राहुल गांधी अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान लगातार ऐसा कुछ कह या कर रहे हैं, जो विवाद का विषय बन रहा है। पहले उन्होंने बेरोजगारी का सवाल उठाकर भारत के मुकाबले चीन की स्थिति बेहतर बताई, फिर यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया कि भारत में लड़ाई इसकी है कि सिख पगड़ी धारण कर सकते हैं या नहीं? इसके साथ ही उन्होंने आरक्षण खत्म करने लायक स्थितियों का जिक्र किया और जब इसका विरोध हुआ तो यह कह दिया कि वह तो इसकी सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करना चाहते हैं।

सिखों के संदर्भ में उनके बयान को भड़काऊ ही कहा जाएगा और इसे इससे समझा जा सकता है कि खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने उनके कथन को अपने पक्ष में भुनाना शुरू कर दिया। राहुल का यह कहना भी भड़काऊ ही था कि भारत में अन्य भारतीय भाषाओं और उनकी संस्कृति को हिंदी के मुकाबले कमतर बताया जा रहा है। इस पर आश्चर्य नहीं कि अमेरिका में राहुल ने जिस तरह भारत विरोध के लिए कुख्यात लोगों से मुलाकात की, उसका भी विरोध शुरू हो गया है। इस सबसे वह किस तरह बेपरवाह हैं, इसका पता इससे चलता है कि अब उन्होंने अपने इस पुराने बयान को दोहरा दिया कि प्रधानमंत्री मोदी चार हजार वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा किए चीन से नहीं निपट पाए। यह तय है कि भाजपा नेता और मोदी सरकार के मंत्री इसका भी प्रतिवाद करते हुए राहुल को गलत ठहराएंगे, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वे आम लोगों को यह संदेश दे पाएंगे कि नेता प्रतिपक्ष संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के फेर में राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंचा रहे हैं?

यह एक तथ्य है कि भाजपा विभिन्न विषयों पर राहुल गांधी की तमाम आलोचना के बाद भी अपने पक्ष में विमर्श नहीं खड़ा कर पा रही है। पहले वह कोई विमर्श खड़ा करती थी और कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दल उस पर अपनी सफाई देते हुए दिखते थे। अब इसका उलटा हो रहा है। अब विपक्षी नेता और विशेष रूप से राहुल गांधी कोई गलत-सही मुद्दा उछालते हैं और सत्तापक्ष सफाई देते हुए दिखता है। यह स्थिति लोकसभा चुनावों के समय से ही देखने को मिल रही है। तब राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने के जो आरोप उछाले, सत्तापक्ष उनका सही तरीके से प्रतिकार नहीं कर सका। इसका उसे चुनावों में नुकसान भी उठाना पड़ा। जब किसी मामले में कोई पक्ष प्रतिक्रिया देते हुए ही नजर आता है तो वह विमर्श की लड़ाई में कमजोर ही दिखता है। राहुल के रवैये से यह साफ है कि उनके मन में जो भी उलटा-सीधा आएगा, वह उसे बोलेंगे और इसकी परवाह भी नहीं करेंगे कि इससे राष्ट्रीय हित सध रहे हैं या नहीं? ऐसे में भाजपा को यह सोचना ही होगा कि आखिर प्रभावी तरीके से उनका प्रतिकार कैसे किया जाए?