चुनाव प्रचार के लिए जम्मू-कश्मीर पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह जो कहा कि पाकिस्तान से उसी सूरत में बातचीत हो सकती है जब वह आतंकवाद को समर्थन देना बंद करे, उसकी प्रतिक्रिया सीमा के दोनों ओर होना तय है। इसका कारण यह है कि उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लोग भारत से मिलना पसंद करेंगे, क्योंकि पाकिस्तानी शासक उन्हें विदेशियों की तरह देखते हैं।

यह एक सच्चाई भी है। पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर के लोगों का जैसा दमन और शोषण कर रहा है, उसके कई प्रमाण सामने आ चुके हैं। इसी दमन और शोषण के चलते जब-तब वहां पाकिस्तान के खिलाफ सड़कों पर उतरकर लोग भारत जाने की अनुमति भी मांगते रहते हैं।

वहां के लोग यह अच्छी तरह देख रहे हैं कि भारतीय भूभाग में किस तरह तेजी से विकास हो रहा है और उन्हें किस तरह पाकिस्तान की ओर से ठगा जाता रहा है। कहना कठिन है कि रक्षा मंत्री के बयान पर पाकिस्तान क्या कहता है, लेकिन इसके आसार कम ही हैं कि वह आतंकवाद को सहयोग-समर्थन देने से बाज आएगा।

रक्षा मंत्री ने अपने वक्तव्य के जरिये नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस को भी निशाने पर लिया। उनके लिए ऐसा करना इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के नेता पाकिस्तानपरस्ती का परिचय देते हुए उससे बात करने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन ऐसा करते हुए वे यह रेखांकित नहीं करते कि वार्ता के लिए उसे आतंकवाद पर लगाम लगानी होगी।

नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद-370 की वापसी का भी सपना दिखा रहे हैं। यह दिवास्वप्न के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि अब इस विभाजनकारी और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले अनुच्छेद की वापसी संभव नहीं और इसीलिए रक्षा मंत्री ने डंके की चोट पर कहा कि किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं कि वह इस अनुच्छेद को वापस ला सके।

ऐसा कहते हुए उन्होंने कांग्रेस को भी निशाने पर लिया, जो कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है और अनुच्छेद-370 की वापसी के उसके वादे पर मौन धारण किए हुए है। कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि क्या वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणापत्र में किए गए वादों से सहमत है।

उसे यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह उमर अब्दुल्ला के इस आकलन से सहमत है कि संसद पर हमले की साजिश रचने वाले अफजल गुरु को फांसी की सजा देने से कुछ हासिल नहीं हुआ।

यह अलगाववाद और आतंकवाद के दौर की वापसी के समर्थकों की हमदर्दी हासिल करने वाला ही बयान है और इसीलिए राजनाथ सिंह ने उन पर कटाक्ष किया कि अफजल को फांसी न दी जाती तो क्या उसके गले में हार डाले जाते। यह विडंबना ही है कि कांग्रेस उमर अब्दुल्ला के इस बयान पर भी चुप्पी साधे है, जबकि उसे फांसी की सजा मनमोहन सिंह सरकार के समय ही दी गई थी।