ट्रेन की पटरियों पर सीमेंट के ब्लाक, सिलेंडर, लोहे की छड़ें, पेड़ के मोटे तने आदि रखे जाने की घटनाएं महज दुर्योग नहीं हो सकतीं। ये घटनाएं किसी बड़ी साजिश का हिस्सा जान पड़ती हैं। इसकी आशंका इसलिए गहराती जा रही है, क्योंकि इस तरह की घटनाएं जल्दी-जल्दी हो रही हैं। जहां कुछ घटनाओं में समानता देखने को मिल रही है, वहीं कुछ यह संकेत कर रही हैं कि उनके पीछे ट्रेन को पलटाने का इरादा था।

उदाहरणस्वरूप रविवार को कानपुर-कासगंज के जिस ट्रैक पर कालिंदी एक्सप्रेस गुजरनी थी, उस पर एलपीजी भरा सिलेंडर रखा गया। लोको पायलट उसे देखकर जब तक ब्रेक लगाता, ट्रेन उससे टकरा गई। सौभाग्य से कोई क्षति नहीं हुई, लेकिन घटनास्थल पर जिस तरह पेट्रोल से भरी बोतल, बारूद जैसा पदार्थ, माचिस आदि मिली, उससे यही संदेह होता है कि यह आतंकी तत्वों का काम हो सकता है। इसी कारण इस मामले की जांच में एनआइए भी जुट गई। इसके पहले कानपुर के पास ही साबरमती एक्सप्रेस के ट्रैक पर सीमेंट के ब्लाक रख दिए गए थे। इससे इस ट्रेन के 22 डिब्बे पटरी से उतर गए थे। इस घटना की जांच भी आतंकी घटना मानकर की जा रही है। कानपुर के समीप इसी तरह की एक अन्य घटना भी हो चुकी है। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी ट्रेनों को पटरी से उतारने की कोशिश के कई मामले सामने आ चुके हैं। गत दिवस अजमेर में मालगाड़ी को पटरी से उतारने के इरादे से ट्रैक पर 70-70 किलो के सीमेंट के ब्लाक रखे गए।

यह सही है कि कई बार शरारती तत्व रेलवे ट्रैक से छेड़छाड़ करते हैं या फिर ट्रेनों पर पथराव कर देते हैं, लेकिन इधर ट्रेनों को जिस तरह निशाना बनाया जा रहा है, वह शुभ संकेत नहीं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि रेल पटरियों पर भारी वस्तु रखकर ट्रेनों को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं को रेलवे ने आतंकी साजिश मानते हुए उन सभी की जांच का जिम्मा एनआइए को सौंप दिया है।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भी इन मामलों को गंभीर बता चुके हैं। यह ठीक है कि इन मामलों की जांच एनआइए कर रही है, लेकिन जब तक वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती, तब तक देश भर में पुलिस को विशेष सतर्कता बरतनी होगी। इसके साथ ही आम लोगों को भी सावधान रहना होगा। उन्हें रेलवे ट्रैक के आसपास की गतिविधियों पर निगाह रखनी होगी और कुछ संदिग्ध या अस्वाभाविक दिखने पर संबंधित अधिकारियों को सूचना देने के लिए तत्पर रहना होगा। शरारती और आतंकी तत्वों के इरादों को नाकाम करने में आम लोगों को सहायक बनना ही चाहिए। निःसंदेह इस सबके साथ रेलवे को भी अपनी सतर्कता बढ़ानी होगी। उसे उन कारणों पर गौर करना होगा, जिनके चलते ट्रेनों को आसान निशाना समझ लिया गया है।