कौसर जहां। वक्फ बोर्ड अधिनियम में संशोधन पर संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी में चर्चा चल रही है। उसने इस अधिनियम में संशोधन को लेकर आम लोगों से भी सुझाव मांगे हैं। उम्मीद है कि व्यापक विचार-विमर्श के उपरांत जल्द ही इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उन्हें आज नहीं तो कल यह समझ आएगा कि यह उनकी भूल थी। यह सुधार मुस्लिम समाज की बेहतरी के लिए है। सुधार पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के चंगुल से मुक्त होने का रास्ता तलाशने के लिए है। आज मुस्लिम समाज के बीच इसकी छटपटाहट है कि वह कैसे स्वयं को कट्टरपंथी तत्वों के दबाव से मुक्त करके सुधारों का हिस्सा बने।

मुस्लिम समाज चाहता है कि विकास में कौम की भागीदारी बढ़े। मुस्लिम महिलाएं उन बेड़ियों से मुक्त होना चाहती हैं, जो उनकी समान भागीदारी की राह में रोड़ा हैं। कोई भी समाज अपनी महिलाओं को पीछे रखकर आगे नहीं बढ़ सकता। जब मोदी सरकार ने तीन तलाक प्रथा खत्म करने का कानून बनाया तो सबसे अधिक खुश मुस्लिम महिलाएं ही थीं। वक्फ में महिलाओं की भागीदारी से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। मुस्लिम महिलाएं निर्णय लेने की प्रक्रिया से जुड़ेंगी तो इस संस्था में नए विचार भी आएंगे। वक्फ की मौजूदा व्यवस्था में सुधार का प्रस्तावित कदम बहुत पहले उठाया जाना चाहिए था, लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद।

वक्फ अधिनियम में जो संशोधन प्रस्तावित किए हैं, उनसे वक्फ बोर्ड ज्यादा प्रभावी रूप से काम कर पाएंगे। ये सच्चर कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप हैं, जिसकी वकालत यूपीए के नेता किया करते थे। वक्फ कानून में संशोधन संविधान की भावना के अनुरूप हैं। ओवैसी और विपक्ष के जो अन्य नेता वक्फ सुधार को संविधान के खिलाफ मानते हैं, उन्हें संविधान फिर से पढ़ना चाहिए। संविधान की बुनियाद ही बराबरी के सिद्धांत पर टिकी है। जो लोग इसे धार्मिक मामले में दखल बता रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि यह इबादत नहीं, बल्कि संपत्तियों के प्रबंधन का मामला है। वक्फ संपत्तियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए वक्फ बोर्डों को चुनिंदा लोगों के चंगुल से मुक्त करना जरूरी है।

वक्फ अधिनियम में संशोधन करके एक पारदर्शी, जवाबदेह और समान प्रतिनिधित्व की व्यवस्था लागू करने का ही प्रयास किया जा रहा है। प्रस्तावित संशोधनों में जहां मुस्लिम समुदाय के उपेक्षित तबकों की भागीदारी की चिंता की गई है, वहीं महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने की भी पहल की गई है। ऐसा करके सरकार ने अपना यही सोच सामने रखा है कि विकसित भारत का संकल्प पूरा करना है तो महिलाओं को हर स्तर पर प्रतिनिधित्व देना होगा। यदि यह कोशिश की जा रही है कि वक्फ की संपत्तियों का दुरुपयोग न हो, उनका सही मूल्यांकन किया जाए और भ्रष्टाचार की गुंजाइश खत्म करके संपत्ति के अनुपात में राजस्व की व्यवस्था हो तो इसमें क्या बुराई है?

कोई भी निकाय तभी प्रभावी होता है, जब उसके संचालन और प्रबंधन में पारदर्शिता हो। यही प्रयास नए संशोधनों के माध्यम से सरकार ने किया है। नए प्रविधानों में यह व्यवस्था है कि वक्फ संपत्ति को निष्पक्ष तरीके से चिह्नित किया जाए और अगर कोई विवाद है तो उसका समुचित तरीके से निस्तारण हो। इन संशोधनों से वक्फ बोर्ड व्यापक पारदर्शिता से काम करेंगे और अधिक जवाबदेह होंगे। नई व्यवस्था में मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्गों, शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी आदि को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। केंद्रीय परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में दो महिलाओं को रखना अनिवार्य होगा। इसमें किसी के अधिकार कम करने के बजाय ज्यादा लोगों को जिम्मेदारी दी जाएगी। वक्फ कानून में संशोधन कर एक केंद्रीय पोर्टल और डाटाबेस के माध्यम से वक्फ के पंजीकरण के तरीके को सुव्यवस्थित किया जाएगा। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल की संरचना में सुधार किया जाएगा। ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील के लिए 90 दिनों की सीमा निर्धारित की गई है। इससे विवाद कम होंगे। वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए सर्वे कमिश्नर का अधिकार कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा नामित डिप्टी कलेक्टर को होगा। प्रस्तावित वक्फ अधिनियम में बोहरा और आगाखानियों के लिए अलग बोर्ड की स्थापना का प्रविधान किया गया है। किसी भी संपत्ति को वक्फ के रूप में दर्ज करने से पहले सभी संबंधित पक्षों को उचित नोटिस दिया जाएगा। यह न्यायसंगत कदम है और इससे बोर्ड पर सवाल भी नहीं उठेंगे।

वक्फ परिषद में केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद, मुस्लिम संगठनों के तीन नुमाइंदे, मुस्लिम कानून के तीन जानकार, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के दो पूर्व जज, एक प्रसिद्ध वकील, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चार लोग, भारत सरकार के अतिरिक्त या संयुक्त सचिव आदि होंगे। इनमें दो महिलाओं का होना जरूरी होगा। यह समान प्रतिनिधित्व का सर्वोत्तम माडल है। 2013 में वक्फ अधिनियम में संशोधन करके वक्फ बोर्डों को वक्फ संपत्ति के मामले में असीमित अधिकार दे दिए गए थे, जिन्हें किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। यह लोकतंत्र के विरुद्ध था और इससे आम मुसलमानों को कोई लाभ नहीं था। नए प्रविधान सभी चिंताओं का समाधान करेंगे। जेपीसी की रिपोर्ट के आधार पर प्रस्तावित विधेयक में कुछ और बदलाव संभव हैं। विधेयक पेश करते वक्त ही सरकार ने साफ कर दिया था कि उसका मजहबी मामलों में दखल का कोई इरादा नहीं है। आजादी के बाद वक्फ कानून 1954 में अस्तित्व में आया, जिसे 1955 और 2013 में संशोधित किया गया। लगातार बढ़ रही भ्रष्टाचार की शिकायतों के बाद सरकार ने एक बार फिर इसमें बदलाव का प्रस्ताव रखा है। हमें समाज की बेहतरी के लिए इसका स्वागत करना चाहिए।

(लेखिका दिल्ली हज समिति की अध्यक्ष हैं)