के सोने के बाद ऑनलाइन गेम और चैटिंग करता था। इसलिए सुबह उठना नहीं चाहता थ। उसका पढ़ाई में भी मन नहीं लगता था।
किसी व्यक्ति को 24 घंटे में कितनी देर सोना चाहिए.. सोने के लिए कोई नियत समय भी होना चाहिए क्या.. 5-6 घंटे सोना क्या सेहत के लिए पर्याप्त है.. अगर कोई व्यक्ति 7-8 घंटे से कम सोता है तो क्या इसका काम व मानसिक सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है.. देर रात जागने और कम नींद लेने से क्या बड़ी बीमारी भी हो सकती है.. ऐसे कई सवाल लोगों के मन में आते रहते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि नींद की कमी से बीपी, शुगर, डायबिटीज, हार्ट जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। नींद के विशेषज्ञों के अनुसार कम सोने के कारण कम उम्र में ये गंभीर बीमारियां होने लगी हैं। इसमें लाइफस्टाइल का सबसे बड़ा योगदान है।
आज वर्ल्ड स्लीप डे पर जागरण प्राइम ने लाइफ स्टाइल और गलत आदतों के कारण नींद की कमी के बढ़ते मामलों और उसके शरीर पर होने वाले प्रभाव को लेकर नींद विशेषज्ञ और मनोचिकित्सकों से बात की। स्लीप फाउंडेशन और इंडियन सोसायटी ऑफ स्लीप रिसर्च के डेटा व विशेषज्ञों से बात की। इस दौरान जाना कि कैसे भारत समेत दुनियाभर में लोगों की सोने की अवधि कम होती जा रही है, इसके बुरे परिणाम सामने आ रहे हैं।
नींद विशेषज्ञों का कहना है कि 80 फीसदी से ज्यादा लोग सोने के दौरान बेड में मोबाइल देखते हैं, इससे नींद आने की क्षमता प्रभावित होती है। खानपान, कसरत न करना, शराब-सिगरेट का सेवन और शाम या देर रात चाय-कॉफी की आदत नींद लाने वाले मेटाटोनिन हार्मोन को प्रभावित करता है।
अगर 18 साल से ऊपर का व्यक्ति 7 घंटे से कम सोता है तो उसे गंभीर बीमारी होने का खतरा बना रहता है। आजकल 40 से कम उम्र वाले अधिकतर लोगों में देर रात तक जागने और सोने के पहले तक इलेक्ट्रानिक्स गैजेट्स का इस्तेमाल करने की आदत बढ़ी है, इससे उनकी नींद कम हुई है। इसके अलावा देर रात तक जागने और सुबह देर तक सोने से भी शरीर के साथ मानसिक सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी की रिसर्च में सामने आ चुका है कि 7-8 घंटे सोने वालों की तुलना में सिर्फ 5 घंटे सोने वालों में बड़ी बीमारियों का खतरा 20 फीसदी ज्यादा होता है।
नींद की कमी से मानसिक सेहत और कार्यक्षमता पर बुरा असर
एम्स दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर फिजियोलॉजी और इंडियन सोसायटी फॉर स्लीप रिसर्च के प्रेसीडेंट डॉ एचएन मलिक ने बताया कि नींद का महत्व और अनुशासन यह है कि इससे पूरा शरीर औऱ कार्यक्षमता पर फर्क पड़ता है। नींद 7 घंटे से कम होने से वजन बढ़ना, मोटापा, बीपी, हार्ट, डायबिटीज के साथ अन्य बीमारी की आशंका बनी रहती है। तय समय से कम नींद लेने पर दिन में आलस, थकान और चिड़चिड़ापन भी रहता है, इससे प्रोफेशनल लाइफ प्रभावित होने के साथ सड़क हादसे जैसी घटनाएं भी होती हैं।
डॉ मलिक ने बताया कि खर्राटे लेना, बीच-बीच में नींद का टूटना और असमय सोने से शरीर पर बुरा असर पड़ता है। कम नींद के कारण मोटापा, बीपी और डायबिटीज की समस्या ज्यादा देखने में आ रही है।
कम नींद की समस्या 50-60 फीसदी तक बढ़े
दिल्ली की जानी-मानी सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट और नींद विशेषज्ञ डॉ. मनवीर भाटिया ने बताया कि आज नींद न आने, कम सोने, देर रात तक जागने के अनेक मरीज आते हैं। कोरोना के बाद यह मामले औऱ बढ़ गए हैं। इस तरह के मामले पहले जहां 20 से 30 फीसदी थे, वह अब 50-60 फीसदी तक पहुंच गए हैं। नींद की कमी से मानसिक बीमारी, एंजाइटी, डिप्रेशन के मामले बढ़े हैं। यह जरूर देखने में आया है कि इस तरह के लक्षणों में लोग इलाज की जगह खुद नींद की गोली या नशा-शराब का सेवन शुरू कर देते हैं। इससे यह बीमारी औऱ बढ़ जाती है।
डॉ. भाटिया ने बताया कि इस साल डब्ल्यूएचओ की थीम थी, नींद पूर्ण स्वास्थ्य की जरूरत। नींद के महत्व को इससे समझा जा सकता है कि इससे हमारी सेहत, काम औऱ प्रोफेशनल परफॉर्मेंस जुड़ी है। हमारे शरीर को तीन चीजें प्रभावित करती हैं, फिजिकल एक्टिविटी, खानपान और नींद की क्वालिटी। तय समय औऱ पूर्ण नींद नहीं होने से शरीर, मस्तिष्क, इमोशन और हार्ट सभी प्रभावित होते हैं। अगर 7 घंटे से कम नींद ले रहे हैं तो बीपी, डायबिटीज, मोटापा, हार्ट, ब्रेन से जुड़ी बीमारी का आशंका बनी रहती है।
आदत सुधारें और लक्षण पहचानें
भोपाल की मनोचिकित्सक डॉ. समीक्षा साहू ने बताया कि नींद की कमी एक बीमारी की तरह है। इसे लेकर लोग जागरूक नहीं हैं। कई मरीज बिना किसी डॉक्टर को दिखाए, दूसरों के कहने पर नींद की दवा तो कुछ शराब पीना शुरू कर देते हैं। उन्हें लगता है कि इससे नींद आसानी से आ जाएगी। जबकि दोनों दिक्कत बढ़ाने वाले होते हैं। कई केस आते हैं जिनमें कम नींद आने से डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, काम में फोकस न कर पाना व व्यवहार में बदलाव होता है। लोगों को पता ही नहीं होता है कि वे स्लीप डिस्ऑर्डर या स्लीप एपनिया की बीमारी से ग्रसित हैं।
डॉ. समीक्षा ने बताया कि आज नींद न आना या कम सोने के पीछे सबसे बड़ी वजह मोबाइल में स्क्रीन टाइम ज्यादा होना है। इस कारण नेचुरल मेलाटोनिन का प्रोड्क्शन या रेग्युलेशन प्रभावित होता है, इससे नींद नहीं आती है या नींद पूरी नहीं हो पाती है। इससे पूरे दिन शरीर थकान भरा होता है और ओवरऑल प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है।
रिसर्च- 5 घंटे सोने वालों में 20% जानलेवा बीमारी का खतरा
रोजाना पांच घंटे या उससे कम समय सोने वालों में गंभीर बीमारियों का खतरा भी ज्यादा होता है। पीएलओएस (पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस) मेडिसिन जर्नल में पिछले साल अक्टूबर 22 में प्रकाशित रिसर्च में बताया गया कि 50, 60 और 70 की उम्र वाले वे लोग जो रोजाना 5 घंटे या उससे कम सोते हैं, उन्हें प्रतिदिन 7 घंटे नींद लेने वालों की तुलना में जानलेवा गंभीर बीमारी की आशंका ज्यादा रहती है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन की इस रिसर्च में 7864 लोगों के आंकड़े शामिल हैं। इनकी 1985 से 2016 के दौरान मॉनिटरिंग की गई, हर 10 साल उनकी नींद की अवधि औऱ बीमारी का आकलन किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन लोगों ने 5 घंटे या उससे कम समय नींद ली, उनमें डायबिटीज, दिल की बीमारी और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। 50 साल की उम्र में रोजाना पांच घंटे नींद नहीं लेने वाले लोगों को पुरानी बीमारी होने का खतरा 7 घंटे सोने वालों की तुलना में बढ़ा मिला।
अच्छी- पूरी नींद करता है दिमाग की सर्विसिंग
डॉ. भाटिया ने बताया कि सामान्य भाषा में यह समझा जा सकता है कि जिस तरह हम अपनी गाड़ी की सफाई और उसके इंजन को दुरुस्त करने के लिए सर्विसिंग कराते हैं, उसी तरह दिमाग की सफाई के लिए नींद जरूरी है। वह दिमाग की सर्विसिंग है। अच्छी नींद होने से दिमाग फिल्टर हो जाता है। अगर कोई भी व्यस्क नियमित तौर पर 7 घंटे या उससे ज्यादा की नींद तय समय पर लेता है तो उसका शारीरिक फिटनेस बेहतर रहेगा।
सोने के आधा घंटा पहले मोबाइल छोड़ दें
डॉ भाटिया ने बताया कि आज 80 फीसदी से ज्यादा लोग बेड में जाने के दौरान या सोने के पहले तक मोबाइल देखते हैं। इसके साथ ही चाय-कॉफी पीने की आदत कम करना चाहिए। जहां तक हो, शाम को चाय या कॉफी न पीएं। एक कप कॉफी पीने से उसके अंदर मौजूद कैफीन की मात्रा के कारण नींद का हार्मोन मेलाटोनिन प्रभावित होता है। कॉफी पीने से कैफीन का असर 5-6 घंटे बना रहता है। डॉ. समीक्षा ने बताया कि नींद की कमी होने पर सबसे पहले लोगों को अपनी आदतें सुधारनी होंगी। वे देर रात की बजाय नियमित समय पर 7-8 घंटे की नींद लें। समस्या होने पर खुद दवा न लेकर विशेषज्ञ डॉक्टर या मनोचिकित्सक को दिखाएं।
नींद से टूटने से मानसिक सेहत पर बुरा असर
- 40 साल से ऊपर के 69% पुरुष और 76% महिलाएं रात में एक बार बाथरूम के लिए उठती हैं।
- अमेरिका में लगभग 44 फीसदी पुरुष और 28 फीसदी महिलाएं खर्राटे लेते हैं।
- 50 फीसदी गर्भवती महिलाओं में नींद न आने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
- 60 प्रतिशत को बार-बार नाराजगी होने से नींद में बुरा असर पड़ता है।
- नींद की कमी से 40 फीसदी लोगों की मानसिक सेहत पर असर पड़ता है।
- 75 फीसदी व्यस्क कम नींद के कारण अवसाद से पीड़ित हैं।
(सोर्स- स्लीप फाउंडेशन)
बच्चों को 12 घंटे से ज्यादा नींद की जरूरत
- बच्चों को 12-17 घंटे नींद की जरूरत होती है। उम्र के आधार पर यह 11-14 घंटे के बीच होना चाहिए।
- समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे दिन में 90 फीसदी समय सोने में बिताते हैं।
- 13 से 19 उम्र तक प्रति रात औसत नींद 40 से 50 मिनट कम हो जाती है।
- तीन से छह साल के करीबन आधे बच्चे सोने के दौरान डरावने सपने देखते हैं।
- 70% बच्चों को अटेंशन-डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) के साथ हल्के से लेकर गंभीर नींद की समस्या होती है।
(सोर्स- स्लीप फाउंडेशन)
स्लीप हाइजीन का रखें ध्यान
- स्लीप हाइजीन के लिए बेडरूम की सेटिंग के साथ आपकी आदतें सुधारें।
- हर दिन के साथ वीकेंड पर भी सोने का निर्धारित शेड्यूल बनाएं।
- सोने के लिए अच्छा गद्दा के साथ तकिए का चयन करें।
- सोने के कमरे में तापमान को कंट्रोल के साथ लाइट और ध्वनि के व्यवधानों को कम करें।
- सोने के आधे घंटे या उससे अधिक समय पहले अनिवार्य रूप मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल बंद कर दें।
- सोने से 4-5 घंटे पहले कैफीन और शराब के सेवन से बचें।