हरेंद्र प्रताप। पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट की घटना के बाद वहां अराजकता फैली हुई है। ऐसे में वहां से एक बार फिर बड़े पैमाने पर घुसपैठियों के भारत आने की आशंका पैदा हो गई है। इससे झारखंड, असम और बंगाल जैसे राज्य प्रभावित हो सकते हैं। वैसे बांग्लादेश से मुस्लिमों की घुसपैठ की समस्या दशकों पुरानी है।

आजादी के बाद वर्ष 2011 तक राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू 4.28 प्रतिशत घटे, लेकिन झारखंड के संताल परगना में हिंदू 22.42 प्रतिशत घटे। कुल जनसंख्या में जनजाति/आदिवासी समाज भी 44.66 से घटकर 28.11 प्रतिशत पर आ गया। यानी इसकी आबादी में 16.55 प्रतिशत की कमी आई। राष्ट्रीय स्तर पर ईसाई जनसंख्या वृद्धि दर 231 प्रतिशत थी तो संताल परगना में यह 6748 प्रतिशत से ज्यादा थी। राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम भले ही 4.31 प्रतिशत बढ़े हों, पर संताल परगना में 13.3 प्रतिशत बढ़े। इस कारण वहां जनजाति समाज का पलायन हो रहा है।

वर्ष 1951 में संताल परगना की कुल जनसंख्या 23,22,092 थी, जिसमें हिंदू 20,98,492 (90.37 प्रतिशत), मुस्लिम 2,19,240 (9.43 प्रतिशत) तथा ईसाई 4,289 (0.18 प्रतिशत) थे। कुल जनसंख्या में जनजातीय लोग 10,37,167 (44.66 प्रतिशत) थे। 2011 की जनगणना में संताल परगना की कुल जनसंख्या 69,69,097 हो गई, जिसमें हिंदू 47,35,723 (67.95 प्रतिशत), मुस्लिम 15,84,285 (22.73 प्रतिशत), ईसाई 2,93,718 (4.21 प्रतिशत) थे। कुल जनसंख्या में जनजातीय लोग 19,59,133 (28.11 प्रतिशत) थे।

संताल परगना अब पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा, देवघर, दुमका और जामताड़ा यानी छह जिलों में बंट गया है। आंकड़े बताते हैं कि 1961 से 2011 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम आबादी 3.54 प्रतिशत बढ़ी, पर इनकी आबादी साहिबगंज में 14.7 प्रतिशत, पाकुड़ में 13.84 प्रतिशत, जामताड़ा में 8.91 प्रतिशत, गोड्डा में 7.39 प्रतिशत तथा देवघर में 5.82 प्रतिशत बढ़ी। इसी दौरान जनजाति/आदिवासी समाज की जनसंख्या पाकुड़ में 14.53 प्रतिशत तथा साहिबगंज में 12.66 प्रतिशत घटी।

संताल परगना की आबादी में हो रहे इस अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव को देखते हुए गत वर्ष झारखंड हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। इसमें यह आरोप लगाया गया कि झारखंड के कुछ जिलों में सुनियोजित तरीके से मुस्लिमों की घुसपैठ कराई जा रही है तथा आदिवासी लड़कियों से विवाह कर उनका मतांतरण कराया जा रहा है।

वहां स्थित मदरसों में देश विरोधी कार्य हो रहे हैं। ऐसे 46 मदरसों की सूची भी न्यायालय को सौंपी गई। इस पर कोर्ट ने केंद्र एवं राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। राज्य सरकार की विशेष शाखा ने भी प्रदेश के सभी उपायुक्तों, पुलिस अधीक्षकों को एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रवेश की सूचना मिली है।

ये घुसपैठिये विभिन्न मदरसों में आकर ठहरते हैं, सरकारी दस्तावेज तैयार कर अपना नाम मतदाता सूची में चढ़वाते हैं और यहीं बस जाते हैं। इनके अन्य जिलों में भी प्रवेश की आशंका है। इसके बावजूद राज्य सरकार के अधिकारियों ने कोर्ट में दिए शपथपत्र में घुसपैठ को अस्वीकार कर दिया। इस पर नाराज कोर्ट ने आइबी, बीएसएफ और चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाया है तथा सभी को शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है। अब राज्य सरकार ने भी जवाब दाखिल करने के लिए फिर से समय की मांग की है।

संताल परगना बहुत पहले से इस्लामिक ताकतों की नजर में रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना में 5,857 मुस्लिम जनजाति दर्ज हैं। इन दिनों जनजाति लड़कियों से मुसलमान लोभ-लालच देकर विवाह कर रहे हैं, ताकि वे जनजाति समाज की भूमि पर कब्जा कर सकें। उनकी जमीनों को कब्जा करने के लिए लव जिहाद चलाया जा रहा है। संताल परगना में मुस्लिम राजनीति भी काफी प्रभावी है। जिस इलाके में मुस्लिम प्रभावी हो जाते हैं उसे काटकर अलग प्रखंड बनवा लेते हैं।

जैसे कि देवघर जिले के कैरो प्रखंड में 1961 में मुस्लिम आबादी मात्र 23 प्रतिशत थी। इससे काटकर मार्गो मुंडा प्रखंड बनाया गया है, जहां अब मुस्लिम आबादी 48.35 प्रतिशत हो गई है। गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड में 1961 में मुस्लिम आबादी 19.18 प्रतिशत थी। इससे काटकर बसंतराई प्रखंड बना है जहां अब मुस्लिम आबादी 50.02 प्रतिशत है।

साहिबगंज जिले के राजमहल से काटकर बने उधवा प्रखंड में भी मुस्लिम आबादी अब 63.73 प्रतिशत है। इन बांग्लादेशी घुसपैठियों ने संताल परगना में आतंक मचा रखा है। साहिबगंज की रेबिका पहाड़िन और दुमका की अंकिता सिंह की निर्मम हत्या की कहीं राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा नहीं हुई। दिलदार अंसारी ने रेबिका के 50 टुकड़े कर दिए थे। वहीं अंकिता सिंह को नईम ने पेट्रोल डाल कर जला दिया था।

झारखंड में 2016 में बनी स्थानीय/डोमिसाइल नीति इस समस्या को और बढ़ा रही है, जो बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों एवं घुसपैठियों में अंतर नहीं करती। भूमिहीन के मामले में ग्रामसभा को पहचान का जो अधिकार दिया गया है, उसका लाभ लेकर मुस्लिम मुखिया एवं सरपंच के माध्यम से घुसपैठिये स्थानीय होने का कागज बनवा लेते हैं।

विगत पांच दशक में असम में मुस्लिम जनसंख्या 8.92 प्रतिशत बढ़ने पर न्यायालय ने एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) बनाने का आदेश दिया था। जबकि झारखंड के साहिबगंज और पाकुड़ जिले में तो 14 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी बढ़ी है। मुस्लिम आबादी में हुई यह भारी वृद्धि भारतीय मुसलमानों के कारण नहीं, बल्कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण है। झारखंड हाई कोर्ट ने इन घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें देश से निकालने के लिए जो पहल की है वह स्वागतयोग्य है। आशा है कोर्ट एनआरसी की भी पहल करेगा।

(लेखक बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हैं)