चुनौती
अंधकार न हो तो प्रकाश की कद्र कैसे होगी? चुनौतियों से निरंतर जूझते रहने का नाम ही जीवन है।
दीर्घावधि तक टिकी या बेकाबू प्रतीत होती कठिनाई, दुविधा या रुकावट चुनौती का रूप ले लेती हैं। सामान्य सोच विचार के अनुसार फूल हैं तो कांटे भी होंगे। प्रतिकूल परिस्थितियां जीवन का अभिन्न अंग हैं, इनका आना-जाना लगा रहेगा और इन्हें स्वीकार करना होगा। अंधकार न हो तो प्रकाश की कद्र कैसे होगी? चुनौतियों से निरंतर जूझते रहने का नाम ही जीवन है। जिन्हें सदा संरक्षण मिलता रहा वे स्वतंत्र रूप से बेहतरीन कार्य निष्पादन में अक्षम रहे। ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, कला, साहित्य, अध्यात्म, समाजकार्य आदि के क्षेत्रों में जिन्होंने बुलंदियां हासिल कीं, उन्होंने कुदाली पकड़कर अपने रास्ते स्वयं तैयार किए। लक्ष्य प्राप्ति की उधेड़बुन में एक-दर-एक चुनौती से निबटने की प्रक्रिया में उन्हें निजी स्वार्थ साधने की सुध न रही। सुविदित भौतिक शास्त्री न्यूटन ने गति की बेहतर समझ में आड़े आती चुनौतियों को सुलझाते हुए गणित की एक प्रशाखा कैल्कुलस ईजाद कर डाली। किसी निर्धारित या नपे-तुले कार्य को पूरा कर डालना यांत्रिक गतिविधि है, जिसे रोबोट या मशीन कम समय में अधिक दक्षता से बखूबी निपटा लेती है। इसकी तुलना में चुनौतियों से जूझने के लिए बुद्धि, अंतर्दृष्टि, दूरदृष्टि और विशेष सूझबूझ चाहिए।
कर्मवीर चुनौतियों से कतराता या बचने का प्रयास नहीं करता। ऐसा इसलिए, क्योंकि वह जानता है कि इन्हीं सीढ़ियों के माध्यम से मंजिल तक पहुंचा जाएगा। मार्टिन लूथर किंग के अनुसार किसी की शख्सियत की पहचान सुविधा संपन्न परिस्थितियों के दौरान नहीं, बल्कि तब होती है, जब वह चुनौतियों से घिरा होता है। एक कवि ने यहां तक लिखा है, जिस व्यक्ति को प्रकृति असाधारण मुकामों के लिए तराशती है, उसे थपेड़ती, पटकती और तूफानों और कठिनतम परीक्षणों से गुजारती है तब जाकर वह निखर कर नायाब हीरा बनता है। दरअसल चुनौतियों का सामना किए बगैर प्रगति संभव नहीं। चुनौतियों से भागने या आंख मूंदने का अर्थ है समाधान से और अधिक दूर चले जाना। नई चुनौती व्यक्ति को तोड़ दे या झकझोर कर उसमें अभीष्ट तक पहुंचने की ललक जगा दे, यह उसकी सोच और नजरिए पर निर्भर है। विद्वानों ने कहा है, चुनौती से डरने या इसे समस्या मानने के बदले हर समस्या को बतौर चुनौती स्वीकार करें और उससे निबटें।
[ हरीश बड़थ्वाल ]