राजीव सचान। देश में सिहरन पैदा करने वाले कन्हैयालाल हत्याकांड के आरोपित मोहम्मद जावेद को राजस्थान उच्च न्यायालय ने 5 सितंबर को यह कहते हुए जमानत दे दी कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए उसके खिलाफ पर्याप्त प्रमाण नहीं जुटा सकी। उच्च न्यायालय के अनुसार, एनआइए ने जावेद की गिरफ्तारी काल डिटेल के आधार पर की, लेकिन वह उसकी लोकेशन नहीं दिखा सकी। जावेद को जमानत मिलने पर एनआइए के पास अपने पक्ष में कहने के लिए कुछ न कुछ अवश्य होगा, लेकिन उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उसकी क्षमता पर सवाल तो खड़े ही हुए। यह गंभीर सवाल भी खड़ा हुआ कि आखिर इतने बर्बर हत्याकांड के दोषियों को सजा कब मिलेगी?

खौफ पैदा करने वाली यह घटना जून 2022 में तब घटी थी, जब देश में ‘गुस्ताखे रसूल की एक ही सजा, सिर तन से जुदा..’ के नारे लग रहे थे। ये नारे इसलिए लग रहे थे, क्योंकि तत्कालीन भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने टीवी पर बहस के दौरान शिवलिंग पर अपमानजनक टिप्पणी के जवाब में इस्लामिक मान्यताओं के बारे में एक तथ्यात्मक बात तंजपूर्ण लहजे में कह दी थी। इसका विरोध शुरू हुआ तो भाजपा ने उन्हें निलंबित कर दिया। इसलिए और भी, क्योंकि कतर एवं कुछ और इस्लामी देशों ने उनकी टिप्पणी पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद देश के कई हिस्सों में सिर तन से जुदा के नारे लगाती हुई उन्मादी भीड़ सड़कों पर उतरी और उन लोगों को धमकाया जाने लगा, जो फेसबुक, वाट्सएप आदि पर नुपुर शर्मा का समर्थन कर रहे थे।

नुपुर के समर्थन वाला एक संदेश उदयपुर के दर्जी कन्हैयालाल ने भी शेयर कर दिया था। इसका पता लगते ही उनके कुछ मुस्लिम परिचितों ने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया। उन्होंने वह संदेश डिलीट कर दिया और माफी भी मांग ली, लेकिन उन्हें धमकियां मिलनी बंद नहीं हुईं। उन्होंने पुलिस में शिकायत की तो उसने उनका और उन्हें धमकाने वालों के बीच समझौता करा दिया, लेकिन जिहादी सोच वाले उनका गला काटकर ही माने। वे इतने दुस्साहसी थे कि उन्होंने इस वहशियाना हरकत का वीडियो बनाकर पोस्ट कर दिया। एक अन्य वीडियो में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को भी धमकाया।

यह स्वाभाविक है कि कन्हैयालाल हत्याकांड की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई। इसे आतंकी घटना मानकर जांच एनआइए को सौंप दी गई, लेकिन 26 महीने बाद पता चल रहा है कि वह कन्हैयालाल की हत्या की साजिश में शामिल रहे जावेद के खिलाफ पुख्ता प्रमाण नहीं जुटा सकी। इस मामले में कुल 11 लोग आरोपित बनाए गए थे। इनमें दो पाकिस्तानी भी थे, जो कन्हैयालाल का गला काटने वालों से एक वाट्सएप ग्रुप के जरिये जुड़े थे। इन पाकिस्तानियों का तो कुछ नहीं किया जा सकता, लेकिन जिन्हें कन्हैयालाल की हत्या में गिरफ्तार किया गया, उन्हें तो अब तक सजा दिलाई ही जा सकती थी। वकीलों की मानें तो इस मामले में ट्रायल लंबा चलेगा और अभी कम से कम चार-पांच वर्ष और लग सकते हैं। पता नहीं आगे कब, क्या होगा, लेकिन इससे दयनीय और कुछ नहीं कि ऐसे जतन नहीं किए जा सके कि इतने गंभीर मामले की सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर हो सकती।

कन्हैयालाल की तरह से अमरावती के उमेश कोल्हे की भी नुपुर शर्मा का समर्थन करने के ‘अपराध’ में हत्या कर दी गई थी। जैसे यह पता नहीं कि कन्हैयालाल के हत्यारों को कब सजा मिलेगी, वैसे ही यह भी जानना कठिन है कि उमेश कोल्हे के हत्यारे कब सजा पाएंगे। ऐसे मामलों के निस्तारण में देरी इसलिए निराश और चिंतित करने वाली है, क्योंकि देश में जिहादी तत्वों की गतिविधियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं। बीते दिनों ही यह खबर आई कि बेंगलुरु के रामेश्वरम कैफे में धमाका करने वाले आतंकियों ने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन भाजपा के कार्यालय में विस्फोट करने की योजना बना रखी थी। ये आतंकी इस्लामिक स्टेट से प्रेरित थे और उन्होंने अल-हिंद नाम से अपना आतंकी संगठन बना रखा था। देश में इस तरह के न जाने कितने संगठन हैं। कोई इस्लामिक स्टेट के बताए रास्ते पर चल रहा है तो कोई अलकायदा, लश्कर-ए-तोइबा आदि के रास्ते पर। यह भी किसी से छिपा नहीं कि पीएफआइ जैसे आतंकी संगठनों पर भारत को इस्लामी देश बनाने की सनक सवार है। इन स्थितियों में होना यह चाहिए कि आतंकियों, जिहादियों को प्राथमिकता के आधार पर जितनी जल्दी संभव हो, सजा दी जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। आश्चर्य नहीं कि इसी के चलते नुपुर शर्मा को अभी भी सुरक्षा के साये में नजरबंदी जैसा जीवन जीना पड़ रहा है।

कन्हैयालाल हत्याकांड के एक आरोपित को जमानत मिलना इसलिए और निराशाजनक है, क्योंकि राजस्थान विधानसभा चुनाव के अवसर पर एक चुनावी रैली में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि राजस्थान में खुलेआम गला काट दिया जाता है और सरकार देखती रहती है। उनके निशाने पर तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार थी। इस पर हैरानी नहीं कि कन्हैयालाल हत्याकांड के आरोपित को जमानत मिल जाने से अशोक गहलोत को यह कहने का मौका मिला कि भाजपा ने चुनावी लाभ के लिए इस हत्याकांड का राजनीतिक इस्तेमाल किया, किंतु केंद्र सरकार की एनआइए ने दोषियों को सजा दिलाने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। इस राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच कन्हैयालाल के परिवार वालों और विशेष रूप से उनके बेटे का निराश होना समझ आता है, जिसने यह संकल्प ले रखा है कि जब तक उसके पिता के हत्यारों को फांसी की सजा नहीं मिलती, तब तक वह नंगे पैर रहेगा और पिता की अस्थियों का विसर्जन भी नहीं करेगा। यह अधूरा संकल्प आतंक से लड़ने की हमारी कमजोर इच्छाशक्ति का ही परिचायक है।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)